हिन्दू मंदिरों की संपत्ति की सरकारी लूट । एक तथ्य । हिन्दुओं के मंदिर और उनकी सम्पदाओं को नियंत्रित करने के उद्देश्य से सन 1951 में एक कायदा बना - The Hindu Religious and Charitable Endowment Act 1951
इस कायदे के अंतर्गत राज्य सरकारों को मंदिरों की माल मत्ता का पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है । जिसके अंतर्गत वे मंदिरों की जमीन धन आदि मूल्यवान सामग्री को कभी भी कैसे भी बेच सकते हैं । और जैसे भी चाहे उसका उपयोग कर सकते हैं । हिन्दुस्तान में हो रहे मंदिरों की संपत्ति के सरकारी दुरुपयोग का रहस्योदघाटन एक विदेशी लेखक " स्टीफन नाप " ने किया । उन्होंने इस विषय में एक पुस्तक लिखी - Crimes Against India and the Need to Protect Ancient Vedic Tradition
इस पुस्तक में उन्होंने अनेक धक्कादायक तथ्यों को उजागर किया है ।
हिन्दुस्तान में सदियों में अनेक धार्मिक राजाओं ने हजारों मंदिरों का निर्माण किया । और श्रद्धालुओं ने इन मंदिरों में यथाशक्ति दान देकर उन्हें संपन्न किया । परन्तु भारत की अनेक राज सरकारों ने श्रद्धालुओं के इस धन का अर्थात मंदिरों की संपत्तियों का यथेच्छा शोषण किया । अनेक गैर हिंदू तत्वों के लिए इसका उपयोग किया । इस घुसपैठी कानून के अंतर्गत श्रद्धालुओं की संपत्ति का किस तरह खिलवाड़ हो रहा है । इसका विस्तृत वर्णन है ।
मंदिर अधिकारिता अधिनियम के तहत आँध्र प्रदेश के 4300 मंदिरों के संपत्ति से केवल 18% दान मंदिरों को अपने खर्चो के लिए दिया गया । और बचा हुआ 82% कहाँ खर्च हुआ । इसका कोई उल्लेख नहीं ।
यहाँ तक कि विश्व प्रसिद्ध तिरूमाला तिरूपति मंदिर भी बख्शा नहीं गया । हर साल दर्शनार्थियों के दान से इस मंदिर में लगभग 1300 करोङ रुपये आते हैं । जिसमें से 85% सीधे राज्य सरकार के राजकोष में चले जाते हैं । क्या हिंदू दर्शनार्थी इसलिए इन मंदिरों में दान करते है कि उनका दान हिंदू इतर तत्वों के काज करने में लगे ?
स्टीफन एक और आरोप आंध्र प्रदेश सरकार पर करते हैं । उनके अनुसार कम से कम 10 मंदिरों को सरकारी आदेश पर अपनी जमीन देनी पङी । गोल्फ के मैदानों को बनाने के लिए । स्टीफन नाप प्रश्न करते है - क्या हिन्दुस्तान में 10 मस्जिदों के साथ ऐसा होने की कल्पना की जा सकती है ? इसी प्रकार कर्नाटक में कुल 2 लाख मंदिरों से 79 करोङ रुपया सरकार ने बटोरा । जिसमें से केवल 7 करोङ रुपयों मंदिर कार्य कारिणियों को दिए गए । इसी दौरान मदरसों और हज सब्सिडी के नाम पर 59 करोङ खर्च हुआ । और चर्च जीर्णोद्धार के लिए 13 लाख का अनुदान दिया गया ।
सरकार के इस कलुषित कार्य पर टिप्पणी देते हुए स्टीफन नाप लिखते हैं - ये सब इसलिए घटित होता रहा । क्योंकि हिन्दुओ में इसके विरुद्ध खड़े रहने की या आवाज उठाने की शक्ति /इच्छा नहीं थी ।
इन तथ्यों को प्रकाशित करते हुए स्टीफन केरल के गुरुवायुर मंदिर का उदाहरण देते हैं । इस मंदिर के अनुदान से दूसरे 45 मंदिरों का जीर्णोद्धार करने की बात गुरुवायुर मंदिर कार्यकारिणी ने रखी थी । जिसको ठुकराते हुए मंदिर का सारा पैसा सरकारी प्रोजेक्ट पर खर्च किया गया । इन सबसे ज्यादा कुकर्म उङीसा सरकार के हैं । जिसने जगन्नाथ मंदिर की 70 000 एकड़ जमीन बेचने निकाली है । जिससे सरकार को इतनी आमदनी होना संभव है कि जिसके उपयोग से वे अपने वित्तीय कुप्रबंधनों से हुए नुकसान को भर सकें ।
