अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम । सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलें न राम ॥
आप न काहू काम के, डार पात फल फूल । औरन को रोकत फिरें, रहिमन पेड़ बबूल ॥
अरज गरज माने नहीं, रहिमन ये जन चारि । रिनियां राजा मंगता, काम आतुरी नारि ॥
जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह । धरती ही पर परत हैं, सीत घाम और मेह ॥
जो मरजाद चली सदा, सोइ तो ठहराय । जो जल उमगें पार तें, सो रहीम बहि जाय ॥
जो रहीम भावी कतहुं, होति आपने हाथ । राम न जाते हरिन संग, सीय न रावण साथ ॥
जो रहीम मन हाथ है, तो मन कहुं किन जाहि । ज्यों जल में छाया परे, काया भीजत नाहिं ॥
जो विषया संतन तजो, मूढ़ ताहि लपटात । ज्यों नर डारत वमन कर, स्वान स्वाद सो खात ॥
आप न काहू काम के, डार पात फल फूल । औरन को रोकत फिरें, रहिमन पेड़ बबूल ॥
अरज गरज माने नहीं, रहिमन ये जन चारि । रिनियां राजा मंगता, काम आतुरी नारि ॥
जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह । धरती ही पर परत हैं, सीत घाम और मेह ॥
जो मरजाद चली सदा, सोइ तो ठहराय । जो जल उमगें पार तें, सो रहीम बहि जाय ॥
जो रहीम भावी कतहुं, होति आपने हाथ । राम न जाते हरिन संग, सीय न रावण साथ ॥
जो रहीम मन हाथ है, तो मन कहुं किन जाहि । ज्यों जल में छाया परे, काया भीजत नाहिं ॥
जो विषया संतन तजो, मूढ़ ताहि लपटात । ज्यों नर डारत वमन कर, स्वान स्वाद सो खात ॥
पहला दोहा देखें । संसार और भक्ति दोनों का ही महत्व है लेकिन रहीम कह रहे हैं ये बङा मुश्किल है । सच्चाई का दामन थामने से जगत व्यवहार निभाना मुश्किल है और झूठ यानी जगत की रीत अपना लेने से मनुष्य भक्ति से दूर हो जाता है । बबूल के पेङ इस तरह से बढते है कि अन्य पेङों का पनपना मुश्किल कर देते हैं और उनके फ़ल फ़ूल पत्ते आदि अन्य वृक्षों की तुलना में इतने उपयोगी नहीं होते ( वास्तव में आज के सन्दर्भ में रहीम की ये बात उतनी सार्थक नहीं है । देशी बबूल का वृक्ष किसी भी मायने में नीम या अन्य गुणकारी वृक्षों से किसी भी हालत
में कम नहीं होता दाँतो की परेशानियाँ , शरीर में धातुओं का क्षय और इसका बेहद पौष्टिक गोंद अत्यन्त ताकतवर होता है ये मैंने इसके सामान्य प्रचलित उपयोग बतायें हैं अन्य प्रयोगों में भी इसके अनगिनत लाभ है । जहाँ तक विलायती बबूल की बात है आज भी लाखों गरीब घरों का चूल्हा इसी की बदौलत जलता है । लेकिन ये जहाँ भी होते हैं अन्य वृक्षों को नहीं पनपने देते और इनके इस स्वभाव को लेकर और काँटेयुक्त वृक्ष की वजह से रहीम ने दुर्जन व्यक्तियों की बात कही है ) ये चार लोग किसी की बात नहीं सुनते और अपनी बात मनवाकर ही छोङते हैं । कर्जदार । राजा । भिखारी और कामवासना से पीङित स्त्री । जो स्थिति आये उसको हिम्मत से सहना चाहिये जिस तरह प्रथ्वी सर्दी गर्मी और बरसात तीनों को समान रूप से सहती है । जैसे जो स्त्री मर्यादा में रहती है वह जीवन भर सम्मान से घर में रहती है और मर्यादा से बाहर जाने वाली का फ़िर कोई मान सम्मान नहीं रहता जिस प्रकार नदी आदि की हद से ऊपर बहने वाला पानी व्यर्थ ही बह जाता है ।
