हिन्दू कहत हैं राम हमारा मुसलमान रहमाना ,
आपस में दोऊ लङे मरत है मरम काहु न जाना
अवलि अलह नूर उपाइया ,कुदरत के सभ बंदे ,
एक नूर ते सभ जग उपजया को भले को मंदे
दादू दावा दूर कर विन दावा दिन काट,
केते सौदा कर गये पंसारी की हाट
काम तजे ते क्रोध ना जाई ,क्रोध तजे ते लोभा,
लोभ तजे अहंकार न जाई मान बङाई शोभा
आप आप को आप पिछानो , कहा और का नेक न मानों
इन्द्रिन के बस मन रहे, मन के बस रहे बुद्धि ,
कहो ध्यान कैसे लगे ऐसो जहाँ विरुद्ध
कोटि जतन से यह नही माने, धुन सुन कर मन समझाई
जोगी जुक्ति कमावे अपनी ग्यानी ग्यान कराई
तपसी तप कर थाक रहे हैं,जती रहे जत लाई
ध्यानी ध्यान मानसी लावे, वह भी धोखा खाई
पंडित पढ पढ वेद बखाने, विधा बल सब जाई
बुद्धि चतुरता काम न आवे,आलस रहे पछिताई
और अमल का दखल नहीं है,अमल शब्द लों लाई
गुरु मिले जब धुन का भेदी,शिष्य विरह धर आई
सुरत शब्द की होय कमाई,तब मन कछु ठहराई
सोता मन कस जागे भाई,सो उपाय में करूँ बखान
तीर्थ करे वर्त भी राखे,विद्धा पढ के हुये सुजान
जप तप संजम बहु विध धारे,मौनी हुये निदान
अस उपाय हम बहुतक कीन्हे ,तो भी ये मन जगा न आन
खोजत खोजत सतगुरु पाये,उन यह जुक्ति कही परमान
सतसंग करो संत को सेवो, तन मन करो कुरवान
सतगुरु शब्द सुनो गगना चढ, चेत लगाओ अपना ध्यान
जागत जागत अब मन जागा , झूठा लगे जहान
मन की मदद मिली सुरत को, दोनों अपने महल समान
बिना सबद यह मन नहीं जागे , करो चाहे कोई अनेक विधान
जिन्होने मार ये मन डाला , उन्ही को सूरमा कहना
बङा वैरी ये मन घट में इसी का जीतना कठिना
पङो तुम इसही के पीछे और सब जतन तजना
गुरु की प्रीत कर पहले , बहुर घट शब्द को सुनना
मान लो बात ये मेरी करो मत और कुछ जतना
शबदे धरती सबद अकास ,शबदे शबद भया परगास
सगली स्रस्ट शबद के पाछे ,नानक सबद घटे घट आछे
जबहि नाम हिरदे धरा ,भया पाप का नास
मानो चिनगी आग की परी पुरानी घास
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें