16 जून 2011

अब जो भी लिखूँगा.. सालिड लिखूँगा

नमस्ते राजीव जी ! मैं आपका मित्र सुशील कुमार । मैं आपको स्पेशल धन्यवाद देने आया हूँ । आपने हमारे पडोसी जगदीश अंकल को अपने ब्लाग में जगह दी । कल मैं अंकल  से मिला था । मैं उनके यहाँ शाम को 7 बजे गया था । सोचा था कि अंकल  से गपशप भी हो जायेगी । और चाय की चुस्कियां भी ले लूँगा ।
लेकिन अंकल  ने मुझे रात के खाने तक बिठा कर रखा । और रात का खाना खिलाकर ही भेजा । आप विश्वास नही करेंगे । उन्होंने ( जगदीश जी ने ) शाम की चाय से लेकर रात के खाने तक सिर्फ़ और सिर्फ़ आपके ब्लाग के बारे में ही बात की । वैसे उन्होंने आपके ब्लाग के अभी सारे लेख नहीं पढे ।
क्युँ कि वो आपके ब्लाग पर नये हैं । लेकिन मैने वैसे मोटी मोटी जानकारी उनको आपके ब्लाग के बारे में दे दी ।

राजीव जी ! मैंने आपका आज ब्लाग पढा । जिसमें किसी सुभाष नाम के नौजवान ने बाबा रामदेव के बारे में बात की है । मैं बाबा रामदेव के बारे में कुछ अधिक न कहते हुये सिर्फ़ इतना ही कहूँगा कि बाबा रामदेव बैठे बिठाये ही दुविधा में फ़ँस गया ।
खैर.. आपने आज 1 ही लेख छापा है । उसमें आपने सुभाष जी को लिखा है कि अभी आपकी तरफ़ से उनके प्रश्नों के उत्तर देने बाकी है । तो मेरी आपसे प्रार्थना है कि कल वाले लेख में जब आप सुभाष जी के प्रश्नों के उत्तर देंगे । तो साथ साथ मेरा ये मैसेज भी छाप दें ।
मैंने आपसे शायद पिछले महीने " डायन " नाम की कहानी के बारे में जिकर किया था । मैंने सिर्फ़ इतना ही पूछना है कि क्या इस महीने जून के अन्दर ये प्रेत कहानी ( डायन वाली ) छप जायेगी ?
मैं आपसे ये नही कह रहा कि आप कहानी जल्दबाजी में छापें । न ही मैं जल्दी छापने की जिद कर रहा हूँ । सिर्फ़ जानकारी के लिये पूछा है कि - कब तक छपेगी ? क्युँ कि आपकी लिखी प्रेत कहानी का मुझे या शायद और भी बहुत से पाठकों को रोज ही इन्तजार रहता है । आपकी लिखी कहानी असल में कहानी नहीं होती बल्कि एक छुपी हुई सच्चाई होती है । बाकी फ़िर से एक बार और जगदीश अंकल जी की तरफ़ से धन्यवाद ।

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धन्यवाद सुशील जी ! मैं अपने सभी पाठकों को बता दूँ । आगरा में आँधी तूफ़ान कुछ अधिक आ रहे हैं । जिससे अक्सर कहीं न कहीं पेङ और इलेक्ट्रिक पोल टूट जाने से लाइट कट समस्या बन जाती है । लाइन वगैरह टूट जाने से सप्लाई रोक दी जाती है । और ठीक करने के बाद शुरू करते हैं । अभी दो घन्टे पहले 55 घन्टे बाद विधुत आपूर्ति सही हो पायी है । इसलिये सभी मामला अस्त व्यस्त सा हो गया है ।

वैसे मेरे घर इंवर्टर है । मगर ये पिछले 20 दिन से ही ऐसी गङबङ शुरू हुयी है । इससे पहले डे नाइट मुश्किल से 3 घन्टे की कटौती होती थी । अतः काफ़ी साल से आवश्यकता न होने से हमने बैटरी ली ही नहीं ।
खैर..एक शिक्षक और उससे बङकर अनुभवी बुजुर्गबार श्री जगदीश जी से मिलना काफ़ी यादगार मेरे लिये भी हैं । वास्तव में मैंने बुजुर्गों के अनुभव से ही बहुत कुछ सीखा है ।
सुभाष जी के उत्तर भी यदि कोई व्यवधान न बना तो शायद कल तक दे ही दूँ ।
डायन - शायद आपने ही इस कहानी की प्रेरणा नींव डाली थी । आप यकीन नहीं करोगे । इस कहानी को लेकर अभी से मुझे बहुत ई मेल मिल चुके हैं । पहले मैं प्रेत कहानी या कोई भी कहानी सीरियस न लेकर " बस  यूँ ही " अंदाज में लिखता था । अब जो भी लिखूँगा । सालिड लिखूँगा ।
अनुराग सागर के लेखों की वजह से अन्य मैटर पर ध्यान देना कम हो पाया । अब उसके 7-8 लेख के बराबर ही मैटर बचा है । फ़िर सभी तरह के विषयों पर लिखने की कोशिश करूँगा । आप सभी का आभार ।

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