एक चक्रवाती तूफान । जो अपने रास्ते में पडने वाली हर चीज को उडाकर फेंक देता है । उस तूफान को अफ्रीका में Tornado यूरोप में Typhoon अमेरिका में Hurricane और हिन्दुस्तान में NARENDRA MODI कहते हैं ।
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छठी इंद्री को अंग्रेजी में सिक्स्थ सेंस कहते हैं । सिक्स्थ सेंस को जाग्रत करने के लिए योग में अनेक उपाय बताए गए हैं । इसे परा मनोविज्ञान का विषय भी माना जाता है । असल में यह संवेदी बोध का मामला है । गहरे ध्यान प्रयोग से यह स्वत: ही जाग्रत हो जाती है । मेस्मेरिज्म या हिप्नोटिज्म जैसी अनेक विद्याएँ इस छठी इंद्री के जाग्रत होने का ही कमाल होता है ।
क्या है छठी इंद्री - मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे 1 छिद्र है । उसे बृह्मरंध्र कहते हैं । वहीं से सुषमणा रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है । सुषमणा नाड़ी जुड़ी है - सहस्रार से ।
इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है । पिंगला नाड़ी दायीं तरफ । अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर । और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है । सुषमणा मध्य में स्थित है । अतः जब हमारी नाक के दोनों स्वर चलते हैं । तो माना जाता है कि सुषमणा नाड़ी सक्रिय है । इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है ।
इड़ा, पिंगला और सुषमणा के अलावा पूरे शरीर में हजारों नाड़ियाँ होती हैं । उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ प्राणायाम और आसनों से ही होता है । शुद्धि और सशक्तिकरण के बाद ही उक्त नाड़ियों की शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है ।
कैसे जाग्रत करें छठी इंद्री - यह इंद्री सभी में सुप्तावस्था में होती है । भृकुटी के मध्य निरंतर और नियमित
ध्यान करते रहने से आज्ञा चक्र जाग्रत होने लगता है । जो हमारे सिक्स्थ सेंस को बढ़ाता है । योग में त्राटक और ध्यान की कई विधियाँ बताई गई हैं । उनमें से किसी भी 1 को चुनकर आप इसका अभ्यास कर सकते हैं ।
अभ्यास का स्थान - अभ्यास के लिए सर्वप्रथम जरूरी है । साफ और स्वच्छ वातावरण । जहाँ फेफड़ों में ताजी हवा भरी जा सके । अन्यथा आगे नहीं बढ़ा जा सकता । शहर का वातावरण लाभदायक नहीं है । क्योंकि उसमें शोर, धूल, धुएँ के अलावा जहरीले पदार्थ और कार्बन डाइआक्साइड निरंतर आपके शरीर और मन का क्षरण करती रहती है । स्वच्छ वातावरण में सभी तरह के प्राणायाम को नियमित करना आवश्यक है ।
मौन ध्यान - भृकुटी पर ध्यान लगाकर निरंतर मध्य स्थित अँधेरे को देखते रहें । और यह भी जानते रहें कि श्वास अंदर और बाहर हो रही है । मौन ध्यान और साधना । मन और शरीर को मजबूत तो करती ही है । मध्य स्थित जो अँधेरा है । वही काले से नीला । और नीले से सफेद में बदलता जाता है । सभी के साथ अलग अलग
परिस्थितियाँ निर्मित हो सकती हैं ।
मौन से मन की क्षमता का विकास होता जाता है । जिससे काल्पनिक शक्ति और आभास करने की क्षमता बढ़ती है । इसी के माध्यम से पूर्वाभास और साथ ही इससे भविष्य के गर्भ में झाँकने की क्षमता भी बढ़ती है । यही सिक्स्थ सेंस के विकास की शुरुआत है ।
अंतत: हमारे पीछे कोई चल रहा है । या दरवाजे पर कोई खड़ा है । इस बात का हमें आभास होता है । यही आभास होने की क्षमता हमारी छठी इंद्री के होने की सूचना है । जब यह आभास होने की क्षमता बढ़ती है । तो पूर्वाभास में बदल जाती है । मन की स्थिरता और उसकी शक्ति ही छठी इंद्री के विकास में सहायक सिद्ध होती है ।
इसका लाभ - व्यक्ति में भविष्य में झाँकने की क्षमता का विकास होता है । अतीत में जाकर घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है । मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुन सकते हैं । किसके मन में क्या विचार चल रहा है । इसका शब्दश: पता लग जाता है । 1 ही जगह बैठे हुए दुनिया की किसी भी जगह की जानकारी पल में ही हासिल की जा सकती है । छठी इंद्री प्राप्त व्यक्ति से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता ।
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योग निद्रा तांत्रिक विधि है । तंत्र में शांति प्राप्त करने के जितने रास्ते बताये गये हैं । उनमें योग निद्रा बहुत ही सुगम और व्यवहारिक मार्ग है । योग निद्रा का अभ्यास 3 चरणों में होता है । 1 - शरीर का शिथिलीकरण । 2 - अनुभूति । 3 - धारणा । अगर आप योग को समझते हैं । तो ऐसे भी समझ सकते हैं 1 - आसन । 2 - प्राणायाम । 3 - धारणा । पहले चरण में आप भौतिक शरीर के स्तर पर मन को स्थापित करते हैं । दूसरे चरण में सूक्ष्म शरीर का अवलोकन करते हैं । और तीसरे चरण में मन को
अपनी इच्छा के मुताबिक निर्देशित करते हैं ।
विधि - ढीले कपड़े पहनकर शवासन करें । जमीन पर दरी बिछाकर उस पर 1 कंबल बिछाएँ । दोनों पैर लगभग 1 फुट की दूरी पर हों । हथेली कमर से 6 इंच दूरी पर हो । आँखे बंद रखें ।
अपने शरीर व मन मस्तिष्क को शिथिल कर दीजिए । सिर से पाँव तक पूरे शरीर को शिथिल कर दीजिए । पूरी साँस लेना व छोड़ना है । अब कल्पना करें । आपके हाथ, पाँव, पेट, गर्दन, आँखें सब शिथिल हो गए हैं । अपने आपसे कहें कि - मैं योग निद्रा का अभ्यास करने जा रहा हूँ ।
अब अपने मन को शरीर के विभिन्न अंगों पर ले जाईए । और उन्हें शिथिल व तनाव रहित होने का निर्देश दें । पूरे शरीर को शांतिमय स्थिति में रखें । गहरी साँस लें ।
फिर अपने मन को दाहिने पैर के अँगूठे पर ले जाईए । पाँव की सभी अँगुलियाँ कम से कम पाँव का तलवा, एड़ी, पिंडली, घुटना, जांघ, नितम्ब, कमर, कंधा शिथिल होता जा रहा है । इसी तरह बाँया पैर भी शिथिल करें । सहज साँस लें । व छोड़ें । अब लेटे लेटे 5 बार पूरी साँस लें । व छोड़ें । इसमें पेट व छाती चलेगी । पेट ऊपर नीचे होगा ।
मन चंचल होता है । और यह चंचलता ही उसका स्वभाव और ताकत है । मन निश्चल हो सकता है । लेकिन वह कभी स्थिर नहीं हो सकता । योग निद्रा के चरण 1 में हम मन को बहुत प्राथमिक स्तर पर निर्देशित करते हैं । इसलिए हम शरीर के विभिन्न हिस्सों को बंद आखों से अवलोकन करते हैं । योग निद्रा का प्रशिक्षक आपको निर्देश करता है कि दाहिने पैर का अंगूठा । तो आपका पूरा मन वहाँ उस दाहिने पैर के अंगूठे पर केन्द्रत हो जाता है । फिर इसी क्रम में वह आपके पूरे शरीर का मानस दर्शन कराता है । तंत्र में जिस अन्नमय कोश की बात की गयी है । उस शरीर पर ही सबसे पहले मन को स्थापित करना जरूरी होता है । 1 बार मन शरीर पर स्थित हो गया । तो फिर वह आगे आपको सूक्ष्म अवस्थाओं में ले जाने के लिए तैयार होता है ।
इसके बाद अवस्था 2 होती है - अनुभूति की । अनुभूति के स्तर को पाने के लिए आपके शरीर और स्वांस के साथ साथ शरीर के अंदर में स्थित सूक्ष्म चक्रों की भी अनुभूति सिखाई जाती है । हमारे शरीर के अंदर में जो षट चक्र 6 हैं । वे सब उर्जा के किसी न किसी स्वरूप को धारण किये हुए हैं । उन चक्रों का पदार्थ के साथ भी गहरा नाता होता है । मसलन आप मूलाधार चक्र की बात करें । तो यह भू पदार्थ का प्रतिनिधित्व करता है । इसी तरह स्वाधिस्ठान चक्र - जल का प्रतिनिधित्व करता है । अब आपके मन में यह सवाल आना स्वाभाविक है कि अगर पदार्थ 5 हैं । तो चक्र 6 क्यों है ? छठा चक्र पदार्थ नहीं । परमानंद का प्रतीक है । जब पांच पदार्थ सम अवस्था में आ जाते हैं । तो छठे चक्र का जागरण होता है । जो कि परमानंद धारण किये हुए है । इसीलिए इसे अनाहत चक्र कहते हैं ।
योग निद्रा की अवस्था 3 धारणा की है । 1 बार आप अपने शरीर को शिथिल करके चक्रों का भेदन करते हुए शांति की गहरी अवस्था में पहुंचते हैं । तो आपका मन निश्चल अवस्था में होता है । यहाँ यह जरूरी है कि आप उस निश्चल अवस्था का उपयोग किसी श्रेष्ठ कर्म के लिए करें । योग निद्रा करने के पूर्व संकल्प इसीलिए लिया जाता है कि जब आप मन की इस निश्चल अवस्था में पहुंचें । आप किसी श्रेष्ठ कर्म की तरफ़ अग्रसर हो । धारणा के वक्त आपको विभिन्न प्रकार की धारणा का अभ्यास कराया जाता है । ताकि आप अनुभूति के स्तर पर वह सब अनुभव कर सकें । जो यथार्थ के स्तर पर चारों ओर मौजूद है । 1 बात समझ लीजिए । जो कुछ भी भौतिक रूप में हमारे आसपास मौजूद है । वह सूक्ष्म रूप में भी उपलब्ध है ।
सावधानी - योगनिद्रा में सोना नहीं है । योग निद्रा 10 से 45 मिनट तक की जा सकती है । योग निद्रा के लिए खुली जगह का चयन किया जाए । यदि किसी बंद कमरे में करते हैं । तो उसके दरवाजे, खिड़की खुले रखें । शरीर को हिलाना नहीं है । नींद नहीं निकालना । यह 1 मनोवैज्ञानिक नींद है । विचारों से जूझना नहीं है । सोचना नहीं है । साँसों के आवागमन को महसूस करना है ।
लाभ - योग निद्रा द्वारा मनुष्य से अच्छे काम भी कराए जा सकते हैं । बुरी आदतें भी इससे छूट जाती हैं । योग निद्रा का प्रयोग रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, सिरदर्द, तनाव, पेट में घाव, दमे की बीमारी, गर्दन दर्द, कमर दर्द, घुटनों, जोड़ों का दर्द, साइटिका, अनिद्रा, थकान, अवसाद, प्रसवकाल की पीड़ा में बहुत ही लाभदायक है ।
योग निद्रा में किया गया संकल्प बहुत ही शक्तिशाली होता है । योग निद्रा द्वारा शरीर व मस्तिष्क स्वस्थ रहते हैं । यह नींद की कमी को भी पूरा कर देती है । इससे थकान, तनाव व अवसाद भी दूर हो जाता है ।
योग निद्रा के कई आध्यात्मिक लाभ भी हैं । लेकिन आधुनिक चंचल, उत्तेजित और तनाव ग्रस्त मन के लिए यह बहुत ही लाभदायक है । यही ध्यान की स्थिति भी है । साध्वी कनिका ।
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नया आविष्कार - वेद ज्ञान को आधार मानकर न्यूलैंड के 1 वैज्ञानिक स्टेन क्रो ने 1 डिवाइस विकसित कर लिया । ध्वनि पर आधारित इस डिवाइस से मोबाइल की बैटरी चार्ज हो जाती है । इसे बिजली की आवश्यकता नहीं होती है ।
भारत के वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक ओमप्रकाश पांडे ने वेदों में निहित ज्ञान पर प्रकाश डालते हुए दैनिक भास्कर प्रतिनिधि से बातचीत में यह जानकारी दी । उन्होंने बताया कि इस डिवाइस का नाम भी " ॐ ओम डिवाइस " रखा गया है ।
उन्होंने कहा कि संस्कृत को अपौरुषेय भाषा इसलिए कहा जाता है कि इसकी रचना बृह्मांड की ध्वनियों से हुई है । उन्होंने बताया कि गति सर्वत्र है । चाहे वस्तु स्थिर हो । या गतिमान । गति होगी । तो ध्वनि निकलेगी । ध्वनि होगी । तो शब्द निकलेगा ।
सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के 1 ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं । और ये चारों और से अलग अलग निकलती है । इस तरह कुल 36
रश्मियां हो गई । इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने । इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं । तो उनका पृथ्वी के 8 बसुओं से टक्कर होती है । सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 बसुओं की आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं । वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गई । इस प्रकार बृह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्णमाला आधारित है ।
उन्होंने बताया कि बृह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है । इन ध्वनियों को नासा ने भी माना है । इसलिए यह बात साबित होती है कि वैदिक काल में बृह्मांड में होने वाली ध्वनियों का ज्ञान ऋषियों को था । ॐ नमो नारायणाय ।
साभार - जो हिन्दू राम का नहीं । वो इंसान किसी काम का नहीं ।
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राजीव दीक्षित जी के इस वाक्य को शेयर कीजिए - BJP, कांग्रेस, CPM, CPI, JD सब ख़त्म हो गई l हमने 10-15 सालों में देखा है । सबके सब अमेरिका के दुमछल्ले हो गए ।
http://www.youtube.com/watch?v=Fbc7TLzhL24
( 2 मिनट का वीडियो )
अधिक चर्चा के लिए www.forum.righttorecall.info
या http://www.facebook.com/groups/rrgindia/
धुंआधार वीडियो राजीव दीक्षित जी का l आप सभी सुनें । और मोदीजी तक अवश्य पहुंचाएं l
https://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=elicZLUmp9s#t=4889
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बस 5 कदम चलना..और आप दूसरे के शरीर में होंगे - परकाया प्रवेश ।
क्या होगा । दूसरे के शरीर में प्रवेश करने से ? क्या यह संभव है ? यह सवाल पूछा जा सकता है । आदि शंकराचार्य यह विधि जानते थे । और भी बहुत से साधक इस तकनीक से अवगत थे । लेकिन आम जनता के लिए तो यह बहुत ही कठिन जान पड़ता है । क्यों ?
योग में कहा है - मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या है - चित्त की वृत्तियां । इसीलिए योग सूत्र का पहला सूत्र है " योगस्य चित्तवृत्ति निरोध: " इस चित्त में हजारों जन्मों की आसक्ति, अहंकार, काम, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से उपजे कर्म संग्रहित रहते हैं । जिसे संचित कर्म कहते हैं ।
यह संचित कर्म ही हमारा प्रारब्ध भी होते हैं । और इसी से आगे की दिशा भी तय होती है । इस चित्त की 5 अवस्थाएं होती हैं । जिसे समझ कर ही हम सूक्ष्म शरीर को सक्रिय कर सकते हैं । सूक्ष्म शरीर से बाहर निकल कर ही हम दूसरे के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं ।
इस चित्त या मानसिक अवस्था के 5 रूप हैं - 1 क्षिप्त 2 मूढ़ 3 विक्षिप्त 4 एकाग्र 5 निरुद्व । प्रत्येक अवस्था में कुछ न कुछ मानसिक वृत्तियों का निरोध होता है ।
1 क्षिप्त - क्षिप्त अवस्था में चित्त 1 विषय से दूसरे विषय पर लगातार दौड़ता रहता है । ऐसे व्यक्ति में विचारों, कल्पनाओं की भरमार रहती है ।
2 मूढ़ - मूढ़ अवस्था में निद्रा, आलस्य, उदासी, निरुत्साह आदि प्रवृत्तियों या आदतों का बोलबाला रहता है ।
3 विक्षिप्त - विक्षिप्तावस्था में मन थोड़ी देर के लिए 1 विषय में लगता है । पर क्षण में ही दूसरे विषय की ओर चला जाता है । पल प्रतिपल मानसिक अवस्था बदलती रहती है।
4 एकाग्र - एकाग्र अवस्था में चित्त देर तक 1 विषय पर लगा रहता है । यह अवस्था स्थित प्रज्ञ होने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है ।
5 निरुद्व - निरुद्व अवस्था में चित्त की सभी वृत्तियों का लोप हो जाता है । और चित्त अपनी स्वाभाविक स्थिर, शान्त अवस्था में आ जाता है । अर्थात व्यक्ति को स्वयं के होने का पूर्ण अहसास होता है । उसके उपर से मन, मस्तिष्क में घुमड़ रहे बादल छट जाते हैं । और वह पूर्ण जाग्रत रहकर दृष्टा बन जाता है । यह योग की पहली समाधि अवस्था भी कही गई है ।
ध्यान योग का सहारा - निरुद्व अवस्था को समझें । यह व्यक्ति को आत्मबल प्रदान करती है । यही व्यक्ति का असली स्वरूप है । इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए संसार की व्यर्थ की बातों, क्रियाकलापों आदि से ध्यान हटाकर संयमित भोजन का सेवन करते हुए प्रतिदिन ध्यान करना आवश्यक है । इस दौरान कम से कम बोलना । और लोगों से कम ही व्यवहार रखना भी जरूरी है ।
ज्ञान योग का सहारा - चित्त की वृत्तियों और संचित कर्म के नाश के लिए योग में ज्ञान योग का वर्णन मिलता है । ज्ञान योग का पहला सूत्र है कि स्वयं को शरीर मानना छोड़कर आत्मा मानों । आत्मा का ज्ञान होना सूक्ष्म शरीर के होने का आभास दिलाएगा ।
कैसे होगा यह संभव - चित्त जब वृत्ति शून्य 0 ( निरुद्व अवस्था ) होता है । तब बंधन के शिथिल हो जाने पर और संयम द्वारा चित्त की प्रवेश निर्गम मार्ग नाड़ी के ज्ञान से चित्त दूसरे के शरीर में प्रवेश करने की सिद्धि प्राप्त कर लेता है । यह बहुत आसान है । चित्त की स्थिरता से सूक्ष्म शरीर में होने का अहसास बढ़ता है । सूक्ष्म शरीर के निरंतर अहसास से स्थूल शरीर से बाहर निकलने की इच्छा बलवान होती है ।
योग निद्रा विधि - जब ध्यान की अवस्था गहराने लगे । तब निद्रा काल में जाग्रत होकर शरीर से बाहर निकला जा सकता है । इस दौरान यह अहसास होता रहेगा कि स्थूल शरीर सो रहा है । शरीर को अपने सुरक्षित स्थान पर सोने दें । और आप हवा में उड़ने का मजा लें । ध्यान रखें । किसी दूसरे के शरीर में उसकी इजाजत के बगैर प्रवेश करना अपराध है । साभार - सूक्ष्म योग ।
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छठी इंद्री को अंग्रेजी में सिक्स्थ सेंस कहते हैं । सिक्स्थ सेंस को जाग्रत करने के लिए योग में अनेक उपाय बताए गए हैं । इसे परा मनोविज्ञान का विषय भी माना जाता है । असल में यह संवेदी बोध का मामला है । गहरे ध्यान प्रयोग से यह स्वत: ही जाग्रत हो जाती है । मेस्मेरिज्म या हिप्नोटिज्म जैसी अनेक विद्याएँ इस छठी इंद्री के जाग्रत होने का ही कमाल होता है ।
क्या है छठी इंद्री - मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे 1 छिद्र है । उसे बृह्मरंध्र कहते हैं । वहीं से सुषमणा रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है । सुषमणा नाड़ी जुड़ी है - सहस्रार से ।
इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है । पिंगला नाड़ी दायीं तरफ । अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर । और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है । सुषमणा मध्य में स्थित है । अतः जब हमारी नाक के दोनों स्वर चलते हैं । तो माना जाता है कि सुषमणा नाड़ी सक्रिय है । इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है ।
इड़ा, पिंगला और सुषमणा के अलावा पूरे शरीर में हजारों नाड़ियाँ होती हैं । उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ प्राणायाम और आसनों से ही होता है । शुद्धि और सशक्तिकरण के बाद ही उक्त नाड़ियों की शक्ति को जाग्रत किया जा सकता है ।
कैसे जाग्रत करें छठी इंद्री - यह इंद्री सभी में सुप्तावस्था में होती है । भृकुटी के मध्य निरंतर और नियमित
ध्यान करते रहने से आज्ञा चक्र जाग्रत होने लगता है । जो हमारे सिक्स्थ सेंस को बढ़ाता है । योग में त्राटक और ध्यान की कई विधियाँ बताई गई हैं । उनमें से किसी भी 1 को चुनकर आप इसका अभ्यास कर सकते हैं ।
अभ्यास का स्थान - अभ्यास के लिए सर्वप्रथम जरूरी है । साफ और स्वच्छ वातावरण । जहाँ फेफड़ों में ताजी हवा भरी जा सके । अन्यथा आगे नहीं बढ़ा जा सकता । शहर का वातावरण लाभदायक नहीं है । क्योंकि उसमें शोर, धूल, धुएँ के अलावा जहरीले पदार्थ और कार्बन डाइआक्साइड निरंतर आपके शरीर और मन का क्षरण करती रहती है । स्वच्छ वातावरण में सभी तरह के प्राणायाम को नियमित करना आवश्यक है ।
मौन ध्यान - भृकुटी पर ध्यान लगाकर निरंतर मध्य स्थित अँधेरे को देखते रहें । और यह भी जानते रहें कि श्वास अंदर और बाहर हो रही है । मौन ध्यान और साधना । मन और शरीर को मजबूत तो करती ही है । मध्य स्थित जो अँधेरा है । वही काले से नीला । और नीले से सफेद में बदलता जाता है । सभी के साथ अलग अलग
परिस्थितियाँ निर्मित हो सकती हैं ।
मौन से मन की क्षमता का विकास होता जाता है । जिससे काल्पनिक शक्ति और आभास करने की क्षमता बढ़ती है । इसी के माध्यम से पूर्वाभास और साथ ही इससे भविष्य के गर्भ में झाँकने की क्षमता भी बढ़ती है । यही सिक्स्थ सेंस के विकास की शुरुआत है ।
अंतत: हमारे पीछे कोई चल रहा है । या दरवाजे पर कोई खड़ा है । इस बात का हमें आभास होता है । यही आभास होने की क्षमता हमारी छठी इंद्री के होने की सूचना है । जब यह आभास होने की क्षमता बढ़ती है । तो पूर्वाभास में बदल जाती है । मन की स्थिरता और उसकी शक्ति ही छठी इंद्री के विकास में सहायक सिद्ध होती है ।
इसका लाभ - व्यक्ति में भविष्य में झाँकने की क्षमता का विकास होता है । अतीत में जाकर घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है । मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुन सकते हैं । किसके मन में क्या विचार चल रहा है । इसका शब्दश: पता लग जाता है । 1 ही जगह बैठे हुए दुनिया की किसी भी जगह की जानकारी पल में ही हासिल की जा सकती है । छठी इंद्री प्राप्त व्यक्ति से कुछ भी छिपा नहीं रह सकता ।
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योग निद्रा तांत्रिक विधि है । तंत्र में शांति प्राप्त करने के जितने रास्ते बताये गये हैं । उनमें योग निद्रा बहुत ही सुगम और व्यवहारिक मार्ग है । योग निद्रा का अभ्यास 3 चरणों में होता है । 1 - शरीर का शिथिलीकरण । 2 - अनुभूति । 3 - धारणा । अगर आप योग को समझते हैं । तो ऐसे भी समझ सकते हैं 1 - आसन । 2 - प्राणायाम । 3 - धारणा । पहले चरण में आप भौतिक शरीर के स्तर पर मन को स्थापित करते हैं । दूसरे चरण में सूक्ष्म शरीर का अवलोकन करते हैं । और तीसरे चरण में मन को
अपनी इच्छा के मुताबिक निर्देशित करते हैं ।
विधि - ढीले कपड़े पहनकर शवासन करें । जमीन पर दरी बिछाकर उस पर 1 कंबल बिछाएँ । दोनों पैर लगभग 1 फुट की दूरी पर हों । हथेली कमर से 6 इंच दूरी पर हो । आँखे बंद रखें ।
अपने शरीर व मन मस्तिष्क को शिथिल कर दीजिए । सिर से पाँव तक पूरे शरीर को शिथिल कर दीजिए । पूरी साँस लेना व छोड़ना है । अब कल्पना करें । आपके हाथ, पाँव, पेट, गर्दन, आँखें सब शिथिल हो गए हैं । अपने आपसे कहें कि - मैं योग निद्रा का अभ्यास करने जा रहा हूँ ।
अब अपने मन को शरीर के विभिन्न अंगों पर ले जाईए । और उन्हें शिथिल व तनाव रहित होने का निर्देश दें । पूरे शरीर को शांतिमय स्थिति में रखें । गहरी साँस लें ।
फिर अपने मन को दाहिने पैर के अँगूठे पर ले जाईए । पाँव की सभी अँगुलियाँ कम से कम पाँव का तलवा, एड़ी, पिंडली, घुटना, जांघ, नितम्ब, कमर, कंधा शिथिल होता जा रहा है । इसी तरह बाँया पैर भी शिथिल करें । सहज साँस लें । व छोड़ें । अब लेटे लेटे 5 बार पूरी साँस लें । व छोड़ें । इसमें पेट व छाती चलेगी । पेट ऊपर नीचे होगा ।
मन चंचल होता है । और यह चंचलता ही उसका स्वभाव और ताकत है । मन निश्चल हो सकता है । लेकिन वह कभी स्थिर नहीं हो सकता । योग निद्रा के चरण 1 में हम मन को बहुत प्राथमिक स्तर पर निर्देशित करते हैं । इसलिए हम शरीर के विभिन्न हिस्सों को बंद आखों से अवलोकन करते हैं । योग निद्रा का प्रशिक्षक आपको निर्देश करता है कि दाहिने पैर का अंगूठा । तो आपका पूरा मन वहाँ उस दाहिने पैर के अंगूठे पर केन्द्रत हो जाता है । फिर इसी क्रम में वह आपके पूरे शरीर का मानस दर्शन कराता है । तंत्र में जिस अन्नमय कोश की बात की गयी है । उस शरीर पर ही सबसे पहले मन को स्थापित करना जरूरी होता है । 1 बार मन शरीर पर स्थित हो गया । तो फिर वह आगे आपको सूक्ष्म अवस्थाओं में ले जाने के लिए तैयार होता है ।
इसके बाद अवस्था 2 होती है - अनुभूति की । अनुभूति के स्तर को पाने के लिए आपके शरीर और स्वांस के साथ साथ शरीर के अंदर में स्थित सूक्ष्म चक्रों की भी अनुभूति सिखाई जाती है । हमारे शरीर के अंदर में जो षट चक्र 6 हैं । वे सब उर्जा के किसी न किसी स्वरूप को धारण किये हुए हैं । उन चक्रों का पदार्थ के साथ भी गहरा नाता होता है । मसलन आप मूलाधार चक्र की बात करें । तो यह भू पदार्थ का प्रतिनिधित्व करता है । इसी तरह स्वाधिस्ठान चक्र - जल का प्रतिनिधित्व करता है । अब आपके मन में यह सवाल आना स्वाभाविक है कि अगर पदार्थ 5 हैं । तो चक्र 6 क्यों है ? छठा चक्र पदार्थ नहीं । परमानंद का प्रतीक है । जब पांच पदार्थ सम अवस्था में आ जाते हैं । तो छठे चक्र का जागरण होता है । जो कि परमानंद धारण किये हुए है । इसीलिए इसे अनाहत चक्र कहते हैं ।
योग निद्रा की अवस्था 3 धारणा की है । 1 बार आप अपने शरीर को शिथिल करके चक्रों का भेदन करते हुए शांति की गहरी अवस्था में पहुंचते हैं । तो आपका मन निश्चल अवस्था में होता है । यहाँ यह जरूरी है कि आप उस निश्चल अवस्था का उपयोग किसी श्रेष्ठ कर्म के लिए करें । योग निद्रा करने के पूर्व संकल्प इसीलिए लिया जाता है कि जब आप मन की इस निश्चल अवस्था में पहुंचें । आप किसी श्रेष्ठ कर्म की तरफ़ अग्रसर हो । धारणा के वक्त आपको विभिन्न प्रकार की धारणा का अभ्यास कराया जाता है । ताकि आप अनुभूति के स्तर पर वह सब अनुभव कर सकें । जो यथार्थ के स्तर पर चारों ओर मौजूद है । 1 बात समझ लीजिए । जो कुछ भी भौतिक रूप में हमारे आसपास मौजूद है । वह सूक्ष्म रूप में भी उपलब्ध है ।
सावधानी - योगनिद्रा में सोना नहीं है । योग निद्रा 10 से 45 मिनट तक की जा सकती है । योग निद्रा के लिए खुली जगह का चयन किया जाए । यदि किसी बंद कमरे में करते हैं । तो उसके दरवाजे, खिड़की खुले रखें । शरीर को हिलाना नहीं है । नींद नहीं निकालना । यह 1 मनोवैज्ञानिक नींद है । विचारों से जूझना नहीं है । सोचना नहीं है । साँसों के आवागमन को महसूस करना है ।
लाभ - योग निद्रा द्वारा मनुष्य से अच्छे काम भी कराए जा सकते हैं । बुरी आदतें भी इससे छूट जाती हैं । योग निद्रा का प्रयोग रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, सिरदर्द, तनाव, पेट में घाव, दमे की बीमारी, गर्दन दर्द, कमर दर्द, घुटनों, जोड़ों का दर्द, साइटिका, अनिद्रा, थकान, अवसाद, प्रसवकाल की पीड़ा में बहुत ही लाभदायक है ।
योग निद्रा में किया गया संकल्प बहुत ही शक्तिशाली होता है । योग निद्रा द्वारा शरीर व मस्तिष्क स्वस्थ रहते हैं । यह नींद की कमी को भी पूरा कर देती है । इससे थकान, तनाव व अवसाद भी दूर हो जाता है ।
योग निद्रा के कई आध्यात्मिक लाभ भी हैं । लेकिन आधुनिक चंचल, उत्तेजित और तनाव ग्रस्त मन के लिए यह बहुत ही लाभदायक है । यही ध्यान की स्थिति भी है । साध्वी कनिका ।
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नया आविष्कार - वेद ज्ञान को आधार मानकर न्यूलैंड के 1 वैज्ञानिक स्टेन क्रो ने 1 डिवाइस विकसित कर लिया । ध्वनि पर आधारित इस डिवाइस से मोबाइल की बैटरी चार्ज हो जाती है । इसे बिजली की आवश्यकता नहीं होती है ।
भारत के वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक ओमप्रकाश पांडे ने वेदों में निहित ज्ञान पर प्रकाश डालते हुए दैनिक भास्कर प्रतिनिधि से बातचीत में यह जानकारी दी । उन्होंने बताया कि इस डिवाइस का नाम भी " ॐ ओम डिवाइस " रखा गया है ।
उन्होंने कहा कि संस्कृत को अपौरुषेय भाषा इसलिए कहा जाता है कि इसकी रचना बृह्मांड की ध्वनियों से हुई है । उन्होंने बताया कि गति सर्वत्र है । चाहे वस्तु स्थिर हो । या गतिमान । गति होगी । तो ध्वनि निकलेगी । ध्वनि होगी । तो शब्द निकलेगा ।
सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के 1 ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं । और ये चारों और से अलग अलग निकलती है । इस तरह कुल 36
रश्मियां हो गई । इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने । इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं । तो उनका पृथ्वी के 8 बसुओं से टक्कर होती है । सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 बसुओं की आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं । वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गई । इस प्रकार बृह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्णमाला आधारित है ।
उन्होंने बताया कि बृह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है । इन ध्वनियों को नासा ने भी माना है । इसलिए यह बात साबित होती है कि वैदिक काल में बृह्मांड में होने वाली ध्वनियों का ज्ञान ऋषियों को था । ॐ नमो नारायणाय ।
साभार - जो हिन्दू राम का नहीं । वो इंसान किसी काम का नहीं ।
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राजीव दीक्षित जी के इस वाक्य को शेयर कीजिए - BJP, कांग्रेस, CPM, CPI, JD सब ख़त्म हो गई l हमने 10-15 सालों में देखा है । सबके सब अमेरिका के दुमछल्ले हो गए ।
http://www.youtube.com/watch?v=Fbc7TLzhL24
( 2 मिनट का वीडियो )
अधिक चर्चा के लिए www.forum.righttorecall.info
या http://www.facebook.com/groups/rrgindia/
धुंआधार वीडियो राजीव दीक्षित जी का l आप सभी सुनें । और मोदीजी तक अवश्य पहुंचाएं l
https://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=elicZLUmp9s#t=4889
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बस 5 कदम चलना..और आप दूसरे के शरीर में होंगे - परकाया प्रवेश ।
क्या होगा । दूसरे के शरीर में प्रवेश करने से ? क्या यह संभव है ? यह सवाल पूछा जा सकता है । आदि शंकराचार्य यह विधि जानते थे । और भी बहुत से साधक इस तकनीक से अवगत थे । लेकिन आम जनता के लिए तो यह बहुत ही कठिन जान पड़ता है । क्यों ?
