धर्मदास बोले - हे साहिब ! जीवों के उद्धार के लिये जो वचन वंश चूङामणि संसार में आया । वह सब आपने बताया । वचन वंश को जो ग्यानी पहचान लेगा । उसको काल निरंजन का दुर्गदानी जैसा दूत भी नहीं रोक पायेगा । तीसरा सुरति अंश चूङामणि संसार में प्रकट हुआ है । वह मैंने देख लिया । फ़िर भी मुझे एक संशय है । हे साहिब ! मुझे समर्थ सत्यपुरुष ने भेजा था । परन्तु संसार में आकर मैं भी काल निरंजन के जाल में फ़ँस गया । आप मुझे सत सुकृत का अंश कहते हो । तब भी भयंकर काल निरंजन ने मुझे डस लिया ।
अगर ऐसा ही सब वंशो के साथ हुआ । तो संसार के सब जीव नष्ट हो जायेंगे । इसलिये हे साहिब ! ऐसी कृपा करिये कि काल निरंजन सत्यपुरुष के वंशो को अपने छल भेद से न छल पाये ।
तब कबीर साहिब बोले - हे धर्मदास ! यह तुमने ठीक ही कहा है । और तुम्हारा यह संशय भी सत्य है । हे धर्मदास ! अब आगे भविष्य में काल निरंजन क्या चाल खेलेगा ? वह मैं तुम्हें बताता हूँ । जब सतयुग मैं सत्यपुरुष ने मुझे बुलाया । और संसार में जाकर जीवों को चेताने के लिये कहा । तो काल निरंजन ने रास्ते में मुझसे झगङा किया । और मैंने उसका घमन्ड चूर चूर कर दिया । पर उसने मेरे साथ एक धोखा किया । और याचना करते हुये मुझसे तीन युग मांग लिये ।
अन्यायी काल निरंजन ने तब ऐसा कहा था - हे भाई ! मैं चौथा कलियुग नहीं माँगता । और मैंने उसे वचन दे दिया था । और तब जीवों के कल्याण हेतु संसार में आया । क्योंकि मैंने उसको तीन युग दे दिये थे । उसी से उस समय वचन मर्यादा के कारण अपना पँथ प्रकट नहीं किया । लेकिन जब चौथा कलियुग आया ।
तब सत्यपुरुष ने फ़िर से मुझे संसार में भेजा । पहले की ही तरह कसाई काल निरंजन ने मुझे रास्ते में रोका । और मेरे साथ झगङा किया । वह बात मैंने तुम्हें बता दी है । और काल निरंजन के बारह पँथ का भेद भी बता दिया है ।
काल निरंजन ने उस समय मुझसे धोखा किया । उसने मुझसे केवल बारह पँथ की बात कही थी । और गुप्त बात मुझको नहीं बतायी । तीन युग में तो वचन लेकर उसने मुझे विवश कर दिया । और कलियुग में बहुत जाल रचकर ऊधम मचाया । काल ने मुझसे सिर्फ़ बारह पँथ की कहकर गुप्त रूप से चार पँथ और बनाये । जब मैंने जीवों को चेताने के लिये चार कङिहार गुरु के निर्माण की व्यवस्था की । तो काल ने अपना अँश दूत भेज दिया । और अपनी छल बुद्धि का विस्तार किया । और अपने चार अँश दूतों को बहुत शिक्षा दी ।
काल निरंजन ने अपने दूतों से कहा - हे मेरे अँशो ! सुनो । तुम तो मेरे अपने वँश हो । तुमसे जो कहूँ । उसे मानो । और मेरी आग्या का पालन करो ।
हे भाई ! हमारा एक दुश्मन है । जो संसार में कबीर नाम से जाना जाता है । वह हमारा भवसागर मिटाना चाहता है । और जीवों को दूसरे लोक ( सत्यलोक ) ले जाना चाहता है । वह छल कपट कर मेरी पूजा के विरुद्ध जगत में भृम फ़ैलाता है । और मेरी तरफ़ से सबका मन हटा देता है । वह सत्यनाम की समधुर टेर सुनाकर जीवों को सत्यलोक ले जाता है । इस संसार को प्रकाशित करने में मैंने अपना मन दिया हुआ है । और इसलिये मैंने तुमको उत्पन्न किया । मेरी आग्या मानकर तुम संसार में जाओ । और कबीर नाम से झूठे पँथ प्रकट करो । संसार के लालची और मूर्ख जीव काम मोह विषय वासना आदि विषयों के रस में मग्न हैं । अतः मैं जो कहता हूँ । उसी अनुसार उन पर घात लगाकर हमला करो ।