ये बरसों से अनवरत होता आया है । इसका प्रकाशन न होने की महत्वपूर्ण वजह है - भारतीय मीडिया की हिन्दू विरोधी प्रवृत्ति ।
भारतीय मीडिया ( जिसमें अंग्रेजियत कूट कूट के भरी है ) इन तथ्यों को उजागर करने में किसी भी प्रकार की रूचि नहीं रखती । अतएव ये सब चलता रहता है । अनवरत । बिना किसी रुकावट के ।
इस धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रित देश में हिन्दुओं की इन प्राचीन सम्प्रदाओं को दोनों हाथों से लुटाया जा रहा है । क्योंकि राज्य सरकारें हिन्दुओं की अपने धर्म के प्रति उदासीनता को और उनकी अनंत सहिष्णुता को अच्छी तरह जानती हैं । परन्तु अब समय आ गया है कि कोई हिंदू सरकार के इस लूटमार के विरुद्ध आवाज उठाये । जनता के धन का ( जो कि उन्होंने ईश्वर के कार्यों में दान किया है ) इस तरह से होता सरकारी दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार से प्रश्न करे ।
एक गैर हिंदू विदेशी लेखक को हिन्दुओं के साथ होता धार्मिक भृष्टाचार सहन नहीं हुआ । और उसने इन तथ्यों को उजागर किया । सार्वजनिक तौर पर । परन्तु लाखों हिंदू इस धार्मिक उत्पीड़नों को प्रत्यक्ष सहन करते आ रहे हैं...क्यों ?? क्योंकि उनकी आत्माएं मर चुकी हैं ।
साभार एक विद्रोही फ़ेसबुक पेज से
इस कायदे के अंतर्गत राज्य सरकारों को मंदिरों की माल मत्ता का पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है । जिसके अंतर्गत वे मंदिरों की जमीन धन आदि मूल्यवान सामग्री को कभी भी कैसे भी बेच सकते हैं । और जैसे भी चाहे उसका उपयोग कर सकते हैं । हिन्दुस्तान में हो रहे मंदिरों की संपत्ति के सरकारी दुरुपयोग का रहस्योदघाटन एक विदेशी लेखक " स्टीफन नाप " ने किया । उन्होंने इस विषय में एक पुस्तक लिखी - Crimes Against India and the Need to Protect Ancient Vedic Tradition
इस पुस्तक में उन्होंने अनेक धक्कादायक तथ्यों को उजागर किया है ।
हिन्दुस्तान में सदियों में अनेक धार्मिक राजाओं ने हजारों मंदिरों का निर्माण किया । और श्रद्धालुओं ने इन मंदिरों में यथाशक्ति दान देकर उन्हें संपन्न किया । परन्तु भारत की अनेक राज सरकारों ने श्रद्धालुओं के इस धन का अर्थात मंदिरों की संपत्तियों का यथेच्छा शोषण किया । अनेक गैर हिंदू तत्वों के लिए इसका उपयोग किया । इस घुसपैठी कानून के अंतर्गत श्रद्धालुओं की संपत्ति का किस तरह खिलवाड़ हो रहा है । इसका विस्तृत वर्णन है ।
मंदिर अधिकारिता अधिनियम के तहत आँध्र प्रदेश के 4300 मंदिरों के संपत्ति से केवल 18% दान मंदिरों को अपने खर्चो के लिए दिया गया । और बचा हुआ 82% कहाँ खर्च हुआ । इसका कोई उल्लेख नहीं ।
यहाँ तक कि विश्व प्रसिद्ध तिरूमाला तिरूपति मंदिर भी बख्शा नहीं गया । हर साल दर्शनार्थियों के दान से इस मंदिर में लगभग 1300 करोङ रुपये आते हैं । जिसमें से 85% सीधे राज्य सरकार के राजकोष में चले जाते हैं । क्या हिंदू दर्शनार्थी इसलिए इन मंदिरों में दान करते है कि उनका दान हिंदू इतर तत्वों के काज करने में लगे ?
