गुन गोबिंद गायो नही जनम अकारथ कीन । कह नानक हरि भज मना जिह बिध जल की मीन ।
बिखियन सो काहे रचियो निमख ना होहि उदास । कह नानक भज हरि मना परे ना जम की फाँस ।
तरनापो एयो ही गयो लिओ जरा तन जीत । कह नानक भज रे मना आउद जात है बीत ।
बिरद भयो सूझै नही काल पहूँचयो आन । कहो नानक नर बावरें क्यों ना भजे भगवान ।
धन दारा संपत्ति सगल जिन अपनी करि मानि । इन में कछु संगी नहीं नानक साची जानि ।
पतित उधारन भै हरन हरि अनाथ को नाथ । कह नानक तिह जानिए सदा बसत तुम साथ ।
तन धन जे तो को दिओ तासो नेह ना कीन । कह नानक नर बावरे अब क्यों डोलत दीन ।
तन धन संपै सुख दिओ अर जह नीके धाम । कह नानक सुन रे मना सिमरत काहे ना राम ।
सब सुख दाता राम है दूसर नाहिन कोय । कह नानक सुन रे मना तिह सिमरत सुख होय ।
जिह सिमरत गत पाइए तिह भज रे तै मीत । कह नानक सुन रे मना अउध घटत है नीत ।
पांच तत को तन रचियो जानो चतुर सुजान । जिन में उपज्या नानका लीन ताहे मै मान ।
घट घट मे हरि जू बसै संतन कहयो पुकार । कह नानक तिह भज मना भव निधि उतरहि पार ।
सुख दुख जिह परसे नही लोभ मोह अभिमान । कह नानक सुन रे मना सो मूरत भगवान ।
उसतति निंदाया नाहि जिहि कंचन लोह समान । कह नानक सुन रे मना मुकत ताहि तै जान ।
हरख सोग जाके नही बेरी मीत समान । कह नानक सुन रे मना मुकत ताहे तै जान ।
भै काहू को देत न न भै मानत आन । कह नानक सुन रे मना ज्ञानी ताहि बखान ।
जिहि बिखिया सगली तजी लिओ भेख बैराग । कह नानक सुन रे मना तिह नर माथे भाग ।
जिहि माया ममता तजी सभ ते भयो उदास । कह नानक सुन रे मना तिह घट ब्रह्म निवास ।
जिहि प्रानी होमै तजी करता राम पछान । कह नानक वह मुकत नर एह मन साची मान ।
भै नासन दुरमति हरन कलि में हरि को नाम । निसि दिन जो नानक भजै सफल होहि तिह काम ।
जिहबा गुन गोबिंद भजहु करन सुनहु हरि नाम । कह नानक सुनि रे मना परहि न जम के धाम ।
जो प्रानी ममता तजे लोभ मोह अंहकार । कह नानक आपन तरै औंरन लेत उधार ।
जिउ सपना अरु पेखना ऐसे जग को जानि । इन में कछु साचो नहीं नानक बिन भगवान ।
निसि दिन माया कारने प्रानी डोलत नीत । कोटन में नानक कोउ नारायन जिह चीत ।
जैसे जल ते बु्दबुदा उपजै बिनसे नीत । जग रचना तैसे रची कह नानक सुनि मीत ।
प्रानी कछु ना चेतई मदि माया के अंध । कह नानक बिन हरि भजन परत ताहि जम फंध ।
जौ सुख को चाहे सदा सरनि राम की लेह । कह नानक सुन रे मना दुरलभ मानुख देह ।
माया कारनि धावही मूरख लोग अजान । कह नानक बिन हरि भजन बिरथा जनम सिरान ।
जो प्रानी निसि दिन भजै रूप राम तिह जान । हरि जन हरि अंतर नही नानक साची मान ।
प्रस्तुतकर्ता - अशोक कुमार दिल्ली से । धन्यवाद अशोक जी ।
वैसे अर्थ काफ़ी सरल है । फ़िर भी शीघ्र प्रकाशित होगा ।