संसार में तुम अपने चार पँथ स्थापित करो । और उनको अपनी अपनी ( झूठी ) राह बताओ ।
चारों के नाम कबीर नाम पर ही रखो । और बिना कबीर शब्द लगाये मुँह से कोई बात ही न बोलो । अर्थात इस तरह कहो । कबीर ने ऐसा कहा । कबीर ने वैसा कहा । जैसे तुम कबीर की ही वाणी उपदेश कर रहे होओ । कबीर नाम के वशीभूत होकर जब जीव तुम्हारे पास आये । तो उससे ऐसे मीठे वचन कहो । जो उसके मन को अच्छे लगते हों । ( अर्थात चोट मारने वाले वाले सत्य ग्यान की बजाय उसको अच्छी लगने वाली मीठी मीठी बातें करो । क्योंकि तुम्हें जीव को झूठ में उलझाना है । )
कलियुग के लालची मूर्ख अग्यानी जीवों को ग्यान की समझ नहीं है । वे देखा देखी की रास्ता चलते हैं । तुम्हारे वचन सुनकर वे प्रसन्न होंगे । और बारबार तुम्हारे पास आयेंगे । जब उनकी श्रद्धा पक्की हो जाय । और वे कोई भेदभाव न मानें । यानी सत्य के रास्ते और तुम्हारे झूठ के रास्ते को एक ही समझने लगें । तब तुम उन पर अपना जाल डाल दो । पर बेहद होशियारी से । कोई इस रहस्य को जानने न पाये ।
तुम जम्बूदीप ( भारत ) में अपना स्थान बनाओ । जहाँ पर कबीर के नाम और ग्यान का प्रमाण है ।
जब कबीर बाँधोंगढ ( छत्तीसगढ ) में जायें । और धर्मदास को उपदेश दीक्षा आदि दें । तब वे उसके 42 वंश के ग्यान राज्य को स्थापित करेंगे । तब तुम्हें उसमें घुसपैठ करके उनके राज्य को डांवाडोल करना है । वैसे मैंने 14 यमों की नाकाबन्दी करके जीव के सत्यलोक जाने का मार्ग रोक दिया है । और कबीर के नाम पर 12 झूठे पँथ चलाकर जीव को धोखे में डाल दिया है ।
हे भाई ! तब भी मुझको संशय है । उसी से मैं तुमको वहाँ भेजता हूँ । उनके 42 वंशो पर तुम हमला करो । और उन्हें अपनी बातों में फ़ँसा लो ।
काल निरंजन की बात सुनकर वे चारों दूत बोले - हम ऐसा ही करेंगे ।
यह सुनकर काल निरंजन बहुत प्रसन्न हुआ । और जीवों को छल कपट द्वारा धोखे में रखने के बहुत से उपाय बताने लगा । जीवों पर हमला करने के उसने बहुत से मन्त्र सुनाये ।
फ़िर उसने कहा - अब तुम संसार में जाओ । और चारों तरफ़ फ़ैल जाओ । और ऊँच नीच गरीब अमीर किसी को मत छोङो । और सब पर काल का फ़ँदा कस दो । तुम ऐसी कपट चालाकी करो कि जिससे मेरा आहार जीव कहीं निकलकर न जाने पाये ।
हे धर्मदास ! यही चारों दूत संसार में प्रगट होंगे । जो चार अलग अलग नामों से कबीर के नाम पर पँथ चलायेंगे । इन चार दूतों को मेरे चलाये बारह पँथों का मुखिया मानों ।
इनसे जो चार पँथ चलेंगे । उससे सब ग्यान उलट पुलट हो जायेगा । ये चार पँथ बारह पँथो का मूल यानी आधार होंगे । जो वचन वँश ( कबीर साहिब का असली पँथ ) के लिये शूल के समान पीङादायक होंगे । यानी हर तरह से उनके कार्य में विघ्न करते हुये जीवों के उद्धार में बाधा पहुँचायेंगे ।
यह सुनकर धर्मदास घबरा गये । और बोले - हे साहिब ! अब मेरा संशय और भी बङ गया है । मुझे उन काल दूतों के बारे में अवश्य बताओ । आप उनका चरित्र मुझे सुनाओ । उन काल दूतों का वेश और उनका लक्षण कहो । ये संसार में कौन सा रूप बनायेंगे । और किस प्रकार जीवों को मारेंगे । वे कौन से देश में प्रकट होंगे । आप मुझे शीघ्र बताओ ।
आगे जल्द प्रकाशित होगा ।
अगर ऐसा ही सब वंशो के साथ हुआ । तो संसार के सब जीव नष्ट हो जायेंगे । इसलिये हे साहिब ! ऐसी कृपा करिये कि काल निरंजन सत्यपुरुष के वंशो को अपने छल भेद से न छल पाये ।
तब कबीर साहिब बोले - हे धर्मदास ! यह तुमने ठीक ही कहा है । और तुम्हारा यह संशय भी सत्य है । हे धर्मदास ! अब आगे भविष्य में काल निरंजन क्या चाल खेलेगा ? वह मैं तुम्हें बताता हूँ । जब सतयुग मैं सत्यपुरुष ने मुझे बुलाया । और संसार में जाकर जीवों को चेताने के लिये कहा । तो काल निरंजन ने रास्ते में मुझसे झगङा किया । और मैंने उसका घमन्ड चूर चूर कर दिया । पर उसने मेरे साथ एक धोखा किया । और याचना करते हुये मुझसे तीन युग मांग लिये ।
अन्यायी काल निरंजन ने तब ऐसा कहा था - हे भाई ! मैं चौथा कलियुग नहीं माँगता । और मैंने उसे वचन दे दिया था । और तब जीवों के कल्याण हेतु संसार में आया । क्योंकि मैंने उसको तीन युग दे दिये थे । उसी से उस समय वचन मर्यादा के कारण अपना पँथ प्रकट नहीं किया । लेकिन जब चौथा कलियुग आया ।
तब सत्यपुरुष ने फ़िर से मुझे संसार में भेजा । पहले की ही तरह कसाई काल निरंजन ने मुझे रास्ते में रोका । और मेरे साथ झगङा किया । वह बात मैंने तुम्हें बता दी है । और काल निरंजन के बारह पँथ का भेद भी बता दिया है ।
काल निरंजन ने उस समय मुझसे धोखा किया । उसने मुझसे केवल बारह पँथ की बात कही थी । और गुप्त बात मुझको नहीं बतायी । तीन युग में तो वचन लेकर उसने मुझे विवश कर दिया । और कलियुग में बहुत जाल रचकर ऊधम मचाया । काल ने मुझसे सिर्फ़ बारह पँथ की कहकर गुप्त रूप से चार पँथ और बनाये । जब मैंने जीवों को चेताने के लिये चार कङिहार गुरु के निर्माण की व्यवस्था की । तो काल ने अपना अँश दूत भेज दिया । और अपनी छल बुद्धि का विस्तार किया । और अपने चार अँश दूतों को बहुत शिक्षा दी ।
काल निरंजन ने अपने दूतों से कहा - हे मेरे अँशो ! सुनो । तुम तो मेरे अपने वँश हो । तुमसे जो कहूँ । उसे मानो । और मेरी आग्या का पालन करो ।
हे भाई ! हमारा एक दुश्मन है । जो संसार में कबीर नाम से जाना जाता है । वह हमारा भवसागर मिटाना चाहता है । और जीवों को दूसरे लोक ( सत्यलोक ) ले जाना चाहता है । वह छल कपट कर मेरी पूजा के विरुद्ध जगत में भृम फ़ैलाता है । और मेरी तरफ़ से सबका मन हटा देता है । वह सत्यनाम की समधुर टेर सुनाकर जीवों को सत्यलोक ले जाता है । इस संसार को प्रकाशित करने में मैंने अपना मन दिया हुआ है । और इसलिये मैंने तुमको उत्पन्न किया । मेरी आग्या मानकर तुम संसार में जाओ । और कबीर नाम से झूठे पँथ प्रकट करो । संसार के लालची और मूर्ख जीव काम मोह विषय वासना आदि विषयों के रस में मग्न हैं । अतः मैं जो कहता हूँ । उसी अनुसार उन पर घात लगाकर हमला करो ।
संसार में तुम अपने चार पँथ स्थापित करो । और उनको अपनी अपनी ( झूठी ) राह बताओ ।
चारों के नाम कबीर नाम पर ही रखो । और बिना कबीर शब्द लगाये मुँह से कोई बात ही न बोलो । अर्थात इस तरह कहो । कबीर ने ऐसा कहा । कबीर ने वैसा कहा । जैसे तुम कबीर की ही वाणी उपदेश कर रहे होओ । कबीर नाम के वशीभूत होकर जब जीव तुम्हारे पास आये । तो उससे ऐसे मीठे वचन कहो । जो उसके मन को अच्छे लगते हों । ( अर्थात चोट मारने वाले वाले सत्य ग्यान की बजाय उसको अच्छी लगने वाली मीठी मीठी बातें करो । क्योंकि तुम्हें जीव को झूठ में उलझाना है । )
