राजीव कुमार ! कोई प्रेत कहानी छाप नही रहे । चलो मेरी तरफ़ से १ हास्य लेख ही छाप दो । इससे पाठकों का थोडा सा मनोरंजन हो जायेगा । तो लीजिये १ बार फ़िर से " श्री विनोद त्रिपाठी जी " का १ छोटा सा हास्य लेख आपके मनोरंजन के लिये हाजिर है । इस बार २०वीं सदी के आखरी दशक के १ ग्रामीण विधालय का आखों देखा हाल ( लेकिन कल्पना के आधार पर )
एक बार की बात है । एक अच्छे से गाँव में १ सरकारी सकूल था । जिसमें गाँव के बच्चे आते थे । जो जरूरत अनुसार पढते थे । और बाकी समय खेलकूद कर भाग जाते थे । मास्टर लोग भी स्कूल में कभी हाजिर रहते थे । तो कभी गैर- हाजिर । अगर पास के शहर में कोई नयी फ़िल्म लगी हो । तो कुछ मास्टर वहाँ अपनी हाजिरी लगा रहे होते थे । अगर कोई नयी फ़िल्म ना लगी हो । तो सरकस ही सही ।
लेकिन इस स्कूल में १ मास्टर जी ऐसे थे । जो शायद गान्धीजी और नेहरू जी से कुछ ज्यादा ही प्रभावित थे । इसलिये सिर्फ़ रविवार को छोडकर बाकी ६ दिन स्कूल में ही घुसे रहते थे । माफ़ करना मैं उनका नाम बताना तो भूल ही गया । उनका नाम था । मदन लाल शर्मा !
लेकिन लोग उन्हें शर्माजी कहकर ही बुलाते थे । उनका पहरावा भी बहुत साधारण ही था । हमेशा कुर्ता पजामा पहनते थे । और नीचे रबड की चप्पल । चरित्र से भी शरीफ़ ही थे । तो एक दिन शर्माजी थोडा घबराए हुए अपनी कक्षा में आये । और कुछ देर सोचने के बाद । उन्होंने उस कक्षा के २ सबसे नालायक लडकों को अपने पास बुलाया ।
१ लडके का नाम था ’होशियार’ और दुसरे लडके का नाम था ’नेपाल’ ।
मास्टर जी ने उनसे कहा - सुनो बेटा होशियार और नेपाल कल तुम दोनों की छुट्टी है । तुम दोनों कल स्कूल मत आना ।
ये सुनकर दोनों लडके मन ही मन बहुत खुश हुए ।
बाकी बच्चों ने पूछा - मास्टर जी कल छुटी किस बात की है ?
तब मास्टर जी ने कहा - छूट्टी-वुट्टी कुछ नही है । कल को शहर से कोई बडका साहेब आ रहे है । मुझे डर है कि इन दोनों की वजह से कही स्कूल का नाम खराब न हो जाये । क्योंकि तुम लोग नही जानते कि वो साहेब ’ फ़ुल मेन्टल ’ है । (असल में मास्टर जी के कहने का अर्थ तो ये था कि कल को आने वाले साहेब जरुरत से कुछ अधिक ही गुस्से वाले और सनकी हैं । परन्तु वो शार्टकट में उनको ’फ़ुल मेन्टल’ बोल गये ) खैर ! होशियार और नेपाल को छुटी का आदेश देकर, मास्टर जी बाकी बच्चों को कुछ खास बातें समझाने लगे कि जैसे कल नहाकर आना । कन्घी ठीक से करके आना आदि आदि ।
अगले दिन सुबह जब स्कूल जाने का समय हो रहा था । उस वक्त होशियार अपने पालतू कुत्ते के साथ खेल में मस्त था । बाप उसका खेत पर गया हुआ था । माँ आँगन में बैठी उसके छोटे भाई को अपना दूध पिला रही थी । और साथ में होशियार पर चिल्ला भी रही थी कि . " तू आज स्कूल क्युँ नही जा रहा ? "
अब ऐसा ही मिलता जुलता दृश्य नेपाल के घर भी था । उसकी माँ तो नही थी ( मर चुकी थी ) बस बाप था । नेपाल का बाप उसके कान खींच रहा था ।
नेपाल बेचारा बोला , " मास्टर जी ने आज मेरे को और होशियार को स्कूल आने से मना किया है । "
तब उसका बाप गुस्से से बोला , " नालायक ! सारे गाँव के बच्चे स्कूल में बैठे हैं । और तुम दोनों को छुट्टी है । तुम दोनो क्या सेठ की औलाद हो ? "
इस तरह नेपाल का बाप उसको कान से पकड कर पहले सीधा होशियार के घर पहुँचा । उधर अब होशियार की माँ भी अपने छोटे बच्चे को दूध पिला चुकी थी । और होशियार की पिटाई के लिये मोटा सा डन्डा उठा चुकी थी ।
इससे पहले कि होशियार की पिटाई होती । नेपाल और उसका बाप होशियार के घर पहुँच गये । और फ़िर वहाँ से नेपाल का बाप उन दोनों ( होशियार और नेपाल ) को लेकर स्कूल पहुँचा । स्कूल में नेपाल और होशियार को आया देख मास्टर जी सकपका गये । इससे पहले मास्टर जी नेपाल के बाप से कुछ कहते । तब तक वो वहाँ से जा चुका था ।
अब मास्टर जी ने मौके पर जैसा सूझा वैसा किया । उन्होने नेपाल को सन्डास घर में छुपा दिया । और होशियार को कक्षा में ही १ बडे टेबल के नीचे छुपा दिया । थोडी देर बाद वो साहेब भी आ गये । जिनका इन्तजार था । बस फ़िर क्या था । सब मास्टर लोग लगे चमचागिरी करने ।
थोडी बहुत औपचारिकता के बाद जब शहरी साहेब कक्षाओं का दौरा करते हुए शर्माजी की कक्षा में आये । तो शर्माजी ने उनको आदर सहित अन्दर बुलाया । वो शहरी साहेब देहात में रहने वाले बच्चो को ऐसे देख रहे थे कि जैसे उनको देखकर वो उन पर कोई अहसान कर रहे हो । और ग्रामीण बालकों के लिये ये साहेब किसी कार्टून से कम नही थे ।
क्योंकि ये साहेब सूट बूट पहने किसी अंग्रेज की देशी औलाद लग रहे थे । अब तक सब ठीक था । बच्चे चुप थे । और मास्टर जी मन ही मन ’श्री गणेश जी’ से प्रार्थना कर रहे थे कि सब कुछ ठीकठाक रहे ।
आखिर मास्टर जी की नौकरी का सवाल था । बेशक शर्माजी ने शादी नही की । तो क्या हुआ । लेकिन उन्हें भी तो दाल । चावल । कपडा । जूता । तेल । पानी । घर आदि की जरुरत आम आदमी के जैसे ही थीं । वो अलग बात है कि उमर के ४५ साल गुजर जाने तक भी वो अब तक ब्रह्मचारी की जिन्दगी गुजार रहे थे । हालाकि वो इस बात से संतुष्ट भी थे । क्योंकि शादी की उनकी कभी कोई इच्छा नही रही थी । वो सिर्फ़ सरल, साफ़, और शुद्ध देहाती जीवन जीकर खुश थे ।
खैर ! शर्माजी को छोङिये । और आगे सुनिये क्या हुआ ?
शहरी साहेब कक्षा में ऐसे टहल रहे थे । जैसे उनको कब्ज की शिकायत हो । या फ़िर फ़ौज की परेड में भाग ले रहे हों । इतने में बडका साहेब ने अपनी बनावटी रौबदार आवाज में बच्चों से सवाल पूछ्ने की नीयत से पूछा कि , " बताओ तुम में से सबसे होशियार कौन है ? "
इससे पहले कि कोई जवाब देता । बडका साहेब ने अपना सवाल बिना ब्रेक फ़िर दोहरा दिया । उधर टेबल के नीचे बैठे बेचारे होशियार को जब २ बार होशियार सुनाई पडा । तो उसे लगा कि उसको बुलाया जा रहा है ।
वो तुरन्त टेबल के नीचे से बाहर आ गया । और अपना १ हाथ उपर उठाकर बोला , " जी मैं हुँ होशियार । " बडका साहेब ने बडी हैरानी से उसको देखा । और सोचने लगे कि ये क्या माजरा है ?