स्टीफन एक और आरोप आंध्र प्रदेश सरकार पर करते हैं । उनके अनुसार कम से कम 10 मंदिरों को सरकारी आदेश पर अपनी जमीन देनी पङी । गोल्फ के मैदानों को बनाने के लिए । स्टीफन नाप प्रश्न करते है - क्या हिन्दुस्तान में 10 मस्जिदों के साथ ऐसा होने की कल्पना की जा सकती है ? इसी प्रकार कर्नाटक में कुल 2 लाख मंदिरों से 79 करोङ रुपया सरकार ने बटोरा । जिसमें से केवल 7 करोङ रुपयों मंदिर कार्य कारिणियों को दिए गए । इसी दौरान मदरसों और हज सब्सिडी के नाम पर 59 करोङ खर्च हुआ । और चर्च जीर्णोद्धार के लिए 13 लाख का अनुदान दिया गया ।
सरकार के इस कलुषित कार्य पर टिप्पणी देते हुए स्टीफन नाप लिखते हैं - ये सब इसलिए घटित होता रहा । क्योंकि हिन्दुओ में इसके विरुद्ध खड़े रहने की या आवाज उठाने की शक्ति /इच्छा नहीं थी ।
इन तथ्यों को प्रकाशित करते हुए स्टीफन केरल के गुरुवायुर मंदिर का उदाहरण देते हैं । इस मंदिर के अनुदान से दूसरे 45 मंदिरों का जीर्णोद्धार करने की बात गुरुवायुर मंदिर कार्यकारिणी ने रखी थी । जिसको ठुकराते हुए मंदिर का सारा पैसा सरकारी प्रोजेक्ट पर खर्च किया गया । इन सबसे ज्यादा कुकर्म उङीसा सरकार के हैं । जिसने जगन्नाथ मंदिर की 70 000 एकड़ जमीन बेचने निकाली है । जिससे सरकार को इतनी आमदनी होना संभव है कि जिसके उपयोग से वे अपने वित्तीय कुप्रबंधनों से हुए नुकसान को भर सकें ।
ये बरसों से अनवरत होता आया है । इसका प्रकाशन न होने की महत्वपूर्ण वजह है - भारतीय मीडिया की हिन्दू विरोधी प्रवृत्ति ।
भारतीय मीडिया ( जिसमें अंग्रेजियत कूट कूट के भरी है ) इन तथ्यों को उजागर करने में किसी भी प्रकार की रूचि नहीं रखती । अतएव ये सब चलता रहता है । अनवरत । बिना किसी रुकावट के ।
इस धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रित देश में हिन्दुओं की इन प्राचीन सम्प्रदाओं को दोनों हाथों से लुटाया जा रहा है । क्योंकि राज्य सरकारें हिन्दुओं की अपने धर्म के प्रति उदासीनता को और उनकी अनंत सहिष्णुता को अच्छी तरह जानती हैं । परन्तु अब समय आ गया है कि कोई हिंदू सरकार के इस लूटमार के विरुद्ध आवाज उठाये । जनता के धन का ( जो कि उन्होंने ईश्वर के कार्यों में दान किया है ) इस तरह से होता सरकारी दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार से प्रश्न करे ।
एक गैर हिंदू विदेशी लेखक को हिन्दुओं के साथ होता धार्मिक भृष्टाचार सहन नहीं हुआ । और उसने इन तथ्यों को उजागर किया । सार्वजनिक तौर पर । परन्तु लाखों हिंदू इस धार्मिक उत्पीड़नों को प्रत्यक्ष सहन करते आ रहे हैं...क्यों ?? क्योंकि उनकी आत्माएं मर चुकी हैं ।
साभार एक विद्रोही फ़ेसबुक पेज से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें