सैकड़ों हजारों बीमारियों से बचे रहने का सस्ता । सुन्दर । सुलभ । व सरल औषधीय नाम - एलोवेरा ।
एलोवेरा एक औषधीय पौधा है । और यह भारत में प्राचीनकाल से ग्वार पाठा या घृतकुमारी के नाम से जाना जाता है । यह कांटेदार पत्तियों वाला पौधा है । जिसमें हर प्रकार के रोग निवारण के गुण असाधारण रूप से भरे होते हैं । औषधि की दुनियाँ में इसे संजीवनी भी कहा जाता है । इसे साइलेंट हीलर तथा चमत्कारी औषधि भी कहा जाता है । इसकी 200 से ज्यादा प्रजातियाँ हैं । लेकिन इनमें से 5 प्रजातियाँ ही हमारे स्वास्थय के लिए लाभकारी हैं । रामायण । बाइबल । और वेदों में भी इस पौधे के गुणों की चर्चा की गई है । एलोवेरा का जूस पीने से कई बीमारियों का निदान हो जाता है । आयुर्वेदिक पद्धति के मुताबिक इसके सेवन से - वायु जनित रोग । पेट के रोग । जोडों के दर्द । अल्सर । अम्ल पित्त आदि बीमारियाँ दूर हो जाती हैं । इसके अलावा एलोवेरा को रक्त शोधक व पाचन क्रिया के लिए काफी गुणकारी माना जाता है ।
एलोवेरा जूस के फायदे -
1 एलोवेरा में 18 धातु 15 एमिनों एसिड और 12 विटामिन मौजूद होते हैं । जो खून की कमी को दूर कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाते हैं । 2 एलोवेरा की कांटेदार
पत्तियों को छीलकर रस निकाला जाता है । 3 से 4 चम्मच रस सुबह खाली पेट लेने से शरीर में दिन भर चुस्ती फुर्ती व स्फूर्ति बनी रहती है । 3 एलोवेरा जूस पीने से कब्ज की बीमारी से छुटकारा मिलता है । 4 एलोवेरा जूस मेंहदी में मिलाकर बालों में लगाने से बाल चमकदार व स्वस्थ होते हैं । 5 एलोवेरा जूस पीने से शरीर में शुगर का स्तर सामान्य बना रहता है । 6 एलोवेरा जूस - बवासीर । डायबिटीज । गर्भाशय के रोग व पेट के विकारों को दूर करता है ।
7 एलोवेरा जूस पीने से - त्वचा की खराबी । मुहांसे । रूखी त्वचा । धूप से झुलसी त्वचा । झुर्रियाँ । चेहरे के दाग । धब्बों व आँखों के काले घेरों को दूर किया जा सकता है । 8 एलोवेरा जूस पीने से मच्छर के काटने पर फैलने वाले इंफ़ेक्शन को कम किया जा सकता है । 9 एलोवेरा जूस ब्लड को प्यूरीफाई करता है । साथ ही हीमोग्लोबिन की कमी को भी पूरा करता है । 10 एलोवेरा जूस शरीर में व्हाइट ब्लड सेल्स की संख्या को बढाता है । 11 एलोवेरा जूस त्वचा की नमी को बनाए रखता है । जिससे त्वचा स्वस्थ दिखती है । यह त्वचा के लचीलेपन को बढाकर त्वचा को जवान और खूबसूरत बनाता है । 12 एलोवेरा जूस का नियमित रूप से सेवन करने से त्वचा भीतर से भी खूबसूरत बनती है । और बढती उमृ से त्वचा पर होने वाले कुप्रभाव भी कम होते हैं । 13 एलोवेरा जूस का हर रोज सेवन करने से शरीर के जोडों के दर्द को कम किया जा सकता है । 14 सौंदर्य निखार के लिए एलोवेरा से बनने वाले हर्बल कास्मेटिक प्रोडक्ट जैसे - एलोवेरा जैल ।
बाडी लोशन । हेयर जैल । स्किन जैल । शैंपू । साबुन । फेशियल । फोम आदि पूर्णतया हानि रहित व अत्यन्त स्वास्थ्यप्रद होते है ।
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Know top 6 Hydrating Foods - Celery: 96% water Cucumbers: 95% water Watermelon: 95% water Bell Peppers: 92% water Strawberries: 92% water Cantaloupe: 90% water
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मेरे भाव में भर आओ भगवन । मैं तुम्हारे गीत गाऊँ । प्रार्थना बनकर तुम्हारी । मैं तुम्हारे पास आऊँ ।
इस देह से जाऊँ अगर मैं । इस ज़हाँ को छोड़ जाऊँ । पर तुम्हारी आरती का । दीप बन मैं जगमगाऊँ ।
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भारत देश को बेचने की तैयारी हो गई है । कांग्रेस आखिर चाहती क्या है ? वाल मार्ट और उसके जैसी लुटेरी कंपनियों के भारत में किराना स्टोर खोलने पर क्या होगा ? विदेशी कंपनियों को किराना दूकान खुलवाने की अनुमति देने के पीछे कांग्रेस तर्क दे रही है कि - हमें विदेशी पूंजी चाहिए । क्योंकि भारत के पास पैसा नहीं है । सरकार के अनुसार । जो कम्पनी आयेगी । उसे कम से कम 10 करोड़ डालर यानी 500 करोड़ रुपये लगाना होगा । हमारे देश में अकेले 2G घोटाले का आरोपी ए राजा की पत्नी ही 5 000 करोड़ रुपये लगा सकती है । या दयानिधि मारन ही 4 500 करोड़ लगा सकता है । हसन अली भी 1 000 00 लाख करोड़ लगा सकता है । हमारे सभी गद्दारों की संपत्ति यदि मिलाई जाये । तो भारत में 5 00 000 00 करोड़ लगाया ज़ा सकता है । तो फिर विदेशियों का पैसा हमें क्यों चाहिए ?