बिखियन सो काहे रचियो निमख ना होहि उदास । कह नानक भज हरि मना परे ना जम की फाँस ।
तरनापो एयो ही गयो लिओ जरा तन जीत । कह नानक भज रे मना आउद जात है बीत ।
बिरद भयो सूझै नही काल पहूँचयो आन । कहो नानक नर बावरें क्यों ना भजे भगवान ।
धन दारा संपत्ति सगल जिन अपनी करि मानि । इन में कछु संगी नहीं नानक साची जानि ।
पतित उधारन भै हरन हरि अनाथ को नाथ । कह नानक तिह जानिए सदा बसत तुम साथ ।
तन धन जे तो को दिओ तासो नेह ना कीन । कह नानक नर बावरे अब क्यों डोलत दीन ।
तन धन संपै सुख दिओ अर जह नीके धाम । कह नानक सुन रे मना सिमरत काहे ना राम ।
सब सुख दाता राम है दूसर नाहिन कोय । कह नानक सुन रे मना तिह सिमरत सुख होय ।
जिह सिमरत गत पाइए तिह भज रे तै मीत । कह नानक सुन रे मना अउध घटत है नीत ।
पांच तत को तन रचियो जानो चतुर सुजान । जिन में उपज्या नानका लीन ताहे मै मान ।
घट घट मे हरि जू बसै संतन कहयो पुकार । कह नानक तिह भज मना भव निधि उतरहि पार ।
सुख दुख जिह परसे नही लोभ मोह अभिमान । कह नानक सुन रे मना सो मूरत भगवान ।
उसतति निंदाया नाहि जिहि कंचन लोह समान । कह नानक सुन रे मना मुकत ताहि तै जान ।
हरख सोग जाके नही बेरी मीत समान । कह नानक सुन रे मना मुकत ताहे तै जान ।
भै काहू को देत न न भै मानत आन । कह नानक सुन रे मना ज्ञानी ताहि बखान ।
जिहि बिखिया सगली तजी लिओ भेख बैराग । कह नानक सुन रे मना तिह नर माथे भाग ।
जिहि माया ममता तजी सभ ते भयो उदास । कह नानक सुन रे मना तिह घट ब्रह्म निवास ।
जिहि प्रानी होमै तजी करता राम पछान । कह नानक वह मुकत नर एह मन साची मान ।
भै नासन दुरमति हरन कलि में हरि को नाम । निसि दिन जो नानक भजै सफल होहि तिह काम ।
जिहबा गुन गोबिंद भजहु करन सुनहु हरि नाम । कह नानक सुनि रे मना परहि न जम के धाम ।
जो प्रानी ममता तजे लोभ मोह अंहकार । कह नानक आपन तरै औंरन लेत उधार ।
जिउ सपना अरु पेखना ऐसे जग को जानि । इन में कछु साचो नहीं नानक बिन भगवान ।
निसि दिन माया कारने प्रानी डोलत नीत । कोटन में नानक कोउ नारायन जिह चीत ।
जैसे जल ते बु्दबुदा उपजै बिनसे नीत । जग रचना तैसे रची कह नानक सुनि मीत ।
प्रानी कछु ना चेतई मदि माया के अंध । कह नानक बिन हरि भजन परत ताहि जम फंध ।
जौ सुख को चाहे सदा सरनि राम की लेह । कह नानक सुन रे मना दुरलभ मानुख देह ।
माया कारनि धावही मूरख लोग अजान । कह नानक बिन हरि भजन बिरथा जनम सिरान ।
जो प्रानी निसि दिन भजै रूप राम तिह जान । हरि जन हरि अंतर नही नानक साची मान ।
प्रस्तुतकर्ता - अशोक कुमार दिल्ली से । धन्यवाद अशोक जी ।
वैसे अर्थ काफ़ी सरल है । फ़िर भी शीघ्र प्रकाशित होगा ।
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