कलियुग के लालची मूर्ख अग्यानी जीवों को ग्यान की समझ नहीं है । वे देखा देखी की रास्ता चलते हैं । तुम्हारे वचन सुनकर वे प्रसन्न होंगे । और बारबार तुम्हारे पास आयेंगे । जब उनकी श्रद्धा पक्की हो जाय । और वे कोई भेदभाव न मानें । यानी सत्य के रास्ते और तुम्हारे झूठ के रास्ते को एक ही समझने लगें । तब तुम उन पर अपना जाल डाल दो । पर बेहद होशियारी से । कोई इस रहस्य को जानने न पाये ।
तुम जम्बूदीप ( भारत ) में अपना स्थान बनाओ । जहाँ पर कबीर के नाम और ग्यान का प्रमाण है ।
जब कबीर बाँधोंगढ ( छत्तीसगढ ) में जायें । और धर्मदास को उपदेश दीक्षा आदि दें । तब वे उसके 42 वंश के ग्यान राज्य को स्थापित करेंगे । तब तुम्हें उसमें घुसपैठ करके उनके राज्य को डांवाडोल करना है । वैसे मैंने 14 यमों की नाकाबन्दी करके जीव के सत्यलोक जाने का मार्ग रोक दिया है । और कबीर के नाम पर 12 झूठे पँथ चलाकर जीव को धोखे में डाल दिया है ।
हे भाई ! तब भी मुझको संशय है । उसी से मैं तुमको वहाँ भेजता हूँ । उनके 42 वंशो पर तुम हमला करो । और उन्हें अपनी बातों में फ़ँसा लो ।
काल निरंजन की बात सुनकर वे चारों दूत बोले - हम ऐसा ही करेंगे ।
यह सुनकर काल निरंजन बहुत प्रसन्न हुआ । और जीवों को छल कपट द्वारा धोखे में रखने के बहुत से उपाय बताने लगा । जीवों पर हमला करने के उसने बहुत से मन्त्र सुनाये ।
फ़िर उसने कहा - अब तुम संसार में जाओ । और चारों तरफ़ फ़ैल जाओ । और ऊँच नीच गरीब अमीर किसी को मत छोङो । और सब पर काल का फ़ँदा कस दो । तुम ऐसी कपट चालाकी करो कि जिससे मेरा आहार जीव कहीं निकलकर न जाने पाये ।
हे धर्मदास ! यही चारों दूत संसार में प्रगट होंगे । जो चार अलग अलग नामों से कबीर के नाम पर पँथ चलायेंगे । इन चार दूतों को मेरे चलाये बारह पँथों का मुखिया मानों ।
इनसे जो चार पँथ चलेंगे । उससे सब ग्यान उलट पुलट हो जायेगा । ये चार पँथ बारह पँथो का मूल यानी आधार होंगे । जो वचन वँश ( कबीर साहिब का असली पँथ ) के लिये शूल के समान पीङादायक होंगे । यानी हर तरह से उनके कार्य में विघ्न करते हुये जीवों के उद्धार में बाधा पहुँचायेंगे ।
यह सुनकर धर्मदास घबरा गये । और बोले - हे साहिब ! अब मेरा संशय और भी बङ गया है । मुझे उन काल दूतों के बारे में अवश्य बताओ । आप उनका चरित्र मुझे सुनाओ । उन काल दूतों का वेश और उनका लक्षण कहो । ये संसार में कौन सा रूप बनायेंगे । और किस प्रकार जीवों को मारेंगे । वे कौन से देश में प्रकट होंगे । आप मुझे शीघ्र बताओ ।
आगे जल्द प्रकाशित होगा ।
5 टिप्पणियां:
तब राजीव जी आप ही बताओ आज कलयुग में वो १२ पंथ और ४ वंश कोण से है जिन से बच कर जिव सही गुरु का वरण करे व् मुक्ति पाए
कौन 2 से है
Sarm karo. KAVIR SAHEB HI SATYA PURUSH HAI. JHHUTTO KAVIR SAHEB HI BHAGWAN HAI
SATGURU RAMPAL JI MAHARAJ hai PURN Sant. Sab Dukho ka niwaran h. SANT RAMPAL JI MAHARAJ ke pas. Sab Bimaari bina davayi ke thik hoti h
Naam Diksha levo . Sab kuch sahi ho jata hai Bhagati se
PARMATMA KAVIR SAHEB JI HAI
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