भारत का एक आई ए एस IAS ही अकेले 500 करोड़ लगा सकता है । भारत का एक क्लर्क 10 करोड़ लगा सकता है । भारत की देशी कंपनिया खुद 5 साल के अन्दर किराना में 2 00 000 करोड़ लगाने के लिए लाइन में खडी है । तो विदेशियों को बुलाने की आवश्यकता किसे महसूस हुई है ?
विदेशी कंपनिया पैसा कमाकर विदेश ले जाएगी । और हमारे देश के लोगों को रासायनिक जहर से पैदा की हुई चीजें खिला खिला कर मार डालेंगे । भारत के 10 करोड़ लोगों को बेरोजगार बना देंगे । इतनी सीधी सी बात । अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह की समझ में क्यों नहीं आ रही है ?
देश को पैसा चाहिए । तो क्यों नहीं मनमोहन सिंह ने उसी मीटिंग में भारत के गद्दारों द्वारा जमा काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करके उसे भारत वापस लाने की प्रक्रिया शुरू किया ?
आपको शायद विश्वास नहीं होगा । लेकिन यदि भारत के सभी बैंक लाकरों को खोला जाये । तो कम से कम 6 000 00 करोड़ की अवैध संपत्ति मिलेगी । और यह भारत के सभी नेताओ को मालूम है । क्यों नहीं इन भारतीयों को यह मौका दिया जाता है ? यह मौका क्यों अंग्रेज ईसाइयों को सरकार देना चाहती है ?
इसका जवाब कौन देगा - सोनिया या मनमोहन ?
1 अकेले वाल मार्ट की परिसम्पत्तियो की कीमत 40 गरीब देशों की कुल आय से भी ज्यादा है ।
2 एक बार ये कम्पनियाँ भारत आ गयी । तो इसके जाने से पहले भारत के कईं करोड़ लोगो को मरना होगा । क्योंकि एक छोटी सी ईस्ट इंडिया कंपनी
को भगाने के लिए 65 000 लोगों ने अपनी जान दी थी । और ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत से भागने में करीब 200 साल का वक्त लगा था । अगर वाल मार्ट जैसी विदेशी कंपनियां भारत में आई । तो ना जाने कितनी सदियाँ लगेगी ? इनको भगाने में ।
3 भारत सरकार को निश्चित ही विदेशी लोग चला रहे है । इसीलिए इन्होने विदेशियों को भारत में किराना स्टोर खोलने की अनुमति दे दी है । अब क्या होगा ?
4 भारत में 1 20 00 000 लोग ठेले पर । फूटपाथ पर । सर पर । सब्जी । कपडा । बर्तन । बिसातखाना आदि सभी सामानों को बेचकर जीविका चलाते है । अब इसमे से कम से कम 70% या कहिए कि करीब 85 00 000 लोग अगले 4 साल के अन्दर दुकान बंद करने के लिए बाध्य हो जायेंगे । और समाज में मार काट । चोरी । भुखमरी मचेगी । भारत में वैसे ही 20 करोड़ लोग पहले से ही
बेरोजगार हैं । यानी भारत में बेरोजगारों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होगी ।
5 ये विदेशी कंपनिया यहाँ मुनाफा कमाने के लिए आ रही हैं । यानी मुनाफा विदेश जायेगा । और विदेशी माल बेचने से भारत में और बेरोजगारी आयेगी । और सभी स्वदेशी कारखाने जल्दी ही बंद हो जायेगे ।
6 अब स्वदेशी से स्वावलंबन का सपना शायद ही पूरा हो पाए । यानि नेहरू का दस्तखत किया हुआ " ट्रांसफर ऑफ़ पॉवर अग्रीमेंट " पूरी तरह से अब लागु हो रहा है । जो अंग्रेजो के द्वारा पास किये गए " इंडियन इनडिपेंडेंस एक्ट 1947 " के हिसाब से चल रहा है । अब भारत में विष मुक्त खेती की बात करना और आयुर्वेद को बढ़ावा सब बेमानी हो जायेगा ।
7 इसके अलावा भी बहुत सारे कानून बनाने थे । जैसे - राइट टु रेकाल । राइट टु रिजेक्ट । विदेशी किराना दुकान
का कानून लाना क्यों जरुरी था ? ये ऐसे ही जैसे कि कांग्रेस काला धन लाना चाहती है । यदि निवेश चाहिए । तो काला धन लाईये । रामदेव बाबा का मदद लीजिये । भारत में 100 लाख करोड़ का काला धन पहले से है ।
ये कांग्रेस इस देश को अब कब तक विदेशियो से लुटवाएगी ? ये तो वैसे है । जैसे चिदंबरम ने सोनिया के कहने से 8 इटालियन और 4 चोर स्विस बैंक चोरी चोरी खुलवाये थे । अब आगे क्या होगा ? अडवानी भाई कहाँ हैं ? इस देश को अंग्रेजों ने काले अंग्रेजों के साथ मिलकर बर्बाद किया था । और आगे भी करेंगे ।
भारत की अर्थव्यवस्था का अध्ययन जब आप करेंगे । तो पायेंगे कि - हमारी अर्थव्यवस्था जो है । उसका 80% unorganised sector ( असंगठित ) में चलती है । और 20% अर्थव्यवस्था ही organised ( संगठित ) है । हमारी जो बड़ी बड़ी कंपनियां प्राइवेट और
पब्लिक सेक्टर में हैं । वो इस 20% हिस्से में हैं । और 80% हिस्सा unorganised सेक्टर में हैं । जैसे छोटे उद्योग । मंझोले उद्योग । कृषि क्षेत्र । फुटपाथ की दुकानें । किराना दुकानें । परचून की दुकानें General Store फूटपाथ पर हमारे यहाँ बाज़ार लगते हैं । दिल्ली में चले जाईये । दिल्ली की दुकानों में । मालों में जितना सामान बिकता है । उससे ज्यादा दिल्ली के फुटपाथों पर बिकता है । मुंबई चले जाईये । कोलकाता चले जाईये । चेन्नई चले जाईये । बंगलौर चले जाईये । हैदराबाद चले जाईये । हर बड़े शहर में आपको ऐसे बाजार मिल जायेंगे । और कितना सुन्दर बाजार है ये । कोई बिल्डिंग नहीं । कोई स्ट्रक्चर नहीं । कोई ए.सी. नहीं । establishment का खर्चा शुन्य । हजारों करोड़ का बाज़ार है ये । और ये इतना व्यवस्थित और इतना सुन्दर बाज़ार क्यों लगता है ? क्योंकि मौसम की मेहरबानी है । हमारे देश के ऊपर । मौसम हमारे यहाँ इतना अनुकूल है कि हमको मालूम है कि - बारिश के मौसम में ही बारिश आएगी । सर्दी के दिनों में ही सर्दी होगी । गर्मी के दिनों में ही गर्मी होगी । इसलिए ये बाजार लगता है । और सजता है । और दूसरी बात कि भारत में जीवन को चलाने के लिए जितनी जरूरत की चीजे होती हैं । वो हर समान हर जगह होती है । Indian Council for Agricultural Research ( ICAR ) के दस्तावेज मेरे पास हैं । और उनके अनुसार भारत में 14 785 वस्तुएं होती हैं । ये भारत की सभी राज्यों में एक समान होती हैं । और भारत के उन शहरों या गाँव को बाहर से केवल नमक मंगाना पड़ता है । बाकी हर जरूरत की चीज उसी राज्य में हो जाती है । यूरोप और अमेरिका में चूँकि मौसम की अनुकूलता नहीं है । साल में 9
