कामि क्रोधि मनु दूजै लाइआ । सपने सुख ना ताहा हे ।
दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर जिनको नाम नहीं मिला । और जिन्होंने अन्दर का परदा नहीं खोला । वे पापी कुटिल मन के विषय विकार काम क्रोध के ही वश में बने रहे । ऐसे लोग सपने में भी वास्तविक सुख नहीं पाते । और जन्म जन्म से दुख दर्द में जलते हुये आते हैं । और जलते हुये ही चले जाते हैं ।
हमारी आत्मा मन के अधीन हो गयी है । मन बलबती इन्द्रियों के अधीन है । इन्द्रियाँ भोगों के अधीन हैं । यही उल्टी बात हो गयी । जबकि मन इन्द्रियों भोगों को हमारा अधीन होना चाहिये था ।
कंचन देही सबदु भतारो । अनदिनु भोग भोगे हरि सिउ पिआरो ।
जिसका अन्दर का परदा खुल गया । और जिसकी रूह ( आत्मा ) आसमानी मंजिलों को पारकर परमात्मा से मिल गयी । उसकी महिमा क्या कही जाये । उसका शरीर तो सोने जैसा मूल्यवान हो गया । वह खुद भी मुक्त हो गया । और अपने परिचितों को भी सदमार्ग दिखाकर मुक्त करा दिया ।
जिस तरह एक मक्खी शहद के किनारे बैठकर उसको खाती है । वह शहद खाने का आनन्द भी प्राप्त करती है । और शहद खाकर उङ भी जाती है । लेकिन जो लालची मक्खी हवस के कारण शहद के बीचोंबीच ही जाकर बैठ जाती है । उसके पंखो में शहद चिपक जाता है । और वह वहीं मर जाती है । इस तरह शहद भी खाने को न मिला । और जान से भी हाथ धोना पङा ।
इसी तरह जो मनमुख मनुष्य है । और भोगों से बुरी तरह लिपटा हुआ है । वह भोग भी नहीं कर पाते हैं । और दुखी रहकर पशुवत मरकर चले जाते हैं । लेकिन जो गुरुमुख हैं । उन्होंने दुनियाँ का भी आनन्द निर्भयता से लिया । उनका जन्म मरण भी खत्म हो गया । और वे परमात्मा से भी मिल गये ।
महला अंदरि गैर महलु पाए । भाणा बुझि समाहा हे ।
मनुष्य के इस शरीर के अन्दर करोंङो महल हैं । असंख्य नदियाँ पहाङ हैं । अनगिनत चाँद तारे सूरज सभी हैं । और खुद खुदा भगवान गाड वाहिगुरु भी इसी में है ।
आलमे सगीर ( पिंड देह ) आलमे कबीर ( बृह्मांड सृष्टि ) का नक्शा नमूना तो ही है ।
मौलवी रूम साहब के पास अन्दरूनी असलियत से बेखबर कुछ दूसरे मौलवी आये । और वाद विवाद तर्क कुतर्क करने लगे ।
तब उन्होंने कहा - चूँ शवी महरिम कुशाइम बा तो लब । ता ब दीनी आफ़ताबे नीम शब ।
हे मौलवियो ! अगर तुम आधी रात को सूरज ( ध्यान अवस्था में दिखने वाला । आत्म ग्यान में दिन रात नहीं होती । ऊँची स्थिति वाले को बिना ध्यान के भी दिखता है । ) देखते हो । तो मेरे साथ बात करो । अगर तुम अन्दर नहीं गये हो । तो फ़िर इस बात को कैसे जानोगे ?
तब उन मौलवियों ने हैरान होकर पूछा - आधी रात को सूरज भला कौन देखता है ?
मौलवी रूम साहब ने इस पर फ़रमाया - जुज रूहाने पाक ऊ रा शर्क नै । दर तलूअश रोजो शब रा फ़र्क नै ।
हे मौलवियो ! वह सूरज सबके ही अन्दर है । मगर सिर्फ़ पाक रूहें ही उसे देख पाती हैं । अन्दर जाने पर दिन और रात का फ़र्क नहीं रहता ।
नानक साहब ने आधी रात के समय अपने पुत्रों से कहा था - सूरज चढा हुआ है ।
पर उनके पुत्रों को बात समझ में नहीं आयी । तब गुरु साहिब ने यही बात अंगद साहिब से कही । वे अन्दर आना जाना जानते थे ।
उन्होंने तुरन्त कहा - जी हाँ ! चढा हुआ तो है ।
तब नानक साहब ने उन्हें चादरें दी । और कहा - जाकर धो लाओ । और वे धो लाये ।
तब आगे उन अन्दरूनी भेद से अनजान मौलबियों ने मौलवी रूम साहिब से पूछा - अन्दर सिर्फ़ सूरज ही चढता है । या कुछ और भी है ?
तब मौलवी रूम साहिब बोले - अंदर आँ बहिरो बीअबानो जबाल । सकतह मे गरदद ओहामो खयाल ।
हे मौलवियो ! अन्दर बेशुमार नदियाँ जंगल पहाङ आदि सभी कुछ है । जिनकी हमारी बुद्धि कल्पना भी नहीं कर सकती । बल्कि इतनी कल्पना करते ही थरथर कांपने लगती है ।
तब उन मौलवियों ने फ़िर कहा - मगर ये सब हम कैसे देख सकते हैं ? और कैसे जान सकते हैं ?
मौलवी रूम साहिब बोले - नर्दबाँहा हस्त पिनहाँ दर जहाँ । पायह पायह ता इनाने आसमाँ ।
हे मौलवियो ! अन्दर जाने के लिये हरेक आसमान पर सीढी लगी हुयी है । इसी सीढी सीढी होकर चढ जाओ । जितने भी सन्त फ़कीर अन्दर गये हैं । सब एक ही तरीका बताते हैं । इंसान को चाहिये कि रब की रजा में राजी रहे । तब ही रब मिलेगा । लेकिन जब तक रब की दया न हो । कोई उसकी रजा में राजी नहीं रह सकता ।
आपे देवै देवणहारा । तिसु आगे नही किसै का चारा ।
जिसकी रजा है । जिसका ये सब भाणा है । हम उसे क्या कह सकते हैं ? कुछ नहीं ।
शेख सादी ने कहा है - चू रद्द मे नगरदद खदंगे कजा । सुपर नेस्त मर बन्दह रा जुज रजा ।
हे मनुष्यो ! जब उसकी रजा । उसकी कजा ( हुक्म । आदेश ) को किसी सूरत में टलना नहीं है । तो फ़िर हम सबको चाहिये कि उसके भाणे में रहते हुये उसके साथ प्यार करें ।
जय जय श्री गुरुदेव । जय गुरुदेव की ।
दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर जिनको नाम नहीं मिला । और जिन्होंने अन्दर का परदा नहीं खोला । वे पापी कुटिल मन के विषय विकार काम क्रोध के ही वश में बने रहे । ऐसे लोग सपने में भी वास्तविक सुख नहीं पाते । और जन्म जन्म से दुख दर्द में जलते हुये आते हैं । और जलते हुये ही चले जाते हैं ।
हमारी आत्मा मन के अधीन हो गयी है । मन बलबती इन्द्रियों के अधीन है । इन्द्रियाँ भोगों के अधीन हैं । यही उल्टी बात हो गयी । जबकि मन इन्द्रियों भोगों को हमारा अधीन होना चाहिये था ।
कंचन देही सबदु भतारो । अनदिनु भोग भोगे हरि सिउ पिआरो ।
जिसका अन्दर का परदा खुल गया । और जिसकी रूह ( आत्मा ) आसमानी मंजिलों को पारकर परमात्मा से मिल गयी । उसकी महिमा क्या कही जाये । उसका शरीर तो सोने जैसा मूल्यवान हो गया । वह खुद भी मुक्त हो गया । और अपने परिचितों को भी सदमार्ग दिखाकर मुक्त करा दिया ।
जिस तरह एक मक्खी शहद के किनारे बैठकर उसको खाती है । वह शहद खाने का आनन्द भी प्राप्त करती है । और शहद खाकर उङ भी जाती है । लेकिन जो लालची मक्खी हवस के कारण शहद के बीचोंबीच ही जाकर बैठ जाती है । उसके पंखो में शहद चिपक जाता है । और वह वहीं मर जाती है । इस तरह शहद भी खाने को न मिला । और जान से भी हाथ धोना पङा ।
इसी तरह जो मनमुख मनुष्य है । और भोगों से बुरी तरह लिपटा हुआ है । वह भोग भी नहीं कर पाते हैं । और दुखी रहकर पशुवत मरकर चले जाते हैं । लेकिन जो गुरुमुख हैं । उन्होंने दुनियाँ का भी आनन्द निर्भयता से लिया । उनका जन्म मरण भी खत्म हो गया । और वे परमात्मा से भी मिल गये ।
महला अंदरि गैर महलु पाए । भाणा बुझि समाहा हे ।
मनुष्य के इस शरीर के अन्दर करोंङो महल हैं । असंख्य नदियाँ पहाङ हैं । अनगिनत चाँद तारे सूरज सभी हैं । और खुद खुदा भगवान गाड वाहिगुरु भी इसी में है ।
आलमे सगीर ( पिंड देह ) आलमे कबीर ( बृह्मांड सृष्टि ) का नक्शा नमूना तो ही है ।
मौलवी रूम साहब के पास अन्दरूनी असलियत से बेखबर कुछ दूसरे मौलवी आये । और वाद विवाद तर्क कुतर्क करने लगे ।
तब उन्होंने कहा - चूँ शवी महरिम कुशाइम बा तो लब । ता ब दीनी आफ़ताबे नीम शब ।
हे मौलवियो ! अगर तुम आधी रात को सूरज ( ध्यान अवस्था में दिखने वाला । आत्म ग्यान में दिन रात नहीं होती । ऊँची स्थिति वाले को बिना ध्यान के भी दिखता है । ) देखते हो । तो मेरे साथ बात करो । अगर तुम अन्दर नहीं गये हो । तो फ़िर इस बात को कैसे जानोगे ?
तब उन मौलवियों ने हैरान होकर पूछा - आधी रात को सूरज भला कौन देखता है ?
मौलवी रूम साहब ने इस पर फ़रमाया - जुज रूहाने पाक ऊ रा शर्क नै । दर तलूअश रोजो शब रा फ़र्क नै ।
हे मौलवियो ! वह सूरज सबके ही अन्दर है । मगर सिर्फ़ पाक रूहें ही उसे देख पाती हैं । अन्दर जाने पर दिन और रात का फ़र्क नहीं रहता ।
नानक साहब ने आधी रात के समय अपने पुत्रों से कहा था - सूरज चढा हुआ है ।
पर उनके पुत्रों को बात समझ में नहीं आयी । तब गुरु साहिब ने यही बात अंगद साहिब से कही । वे अन्दर आना जाना जानते थे ।
उन्होंने तुरन्त कहा - जी हाँ ! चढा हुआ तो है ।
तब नानक साहब ने उन्हें चादरें दी । और कहा - जाकर धो लाओ । और वे धो लाये ।
तब आगे उन अन्दरूनी भेद से अनजान मौलबियों ने मौलवी रूम साहिब से पूछा - अन्दर सिर्फ़ सूरज ही चढता है । या कुछ और भी है ?
तब मौलवी रूम साहिब बोले - अंदर आँ बहिरो बीअबानो जबाल । सकतह मे गरदद ओहामो खयाल ।
हे मौलवियो ! अन्दर बेशुमार नदियाँ जंगल पहाङ आदि सभी कुछ है । जिनकी हमारी बुद्धि कल्पना भी नहीं कर सकती । बल्कि इतनी कल्पना करते ही थरथर कांपने लगती है ।
तब उन मौलवियों ने फ़िर कहा - मगर ये सब हम कैसे देख सकते हैं ? और कैसे जान सकते हैं ?
मौलवी रूम साहिब बोले - नर्दबाँहा हस्त पिनहाँ दर जहाँ । पायह पायह ता इनाने आसमाँ ।
हे मौलवियो ! अन्दर जाने के लिये हरेक आसमान पर सीढी लगी हुयी है । इसी सीढी सीढी होकर चढ जाओ । जितने भी सन्त फ़कीर अन्दर गये हैं । सब एक ही तरीका बताते हैं । इंसान को चाहिये कि रब की रजा में राजी रहे । तब ही रब मिलेगा । लेकिन जब तक रब की दया न हो । कोई उसकी रजा में राजी नहीं रह सकता ।
आपे देवै देवणहारा । तिसु आगे नही किसै का चारा ।
जिसकी रजा है । जिसका ये सब भाणा है । हम उसे क्या कह सकते हैं ? कुछ नहीं ।
शेख सादी ने कहा है - चू रद्द मे नगरदद खदंगे कजा । सुपर नेस्त मर बन्दह रा जुज रजा ।
हे मनुष्यो ! जब उसकी रजा । उसकी कजा ( हुक्म । आदेश ) को किसी सूरत में टलना नहीं है । तो फ़िर हम सबको चाहिये कि उसके भाणे में रहते हुये उसके साथ प्यार करें ।
जय जय श्री गुरुदेव । जय गुरुदेव की ।
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