जो भविष्य की बात अपने हाथ में होती तो राम मायामृग के पीछे न जाते और सीता को रावण न ले जाता अगर मन को नियन्त्रण में कर लिया तो ये तुम्हारी मर्जी के बिना कहीं नहीं जा सकता और यदि जाता भी है तो तुम उसी प्रकार निष्पाप रहते हो जैसे जल के पास खङे होने पर तुम्हारी छाया तो उसमें दिखायी देती है पर तुम भीगते बिलकुल नहीं हो । ये बात कितनी महत्वपूर्ण है कि संतो ने जिस विषयवासना को तुच्छ समझते हुये तज दिया । मूर्खजन उसी में लिप्त हो रहे है । जिस प्रकार मनुष्य द्वारा वमन (उल्टी) करने पर कुत्ता चाव से खाता है । ये दोहे क्योंकि साधारण अर्थ वाले ही हैं इसलिये इनकी विस्त्रत व्याख्या करना मैंने उचित नहीं समझा । पर इनमें किसी के लिये भी जीवन सार समझने हेतु बेहतरीन द्रष्टिकोण मौजूद है ।
में कम नहीं होता दाँतो की परेशानियाँ , शरीर में धातुओं का क्षय और इसका बेहद पौष्टिक गोंद अत्यन्त ताकतवर होता है ये मैंने इसके सामान्य प्रचलित उपयोग बतायें हैं अन्य प्रयोगों में भी इसके अनगिनत लाभ है । जहाँ तक विलायती बबूल की बात है आज भी लाखों गरीब घरों का चूल्हा इसी की बदौलत जलता है । लेकिन ये जहाँ भी होते हैं अन्य वृक्षों को नहीं पनपने देते और इनके इस स्वभाव को लेकर और काँटेयुक्त वृक्ष की वजह से रहीम ने दुर्जन व्यक्तियों की बात कही है ) ये चार लोग किसी की बात नहीं सुनते और अपनी बात मनवाकर ही छोङते हैं । कर्जदार । राजा । भिखारी और कामवासना से पीङित स्त्री । जो स्थिति आये उसको हिम्मत से सहना चाहिये जिस तरह प्रथ्वी सर्दी गर्मी और बरसात तीनों को समान रूप से सहती है । जैसे जो स्त्री मर्यादा में रहती है वह जीवन भर सम्मान से घर में रहती है और मर्यादा से बाहर जाने वाली का फ़िर कोई मान सम्मान नहीं रहता जिस प्रकार नदी आदि की हद से ऊपर बहने वाला पानी व्यर्थ ही बह जाता है ।
जो भविष्य की बात अपने हाथ में होती तो राम मायामृग के पीछे न जाते और सीता को रावण न ले जाता अगर मन को नियन्त्रण में कर लिया तो ये तुम्हारी मर्जी के बिना कहीं नहीं जा सकता और यदि जाता भी है तो तुम उसी प्रकार निष्पाप रहते हो जैसे जल के पास खङे होने पर तुम्हारी छाया तो उसमें दिखायी देती है पर तुम भीगते बिलकुल नहीं हो । ये बात कितनी महत्वपूर्ण है कि संतो ने जिस विषयवासना को तुच्छ समझते हुये तज दिया । मूर्खजन उसी में लिप्त हो रहे है । जिस प्रकार मनुष्य द्वारा वमन (उल्टी) करने पर कुत्ता चाव से खाता है । ये दोहे क्योंकि साधारण अर्थ वाले ही हैं इसलिये इनकी विस्त्रत व्याख्या करना मैंने उचित नहीं समझा । पर इनमें किसी के लिये भी जीवन सार समझने हेतु बेहतरीन द्रष्टिकोण मौजूद है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें