तब धर्मदास बोले - हे साहिब ! काल निरंजन ने जीव को भरमाने के लिये जो अपने 12 पंथ चलाये । वे मुझे समझाकर कहो ।
कबीर साहिब बोले - हे धर्मदास ! मैं तुमसे काल के बारह पंथ के बारे कहता हूँ । मृत्यु अंधा नाम का दूत जो छल बल में शक्तिशाली है । वह स्वयँ तुम्हारे घर में उत्पन्न हुआ है । यह पहला पंथ है । दूसरा तिमिर दूत चलकर आयेगा । उसकी जाति अहीर होगी । और वह नफ़र यानी गुलाम कहलायेगा । वह तुम्हारी बहुत सी पुस्तकों से ग्यान चुराकर अलग पंथ चलायेगा । तीसरा पंथ का नाम अंधा अचेत दूत होगा । वह सेवक होगा । वह तुम्हारे पास आयेगा । और अपना नाम सुरति गोपाल बतायेगा । वह भी अपना अलग पंथ चलायेगा । और जीव को अक्षर योग ( काल निरंजन ) के भृम में डालेगा ।
हे धर्मदास ! चौथा मनभंग नाम का कालदूत होगा । वह कबीरपंथ की मूल कथा का आधार लेकर अपना पंथ चलायेगा । और उसे मूलपंथ कहकर संसार में फ़ैलायेगा । वह जीवों को लूदी नाम लेकर समझायेगा । उपदेश करेगा । और इसी नाम को पारस कहेगा । वह शरीर के भीतर झंकृत होने वाले शून्य 0 के " झंग " शब्द का सुमरन अपने मुख से वर्णन करेगा । सब जीव उसे " थाका " कहकर मानेंगे ।
हे धर्मदास ! पाँचवे पंथ को चलाने वाला ग्यानभंगी नाम का दूत होगा । उसका पंथ टकसार नाम से होगा । वह इंगला पिंगला नाङियों के स्वर को साधकर भविष्य की बात करेगा । जीव को जीभ । नेत्र । मस्तक की रेखा के बारे में बताकर समझायेगा । जीवों के तिल मस्सा आदि चिह्न देखकर उन्हें भृम रूपी धोखे में डाल्रेगा । वह जिस जीव के ऊपर जैसा दोष लगायेगा । वैसा ही उसको पान खिलायेगा ( नाम आदि देना )
छठा पंथ कमाल नाम का है । वह मन मकरंद दूत के नाम से संसार में आया है । उसने मुर्दे में वास किया । और मेरा पुत्र होकर प्रकट हुआ । वह जीवों को झिलमिल ज्योति का उपदेश करेगा ( जो अष्टांगी ने विष्णु को दिखाकर भरमा दिया ) और इस तरह वह जीवों को भरमायेगा । जहाँ तक जीव की दृष्टि है । वह झिलमिल ज्योति ही देखेगा । जिसने दोनों आँखो से झिलमिल ज्योति नहीं देखी है । वह कैसे झिलमिल ज्योति के रूप को पहचानेगा ? झिलमिल ज्योति काल निरंजन की है । उस दूत के ह्रदय में सत्य मत समझो । वह तुम्हें भरमाने के लिये है ।
सातवां दूत चितभंग है । वह मन की तरह अनेक रंग रूप बदलकर बोलेगा । वह दीन नाम कहकर पंथ चलायेगा । और देह के भीतर बोलने वाले आत्मा को ही सत्यपुरुष बतायेगा । वह जगत सृष्टि में पाँच तत्व तीन गुण बतायेगा । और ऐसा ग्यान करता हुआ अपना पंथ चलायेगा । इसके अतिरिक्त आदि पुरुष । काल निरंजन । अष्टांगी । बृह्मा आदि कुछ भी नहीं हैं । ऐसा भृम बनायेगा । सृष्टि हमेशा से है । तथा इसका कर्ता धर्ता कोई नहीं है । इसी को वह ठोस " बीजक " ग्यान कहेगा ।
वह कहेगा कि अपना आपा ही बृह्म है । वही वचन वाणी बोलता है । तो फ़िर सोचो गुरु का क्या महत्व और आवश्यकता है ? श्रीराम ने वशिष्ठ को और श्रीकृष्ण ने दुर्वासा को गुरु क्यों बनाया ।
जव श्रीकृष्ण जैसों ने गुरुओं की सेवा की । तो ऋषियों मुनियों की फ़िर गिनती ही क्या है ? नारद ने गुरु को दोष लगाया । तो विष्णु ने उनसे नरक भुगतवाया ।
जो बीजक ग्यान वह दूत थोपेगा । वह ऐसा होगा । जैसे गूलर के भीतर कीङा घूमता है । तथा वह कीङा समझता है कि संसार इतना ही है । अपने आपको कर्ता धर्ता मानने से जीव का कभी भला न होगा । अपने आपको ही मानने वाला जीव रोता रहेगा ।
आठवां पंथ चलाने वाला अकिल भंग दूत होगा । वह परमधाम कहकर अपना पंथ चलायेगा । कुछ कुरआन तथा वेद की बातें चुराकर अपने पंथ में शामिल करेगा । वह कुछ कुछ मेरे निर्गुण मत की बातें लेगा । और उन सब बातों को मिलाकर एक पुस्तक बनायेगा । इस प्रकार जोङ जाङ कर वह बृह्म ग्यान का पंथ चलायेगा । उसमें कर्म आश्रित ( यानी ग्यान रहित । ग्यान आश्रित नहीं । कर्म ही पूजा है - मानने वाले ) जीव बहुत लिपटेंगे ।
हे धर्मदास ! नौवां पंथ विशंभर दूत का होगा । और उसका जीवन चरित्र ऐसा होगा कि वह राम कबीर नाम का पंथ चलायेगा । वह निर्गुण सगुण दोनों को मिलाकर उपदेश करेगा । पाप पुण्य को एक समझेगा । ऐसा कहता हुआ वह अपना पंथ चलायेगा ।
दसवां पंथ के दूत का नाम नकटा नैन है । वह सतनामी कहकर पंथ चलायेगा । और चार वर्ण के जीवों को एक में मिलायेगा । वह अपने वचन उपदेश में ब्राह्मण । क्षत्रिय । वैश्य । शूद्र सबको एक समान मिलायेगा । परंतु वह सदगुरु के शब्द उपदेश को नहीं पहचानेगा । वह अपने पक्ष को बाँधकर रखेगा । जिससे जीव नरक को जायेंगे । वह शरीर का ग्यान कथन सब समझायेगा । परन्तु सत्यपुरुष के मार्ग को नहीं पायेगा ।
हे धर्मदास ! काल निरंजन की चालबाजी की बात सुनो । वह जीवों को फ़ँसाने के लिये बङे बङे फ़ँदों की रचना करता है । वह काल जीव को अनेक कर्म ( पूजा आदि आडंबर । सामाजिक रीति रिवाज ) और कर्म जाल में ही जीव को फ़ाँसकर खा जाता है ।
जो जीव सार शब्द ( के बारे में ) को पहचानता है । समझता है । वह इस काल निरंजन के यम जाल से छूट जाता है । और श्रद्धा से सत्यनाम का सुमरन करते हुये अमरलोक को जाता है ।
अब ग्यारहवें पंथ की बात सुनो । जिसको चलाने वाला दुर्गदानी नाम का कालदूत अत्यन्त बलशाली होगा । वह जीव पंथ नाम कहकर पंथ चलायेगा । और शरीर ग्यान के बारे में समझायेगा । उससे भोले अग्यानी जीव भरमेंगे । और भवसागर से पार नहीं होंगे । जो जीव बहुत अधिक अभिमानी होगा । वह उस कालदूत की बात सुनकर उससे प्रेम करेगा ।
हे धर्मदास ! अब बारहवें पंथ की बात सुनो । इसका कालदूत हँसमुनि नाम का होगा । वह बहुत तरह के चरित्र करेगा । वह वचन वंश के घर में सेवक होगा । और पहले बहुत सेवा करेगा । फ़िर पीछे (अर्थात पहले विश्वास जमायेगा । और जब लोग उसको मानने लगेंगे । ) वह अपना मत प्रकट करेगा । और बहुत से जीवों को अपने जाल में फ़ँसा लेगा । और अंश वंश ( कबीर साहब के स्थापित असली ग्यान ) का विरोध करेगा । वह उसके ग्यान की कुछ बातों को मानेगा । कुछ को नहीं मानेगा ।
इस प्रकार काल निरंजन जीवों पर अपना दांव फ़ेंकते हुये उन्हें अपने फ़ंदे में ( असली ग्यान से दूर ) बनाये रखेगा । यानी ऐसी कोशिश करेगा । वह अपने इन अंशो ( कालदूतों ) से बारह पंथ ( झूठे ग्यान को फ़ैलाने हेतु ) प्रकट करायेगा । और ये दूत सिर्फ़ एक बार ही प्रकट नहीं होंगे । बल्कि वे उन पंथों में बारबार आते जाते रहेंगे । और इस तरह बारबार संसार में प्रकट होंगे ।
जहाँ जहाँ भी ये दूत प्रकट होंगे । जीवों को बहुत ग्यान ( भरमाने वाला ) कहेंगे । और वे यह सब खुद को कबीरपंथी बताते हुये करेंगे । और वे शरीर ग्यान का कथन करके सत्यग्यान के नाम पर काल निरंजन की ही महिमा को घुमा फ़िरा कर बतायेंगे । और अग्यानी जीव को काल के मुँह में भेजते रहेंगे । काल निरंजन ने ऐसा ही करने का उनको आदेश दिया है ।
जब जब ये निरंजन के दूत संसार में जन्म लेकर प्रकट होंगे । तब तब ये अपना पंथ फ़ैलायेंगे । वे जीवों को हैरान करने वाली विचित्र बातें बतायेंगे । और जीवों को भरमाकर नरक में डालेंगे ।
हे धर्मदास ! सुनो । ऐसा वह काल निरंजन बहुत ही प्रबल है । वह तथा उसके दूत कपट से जीवों को छल बुद्धि वाला ही बनायेंगे ।
अब मेरी बात - पिछले दिनों मेरे पास बहुत से ई मेल इसी तरह की शंकाओं के आये कि फ़लाना बाबा ऐसा ग्यान दे रहा है । वह यह योग बता रहा है । यह सब क्या है ? और सच्चाई क्या है ?
सच्चाई जानना बहुत सरल है - मैं तो कहता हूँ । आप मुझ पर भी शंका करो कि मैं आपको सही बात बता रहा हूँ । या भरमा रहा हूँ । कबीर की वाणी बीजक ( इसकी अभी सही कीमत मुझे पता नहीं । 100 से 500 के बीच में ही होगी । ) अभी भी प्रमाणित है । अगर कबीर जैसे दोहे बनाकर कोई झूठा ( कालदूत ) ग्यान इसमें मिलाता भी है । तो कबीर की वाणी अलग ही नजर आती है ।
अब किसी भी गुरु का ग्यान उपदेश यही कबीर बीजक वाली बात कह रहा है । और दीक्षा के बाद वही क्रियायें आपके सुमरन ध्यान में अनुभव में आती हैं । तो वह गुरु सच्चा है ।
अगर कोई भी आपको माला जपना आदि किसी भी आडंबर को बताता है । नाम मुँह से जपने को बताता है । जैसे ॐ नमो फ़लाने देवाय..तो आप समझ जाओ । वह कौन है ??
ना कर में माला गहूँ । न मुख से बोलूँ राम । हरि मेरा चिंतन करें । मैं पायो आराम । ये है सच ।
आत्मग्यान की हँसदीक्षा और परमहँस दीक्षा में वाणी या अन्य इन्द्रियों का कोई स्थान नहीं हैं । दोनों ही दीक्षाओं में सुरति को दो अलग अलग स्थानों से जोङा जाता है । मतलब ध्यान बारबार वहीं ले जाने का अभ्यास किया जाता है । जब ध्यान पर साधक की पकङ हो जाती है । तो ये ध्यान खुद ब खुद अपने आप होने लगता है । और तीन महीने के ही सही अभ्यास से दिव्य दर्शन । अन्तर्लोकों की सैर । भंवर गुफ़ा । आसमानी झूला । आदि बहुत अनुभव होते हैं । ( पूरी जानकारी के लिये मेरा लेख " सहज समाधि की ओर " पढें । ) इसीलिये इसे " सहज योग " कहा गया है ।
दूसरे दीक्षा के बाद आप एक स्थायी सी शांति महसूस करते हैं । जैसी पहले कभी नहीं की । और आपकी जिन्दगी में । स्वभाव में एक मजबूती सी आ जाती है । इसीलिये सन्तों ने कहा है । फ़िकर मत कर । जिकर कर । आज इतना ही । जय सच्चे गुरुदेव की । जय सच्चे दरबार की ।
कबीर साहिब बोले - हे धर्मदास ! मैं तुमसे काल के बारह पंथ के बारे कहता हूँ । मृत्यु अंधा नाम का दूत जो छल बल में शक्तिशाली है । वह स्वयँ तुम्हारे घर में उत्पन्न हुआ है । यह पहला पंथ है । दूसरा तिमिर दूत चलकर आयेगा । उसकी जाति अहीर होगी । और वह नफ़र यानी गुलाम कहलायेगा । वह तुम्हारी बहुत सी पुस्तकों से ग्यान चुराकर अलग पंथ चलायेगा । तीसरा पंथ का नाम अंधा अचेत दूत होगा । वह सेवक होगा । वह तुम्हारे पास आयेगा । और अपना नाम सुरति गोपाल बतायेगा । वह भी अपना अलग पंथ चलायेगा । और जीव को अक्षर योग ( काल निरंजन ) के भृम में डालेगा ।
हे धर्मदास ! चौथा मनभंग नाम का कालदूत होगा । वह कबीरपंथ की मूल कथा का आधार लेकर अपना पंथ चलायेगा । और उसे मूलपंथ कहकर संसार में फ़ैलायेगा । वह जीवों को लूदी नाम लेकर समझायेगा । उपदेश करेगा । और इसी नाम को पारस कहेगा । वह शरीर के भीतर झंकृत होने वाले शून्य 0 के " झंग " शब्द का सुमरन अपने मुख से वर्णन करेगा । सब जीव उसे " थाका " कहकर मानेंगे ।
हे धर्मदास ! पाँचवे पंथ को चलाने वाला ग्यानभंगी नाम का दूत होगा । उसका पंथ टकसार नाम से होगा । वह इंगला पिंगला नाङियों के स्वर को साधकर भविष्य की बात करेगा । जीव को जीभ । नेत्र । मस्तक की रेखा के बारे में बताकर समझायेगा । जीवों के तिल मस्सा आदि चिह्न देखकर उन्हें भृम रूपी धोखे में डाल्रेगा । वह जिस जीव के ऊपर जैसा दोष लगायेगा । वैसा ही उसको पान खिलायेगा ( नाम आदि देना )
छठा पंथ कमाल नाम का है । वह मन मकरंद दूत के नाम से संसार में आया है । उसने मुर्दे में वास किया । और मेरा पुत्र होकर प्रकट हुआ । वह जीवों को झिलमिल ज्योति का उपदेश करेगा ( जो अष्टांगी ने विष्णु को दिखाकर भरमा दिया ) और इस तरह वह जीवों को भरमायेगा । जहाँ तक जीव की दृष्टि है । वह झिलमिल ज्योति ही देखेगा । जिसने दोनों आँखो से झिलमिल ज्योति नहीं देखी है । वह कैसे झिलमिल ज्योति के रूप को पहचानेगा ? झिलमिल ज्योति काल निरंजन की है । उस दूत के ह्रदय में सत्य मत समझो । वह तुम्हें भरमाने के लिये है ।
सातवां दूत चितभंग है । वह मन की तरह अनेक रंग रूप बदलकर बोलेगा । वह दीन नाम कहकर पंथ चलायेगा । और देह के भीतर बोलने वाले आत्मा को ही सत्यपुरुष बतायेगा । वह जगत सृष्टि में पाँच तत्व तीन गुण बतायेगा । और ऐसा ग्यान करता हुआ अपना पंथ चलायेगा । इसके अतिरिक्त आदि पुरुष । काल निरंजन । अष्टांगी । बृह्मा आदि कुछ भी नहीं हैं । ऐसा भृम बनायेगा । सृष्टि हमेशा से है । तथा इसका कर्ता धर्ता कोई नहीं है । इसी को वह ठोस " बीजक " ग्यान कहेगा ।
वह कहेगा कि अपना आपा ही बृह्म है । वही वचन वाणी बोलता है । तो फ़िर सोचो गुरु का क्या महत्व और आवश्यकता है ? श्रीराम ने वशिष्ठ को और श्रीकृष्ण ने दुर्वासा को गुरु क्यों बनाया ।
जव श्रीकृष्ण जैसों ने गुरुओं की सेवा की । तो ऋषियों मुनियों की फ़िर गिनती ही क्या है ? नारद ने गुरु को दोष लगाया । तो विष्णु ने उनसे नरक भुगतवाया ।
जो बीजक ग्यान वह दूत थोपेगा । वह ऐसा होगा । जैसे गूलर के भीतर कीङा घूमता है । तथा वह कीङा समझता है कि संसार इतना ही है । अपने आपको कर्ता धर्ता मानने से जीव का कभी भला न होगा । अपने आपको ही मानने वाला जीव रोता रहेगा ।
आठवां पंथ चलाने वाला अकिल भंग दूत होगा । वह परमधाम कहकर अपना पंथ चलायेगा । कुछ कुरआन तथा वेद की बातें चुराकर अपने पंथ में शामिल करेगा । वह कुछ कुछ मेरे निर्गुण मत की बातें लेगा । और उन सब बातों को मिलाकर एक पुस्तक बनायेगा । इस प्रकार जोङ जाङ कर वह बृह्म ग्यान का पंथ चलायेगा । उसमें कर्म आश्रित ( यानी ग्यान रहित । ग्यान आश्रित नहीं । कर्म ही पूजा है - मानने वाले ) जीव बहुत लिपटेंगे ।
हे धर्मदास ! नौवां पंथ विशंभर दूत का होगा । और उसका जीवन चरित्र ऐसा होगा कि वह राम कबीर नाम का पंथ चलायेगा । वह निर्गुण सगुण दोनों को मिलाकर उपदेश करेगा । पाप पुण्य को एक समझेगा । ऐसा कहता हुआ वह अपना पंथ चलायेगा ।
दसवां पंथ के दूत का नाम नकटा नैन है । वह सतनामी कहकर पंथ चलायेगा । और चार वर्ण के जीवों को एक में मिलायेगा । वह अपने वचन उपदेश में ब्राह्मण । क्षत्रिय । वैश्य । शूद्र सबको एक समान मिलायेगा । परंतु वह सदगुरु के शब्द उपदेश को नहीं पहचानेगा । वह अपने पक्ष को बाँधकर रखेगा । जिससे जीव नरक को जायेंगे । वह शरीर का ग्यान कथन सब समझायेगा । परन्तु सत्यपुरुष के मार्ग को नहीं पायेगा ।
हे धर्मदास ! काल निरंजन की चालबाजी की बात सुनो । वह जीवों को फ़ँसाने के लिये बङे बङे फ़ँदों की रचना करता है । वह काल जीव को अनेक कर्म ( पूजा आदि आडंबर । सामाजिक रीति रिवाज ) और कर्म जाल में ही जीव को फ़ाँसकर खा जाता है ।
जो जीव सार शब्द ( के बारे में ) को पहचानता है । समझता है । वह इस काल निरंजन के यम जाल से छूट जाता है । और श्रद्धा से सत्यनाम का सुमरन करते हुये अमरलोक को जाता है ।
अब ग्यारहवें पंथ की बात सुनो । जिसको चलाने वाला दुर्गदानी नाम का कालदूत अत्यन्त बलशाली होगा । वह जीव पंथ नाम कहकर पंथ चलायेगा । और शरीर ग्यान के बारे में समझायेगा । उससे भोले अग्यानी जीव भरमेंगे । और भवसागर से पार नहीं होंगे । जो जीव बहुत अधिक अभिमानी होगा । वह उस कालदूत की बात सुनकर उससे प्रेम करेगा ।
हे धर्मदास ! अब बारहवें पंथ की बात सुनो । इसका कालदूत हँसमुनि नाम का होगा । वह बहुत तरह के चरित्र करेगा । वह वचन वंश के घर में सेवक होगा । और पहले बहुत सेवा करेगा । फ़िर पीछे (अर्थात पहले विश्वास जमायेगा । और जब लोग उसको मानने लगेंगे । ) वह अपना मत प्रकट करेगा । और बहुत से जीवों को अपने जाल में फ़ँसा लेगा । और अंश वंश ( कबीर साहब के स्थापित असली ग्यान ) का विरोध करेगा । वह उसके ग्यान की कुछ बातों को मानेगा । कुछ को नहीं मानेगा ।
इस प्रकार काल निरंजन जीवों पर अपना दांव फ़ेंकते हुये उन्हें अपने फ़ंदे में ( असली ग्यान से दूर ) बनाये रखेगा । यानी ऐसी कोशिश करेगा । वह अपने इन अंशो ( कालदूतों ) से बारह पंथ ( झूठे ग्यान को फ़ैलाने हेतु ) प्रकट करायेगा । और ये दूत सिर्फ़ एक बार ही प्रकट नहीं होंगे । बल्कि वे उन पंथों में बारबार आते जाते रहेंगे । और इस तरह बारबार संसार में प्रकट होंगे ।
जहाँ जहाँ भी ये दूत प्रकट होंगे । जीवों को बहुत ग्यान ( भरमाने वाला ) कहेंगे । और वे यह सब खुद को कबीरपंथी बताते हुये करेंगे । और वे शरीर ग्यान का कथन करके सत्यग्यान के नाम पर काल निरंजन की ही महिमा को घुमा फ़िरा कर बतायेंगे । और अग्यानी जीव को काल के मुँह में भेजते रहेंगे । काल निरंजन ने ऐसा ही करने का उनको आदेश दिया है ।
जब जब ये निरंजन के दूत संसार में जन्म लेकर प्रकट होंगे । तब तब ये अपना पंथ फ़ैलायेंगे । वे जीवों को हैरान करने वाली विचित्र बातें बतायेंगे । और जीवों को भरमाकर नरक में डालेंगे ।
हे धर्मदास ! सुनो । ऐसा वह काल निरंजन बहुत ही प्रबल है । वह तथा उसके दूत कपट से जीवों को छल बुद्धि वाला ही बनायेंगे ।
अब मेरी बात - पिछले दिनों मेरे पास बहुत से ई मेल इसी तरह की शंकाओं के आये कि फ़लाना बाबा ऐसा ग्यान दे रहा है । वह यह योग बता रहा है । यह सब क्या है ? और सच्चाई क्या है ?
सच्चाई जानना बहुत सरल है - मैं तो कहता हूँ । आप मुझ पर भी शंका करो कि मैं आपको सही बात बता रहा हूँ । या भरमा रहा हूँ । कबीर की वाणी बीजक ( इसकी अभी सही कीमत मुझे पता नहीं । 100 से 500 के बीच में ही होगी । ) अभी भी प्रमाणित है । अगर कबीर जैसे दोहे बनाकर कोई झूठा ( कालदूत ) ग्यान इसमें मिलाता भी है । तो कबीर की वाणी अलग ही नजर आती है ।
अब किसी भी गुरु का ग्यान उपदेश यही कबीर बीजक वाली बात कह रहा है । और दीक्षा के बाद वही क्रियायें आपके सुमरन ध्यान में अनुभव में आती हैं । तो वह गुरु सच्चा है ।
अगर कोई भी आपको माला जपना आदि किसी भी आडंबर को बताता है । नाम मुँह से जपने को बताता है । जैसे ॐ नमो फ़लाने देवाय..तो आप समझ जाओ । वह कौन है ??
ना कर में माला गहूँ । न मुख से बोलूँ राम । हरि मेरा चिंतन करें । मैं पायो आराम । ये है सच ।
आत्मग्यान की हँसदीक्षा और परमहँस दीक्षा में वाणी या अन्य इन्द्रियों का कोई स्थान नहीं हैं । दोनों ही दीक्षाओं में सुरति को दो अलग अलग स्थानों से जोङा जाता है । मतलब ध्यान बारबार वहीं ले जाने का अभ्यास किया जाता है । जब ध्यान पर साधक की पकङ हो जाती है । तो ये ध्यान खुद ब खुद अपने आप होने लगता है । और तीन महीने के ही सही अभ्यास से दिव्य दर्शन । अन्तर्लोकों की सैर । भंवर गुफ़ा । आसमानी झूला । आदि बहुत अनुभव होते हैं । ( पूरी जानकारी के लिये मेरा लेख " सहज समाधि की ओर " पढें । ) इसीलिये इसे " सहज योग " कहा गया है ।
दूसरे दीक्षा के बाद आप एक स्थायी सी शांति महसूस करते हैं । जैसी पहले कभी नहीं की । और आपकी जिन्दगी में । स्वभाव में एक मजबूती सी आ जाती है । इसीलिये सन्तों ने कहा है । फ़िकर मत कर । जिकर कर । आज इतना ही । जय सच्चे गुरुदेव की । जय सच्चे दरबार की ।
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