पाँचउ लरिके मारि के । रहै राम लिउ लाउ ॥ कबीर साहब । आदि ग्रन्थ ।
अब कबीर साहब की अटपटी वाणी से लोग चक्कर में पङ जाते हैं कि पाँच लङकों को मारकर राम से लौ लगाने का कौन सा तरीका हुआ भाई ? मैंने हमेशा कहा हैं । सन्तों की वाणी में रहस्य और संकेत है । अतः ये पाँच लङके यानी काम । क्रोध । लोभ । मोह । अहंकार को शब्द ( नाम अभ्यास से ) से मारा जाता है । तब इसके स्थान पर आते हैं । शील । क्षमा । संतोष । शान्ति । विवेक । इस तरह काल के गुण चले जाते हैं और दयाल के आ जाते हैं ।
इलमों बस करीं ओ यार । इको अलफ़ तेरे दरकार ।
बहुता इलम इजराईल ने पढिआ । झुगा झाहा ओसे दा सङिया । बुल्ले शाह ।
यानी ये खजाना मनुष्य के अन्दर ही है । लेकिन बस इसको पढता ही रहा कि अन्दर है । अन्दर है । अन्दर न गया । तो कुत्ते बिल्लियों की तरह तेरा जीवन भी बेकार चला जायेगा ।
सचा अमरू सबदि सुहाईआ । पंच सबद मिल बाजा बाईआ ।
धुरि करिम पाइआ । तुधि जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ।
कहै नानकु तह सुखु होआ । तितु घर अनहद बाजे ।
पंच शब्द निरमाइल बाजे । ढुलके चवर संख घन गाजे । वेणी जी । ग्रन्थ साहेब ।
ये सभी उस धुनि रूपी अनहद नाम के बारे में है । जो तुम्हारे अन्दर स्वतः हो रहा है । निरवाणी है । सदगुरु जिसको प्रकट कराते हैं ।
औलिया रा दर दरूँ हम नग्महास्त । आशिकां रा जां हयाते बे बहास्त ।
न शुनबद आं नग्महा रा गोशे हिस्स । कज सितमहा गोशे हिस्स बाशद नजस्स । मौलाना रूम साहिब ।
औलिया अल्लाह यानी अल्लाह में लीन फ़कीरों के पास वह नगमा ( शब्द ) है । जिसको सुनने से जन्मों जन्मों से सोई रूह जाग उठती है । मगर हमारा क्या हाल है । अगर मस्जिद के सामने बाजा बज गया । तो झगङा हो गया । हालांकि जैसे ये बाजे हैं । वैसे ही बाजे अन्दर भी बज रहें हैं । गुरुग्रन्थ साहेब में उन महात्माओं की ही वाणी हैं । जो धुनिरूपी पाँच शब्द का मार्ग बतलाते हैं ।
मौलवी रूम । शम्स तबरेज और कामिल फ़कीरों की राह पाँच शब्दों की है । जब तक हम लताफ़े सित्ता ( 6 चक्रों ) यानी आँखों से नीचे यानी पिन्ड शरीर ( को ही जानते हैं ) में बैठे हैं । तभी तक हमारे अलग अलग ख्याल तरीके जात पाँत धर्म मजहब हैं । जब हम आँखों के ऊपर उठेंगे । तो वहाँ कोई जबान कोई भाषा नहीं है । कोई ग्रन्थ कोई पोथी नहीं है ।
मुहम्मद साहेब । मौलवी रूम साहेब.. की जबानी कहते हैं ।
गुफ़्त पैगम्बर कि आवाजे खुदा । मी रसद दर गोशे मन हम चू सदा ।
यानी हर वक्त मेरे कानों के अन्दर कलमा यानी खुदा की आवाज आ रही है । किसी ने कहा । भाई आपको वह कलमा सुनाई देता है । तो हमें क्यों नहीं सुनाई देता ।
तब उन्होंने कहा ।
मुहर बर गोशे शुमा बनिहाद हक । ता बा आवाज खुदा नारद सबक ।
खुदा ने तुम्हारे कानों पर मुहर लगाकर बन्द कर रखा है । तुम किसी सच्चे मुर्शिद के पास जाओ । वह तुम्हारी मुहर हटा देगा । और वह आवाज यानी कलमा तुम्हें सुनाई देने लगेगा ।
अब कबीर साहब की अटपटी वाणी से लोग चक्कर में पङ जाते हैं कि पाँच लङकों को मारकर राम से लौ लगाने का कौन सा तरीका हुआ भाई ? मैंने हमेशा कहा हैं । सन्तों की वाणी में रहस्य और संकेत है । अतः ये पाँच लङके यानी काम । क्रोध । लोभ । मोह । अहंकार को शब्द ( नाम अभ्यास से ) से मारा जाता है । तब इसके स्थान पर आते हैं । शील । क्षमा । संतोष । शान्ति । विवेक । इस तरह काल के गुण चले जाते हैं और दयाल के आ जाते हैं ।
इलमों बस करीं ओ यार । इको अलफ़ तेरे दरकार ।
बहुता इलम इजराईल ने पढिआ । झुगा झाहा ओसे दा सङिया । बुल्ले शाह ।
यानी ये खजाना मनुष्य के अन्दर ही है । लेकिन बस इसको पढता ही रहा कि अन्दर है । अन्दर है । अन्दर न गया । तो कुत्ते बिल्लियों की तरह तेरा जीवन भी बेकार चला जायेगा ।
सचा अमरू सबदि सुहाईआ । पंच सबद मिल बाजा बाईआ ।
धुरि करिम पाइआ । तुधि जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ।
कहै नानकु तह सुखु होआ । तितु घर अनहद बाजे ।
पंच शब्द निरमाइल बाजे । ढुलके चवर संख घन गाजे । वेणी जी । ग्रन्थ साहेब ।
ये सभी उस धुनि रूपी अनहद नाम के बारे में है । जो तुम्हारे अन्दर स्वतः हो रहा है । निरवाणी है । सदगुरु जिसको प्रकट कराते हैं ।
औलिया रा दर दरूँ हम नग्महास्त । आशिकां रा जां हयाते बे बहास्त ।
न शुनबद आं नग्महा रा गोशे हिस्स । कज सितमहा गोशे हिस्स बाशद नजस्स । मौलाना रूम साहिब ।
औलिया अल्लाह यानी अल्लाह में लीन फ़कीरों के पास वह नगमा ( शब्द ) है । जिसको सुनने से जन्मों जन्मों से सोई रूह जाग उठती है । मगर हमारा क्या हाल है । अगर मस्जिद के सामने बाजा बज गया । तो झगङा हो गया । हालांकि जैसे ये बाजे हैं । वैसे ही बाजे अन्दर भी बज रहें हैं । गुरुग्रन्थ साहेब में उन महात्माओं की ही वाणी हैं । जो धुनिरूपी पाँच शब्द का मार्ग बतलाते हैं ।
मौलवी रूम । शम्स तबरेज और कामिल फ़कीरों की राह पाँच शब्दों की है । जब तक हम लताफ़े सित्ता ( 6 चक्रों ) यानी आँखों से नीचे यानी पिन्ड शरीर ( को ही जानते हैं ) में बैठे हैं । तभी तक हमारे अलग अलग ख्याल तरीके जात पाँत धर्म मजहब हैं । जब हम आँखों के ऊपर उठेंगे । तो वहाँ कोई जबान कोई भाषा नहीं है । कोई ग्रन्थ कोई पोथी नहीं है ।
मुहम्मद साहेब । मौलवी रूम साहेब.. की जबानी कहते हैं ।
गुफ़्त पैगम्बर कि आवाजे खुदा । मी रसद दर गोशे मन हम चू सदा ।
यानी हर वक्त मेरे कानों के अन्दर कलमा यानी खुदा की आवाज आ रही है । किसी ने कहा । भाई आपको वह कलमा सुनाई देता है । तो हमें क्यों नहीं सुनाई देता ।
तब उन्होंने कहा ।
मुहर बर गोशे शुमा बनिहाद हक । ता बा आवाज खुदा नारद सबक ।
खुदा ने तुम्हारे कानों पर मुहर लगाकर बन्द कर रखा है । तुम किसी सच्चे मुर्शिद के पास जाओ । वह तुम्हारी मुहर हटा देगा । और वह आवाज यानी कलमा तुम्हें सुनाई देने लगेगा ।
1 टिप्पणी:
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
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