नमस्ते राजीव जी ! मैं सुभाष । मेरे से बिना पूछे ही रजत ने आपको ई-मेल कर दिया । मैंने उसको ई-मेल करने को नहीं कहा था । सिर्फ़ किस्सा ही सुनाया था । खैर जो भी हुआ । अच्छा ही हुआ । नकली सतगुरु की पोल खोलनी ही चाहिये । अब मैं वहाँ का नाम पता क्या लिखूँ ?
मेरे दोस्त ने जो मेरे को बताया । उन लोगों के बारे में । दीक्षा का नाटक है । सिर्फ़ जो वो टेकनीक इस्तेमाल करते हैं । दीक्षा के नाम पर । उसका पता लगने पर तो कोई भी सतगुरु का भेस धारण कर सकता है । मैं आपकी बात समझता हूँ कि फ़र्जी नाम काम नहीं करता । मैं तो आपके साथ और आपके ब्लाग के जरिये धर्म के नाम पर चल रही इस गहरी सामाजिक समस्या के प्रति लिख रहा हूँ ।
मैंने आपका आज का लेख पढा । बहुत ठीक लगा । आपने कृष्ण का उदाहरण देकर समझाया । बहुत अच्छा लगा । राजीव जी ! आप 1 बात समझ लीजिये । मैं आपकी बात का विरोध नहीं कर रहा । अगर कभी किया हो । तो बताईये कब ? मैं तो आपको वहाँ का आँखो देखा हाल बता रहा हूँ ।
ताकि मेरे देशवासी इस पाखंड को पहचान सकें । जो आजकल फ़ैला हुआ है । अब आप कृष्ण की ही बात ले लीजिये । वो सतगुरु कृष्ण को परमात्मा बता रहा था । हमेशा गीता पढने को कहता । उनका चेला कृष्ण को खास महत्व नहीं देता था । कहता था.. ये तो कालपुरुष है । इसकी बात नहीं माननी । अब यहाँ पर बात उन दो पाखंडियो की चल रही है । आप उत्तेजित मत होना । मैं तो आपको सहयोग दे रहा हूँ । दूसरे पाठक भाई भी कुछ न कुछ जानेगे । मेरे दोस्त की बहन ने भी उस सतगुरु से दीक्षा ली है । जबसे दीक्षा ली है । तब से बेचारी बीमार है । जिस दिन मेरे दोस्त को दीक्षा मिली । उससे 1 रात पहले सतगुरु जी ने सतसंग किया ( आपके वाला फ़ाइनल सतसंग ) फ़ायदा तो पता नहीं । उस दिन ही दोस्त के घर कलेश हो गया । वैसे अक्सर उनके घर शांति ही रहती है । तो यहाँ
पर बात नकली सतगुरु और चन्डू चेलों की चल रही है । आप इसको अपने मन से न लगायें । आप तो खुद सत्यकीखोज कर रहे हैं । हम तो आपके साथ चलने वालो में से हैं ।
************
नमस्ते राजीव जी ! मेरे भेजे लेख पर आपकी प्रतिक्रिया ठीक थी । वैसे मैंने इतने जल्दी जवाब नहीं माँगे थे । मैंने तो पहले ही कहा था कि हम सबने तो आपको अपना मार्गदर्शक चुना है । तभी तो जब सुभाष ने हमको ये सतगुरु जी.. हा हा हा.. वाला किस्सा सुनाया । तो हमने कहीं और बात नहीं की । सीधा आपको ई-मेल किया । आपके ब्लाग के जरिये कुछ और लोगों की शंका भी दूर होगी । जो बेचारे गुरु की तलाश में हैं । लेकिन गुरु तो कोई मिलता नहीं । उल्टा सतगुरु मिल जाता है.. हा हा हा... । वैसे आपने जवाब देने में उत्तेजना दिखाई ।
माफ़ करना राजीव जी ! ये बातें कहीं आपकी मंडली । या आप पर खुद । या सतगुरु जी.. से मैच तो नहीं कर गयी ? लेकिन मैं तो आपसे कभी मिला नहीं । और न ही आपके सतगुरु जी से । वैसे अगर मेरे मुँह से कोई सच्ची कडवी बात ? निकल गयी हो । तो क्षमा करें । आप खुद कहते हो कि आप शुरु से ही विरोधी स्वभाव के रहे हो ।
विरोधी स्वभाव के लोग समाज में और भी हैं । मैंने उस चन्डू चेले की इस बात को इंकार नही किया था कि मानव जन्म 84 लाख भोगकर मिलता है । मैंने तो उस गुरु चेला का आँखों देखा हाल बताया था । सतगुरु कुछ और कहता है । और चेला कुछ और कहता है । अब इसको क्या समझें कि चेला सतगुरु से भी अधिक ग्यानी है ? सतगुरु जी बेचारे नालायक हैं । वैसे इस हिसाब से तो वो वाले सतगुरु जी हा हा हा नालायक ही है । पता नहीं ये बात उनके चन्डू चेले को नज़र क्युँ नहीं आयी । लगता है । सब अक्ल के अन्धे हैं.. वहाँ पर । आपका ब्लाग जन कल्याण के लिये है । इसलिये आप बात को जलेबी की तरह गोल करने की कोशिश न किया करें । रजत राजपुरा से ।
********
अथातो प्रथम जिग्यासा..यानी सबसे पहली जिग्यासा जब मानव के मन में उठी । वह यही थी कि - मैं हूँ । यह बात ठीक है । समझ में आती है । नजर भी आती है । यानी मैं शरीर मन आदि को देखता समझता हुआ खुद को अनुभव करता हूँ ।
पर मैं क्यों हूँ ? और मैं कौन हूँ ? ये इंसान की जिंदगी के इतिहास में सृष्टि के आदि से ही एकमात्र अहम और अभी
तक अनसुलझा ( पर सभी के लिये नहीं ) प्रश्न है । और ये प्रश्न हमेशा अनसुलझा ही रहेगा । क्योंकि इस प्रश्न का उत्तर मिलते ही ये मिथ्या सृष्टि खत्म हो जाती है । बृह्म सत्य जगत मिथ्या ।
इसी एक प्रश्न के कारण तमाम शास्त्र वेद पुराणों धर्मगृंथों का निर्माण होता चला गया । होता रहेगा । और हमेशा ही उसमें दूसरे पक्ष का बेहद महत्व रहा । एक बात कहने वाला । दूसरा उस बात के आधार पर तर्क करने वाला । शास्त्रार्थ की इसी शास्त्रीय परम्परा से हमें सार ग्यान मिला । और थोथा हटाने में मदद मिली । सार सार को गहि रहे थोथा देय उङाय ।
पर मुश्किल ( ब्लाग पर ) ये है कि ब्लाग पर ये फ़ेस टू फ़ेस ( जैसा कि होना चाहिये ) न होकर लिखित रूप में होता है । और तब मेरी एक बात से आपके दिमाग में सेकङों प्रश्न पैदा हो जाते हैं । और आपके कुछ प्रश्नों से मेरे मन में हजारों पहलूओं ( समझने की कोशिश करें । एक ही प्रश्न का उत्तर हजार तरह से बताया जा सकता है ) से उत्तर बनता है ।
इस बात को इस तरह समझो । आपके लेपटाप के सामने खङा तीन साल का बच्चा आपसे प्रश्न करे । ये कंप्यूटर क्या है ? और ये इंटरनेट क्या है ? तो इस प्रश्न के उत्तर से रिलेटिब हजार
पहलूओं से उत्तर आपके दिमाग में उभरने लगेगा । अब आप सोचोगे कि उत्तर कैसे दिया जाय कि बच्चा भी संतुष्ट हो जाय । उत्तर सही हो । और लाभदायक भी हो । जो बच्चे के ग्यान में वृद्धि करे ।
जबकि आप बखूबी जानते हैं । जो उत्तर आप देंगे । वह अधिकतम भी बेसिक ही होगा । ( क्योंकि आपके दिमाग में भरी सम्बन्धित सभी जानकारी आप किसी भी हालत में उस वक्त ( आयु के कारण ) उसे नहीं समझा सकते ) और आप किसी भी युक्ति से अपने दिमाग में तैरता ( सही और पूर्ण ) उत्तर बालक के दिमाग को एकदम ट्रांसफ़र नहीं कर सकते । तो निश्चित ही आपका वह परफ़ेक्ट उत्तर हरगिज नहीं होगा ।
अब आप मेरा रियल उद्देश्य समझिये । जो कि एक लेखक के तौर पर । एक ग्यानी के तौर पर । एक साधु सन्त के तौर पर स्थापित होना नहीं है । बल्कि..आपकी सोयी हुयी आत्मा को झिझोंङना है । ध्यान रहे । आप सभी का प्रश्न एकदम निजी और सार्वजनिक महत्व का भी हो सकता है । पर मेरा उत्तर हमेशा ही सर्वजन हिताय वाला होगा । और इसके लिये विभिन्न प्रयोग करने ही होते हैं । आप आज जितनी भी सुविधा वाली चीजें यूज करते हो । ये प्रयोग के कई धरातलों से होकर यहाँ तक पहुँची है । कुछ समझे सर जी !
आप लोग बङिया काम करते हो । बङिया लिखते हो । बङिया विचारों वाले हो । आल इज वैल ।
इसलिये डांट माइंड ..डांट वरी.. वी हैप्पी । थैंक्स ।
*** अब प्लीज ! इसमें कोई व्यंग्य मत समझना । और न ही बातों की जलेबी ।
मेरे दोस्त ने जो मेरे को बताया । उन लोगों के बारे में । दीक्षा का नाटक है । सिर्फ़ जो वो टेकनीक इस्तेमाल करते हैं । दीक्षा के नाम पर । उसका पता लगने पर तो कोई भी सतगुरु का भेस धारण कर सकता है । मैं आपकी बात समझता हूँ कि फ़र्जी नाम काम नहीं करता । मैं तो आपके साथ और आपके ब्लाग के जरिये धर्म के नाम पर चल रही इस गहरी सामाजिक समस्या के प्रति लिख रहा हूँ ।
मैंने आपका आज का लेख पढा । बहुत ठीक लगा । आपने कृष्ण का उदाहरण देकर समझाया । बहुत अच्छा लगा । राजीव जी ! आप 1 बात समझ लीजिये । मैं आपकी बात का विरोध नहीं कर रहा । अगर कभी किया हो । तो बताईये कब ? मैं तो आपको वहाँ का आँखो देखा हाल बता रहा हूँ ।
ताकि मेरे देशवासी इस पाखंड को पहचान सकें । जो आजकल फ़ैला हुआ है । अब आप कृष्ण की ही बात ले लीजिये । वो सतगुरु कृष्ण को परमात्मा बता रहा था । हमेशा गीता पढने को कहता । उनका चेला कृष्ण को खास महत्व नहीं देता था । कहता था.. ये तो कालपुरुष है । इसकी बात नहीं माननी । अब यहाँ पर बात उन दो पाखंडियो की चल रही है । आप उत्तेजित मत होना । मैं तो आपको सहयोग दे रहा हूँ । दूसरे पाठक भाई भी कुछ न कुछ जानेगे । मेरे दोस्त की बहन ने भी उस सतगुरु से दीक्षा ली है । जबसे दीक्षा ली है । तब से बेचारी बीमार है । जिस दिन मेरे दोस्त को दीक्षा मिली । उससे 1 रात पहले सतगुरु जी ने सतसंग किया ( आपके वाला फ़ाइनल सतसंग ) फ़ायदा तो पता नहीं । उस दिन ही दोस्त के घर कलेश हो गया । वैसे अक्सर उनके घर शांति ही रहती है । तो यहाँ
पर बात नकली सतगुरु और चन्डू चेलों की चल रही है । आप इसको अपने मन से न लगायें । आप तो खुद सत्यकीखोज कर रहे हैं । हम तो आपके साथ चलने वालो में से हैं ।
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नमस्ते राजीव जी ! मेरे भेजे लेख पर आपकी प्रतिक्रिया ठीक थी । वैसे मैंने इतने जल्दी जवाब नहीं माँगे थे । मैंने तो पहले ही कहा था कि हम सबने तो आपको अपना मार्गदर्शक चुना है । तभी तो जब सुभाष ने हमको ये सतगुरु जी.. हा हा हा.. वाला किस्सा सुनाया । तो हमने कहीं और बात नहीं की । सीधा आपको ई-मेल किया । आपके ब्लाग के जरिये कुछ और लोगों की शंका भी दूर होगी । जो बेचारे गुरु की तलाश में हैं । लेकिन गुरु तो कोई मिलता नहीं । उल्टा सतगुरु मिल जाता है.. हा हा हा... । वैसे आपने जवाब देने में उत्तेजना दिखाई ।
माफ़ करना राजीव जी ! ये बातें कहीं आपकी मंडली । या आप पर खुद । या सतगुरु जी.. से मैच तो नहीं कर गयी ? लेकिन मैं तो आपसे कभी मिला नहीं । और न ही आपके सतगुरु जी से । वैसे अगर मेरे मुँह से कोई सच्ची कडवी बात ? निकल गयी हो । तो क्षमा करें । आप खुद कहते हो कि आप शुरु से ही विरोधी स्वभाव के रहे हो ।
विरोधी स्वभाव के लोग समाज में और भी हैं । मैंने उस चन्डू चेले की इस बात को इंकार नही किया था कि मानव जन्म 84 लाख भोगकर मिलता है । मैंने तो उस गुरु चेला का आँखों देखा हाल बताया था । सतगुरु कुछ और कहता है । और चेला कुछ और कहता है । अब इसको क्या समझें कि चेला सतगुरु से भी अधिक ग्यानी है ? सतगुरु जी बेचारे नालायक हैं । वैसे इस हिसाब से तो वो वाले सतगुरु जी हा हा हा नालायक ही है । पता नहीं ये बात उनके चन्डू चेले को नज़र क्युँ नहीं आयी । लगता है । सब अक्ल के अन्धे हैं.. वहाँ पर । आपका ब्लाग जन कल्याण के लिये है । इसलिये आप बात को जलेबी की तरह गोल करने की कोशिश न किया करें । रजत राजपुरा से ।
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अथातो प्रथम जिग्यासा..यानी सबसे पहली जिग्यासा जब मानव के मन में उठी । वह यही थी कि - मैं हूँ । यह बात ठीक है । समझ में आती है । नजर भी आती है । यानी मैं शरीर मन आदि को देखता समझता हुआ खुद को अनुभव करता हूँ ।
पर मैं क्यों हूँ ? और मैं कौन हूँ ? ये इंसान की जिंदगी के इतिहास में सृष्टि के आदि से ही एकमात्र अहम और अभी
तक अनसुलझा ( पर सभी के लिये नहीं ) प्रश्न है । और ये प्रश्न हमेशा अनसुलझा ही रहेगा । क्योंकि इस प्रश्न का उत्तर मिलते ही ये मिथ्या सृष्टि खत्म हो जाती है । बृह्म सत्य जगत मिथ्या ।
इसी एक प्रश्न के कारण तमाम शास्त्र वेद पुराणों धर्मगृंथों का निर्माण होता चला गया । होता रहेगा । और हमेशा ही उसमें दूसरे पक्ष का बेहद महत्व रहा । एक बात कहने वाला । दूसरा उस बात के आधार पर तर्क करने वाला । शास्त्रार्थ की इसी शास्त्रीय परम्परा से हमें सार ग्यान मिला । और थोथा हटाने में मदद मिली । सार सार को गहि रहे थोथा देय उङाय ।
पर मुश्किल ( ब्लाग पर ) ये है कि ब्लाग पर ये फ़ेस टू फ़ेस ( जैसा कि होना चाहिये ) न होकर लिखित रूप में होता है । और तब मेरी एक बात से आपके दिमाग में सेकङों प्रश्न पैदा हो जाते हैं । और आपके कुछ प्रश्नों से मेरे मन में हजारों पहलूओं ( समझने की कोशिश करें । एक ही प्रश्न का उत्तर हजार तरह से बताया जा सकता है ) से उत्तर बनता है ।
इस बात को इस तरह समझो । आपके लेपटाप के सामने खङा तीन साल का बच्चा आपसे प्रश्न करे । ये कंप्यूटर क्या है ? और ये इंटरनेट क्या है ? तो इस प्रश्न के उत्तर से रिलेटिब हजार
पहलूओं से उत्तर आपके दिमाग में उभरने लगेगा । अब आप सोचोगे कि उत्तर कैसे दिया जाय कि बच्चा भी संतुष्ट हो जाय । उत्तर सही हो । और लाभदायक भी हो । जो बच्चे के ग्यान में वृद्धि करे ।
जबकि आप बखूबी जानते हैं । जो उत्तर आप देंगे । वह अधिकतम भी बेसिक ही होगा । ( क्योंकि आपके दिमाग में भरी सम्बन्धित सभी जानकारी आप किसी भी हालत में उस वक्त ( आयु के कारण ) उसे नहीं समझा सकते ) और आप किसी भी युक्ति से अपने दिमाग में तैरता ( सही और पूर्ण ) उत्तर बालक के दिमाग को एकदम ट्रांसफ़र नहीं कर सकते । तो निश्चित ही आपका वह परफ़ेक्ट उत्तर हरगिज नहीं होगा ।
अब आप मेरा रियल उद्देश्य समझिये । जो कि एक लेखक के तौर पर । एक ग्यानी के तौर पर । एक साधु सन्त के तौर पर स्थापित होना नहीं है । बल्कि..आपकी सोयी हुयी आत्मा को झिझोंङना है । ध्यान रहे । आप सभी का प्रश्न एकदम निजी और सार्वजनिक महत्व का भी हो सकता है । पर मेरा उत्तर हमेशा ही सर्वजन हिताय वाला होगा । और इसके लिये विभिन्न प्रयोग करने ही होते हैं । आप आज जितनी भी सुविधा वाली चीजें यूज करते हो । ये प्रयोग के कई धरातलों से होकर यहाँ तक पहुँची है । कुछ समझे सर जी !
आप लोग बङिया काम करते हो । बङिया लिखते हो । बङिया विचारों वाले हो । आल इज वैल ।
इसलिये डांट माइंड ..डांट वरी.. वी हैप्पी । थैंक्स ।
*** अब प्लीज ! इसमें कोई व्यंग्य मत समझना । और न ही बातों की जलेबी ।
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