योग में कहा है - मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या है - चित्त की वृत्तियां । इसीलिए योग सूत्र का पहला सूत्र है " योगस्य चित्तवृत्ति निरोध: " इस चित्त में हजारों जन्मों की आसक्ति, अहंकार, काम, काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से उपजे कर्म संग्रहित रहते हैं । जिसे संचित कर्म कहते हैं ।
यह संचित कर्म ही हमारा प्रारब्ध भी होते हैं । और इसी से आगे की दिशा भी तय होती है । इस चित्त की 5 अवस्थाएं होती हैं । जिसे समझ कर ही हम सूक्ष्म शरीर को सक्रिय कर सकते हैं । सूक्ष्म शरीर से बाहर निकल कर ही हम दूसरे के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं ।
इस चित्त या मानसिक अवस्था के 5 रूप हैं - 1 क्षिप्त 2 मूढ़ 3 विक्षिप्त 4 एकाग्र 5 निरुद्व । प्रत्येक अवस्था में कुछ न कुछ मानसिक वृत्तियों का निरोध होता है ।
1 क्षिप्त - क्षिप्त अवस्था में चित्त 1 विषय से दूसरे विषय पर लगातार दौड़ता रहता है । ऐसे व्यक्ति में विचारों, कल्पनाओं की भरमार रहती है ।
2 मूढ़ - मूढ़ अवस्था में निद्रा, आलस्य, उदासी, निरुत्साह आदि प्रवृत्तियों या आदतों का बोलबाला रहता है ।
3 विक्षिप्त - विक्षिप्तावस्था में मन थोड़ी देर के लिए 1 विषय में लगता है । पर क्षण में ही दूसरे विषय की ओर चला जाता है । पल प्रतिपल मानसिक अवस्था बदलती रहती है।
4 एकाग्र - एकाग्र अवस्था में चित्त देर तक 1 विषय पर लगा रहता है । यह अवस्था स्थित प्रज्ञ होने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है ।
5 निरुद्व - निरुद्व अवस्था में चित्त की सभी वृत्तियों का लोप हो जाता है । और चित्त अपनी स्वाभाविक स्थिर, शान्त अवस्था में आ जाता है । अर्थात व्यक्ति को स्वयं के होने का पूर्ण अहसास होता है । उसके उपर से मन, मस्तिष्क में घुमड़ रहे बादल छट जाते हैं । और वह पूर्ण जाग्रत रहकर दृष्टा बन जाता है । यह योग की पहली समाधि अवस्था भी कही गई है ।
ध्यान योग का सहारा - निरुद्व अवस्था को समझें । यह व्यक्ति को आत्मबल प्रदान करती है । यही व्यक्ति का असली स्वरूप है । इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए संसार की व्यर्थ की बातों, क्रियाकलापों आदि से ध्यान हटाकर संयमित भोजन का सेवन करते हुए प्रतिदिन ध्यान करना आवश्यक है । इस दौरान कम से कम बोलना । और लोगों से कम ही व्यवहार रखना भी जरूरी है ।
ज्ञान योग का सहारा - चित्त की वृत्तियों और संचित कर्म के नाश के लिए योग में ज्ञान योग का वर्णन मिलता है । ज्ञान योग का पहला सूत्र है कि स्वयं को शरीर मानना छोड़कर आत्मा मानों । आत्मा का ज्ञान होना सूक्ष्म शरीर के होने का आभास दिलाएगा ।
कैसे होगा यह संभव - चित्त जब वृत्ति शून्य 0 ( निरुद्व अवस्था ) होता है । तब बंधन के शिथिल हो जाने पर और संयम द्वारा चित्त की प्रवेश निर्गम मार्ग नाड़ी के ज्ञान से चित्त दूसरे के शरीर में प्रवेश करने की सिद्धि प्राप्त कर लेता है । यह बहुत आसान है । चित्त की स्थिरता से सूक्ष्म शरीर में होने का अहसास बढ़ता है । सूक्ष्म शरीर के निरंतर अहसास से स्थूल शरीर से बाहर निकलने की इच्छा बलवान होती है ।
योग निद्रा विधि - जब ध्यान की अवस्था गहराने लगे । तब निद्रा काल में जाग्रत होकर शरीर से बाहर निकला जा सकता है । इस दौरान यह अहसास होता रहेगा कि स्थूल शरीर सो रहा है । शरीर को अपने सुरक्षित स्थान पर सोने दें । और आप हवा में उड़ने का मजा लें । ध्यान रखें । किसी दूसरे के शरीर में उसकी इजाजत के बगैर प्रवेश करना अपराध है । साभार - सूक्ष्म योग ।
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