महीने ठण्ड पड़ती है । और उनके यहाँ कभी भी बारिश हो जाती है । और बर्फ भी बहुत पड़ती है । धुप का दर्शन तो साल में 300 दिन होता ही नहीं है । इसके अलावा उनके कृषि क्षेत्र में कुछ होता नहीं है । कुल मिला कर 2 ही चीजें होती हैं । आलू और प्याज । और थोडा बहुत गेंहू । हाँ अमेरिका यूरोप से थोडा बेहतर है । थोडा सा । वहाँ कुछ चीजें यूरोप से ज्यादा हो जाती हैं । बाकी उसका भी वही हाल है । तो अपनी इन कमियों को पूरा करने के लिए उन्हें बाहर से वस्तुओं का आयात करना पड़ता है । तो उनकी ये समस्या है । जीवन चलाने के लिए चाहिए तो सब कुछ । लेकिन होता कुछ भी नहीं । तो बाहर से
जो समान आते हैं । उनको centralised करके उनको रखना पड़ता है । ताकि लोग आकर उसे खरीद सकें । इसलिए उनको बड़े बड़े शापिंग माल्स की जरूरत पड़ती है । और उनके शापिंग माल्स भारत के माल्स की तरह नहीं हैं । उनके और हमारे शापिंग माल्स में जमीन आसमान का अंतर है । उनके शापिंग माल्स में मोटर कार से लेकर सुई धागे तक मिल जायेंगे आपको । और अगर ये 1 जगह ना मिले । तो उनकी जिंदगी चलनी मुश्किल है । तो उनका unorganised sector इतना बड़ा नहीं है । मौसम की अनुकूलता नहीं है । सब कुछ सब जगह नहीं होता । सब बाहर से मंगाना पड़ता है । तो उन्होंने बड़े बड़े Departmental Store बनाये हैं - वालमार्ट आया । केयर फॉर आया । टेस्को आया । ये बाहर से समान मंगाते और उसे redistribute करते हैं । उनकी मजबूरी को हमारे यहाँ ख़ुशी ख़ुशी लाया जा रहा है । और हमारा राजा कह रहा है कि - वालमार्ट को भारत
में आना चाहिए । बड़े बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर departmental store खुलने चाहिए । रिटेल मार्केटिंग में विदेशी निवेश होना चाहिए । कैबिनेट की मंजूरी भी मिल गयी है । और सरकार उसको वापस लेने को तैयार नहीं है । अदूरदर्शी राजा से उम्मीद भी क्या की जा सकती है ?
वालमार्ट के समर्थक लोग अलग अलग न्यूज़ चैनलों पर सरकारी भोपू बन के तर्क दे रहे हैं । तर्क क्या हैं - जब ये कंपनियां आयेंगी । तो ये किसानों से सीधा अनाज खरीदेंगे । किसानों को लाभ होगा । बिचौलिए ख़त्म हो जायेंगे । उपभोक्ताओं को भी फायदा होगा । रोजगार के अवसर बढ़ेंगे । और अक्सर इस देश के पढ़े लिखे लोग हैं । वो इस बात को मानते हैं कि - ये ठीक रास्ता है WTO पर जब हमारे सरकार ने हस्ताक्षर किया था । तब भी यही कहा था । यही तर्क दिए गए थे । वालमार्ट इतनी बड़ी कंपनी है कि - उसकी सालाना आय 48 देशों की GDP से ज्यादा
है । वालमार्ट का total turn over है । वो 400 बिलियन डॉलर का है । जो कि भारत के अन्दर जितने व्यापार है । उसके बराबर है । एक कंपनी का ये हाल है । वालमार्ट अमेरिका की कंपनी है । और उनको अपने देश में एक disclosure statement देनी होती है । और अपने disclosure statement में वालमार्ट ने कहा है कि - पिछले 5 साल में उसने भारत के अन्दर 70 करोड़ रूपये खर्च किया है । खर्च क्यों किया है ? तो भारतियों को शिक्षित educate करने के लिए । समझाने के लिए । मतलब आप समझे कि नहीं ? ये जो टेलीविजन पर और अख़बारों में भोंपू लोग बैठे हैं । उन जैसे लोगों के लिए । और सरकार को educate नहीं करेगी
। तो उसका प्रपोजल तो पास होगा ही नहीं । तो बाकी कंपनियों का खर्च कितना है ? ये मालूम नहीं है । क्योंकि उनका disclosure statement नहीं आया है ।और देखिये । सरकार का पेंडुलम खिसक कर इनके पक्ष में आ गया है । इसलिये देखिये । सरकार कैसे अकड़ कर बोल रही है कि - ये वापस नहीं होगा ।
कहा जा रहा है कि - इससे अपव्यय कम होगा । यह भी कहा गया है कि - इससे रोजगार बढ़ेंगे । और किसानों को उनकी फसल की बेहतर कीमत मिल सकेगी । हालांकि ये तर्क संदेहास्पद हैं । और सूक्ष्म परीक्षण पर शायद ही खरे उतर पाएं । इस विवाद से परे यह पूछा जाना चाहिए कि - ऐसे मल्टी ब्रांड रिटेल क्या उत्पादक ( चाहे किसान हों । या निर्माता ) से उपभोक्ता के बीच होने वाले वितरण मूल्य को कम करेगा ? मार्केटिंग की भाषा में इसे " चैनल
कॉस्ट’ " कहा जाता है । आम आदमी की भाषा में यह परिवहन । संग्रह । वित्तीय प्रबंधन । विक्रय पर होने वाला वह खर्च है । जो उत्पादन बिंदु और उपभोक्ता को की गई अंतिम बिक्री के बीच किया जाता है । यह आर्थिक कार्य कुशलता का मुख्य मापदंड है । जिस पर हमें गौर करना चाहिए । यह सवाल ही तय करेगा कि - मल्टी ब्रांड रिटेल में एफ डी आई न्यायोचित है । या नहीं । भारत की थोक और खुदरा व्यापार व्यवस्था की तुलना में वालमार्ट और टेस्को जैसे मल्टी ब्रांड रिटेलर्स उपभोक्ता को मिलने वाले मूल्य में तत्काल काफी बढ़ोतरी कर देंगे । इस बात को साबित करने के लिए हमारे पास कई प्रमाण हैं । उपलब्ध तथ्यों और तुलनात्मक अध्ययन से इसे आसानी से दिखाया जा सकता है । मूल्यों में होने वाली वृद्धि का यह % छोटा नहीं है । भारत के थोक और खुदरा व्यापार में होने वाले " मार्क अप्स " ( क्रय मूल्य और विक्रय मूल्य के बीच का अंतर ) की तुलना में मल्टी ब्रांड रिटेल में " मार्क अप्स " की गुंजाइश 2 गुना से लेकर 9 गुना तक होती है । यह मार्क अप्स उनकी व्यापार संरचना में निहित होता है । जिसका भुगतान पश्चिमी देशों में आम उपभोक्ता अपनी
रोजमर्रा की खरीद में करते हैं । आइए जरा रोजमर्रा के काम में आने वाले पदार्थो के ऐसे 4 वर्गों के " चैनल कॉस्ट " या खर्च की तुलना करें । जो मल्टी ब्रांड रिटेल के जरिये उपलब्ध होंगे ।
पहला वर्ग है । उपभोक्ता वस्तुओं का - इस मामले में भारत में वितरक व थोक व्यापारी का मार्जिन 4 से 8% के बीच होता है । और खुदरा व्यापारी का मार्जिन होता है । 8% से 14 % तक । यह मार्जिन उत्पादन मूल्य पर जोड़ा जाता है । कंपनी की उत्पादन क्षमता । बाजार पर उसकी पकड़ । माल की किस्म आदि पर मार्जिन का % निर्भर करता है । इसलिए भारत में वितरण श्रृंखला के ऊपर आने वाली कुल चैनल कॉस्ट 12 से 22 % के मध्य होती है । अमेरिका और यूरोप में - सेफवेज । क्रोगेर्स और टेस्को जैसी कंपनियां इस श्रेणी के पदार्थो के बुनियादी मूल्य पर माल की किस्म । मात्रा । मांग और उपलब्धता को देखते हुए तकरीबन 40 % का मार्क अप्स लगाती हैं । यह चैनल मार्क अप्स भारतीय चैनल ।
रिटेल कीमतों की तुलना में 2 से 3 गुना ज्यादा है । इन कंपनियों द्वारा ग्राहकों को लुभाने के लिए समय समय पर घोषित सेल और लॉस लीडर प्रमोशन से हमें गुमराह नहीं होना चाहिए ।
दूसरा वर्ग है । वस्त्र का - भारत के कपड़ा व्यवसाय में संयुक्त रूप से थोक व खुदरा का मार्जिन । मिल कीमत के ऊपर 35 से 40 % के बीच होता है । रेडीमेड कपड़ों के व्यवसाय में किसी ब्रांडेड रिटेल दुकान का मार्जिन शायद ही कभी लागत के 30 % से ज्यादा होता है । अब जरा इसकी तुलना मेसीस या मार्क्स ऐंड स्पेंसर स्टोर से करते हैं । ये रिटेलर अक्सर कपड़ों के खरीद मूल्य पर 2 से 4.5 गुना मार्क अप लगाते हैं । उसके बाद वे 15 से 30 % की छूट सेल ऑफर पर देते हैं । सेल पर मिलने वाली कीमत के बावजूद इन रिटेलर्स द्वारा लगाया मार्क अप कम से कम 2 गुना अधिक होता है । इसीलिए नियमत: उनके मार्क अप्स भारतीय रिटेलर्स की तुलना में 5 से 9 गुना ज्यादा होते हैं ।
तीसरा । दवा और चिकित्सा सामग्री - भारत में दवा की दुकानें और औषधि विक्रेता एक व्यापारिक संस्था के रूप में काफी व्यवस्थित हैं । पर सप्लाई साइड बिखरा पड़ा है । जिससे उन्हें रिटेल में बेहतर मार्जिन मिल जाता
है । बावजूद इसके भारत में एक रिटेल दवा विक्रेता का मार्जिन 20 % तक होता है । इसमें अगर हम वितरक । थोक व्यापारी का 10 % मार्जिन और सी एंड एफ एजेंट का 4% जोड़ दें । तो कुल चैनल कॉस्ट लागत का 34 % बनती है । अब इसकी तुलना अमेरिका के वालग्रीन या सी वी एस या फिर ब्रिटेन के बूटस से कीजिए । ये रिटेलर्स चिकित्सा सामग्रियों और दवाइयों के दामों में 2 या 3 गुना मार्क अप कर देते हैं । और फिर कुछ मद पर सेल ऑफर चला देते हैं । जहां तक चैनल कॉस्ट का सवाल है । भारतीय दवा विक्रेताओं की तुलना में इन बड़े रिटेलर्स की कीमतों में कम से कम 6 गुना का मार्क अप रहता है ।
चौथा है । किचनवेयर - भारतीय चैनल कॉस्ट या खर्च इस श्रेणी में कम है । भारत में प्रेशर कुकर । कुकवेयर में वितरक । रिटेलर का संयुक्त मार्जिन 30 % से कम है । जिसमें से रिटेलर सिर्फ 10 से 15 % ही रखता है । इसी
श्रेणी के उत्पादों के लिए - वालमार्ट । ब्लूमगडेल्स और सीयर्स जैसे रिटेलर्स अमेरिका में लागत खर्च पर नियमत: 100 से 200 % का मार्क अप करते हैं । यहां तक कि सेल पर भी कम से कम भारत के मुकाबले चैनल मूल्यों में 5 गुना का मार्क अप रहता है ।
ये सभी साक्ष्य दर्शाते हैं कि - वर्षों में विकसित हुई भारतीय वितरण व्यवस्था । विश्व में सबसे सक्षम और किफायती है । माना कि हमारे बाजार यूरोप । अमेरिका व जापान के माल्स की तरह लुभावने नहीं । परन्तु आम घरेलू महिलाओं के लिए वे बेहद उपयोगी हैं । और कम कमाई व ज्यादा महंगाई के बुरे वक्त में उनका बखूबी साथ निभाते हैं । रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रस्ताव इस संतुलन को बिगाड़ देगा । आपूर्ति श्रृंखला में निवेश और बैक एंड लॉजिस्टिक्स की बातें सिर्फ चैनल कॉस्ट के मुख्य विषय से ध्यान हटाने के लिए हैं । उद्योगों और विदेशी सरकारों के दबाव में आए बगैर हमारी सरकारी कमेटी को अपना पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित करना चाहिए कि - हमारे देश के नागरिकों । उपभोक्ताओं के हित में क्या है ? हमारे बाजार बेहद सक्षम हैं । और लाखों छोटे व्यापारियों और उद्यमियों के हित से जुड़कर चलते हैं । इसमें हस्तक्षेप कर हमें मल्टी ब्रांड रिटेल के पश्चिमी माया जाल में नहीं फंसना चाहिए ।
आपने पढ़ा कि किस तरह पश्चिमी देशों में बड़े मल्टी ब्रांड रिटेलर्स जैसे - वालमार्ट । टेस्को और कार्रेफौर अपने सभी उत्पादों के दाम में कम से कम 2 गुना मार्क अप करते हैं । और भारत के रिटेल । होलसेल मार्क अप्स की तुलना में यह 9 गुना से भी अधिक तक चला जाता है । सारांश यह है कि - चैनल की सक्षमता इस बात से तय होनी चाहिए कि मार्क अप्स ( जो दुकान चलाने के खर्च । और चैनल द्वारा कमाए गए मुनाफे का कुल योग है ) के साथ आम उपभोक्ता को कितना मूल्य अदा करना पड़ेगा । इसी मापदंड के आधार पर मैंने यह निष्कर्ष निकाला था कि - थोक विक्रेता । वितरक । स्टॉकिस्ट और खुदरा
विक्रेता से बनी भारतीय वितरण श्रंखला दुनिया में सबसे सक्षम और किफायती है ।
ऐसा कैसे संभव है ? मैं जानता हूं कि - आप में से ऐसे लोग भी होंगे । जो इस निष्कर्ष को मानने से इंकार करेंगे । उनसे मेरा अनुरोध है कि - वे जरा पश्चिमी व भारतीय खुदरा बाजार के स्वरूप के गणितीय तर्क की गहराई से पड़ताल करें । जिस किसी ने भी व्यावसायिक कार्य प्रणाली एवं नियमों को देखा समझा है । वे बाजार की इस हकीकत से जरूर वाकिफ होंगे कि - बाजार जितना ही संगठित होता है । वह उपभोक्ता को चयन का कम अधिकार देता है । और रिटेलर द्वारा उतना ही अधिक मार्क अप करने व कीमतों में वृद्धि करने की गुंजाइश रहती है । इसके उलट बाजार जितना बिखरा होता है । और उपभोक्ता को चयन का अधिक विकल्प मिलता है । मार्क अप उतना ही कम होता जाता है । क्योंकि रिटेलर्स को प्रति स्पर्धा व व्यापार में बने रहने के लिए कम से कम मूल्य रखने पड़ते हैं ।
जब बड़े मल्टी ब्रांड रिटेल बाजार में प्रवेश करते हैं । तो उनकी रणनीति प्रति स्पर्धा को खत्म करने और बाजार पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने की होती है । 2 उदाहरणों पर गौर कीजिए । अमेरिका में रिटेल बाजार का आकार ( खाद्य सेवा और ऑटोमोटिव को छोड़ कर ) 2009 में 3 ट्रीलियन डालर आंका गया था । वालमार्ट ने 10% की बाजार हिस्सेदारी ( मार्केट शेयर ) के साथ 300 से भी अधिक बिलियन डॉलर का कारोबार किया था ।
जाहिर है । लंबे समय में अजिर्त ऐसी संगठित शक्ति का इस्तेमाल आपूर्ति कर्ता या वितरक से कम कीमत पर चीजें खरीदने और उपभोक्ता को अधिक मार्क अप्स के साथ बेचने के लिए किया जाता है । वालमार्ट का उद्देश्य दूसरे रिटेलर्स से ज्यादा किफायती बनना है । पर उसका मुख्य लक्ष्य अपने शेयर धारकों को अधिकतम लाभ पहुंचाना है । ( जिन लोगों को वालमार्ट के बारे में जानने की रुचि हो । वे बिल क्विन्न की किताब - How Walmart is Destroying America and the World पढ़ सकते हैं ) ब्रिटेन में इसी से मिलता जुलता उदाहरण टेस्को का है । पिछले वर्ष इस कंपनी ने 61 बिलियन पाउंड ( यानी 99 बिलियन अमेरिकी डॉलर ) का व्यापार किया था । और विकीपीडिया के अनुसार । ब्रिटेन किराना दुकान बाजार में इसकी हिस्सेदारी ( मार्केट शेयर ) 30 % है । इस स्तर का एकाधिकार रिटेल की दुनिया में अनोखा है । और टेस्को को
आपूर्ति कर्ता व उपभोक्ता । दोनों के ऊपर असाधारण शक्ति प्रदान कर देता है । ब्रिटेन में किराने का सामान खरीदने वालों के लिए घर के समीप ज्यादा से ज्यादा 2 या 3 रिटेलर ( टेस्को । सैन्सबरी या शायद अल्डी ) का विकल्प होता है । इसका अर्थ है कि प्रमोशनल आफर के बावजूद निर्धारित कीमतों में अधिमूल्य ( प्रीमियम ) शामिल रहता है । और उपभोक्ता की खरीदारी पर रिटेलर की पकड़ मजबूत बनी रहती है । उत्पादक के ऊपर भी उनकी जबर्दस्त पकड़ होती है । अब इसकी तुलना जरा भारत से कीजिए । हमारे पड़ोस में दर्जनों छोटे रिटेलर्स होते हैं । जिनमें हमारे रुपये को पाने की होड़ लगी रहती है । यहां जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा है । लिहाजा मार्क अप्स व कीमतें मजबूरन कम रहती हैं । हमारी बाजार संरचना लगभग परिपूर्ण है । जिसमें हजारों उत्पादक लाखों रिटेलर्स को माल उपलब्ध कराते हैं । जो आगे करोड़ों उपभोक्ताओं को अपनी सेवाएं देते हैं । बाजार में किसी के पास सचमुच इतना असर या जोर नहीं कि - वह
अधिक मार्क अप्स लगा सके । यह जमीन से जुड़ी सच्चाई है । जो लाखों छोटे व्यवसायों की उद्यमशीलता और ऊर्जा से पैदा हुई है । इसके संगठन में सरकार ने कोई भूमिका नहीं निभाई है ।
यदि बड़े मल्टी ब्रांड रिटेल को भारत में प्रवेश की अनुमति दी जाती है । तो उसका बुरा परिणाम होगा । किसी इलाके में एक विशाल रिटेल स्टोर का उदघाटन धूमधाम के साथ किया जाएगा । फिर बहुत सारे प्रमोशनल आफर दिए जायेंगे । और कई जरूरी सामान अनेक दिनों तक मूल कीमत से भी कम में बेचे जाएंगे ( वालमार्ट की भाषा में इसे - स्टॉम्प द कॉम्प.. कहा जाता है । जिसका अर्थ होता है । प्रति स्पर्धा को मिटा देना ) जाहिर है । इस छूट से आकर्षित होकर लोग भारी संख्या में वहां उमड़ पड़ेंगे । ऐसे में छोटे रिटेलर व्यापार घाटे को बहुत समय तक नहीं उठा पाएंगे । इस झटके की वजह से उनमें से ज्यादातर दुकानें बंद हो जाएंगी । ऐसा निरपवाद रूप से हर जगह हुआ है । प्रति स्पर्धा पूरी तरह ध्वस्त हो जाने पर आपूर्ति कर्ताओं व उपभोक्ताओं पर बड़े रिटेलर की पकड़ कस जाती है । उसके बाद बाजार पर
नियंत्रण करके वे अधिकतम मुनाफे के लिए धीरे धीरे मार्क अप्स बढ़ाते जाते हैं । ऐसे में आखिर क्यों भारत सरकार के प्रमुख वित्तीय सलाह कार के नेतृत्व में बनी कमेटी ने मल्टी ब्रांड रिटेल में एफ डी आई की सिफारिश की है ? फिर निवेश के लिए सुझाए गए कुछ मानदंड भी काफी दुरूह हैं । उदाहरण के लिए कमेटी ने न्यूनतम एफ डी आई निवेश 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर तय किया है । यह ओलंपिक में किसी हेवीवेट लिफ्टर को 10 किग्रा वजन उठाने के लिए कहने जैसा है । मैं उन वरिष्ठ बुद्धिजीवियों की कद्र करता हूं । जिन्होंने इस पहलू पर गौर किया है । मैं यह सलाह देने का साहस अवश्य करूंगा कि - इस संबंध में बनी नीति का लक्ष्य देश की विशाल आबादी का हित होना चाहिए । नीति निर्धारकों को पश्चिमी देशों की सरकारों को खुश करने की
जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए । जो भारतीय रिटेल बाजार को खुलवाने के लिए निरंतर दबाव बना रहे हैं । मल्टी ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति भारतीय खुदरा क्षेत्र व उन करोड़ों परिवारों का अहित करेगा । जो अपने गुजारे के लिए संघर्ष कर रहे हैं । 2008 में आई विश्व व्यापी आर्थिक मंदी से भारत बच गया । क्योंकि बैंकिंग उद्योग जगत जोखिम से अनजान था । ठीक वैसी ही स्थिति रिटेल में है । हमें भारत में पश्चिमी रिटेल की बीमार संरचना को लाने का प्रयास नहीं करना चाहिए । जो भारतीय उपभोक्ताओं को आने वाले समय में अपना गुलाम बना लेगी ।
ये बातें हमारे सरकार के लोगों । विभिन्न समाचार चैनलों । और अख़बारों में बैठे भोपुओं और नपुंसक विपक्ष
को समझ में नहीं आ रही है । विपक्ष तो नूरा कुश्ती लड़ रहा है । सरकार के साथ । नूरा कुश्ती आप समझते हैं न ? मतलब दिखावे के लिए हल्ला मचाते हैं । वास्तव में ये भारत देश की सरकार अब भारतियों की सरकार नहीं रही । बल्कि विदेशी कंपनियों की दलाल हो गयी है । और हो भी क्यों नहीं । जब इस देश का प्रधानमंत्री । वित्त मंत्री । गृह मंत्री । और तमाम मंत्री अमेरिका बनवा रहा है । तो इनसे उम्मीद भी क्या की जा सकती है ? ये भारत के लोगों का ख्याल थोड़े ही करेंगे । इन्हें तो अमरीकी हित की ज्यादा चिंता है ।
अगर आपको ये बातें मोबाइल में सुननी हो । तो निम्न लिंक से ऑडियो फाइल सुनें । या डाउनलोड करें ।
http://www.rajivdixit.com/?p=340
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प्रभु मेरे जीवन का उद्धार कर दो । भँवर में है नैय्या उसे पार कर दो ।
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