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धर्म - कोई धर्म के संबंध में पूछ रहा था । उससे मैंने कहा - धर्म का संबंध इससे नहीं है कि आप उसमें विश्वास करते हैं । या नहीं करते । वह आपका विश्वास नहीं । आपका स्वांस प्रश्वास हो । तो ही सार्थक है । वह तो कुछ है - जो आप करते हैं । या नहीं करते हैं । जो आप होते हैं । या नहीं होते हैं । धर्म कर्म है । वक्तव्य नहीं । और धर्म कर्म तभी होता है । जब वह आत्मा बन गया हो । जो आप करते हें । वह आप पहले हो गये होते हें । सुवास देने के पहले फूल बन जाना आवश्यक है । फूलों की खेती की भांति आत्मा की खेती भी करनी होती है । और, आत्मा में फूलों को जगाने के लिए पर्वतों पर जाना आवश्यक नहीं है । वे तो जहां आप हैं । वहीं उगाये जा सकते हैं । स्वयं के अतिरिक्त एकांत में ही पर्वत हैं । और अरण्य हैं । यह सत्य है कि पूर्ण एकांत में ही सत्य और सौंदर्य के दर्शन होते हैं । और जीवन में जो भी श्रेष्ठ है । वह उन्हें मिलता है । जो अकेले होने का साहस रखते हैं । जीवन के निगूढ़ रहस्य एकांत में ही अपने द्वार खोलते हैं । और आत्मा प्रकाश को और प्रेम को उपलब्ध होती है । और जब सब शांत और एकांत होता है । तभी वे बीज अंकुर बनते हैं । जो हमारे समस्त आनंद को अपने में छिपाये हमारे व्यक्तित्व की भूमि में दबे पड़े हैं । वह वृद्धि, जो भीतर से बाहर की ओर होती है । एकांत में ही होती है । और स्मरण रहे कि सत्य वृद्धि भीतर से बाहर की ओर होती है । झूठे फूल ऊपर से थोपे जा सकते हैं । पर असली फूल तो भीतर से ही आते हैं । इस आंतरिक वृद्धि के लिए पर्वत और अरण्य में जाना आवश्यक नहीं है । पर पर्वत और अरण्य में होना अवश्य आवश्यक है । वहां होने का मार्ग प्रत्येक के ही भीतर है । दिन और रात्रि की व्यस्त दौड़ में थोड़े क्षण निकालें । और अपने स्थान और समय को । और उससे उत्पन्न अपने तथाकथित व्यक्तित्व और " मैं " को भूल जाएं । जो भी चित्त में आये । उसे जानें कि - यह मैं नहीं हूं । और उसे बाहर फेंक दें । सब छोड़ दें । प्रत्येक चीज । अपना नाम । अपना देश । अपना परिवार । सब स्मृति से मिट जाने दें । और कोरे कागज की तरह हो रहें । यही मार्ग आंतरिक एकांत और निर्जन का मार्ग है । इससे ही अंतत: आंतरिक संन्यास फलित होता है ।
चित्त जब सब पकड़ छोड़ देता है । सब नाम रूप के बंधन तोड़ देता है । तब वही आप में शेष रह जाता है । जो आपका वास्तविक होना है । उस ज्ञान में ही धर्म है के फूल लगते हैं । और जीवन परमात्मा की सुवास से भरता है । इन थोड़े क्षणों में जो जाना जाता है । जो शांति और सौंदर्य । और जो सत्य । वह आपको 1 ही साथ 2 तलों पर जीने की शक्ति दे देता है । फिर कुछ बांधता नहीं है । और जीवन मुक्त हो जाता है । जल में होकर भी फिर जल छूता नहीं है । इस अनुभूति में ही जीवन की सिद्धि है । और धर्म की उपलब्धि है ।
1 टिप्पणी:
आपके शीर्षक से मै समझी थी कि ईश्वर के होने के प्रमाण देकर आप इस लेख में कहेंगे कि, अंधा है क्या सब तरफ तो है ईश्वर ।
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