हरिनाम विना वत्स वर्णशुद्धिर्न जायते । तस्माच्छेयस्करम राजन हरिनामानुकीर्तनं, गृहाण हरिनामानि यथाक्रममनिन्दित ।
- वत्स ! हरि नाम के बिना वर्ण शुद्धि नहीं होगी । अतएव राजन ! हरि नाम का कीर्तन ही कल्याणकारी है । तुम पवित्र हरि नामों को ही क्रम से ग्रहण करो ।
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रसायन शास्त्र 1 प्रयोगात्मक विज्ञान है । खनिजों, पौधों, कृषि धान्य आदि के द्वारा विविध वस्तुओं का उत्पादन, विभिन्न धातुओं का निर्माण व परस्पर परिवर्तन तथा स्वास्थ्य की दृष्टि में आवश्यक औषधियों का निर्माण इसके द्वारा होता है ।
नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया । रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की । जिनमें " रस रत्नाकर " और " रसेन्द्र मंगल " बहुत प्रसिद्ध हैं । रसायन शास्त्री व धातुकर्मी होने के साथ साथ इन्होंने अपनी चिकित्सकीय सूझबूझ से अनेक असाध्य रोगों की औषधियाँ तैयार की । चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें " कक्षपुटतंत्र " " आरोग्य मंजरी " " योगसार " और " योगाष्टक " हैं ।
रस रत्नाकर ग्रंथ में मुख्य रस माने गए निम्न रसायनों का उल्लेख किया गया है ।
1 महा रस 2 उप रस 3 सामान्य रस 4 रत्न 5 धातु 6 विष 7 क्षार 8 अम्ल 9 लवण 10 भस्म ।
महा रस इतने है -
1 अभ्रं 2 वैक्रान्त 3 भाषिक 4 विमला 5 शिलाजतु 6 सास्यक 7 चपला 8 रसक
उप रस -
1 गंधक 2 गैरिक 3 काशिस 4 सुवरि 5 लालक 6 मन:शिला 7 अंजन 8 कंकुष्ठ
सामान्य रस -
1 कोयिला 2 गौरी पाषाण 3 नवसार 4 वराटक 5 अग्निजार 6 लाजवर्त 7 गिरि सिंदूर 8 हिंगुल 9 मुर्दाड श्रंगकम्
इसी प्रकार 10 से अधिक विष हैं । रस रत्नाकर अध्याय 9 में रसशाला यानी प्रयोगशाला का विस्तार से वर्णन भी
है । इसमें 32 से अधिक यंत्रों का उपयोग किया जाता था । जिनमें मुख्य हैं - 1 दोल यंत्र 2 स्वेदनी यंत्र 3 पाटन यंत्र 4 अधस्पदन यंत्र 5 ढेकी यंत्र 6 बालुक यंत्र 7 तिर्यक् पाटन यंत्र 8 विद्याधर यंत्र 9 धूप यंत्र 10 कोष्ठि यंत्र 11 कच्छप यंत्र 12 डमरू यंत्र ।
प्रयोगशाला में नागार्जुन ने पारे पर बहुत प्रयोग किए । विस्तार से उन्होंने पारे को शुद्ध करना । और उसके औषधीय प्रयोग की विधियां बताई हैं । अपने ग्रंथों में नागार्जुन ने विभिन्न धातुओं का मिश्रण तैयार करने । पारा तथा अन्य धातुओं का शोधन करने । महा रसों का शोधन । तथा विभिन्न धातुओं को स्वर्ण या रजत में परिवर्तित करने की विधि दी है ।
पारे के प्रयोग से न केवल धातु परिवर्तन किया जाता था । अपितु शरीर को निरोगी बनाने और दीर्घायुष्य के लिए उसका प्रयोग होता था । भारत में पारद आश्रित रस विद्या अपने पूर्ण विकसित रूप में स्त्री पुरुष प्रतीकवाद से जुड़ी है । पारे को शिव तत्व तथा गन्धक को पार्वती तत्व माना गया । और इन दोनों के हिंगुल के साथ जुड़ने पर जो द्रव्य उत्पन्न हुआ । उसे रस सिन्दूर कहा गया । जो आयुष्य वर्धक सार के रूप में माना गया ।
पारे की रूपान्तरण प्रक्रिया - इन ग्रंथों से यह भी ज्ञात होता है कि रस शास्त्री धातुओं और खनिजों के हानिकारक गुणों को दूर कर । उनका आन्तरिक उपयोग करने हेतु । तथा उन्हें पूर्णत: योग्य बनाने हेतु विविध शुद्धिकरण की प्रक्रियाएं करते थे । उसमें पारे को 18 संस्कार यानी शुद्धिकरण प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था । इन प्रक्रियाओं
में औषधि गुण युक्त वनस्पतियों के रस और काषाय के साथ पारे का घर्षण करना । और गन्धक, अभ्रक तथा कुछ क्षार पदार्थों के साथ पारे का संयोजन करना प्रमुख है । रसवादी यह मानते हैं कि क्रमश: 17 शुद्धिकरण प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद पारे में रूपान्तरण ( स्वर्ण या रजत के रूप में ) की सभी शक्तियों का परीक्षण करना चाहिए । यदि परीक्षण में ठीक निकले । तो उसको 18वीं शुद्धिकरण की प्रक्रिया में लगाना चाहिए । इसके द्वारा पारे में काया कल्प की योग्यता आ जाती है ।
नागार्जुन कहते हैं -
क्रमेण कृत्वाम्बुधरेण रंजित: । करोति शुल्वं त्रिपुटेन काञ्चनम ।
सुवर्ण रजतं ताम्रं तीक्ष्णवंग भुजङ्गमा:। लोहकं षडि्वधं तच्च यथापूर्व तदक्षयम । रस रत्नाकार 3-7-89-10
अर्थात - धातुओं के अक्षय रहने का क्रम निम्न प्रकार से है - सुवर्ण, चांदी, ताम्र, वंग, सीसा, तथा लोहा । इसमें सोना सबसे ज्यादा अक्षय है ।
नागार्जुन के रस रत्नाकर में अयस्क सिनाबार से पारद को प्राप्त करने की आसवन ( डिस्टीलेशन ) विधि । रजत के धातु कर्म का वर्णन । तथा वनस्पतियों से कई प्रकार के अम्ल और क्षार की प्राप्ति की भी विधियां वर्णित हैं ।
इसके अतिरिक्त रस रत्नाकर में रस ( पारे के योगिक ) बनाने के प्रयोग दिए गये हैं । इसमें देश में धातु कर्म और कीमियागरी के स्तर का सर्वेक्षण भी दिया गया था । इस पुस्तक में चांदी, सोना, टिन और तांबे की कच्ची धातु निकालने । और उसे शुद्ध करने के तरीके भी बताये गए हैं ।
पारे से संजीवनी और अन्य पदार्थ बनाने के लिए नागार्जुन ने पशुओं और वनस्पति तत्वों और अम्ल और खनिजों का भी इस्तेमाल किया । हीरे, धातु और मोती घोलने के लिए उन्होंने वनस्पति से बने तेजाबों का सुझाव दिया । उसमें खट्टा दलिया, पौधे और फलों के रस से तेजाब Acid बनाने का वर्णन है ।
नागार्जुन ने सुश्रुत संहिता के पूरक के रूप में उत्तर तन्त्र नामक पुस्तक भी लिखी । इसमें दवाइयां बनाने के तरीके दिये गये हैं । आयुर्वेद की 1 पुस्तक " आरोग्यमजरी " भी लिखी ।
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त्राटक शक्ति चक्र - इस चक्र के दाहिने तथा बांये कोने को एक साथ देखकर त्राटक की क्रिया पूरी की जा सकती है । यह मन की स्थिरता के लिए तथा योग्य गुरु के साथ साधना करके सम्मोहन में भी पारंगतता प्राप्त की जा सकती है । सूक्ष्म योग ।
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पूर्व जन्म का ज्ञान कराने वाला अचूक यंत्र - बहुत आसान है । इस यंत्र बिधान से पूर्व जन्म ज्ञात करना । इस
यंत्र को डाउनलोड करके रंगीन प्रिंट कराकर साधक की जगह अपना नाम लिखकर इसे अपने सोने वाले कमरे में सर की तरफ लटका दें ( अमावस्या के दिन ) उस दिन से 15 दिन तक शराब मांस का सेवन न करें । सोने से पहले कुछ पल यंत्र को अपलक निहारें । और सो जायें । सुबह 15 दिनों तक देखें । स्वप्न ( जो सुबह तक याद रहे ) को 1 डायरी में लिखें । आपके पूर्व जन्म से जुडी कुछ बिशेष घटनाओं की सूची आपके पास मौजूद होगी । ये मेरा आजमाया हुवा प्रसिद्ध लामा यंत्र है । नेपाल में इसका प्रयोग उच्चकोटि के साधक करते आये हैं । आप भी करें । और हमें अपने अनुभवों को लिखें । हाँ साधना के समय पर स्त्री गमन न करें । बृह्मचारी रहना श्रेयकर होगा ।
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बाँवरी ( तुलसी ) के पल्लवों को किसी भी इतवार या मंगलबार को हाथ धोकर तोड़ें । इन्हें 3 बार सूंघकर अपने रुमाल में मोड़कर जेब में रख लें । दिन भर जेब में पड़े रहने दें । शाम को इसे सरसों के तेल में पकाकर तेल रख लें । जब जुकाम हो । तब इस तेल को नाक पर मल लें । जुकाम ठीक हो जायेगा । नजला जाता रहेगा । धुल धुंए से होने वाली नाखुशी भी ठीक हो जाएगी । जरुर आजमाईये ।
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लड़का और लड़की पिकनिक पर गए । वहाँ लड़के को चोट लग गयी । और खून बहने लगा । वो लड़की की तरफ
देखने लगा । बेचारा फिल्मों में बहुत बार देख चुका था । इसलिये सोचने लगा कि अभी वो अपना दुपट्टा फाङकर बांधेगी । लड़की लड़के की नज़रों का मतलब समझते हुवे बोली - बेटा ! सोचना भी नहीं 4500 का सूट है । Rawat.G ♥♥
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fooling hindus by showing dreams about their imagined past created by hindutva fascists - Durga Sharma Jones
https://www.facebook.com/pages/Durga-Sharma-Jones/227980217354812
- वत्स ! हरि नाम के बिना वर्ण शुद्धि नहीं होगी । अतएव राजन ! हरि नाम का कीर्तन ही कल्याणकारी है । तुम पवित्र हरि नामों को ही क्रम से ग्रहण करो ।
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रसायन शास्त्र 1 प्रयोगात्मक विज्ञान है । खनिजों, पौधों, कृषि धान्य आदि के द्वारा विविध वस्तुओं का उत्पादन, विभिन्न धातुओं का निर्माण व परस्पर परिवर्तन तथा स्वास्थ्य की दृष्टि में आवश्यक औषधियों का निर्माण इसके द्वारा होता है ।
नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया । रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की । जिनमें " रस रत्नाकर " और " रसेन्द्र मंगल " बहुत प्रसिद्ध हैं । रसायन शास्त्री व धातुकर्मी होने के साथ साथ इन्होंने अपनी चिकित्सकीय सूझबूझ से अनेक असाध्य रोगों की औषधियाँ तैयार की । चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें " कक्षपुटतंत्र " " आरोग्य मंजरी " " योगसार " और " योगाष्टक " हैं ।
रस रत्नाकर ग्रंथ में मुख्य रस माने गए निम्न रसायनों का उल्लेख किया गया है ।
1 महा रस 2 उप रस 3 सामान्य रस 4 रत्न 5 धातु 6 विष 7 क्षार 8 अम्ल 9 लवण 10 भस्म ।
महा रस इतने है -
1 अभ्रं 2 वैक्रान्त 3 भाषिक 4 विमला 5 शिलाजतु 6 सास्यक 7 चपला 8 रसक
उप रस -
1 गंधक 2 गैरिक 3 काशिस 4 सुवरि 5 लालक 6 मन:शिला 7 अंजन 8 कंकुष्ठ
सामान्य रस -
1 कोयिला 2 गौरी पाषाण 3 नवसार 4 वराटक 5 अग्निजार 6 लाजवर्त 7 गिरि सिंदूर 8 हिंगुल 9 मुर्दाड श्रंगकम्
इसी प्रकार 10 से अधिक विष हैं । रस रत्नाकर अध्याय 9 में रसशाला यानी प्रयोगशाला का विस्तार से वर्णन भी
है । इसमें 32 से अधिक यंत्रों का उपयोग किया जाता था । जिनमें मुख्य हैं - 1 दोल यंत्र 2 स्वेदनी यंत्र 3 पाटन यंत्र 4 अधस्पदन यंत्र 5 ढेकी यंत्र 6 बालुक यंत्र 7 तिर्यक् पाटन यंत्र 8 विद्याधर यंत्र 9 धूप यंत्र 10 कोष्ठि यंत्र 11 कच्छप यंत्र 12 डमरू यंत्र ।
प्रयोगशाला में नागार्जुन ने पारे पर बहुत प्रयोग किए । विस्तार से उन्होंने पारे को शुद्ध करना । और उसके औषधीय प्रयोग की विधियां बताई हैं । अपने ग्रंथों में नागार्जुन ने विभिन्न धातुओं का मिश्रण तैयार करने । पारा तथा अन्य धातुओं का शोधन करने । महा रसों का शोधन । तथा विभिन्न धातुओं को स्वर्ण या रजत में परिवर्तित करने की विधि दी है ।
पारे के प्रयोग से न केवल धातु परिवर्तन किया जाता था । अपितु शरीर को निरोगी बनाने और दीर्घायुष्य के लिए उसका प्रयोग होता था । भारत में पारद आश्रित रस विद्या अपने पूर्ण विकसित रूप में स्त्री पुरुष प्रतीकवाद से जुड़ी है । पारे को शिव तत्व तथा गन्धक को पार्वती तत्व माना गया । और इन दोनों के हिंगुल के साथ जुड़ने पर जो द्रव्य उत्पन्न हुआ । उसे रस सिन्दूर कहा गया । जो आयुष्य वर्धक सार के रूप में माना गया ।
पारे की रूपान्तरण प्रक्रिया - इन ग्रंथों से यह भी ज्ञात होता है कि रस शास्त्री धातुओं और खनिजों के हानिकारक गुणों को दूर कर । उनका आन्तरिक उपयोग करने हेतु । तथा उन्हें पूर्णत: योग्य बनाने हेतु विविध शुद्धिकरण की प्रक्रियाएं करते थे । उसमें पारे को 18 संस्कार यानी शुद्धिकरण प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था । इन प्रक्रियाओं
में औषधि गुण युक्त वनस्पतियों के रस और काषाय के साथ पारे का घर्षण करना । और गन्धक, अभ्रक तथा कुछ क्षार पदार्थों के साथ पारे का संयोजन करना प्रमुख है । रसवादी यह मानते हैं कि क्रमश: 17 शुद्धिकरण प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद पारे में रूपान्तरण ( स्वर्ण या रजत के रूप में ) की सभी शक्तियों का परीक्षण करना चाहिए । यदि परीक्षण में ठीक निकले । तो उसको 18वीं शुद्धिकरण की प्रक्रिया में लगाना चाहिए । इसके द्वारा पारे में काया कल्प की योग्यता आ जाती है ।
नागार्जुन कहते हैं -
क्रमेण कृत्वाम्बुधरेण रंजित: । करोति शुल्वं त्रिपुटेन काञ्चनम ।
सुवर्ण रजतं ताम्रं तीक्ष्णवंग भुजङ्गमा:। लोहकं षडि्वधं तच्च यथापूर्व तदक्षयम । रस रत्नाकार 3-7-89-10
अर्थात - धातुओं के अक्षय रहने का क्रम निम्न प्रकार से है - सुवर्ण, चांदी, ताम्र, वंग, सीसा, तथा लोहा । इसमें सोना सबसे ज्यादा अक्षय है ।
नागार्जुन के रस रत्नाकर में अयस्क सिनाबार से पारद को प्राप्त करने की आसवन ( डिस्टीलेशन ) विधि । रजत के धातु कर्म का वर्णन । तथा वनस्पतियों से कई प्रकार के अम्ल और क्षार की प्राप्ति की भी विधियां वर्णित हैं ।
इसके अतिरिक्त रस रत्नाकर में रस ( पारे के योगिक ) बनाने के प्रयोग दिए गये हैं । इसमें देश में धातु कर्म और कीमियागरी के स्तर का सर्वेक्षण भी दिया गया था । इस पुस्तक में चांदी, सोना, टिन और तांबे की कच्ची धातु निकालने । और उसे शुद्ध करने के तरीके भी बताये गए हैं ।
पारे से संजीवनी और अन्य पदार्थ बनाने के लिए नागार्जुन ने पशुओं और वनस्पति तत्वों और अम्ल और खनिजों का भी इस्तेमाल किया । हीरे, धातु और मोती घोलने के लिए उन्होंने वनस्पति से बने तेजाबों का सुझाव दिया । उसमें खट्टा दलिया, पौधे और फलों के रस से तेजाब Acid बनाने का वर्णन है ।
नागार्जुन ने सुश्रुत संहिता के पूरक के रूप में उत्तर तन्त्र नामक पुस्तक भी लिखी । इसमें दवाइयां बनाने के तरीके दिये गये हैं । आयुर्वेद की 1 पुस्तक " आरोग्यमजरी " भी लिखी ।
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त्राटक शक्ति चक्र - इस चक्र के दाहिने तथा बांये कोने को एक साथ देखकर त्राटक की क्रिया पूरी की जा सकती है । यह मन की स्थिरता के लिए तथा योग्य गुरु के साथ साधना करके सम्मोहन में भी पारंगतता प्राप्त की जा सकती है । सूक्ष्म योग ।
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पूर्व जन्म का ज्ञान कराने वाला अचूक यंत्र - बहुत आसान है । इस यंत्र बिधान से पूर्व जन्म ज्ञात करना । इस
यंत्र को डाउनलोड करके रंगीन प्रिंट कराकर साधक की जगह अपना नाम लिखकर इसे अपने सोने वाले कमरे में सर की तरफ लटका दें ( अमावस्या के दिन ) उस दिन से 15 दिन तक शराब मांस का सेवन न करें । सोने से पहले कुछ पल यंत्र को अपलक निहारें । और सो जायें । सुबह 15 दिनों तक देखें । स्वप्न ( जो सुबह तक याद रहे ) को 1 डायरी में लिखें । आपके पूर्व जन्म से जुडी कुछ बिशेष घटनाओं की सूची आपके पास मौजूद होगी । ये मेरा आजमाया हुवा प्रसिद्ध लामा यंत्र है । नेपाल में इसका प्रयोग उच्चकोटि के साधक करते आये हैं । आप भी करें । और हमें अपने अनुभवों को लिखें । हाँ साधना के समय पर स्त्री गमन न करें । बृह्मचारी रहना श्रेयकर होगा ।
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बाँवरी ( तुलसी ) के पल्लवों को किसी भी इतवार या मंगलबार को हाथ धोकर तोड़ें । इन्हें 3 बार सूंघकर अपने रुमाल में मोड़कर जेब में रख लें । दिन भर जेब में पड़े रहने दें । शाम को इसे सरसों के तेल में पकाकर तेल रख लें । जब जुकाम हो । तब इस तेल को नाक पर मल लें । जुकाम ठीक हो जायेगा । नजला जाता रहेगा । धुल धुंए से होने वाली नाखुशी भी ठीक हो जाएगी । जरुर आजमाईये ।
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लड़का और लड़की पिकनिक पर गए । वहाँ लड़के को चोट लग गयी । और खून बहने लगा । वो लड़की की तरफ
देखने लगा । बेचारा फिल्मों में बहुत बार देख चुका था । इसलिये सोचने लगा कि अभी वो अपना दुपट्टा फाङकर बांधेगी । लड़की लड़के की नज़रों का मतलब समझते हुवे बोली - बेटा ! सोचना भी नहीं 4500 का सूट है । Rawat.G ♥♥
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4 टिप्पणियां:
ऐसा माना जाता है कि रसायन विज्ञान का विकास सर्वप्रथम मिस्र देश में हुआ था। प्राचीन काल में मिस्रवासी काँच, साबुन, रंग तथा अन्य रासायनिक पदार्थों के बनाने की विधियाँ जानते थे तथा इस काल में मिस्र को केमिया कहा जाता था।
मूर्खता
Or bhart me sona banta tha podho se
मानने और होने में बहुत फर्क है। हमारे पास हर विषय का विस्तृत ज्ञान उपलब्ध था भी और काफी कुछ अब भी है।
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