शर्माजी की तो हालत देखने वाली थी । शर्माजी की आखें तो रो रही थीं । और होठ हँस रहे थे ।
बडका साहेब ने होशियार से सवाल किया कि , " अगर तू बडा होशियार है । तो बता यहाँ से नेपाल कितनी दूरी पर है ? "
होशियार फटाफट बोला , " जी सन्डास घर में ।"
इतना सुनते ही मास्टर जी के तो पेट में बल पड गये । उनको तो ऐसा लग रहा था कि जैसे कई पाद एक साथ उनके पेट से बाहर आना चाहते हो ।
खैर ! नेपाल जी की भी नाटकीय ढंग से कक्षा मे एन्ट्री हो गयी । अब बडका साहेब मास्टर जी की तरफ़ चुपचाप शक भरी निगाहों से घूर रहे थे । और बेचारे मास्टर जी अपना सर नीचे झुकाए बिल्कुल सुन्न हुए खडे थे ।
बडका साहेब ने अब नेपाल से पूछा , " लगता है । तू इस होशियार से भी बडा होशियार है । चल तू ये बता कि मेरी उमर क्या होगी ? "
नेपाल ने २ मिनट सोचने के बाद कहा , " ३६ साल । "
ये सुनकर बडका साहेब बुरी तरह चौंक गया । क्योंकि वास्तव में उसकी उमर ३६ साल ही थी ।
बडका साहेब नेपाल से बोला , " अरे ! तुझे कैसे मालुम कि मेरी उमर ३६ साल है ? "
तब नेपाल ने बडी सहजता से कहा , " मेरा बडा भाई १८ साल का है । वो घर पर ही रहता है । और बाहर कहीं नही जाता । लोग कहते है कि वो हाफ़ मेन्टल है । और कल मास्टर जी आपके बारे मे बता रहे थे कि शहर से जो साहेब आने वाले हैं । वो फ़ुल मेन्टल है । तो मैंने इसलिये १८ गुणा २ के हिसाब से आपकी आयु ३६ निकाल दी । "
इतना सुनते ही मास्टर जी के पाजामे से इतना जोरदार पाद निकला । जिसके संगीत से पूरी कक्षा गूँज उठी ।
विनोद त्रिपाठी । भोपाल । ई मेल से ।
एक बार की बात है । एक अच्छे से गाँव में १ सरकारी सकूल था । जिसमें गाँव के बच्चे आते थे । जो जरूरत अनुसार पढते थे । और बाकी समय खेलकूद कर भाग जाते थे । मास्टर लोग भी स्कूल में कभी हाजिर रहते थे । तो कभी गैर- हाजिर । अगर पास के शहर में कोई नयी फ़िल्म लगी हो । तो कुछ मास्टर वहाँ अपनी हाजिरी लगा रहे होते थे । अगर कोई नयी फ़िल्म ना लगी हो । तो सरकस ही सही ।
लेकिन इस स्कूल में १ मास्टर जी ऐसे थे । जो शायद गान्धीजी और नेहरू जी से कुछ ज्यादा ही प्रभावित थे । इसलिये सिर्फ़ रविवार को छोडकर बाकी ६ दिन स्कूल में ही घुसे रहते थे । माफ़ करना मैं उनका नाम बताना तो भूल ही गया । उनका नाम था । मदन लाल शर्मा !
लेकिन लोग उन्हें शर्माजी कहकर ही बुलाते थे । उनका पहरावा भी बहुत साधारण ही था । हमेशा कुर्ता पजामा पहनते थे । और नीचे रबड की चप्पल । चरित्र से भी शरीफ़ ही थे । तो एक दिन शर्माजी थोडा घबराए हुए अपनी कक्षा में आये । और कुछ देर सोचने के बाद । उन्होंने उस कक्षा के २ सबसे नालायक लडकों को अपने पास बुलाया ।
१ लडके का नाम था ’होशियार’ और दुसरे लडके का नाम था ’नेपाल’ ।
मास्टर जी ने उनसे कहा - सुनो बेटा होशियार और नेपाल कल तुम दोनों की छुट्टी है । तुम दोनों कल स्कूल मत आना ।
ये सुनकर दोनों लडके मन ही मन बहुत खुश हुए ।
बाकी बच्चों ने पूछा - मास्टर जी कल छुटी किस बात की है ?
तब मास्टर जी ने कहा - छूट्टी-वुट्टी कुछ नही है । कल को शहर से कोई बडका साहेब आ रहे है । मुझे डर है कि इन दोनों की वजह से कही स्कूल का नाम खराब न हो जाये । क्योंकि तुम लोग नही जानते कि वो साहेब ’ फ़ुल मेन्टल ’ है । (असल में मास्टर जी के कहने का अर्थ तो ये था कि कल को आने वाले साहेब जरुरत से कुछ अधिक ही गुस्से वाले और सनकी हैं । परन्तु वो शार्टकट में उनको ’फ़ुल मेन्टल’ बोल गये ) खैर ! होशियार और नेपाल को छुटी का आदेश देकर, मास्टर जी बाकी बच्चों को कुछ खास बातें समझाने लगे कि जैसे कल नहाकर आना । कन्घी ठीक से करके आना आदि आदि ।
अगले दिन सुबह जब स्कूल जाने का समय हो रहा था । उस वक्त होशियार अपने पालतू कुत्ते के साथ खेल में मस्त था । बाप उसका खेत पर गया हुआ था । माँ आँगन में बैठी उसके छोटे भाई को अपना दूध पिला रही थी । और साथ में होशियार पर चिल्ला भी रही थी कि . " तू आज स्कूल क्युँ नही जा रहा ? "
अब ऐसा ही मिलता जुलता दृश्य नेपाल के घर भी था । उसकी माँ तो नही थी ( मर चुकी थी ) बस बाप था । नेपाल का बाप उसके कान खींच रहा था ।
नेपाल बेचारा बोला , " मास्टर जी ने आज मेरे को और होशियार को स्कूल आने से मना किया है । "
तब उसका बाप गुस्से से बोला , " नालायक ! सारे गाँव के बच्चे स्कूल में बैठे हैं । और तुम दोनों को छुट्टी है । तुम दोनो क्या सेठ की औलाद हो ? "
इस तरह नेपाल का बाप उसको कान से पकड कर पहले सीधा होशियार के घर पहुँचा । उधर अब होशियार की माँ भी अपने छोटे बच्चे को दूध पिला चुकी थी । और होशियार की पिटाई के लिये मोटा सा डन्डा उठा चुकी थी ।
इससे पहले कि होशियार की पिटाई होती । नेपाल और उसका बाप होशियार के घर पहुँच गये । और फ़िर वहाँ से नेपाल का बाप उन दोनों ( होशियार और नेपाल ) को लेकर स्कूल पहुँचा । स्कूल में नेपाल और होशियार को आया देख मास्टर जी सकपका गये । इससे पहले मास्टर जी नेपाल के बाप से कुछ कहते । तब तक वो वहाँ से जा चुका था ।
अब मास्टर जी ने मौके पर जैसा सूझा वैसा किया । उन्होने नेपाल को सन्डास घर में छुपा दिया । और होशियार को कक्षा में ही १ बडे टेबल के नीचे छुपा दिया । थोडी देर बाद वो साहेब भी आ गये । जिनका इन्तजार था । बस फ़िर क्या था । सब मास्टर लोग लगे चमचागिरी करने ।
थोडी बहुत औपचारिकता के बाद जब शहरी साहेब कक्षाओं का दौरा करते हुए शर्माजी की कक्षा में आये । तो शर्माजी ने उनको आदर सहित अन्दर बुलाया । वो शहरी साहेब देहात में रहने वाले बच्चो को ऐसे देख रहे थे कि जैसे उनको देखकर वो उन पर कोई अहसान कर रहे हो । और ग्रामीण बालकों के लिये ये साहेब किसी कार्टून से कम नही थे ।
क्योंकि ये साहेब सूट बूट पहने किसी अंग्रेज की देशी औलाद लग रहे थे । अब तक सब ठीक था । बच्चे चुप थे । और मास्टर जी मन ही मन ’श्री गणेश जी’ से प्रार्थना कर रहे थे कि सब कुछ ठीकठाक रहे ।
आखिर मास्टर जी की नौकरी का सवाल था । बेशक शर्माजी ने शादी नही की । तो क्या हुआ । लेकिन उन्हें भी तो दाल । चावल । कपडा । जूता । तेल । पानी । घर आदि की जरुरत आम आदमी के जैसे ही थीं । वो अलग बात है कि उमर के ४५ साल गुजर जाने तक भी वो अब तक ब्रह्मचारी की जिन्दगी गुजार रहे थे । हालाकि वो इस बात से संतुष्ट भी थे । क्योंकि शादी की उनकी कभी कोई इच्छा नही रही थी । वो सिर्फ़ सरल, साफ़, और शुद्ध देहाती जीवन जीकर खुश थे ।
खैर ! शर्माजी को छोङिये । और आगे सुनिये क्या हुआ ?
शहरी साहेब कक्षा में ऐसे टहल रहे थे । जैसे उनको कब्ज की शिकायत हो । या फ़िर फ़ौज की परेड में भाग ले रहे हों । इतने में बडका साहेब ने अपनी बनावटी रौबदार आवाज में बच्चों से सवाल पूछ्ने की नीयत से पूछा कि , " बताओ तुम में से सबसे होशियार कौन है ? "
इससे पहले कि कोई जवाब देता । बडका साहेब ने अपना सवाल बिना ब्रेक फ़िर दोहरा दिया । उधर टेबल के नीचे बैठे बेचारे होशियार को जब २ बार होशियार सुनाई पडा । तो उसे लगा कि उसको बुलाया जा रहा है ।
वो तुरन्त टेबल के नीचे से बाहर आ गया । और अपना १ हाथ उपर उठाकर बोला , " जी मैं हुँ होशियार । " बडका साहेब ने बडी हैरानी से उसको देखा । और सोचने लगे कि ये क्या माजरा है ?
शर्माजी की तो हालत देखने वाली थी । शर्माजी की आखें तो रो रही थीं । और होठ हँस रहे थे ।
बडका साहेब ने होशियार से सवाल किया कि , " अगर तू बडा होशियार है । तो बता यहाँ से नेपाल कितनी दूरी पर है ? "
होशियार फटाफट बोला , " जी सन्डास घर में ।"
इतना सुनते ही मास्टर जी के तो पेट में बल पड गये । उनको तो ऐसा लग रहा था कि जैसे कई पाद एक साथ उनके पेट से बाहर आना चाहते हो ।
खैर ! नेपाल जी की भी नाटकीय ढंग से कक्षा मे एन्ट्री हो गयी । अब बडका साहेब मास्टर जी की तरफ़ चुपचाप शक भरी निगाहों से घूर रहे थे । और बेचारे मास्टर जी अपना सर नीचे झुकाए बिल्कुल सुन्न हुए खडे थे ।
बडका साहेब ने अब नेपाल से पूछा , " लगता है । तू इस होशियार से भी बडा होशियार है । चल तू ये बता कि मेरी उमर क्या होगी ? "
नेपाल ने २ मिनट सोचने के बाद कहा , " ३६ साल । "
ये सुनकर बडका साहेब बुरी तरह चौंक गया । क्योंकि वास्तव में उसकी उमर ३६ साल ही थी ।
बडका साहेब नेपाल से बोला , " अरे ! तुझे कैसे मालुम कि मेरी उमर ३६ साल है ? "
तब नेपाल ने बडी सहजता से कहा , " मेरा बडा भाई १८ साल का है । वो घर पर ही रहता है । और बाहर कहीं नही जाता । लोग कहते है कि वो हाफ़ मेन्टल है । और कल मास्टर जी आपके बारे मे बता रहे थे कि शहर से जो साहेब आने वाले हैं । वो फ़ुल मेन्टल है । तो मैंने इसलिये १८ गुणा २ के हिसाब से आपकी आयु ३६ निकाल दी । "
इतना सुनते ही मास्टर जी के पाजामे से इतना जोरदार पाद निकला । जिसके संगीत से पूरी कक्षा गूँज उठी ।
विनोद त्रिपाठी । भोपाल । ई मेल से ।
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