राजीव भाई ! ये कहानी अच्छी लगी । 1 बात बताएँ । क्या ये सब प्रेत कहानियाँ.. जो सिर्फ़ आपके ब्लाग पर ही पढने को मिलती हैं । क्या ये सब प्रसुन जी के सच्चे अनुभव हैं । या सिर्फ़ दिलचस्प कहानीयाँ ?
क्या वाकई प्रसुन जी नाम का कोई साधक है । या ये सिर्फ़ कोई काल्पनिक किरदार है । अगर ये सच है । तो क्या कोई अति जिग्यासा रखने वाला व्यक्ति भी ये प्रसुन जी वाली साधना कर सकता है । क्या प्रसुन जी की सारी विध्याएँ सिर्फ़ द्वैत साधनाओं के अन्तर्गत आती है । क्या प्रसुन जो दिव्य साधना करते हैं । वो द्वैत की सबसे बडी साधना है ? क्या ये दिव्य साधना से द्वैत की बाकी कुछ छोटी साधनाओं का फ़ल भी मिल जाता है ? क्या प्रसुन जी के गुरु सिर्फ़ द्वैत साधना के ही गुरु हैं ? तो वो किस श्रेणी में आते हैं ? सन्त । सिद्ध । योगी या महात्मा ?
ये तो मैं आपके लेखों से जान ही गया हूँ कि किसी भी साधना ( चाहे द्वैत हो । या अद्वैत ) उसके लिये मार्गदर्शक रुपी गुरु की भूमिका अति महत्वपूर्ण है । क्या ऐसे गुरु ( प्रसुन के गुरु ) आज के जमाने में भी हैं ? ( आजकल ) क्या ऐसे गुरु गुप्त रहना ज्यादा पसन्द करते हैं ? अगर ऐसे गुरु और प्रसून जी जैसे साधक समाज में हैं ( बेशक बेहद कम गिनती में ही सही )
तो फ़िर तो ये आजकल के नकली बाबा जिनकी समाज में भरमार है । ये सब लोग प्रसुन जी जैसे साधक और प्रसुन जी के गुरुजी के सामने बिल्कुल जीरो हैं ।
सारी सर ! मैं अपने पहले वाले ई-मेल में 1 बात जोडना भूल गया था । ये भी बता दीजिए कि प्रेत योनियाँ क्या अनेक किस्म की होती हैं ? और क्या प्रेतयोनि 84 लाख योनि के अन्तर्गत आती है ? या प्रेतयोनि 84 लाख योनियों से बाहर है ? प्लीज इस दूसरी ई-मेल को भी मेरी पहले वाली ई-मेल के साथ जोडकर फ़िर एक साथ उत्तर के रुप में लेख लिखें ।
राजीव भाई ! प्लीज आप मेरे इस ई-मेल पर गौर करते हुए अपने आने वाले लेख में इस के बारे में खुलकर खुलासा करें । मुझे दिल से और बेसब्री से आपके जवाबों का इन्तजार रहेगा । राम राम ।
1 बात बताएँ । क्या ये सब प्रेत कहानियाँ.. जो सिर्फ़ आपके ब्लाग पर ही पढने को मिलती हैं । क्या ये सब प्रसुन जी के सच्चे अनुभव हैं । या सिर्फ़ दिलचस्प कहानीयाँ ?
*** तथ्यात्मक जानकारी और प्रेतवाधा से बचाव की जागरूकता हेतु ये मैंने अपनी जिन्दगी और सन्तों के सम्पर्क से प्राप्त अनुभवों को ही लिखा है । इसमें लिखी घटनायें आपको बङी लगती होंगी । पर द्वैत के मायाजगत में इससे बङी बङी घटनायें होती रहती हैं । जो आपको रोचक तो लग सकती हैं । पर उनका आम जिन्दगी से कोई लेना देना नहीं होता । इसलिये मैं उनको नहीं लिखता ।
क्या वाकई प्रसुन जी नाम का कोई साधक है ? या ये सिर्फ़ कोई काल्पनिक किरदार है ? अगर ये सच है । तो क्या कोई अति जिग्यासा रखने वाला व्यक्ति भी ये प्रसुन जी वाली साधना कर सकता है ? क्या प्रसुन जी की सारी विध्याएँ सिर्फ़ द्वैत साधनाओं के अन्तर्गत आती है ? क्या प्रसुन जो दिव्य साधना करते हैं । वो द्वैत की सबसे बडी साधना है ? क्या ये दिव्य साधना से द्वैत की बाकी कुछ छोटी साधनाओं का फ़ल भी मिल जाता है ? क्या प्रसुन जी के गुरु सिर्फ़ द्वैत साधना के ही गुरु हैं ? तो वो किस श्रेणी में आते हैं ? सन्त । सिद्ध । योगी या महात्मा ?
*** प्रसून जी के बारे में जानने के लिये मुझसे बहुत लोगों ने आग्रह किया । लेकिन मैं इसका हाँ या ना में कोई भी जबाब दूँ । उससे आपको कोई लाभ नहीं होगा । द्वैत के अन्तर्गत आने वाली ये साधना कोई भी इसके लिये समर्पित और चाहत रखने वाला इंसान कर सकता है । ये कुन्डलिनी ग्यान या चक्रों पर आधारित साधना है । बङी छोटी साधना वाला मैटर तन्त्र मन्त्र के अन्तर्गत आता है । इसमें नहीं होता । कुन्डलिनी या सुरति शब्द में जितनी पढाई चङाई साधक करता जाता है । उतनी पावर उसे प्राप्त होती जाती है । वैसे इसमें गुरु की पहुँच की भूमिका महत्वपूर्ण होती है । जब कोई आदमी डी एम बन जाता है । तो उससे नीचे पदों के लाभ उसे स्वतः ही मिलते हैं । यही बात किसी भी साधना पर भी लागू होती है । सिद्ध बहुत छोटे होते हैं । ऐसे गुरु को योगी और महात्मा दोनों ही कहते हैं ।
ये तो मैं आपके लेखों से जान ही गया हूँ कि किसी भी साधना ( चाहे द्वैत हो । या अद्वैत ) उसके लिये मार्गदर्शक रुपी गुरु की भूमिका अति महत्वपूर्ण है । क्या ऐसे गुरु ( प्रसुन के गुरु ) आज के जमाने में भी हैं ? ( आजकल ) क्या ऐसे गुरु गुप्त रहना ज्यादा पसन्द करते हैं ?
*** जी हाँ ! छोटे से छोटा और बङे से बङा गुरु हर समय मौजूद रहा है । सिर्फ़ सतगुरु शरीर रूप में हमेशा नहीं होते । वे कभी कभी ही प्रकट होते हैं । कोई भी सच्चा सन्त । गुरु । साधक गुप्त और सादगी से ही रहना पसन्द करते हैं । वे जीव को चेताने । ग्यान देने और उसके आत्मकल्याण में अधिक विश्वास रखते हैं । न कि किसी प्रकार की तङक भङक में ।..गुप्त रहने का एक कारण और भी है । जब जनता को पता चलता है कि इन बाबा के पास कोई रूहानी ताकत है । तो उसके पास अपनी समस्याओं को लेकर पहुँचने वालों का ताँता सा लग जाता है । और सच्चा सन्त किसी को ना नहीं कर सकता । इससे उनके भजन ध्यान में बाधा आती है । और वो ज्यादातर गुप्त रहते हैं । अगर किसी तरह वे पब्लिक में शो हो भी जायँ । तो तुरन्त अपना स्थान बदल लेते हैं ।
सारी सर ! मैं अपने पहले वाले ई-मेल में 1 बात जोडना भूल गया था । ये भी बता दीजिए कि प्रेत योनियाँ क्या अनेक किस्म की होती हैं ? और क्या प्रेतयोनि 84 लाख योनि के अन्तर्गत आती है ? या प्रेतयोनि 84 लाख योनियों से बाहर है ?
*** जी हाँ ! प्रेत योनियाँ अनेक किस्म की होती हैं । कुछ लाख तो होती ही हैं । लेकिन ये प्रेत योनियाँ 84 के अन्तर्गत नहीं आती । 84 के अन्तर्गत 1 अंडज { अंडे से पैदा होने वाली } 2 जरायुज { सीधे सीधे बच्चा उत्पन्न होना } 3 स्वेदज { पसीने से उत्पन्न } 4 वारिज { जल से उत्पन्न }
अधिक जानकारी के लिये आगे का मैटर " अनुराग सागर " से पढिये -
तब आध्याशक्ति ने ( कालपुरुष के कहेनुसार..यह बात कालपुरुष दोबारा कहने आया था । क्योंकि पहले अष्टांगी ने जब पुत्रों को इससे पहले सृष्टि रचना के लिये कहा । तो उन्होंने अनसुना कर दिया । ) अपने तीनो पुत्रों के साथ सृष्टि की रचना की ।
आद्धाशक्ति ने खुद अंडज । यानी अंडे से पैदा होने वाले जीवों को रचा । बृह्मा ने पिंडज । यानी पिंड से शरीर से पैदा होने वाले जीवों की रचना की । विष्णु ने ऊश्मज । यानी पानी । गर्मी से पैदा होने वाले जीव कीट पतंगे जूं आदि की रचना की । शंकर जी ने स्थावर यानी पेड । पौधे । पहाड़ । पर्वत आदि जीवों की रचना की । और फिर इन सब जीवों को 4 खानों वाली 84 लाख योनियों में डाल दिया । इनमें मनुष्य शरीर की रचना सर्वोत्तम थी ।
क्या वाकई प्रसुन जी नाम का कोई साधक है । या ये सिर्फ़ कोई काल्पनिक किरदार है । अगर ये सच है । तो क्या कोई अति जिग्यासा रखने वाला व्यक्ति भी ये प्रसुन जी वाली साधना कर सकता है । क्या प्रसुन जी की सारी विध्याएँ सिर्फ़ द्वैत साधनाओं के अन्तर्गत आती है । क्या प्रसुन जो दिव्य साधना करते हैं । वो द्वैत की सबसे बडी साधना है ? क्या ये दिव्य साधना से द्वैत की बाकी कुछ छोटी साधनाओं का फ़ल भी मिल जाता है ? क्या प्रसुन जी के गुरु सिर्फ़ द्वैत साधना के ही गुरु हैं ? तो वो किस श्रेणी में आते हैं ? सन्त । सिद्ध । योगी या महात्मा ?
ये तो मैं आपके लेखों से जान ही गया हूँ कि किसी भी साधना ( चाहे द्वैत हो । या अद्वैत ) उसके लिये मार्गदर्शक रुपी गुरु की भूमिका अति महत्वपूर्ण है । क्या ऐसे गुरु ( प्रसुन के गुरु ) आज के जमाने में भी हैं ? ( आजकल ) क्या ऐसे गुरु गुप्त रहना ज्यादा पसन्द करते हैं ? अगर ऐसे गुरु और प्रसून जी जैसे साधक समाज में हैं ( बेशक बेहद कम गिनती में ही सही )
तो फ़िर तो ये आजकल के नकली बाबा जिनकी समाज में भरमार है । ये सब लोग प्रसुन जी जैसे साधक और प्रसुन जी के गुरुजी के सामने बिल्कुल जीरो हैं ।
सारी सर ! मैं अपने पहले वाले ई-मेल में 1 बात जोडना भूल गया था । ये भी बता दीजिए कि प्रेत योनियाँ क्या अनेक किस्म की होती हैं ? और क्या प्रेतयोनि 84 लाख योनि के अन्तर्गत आती है ? या प्रेतयोनि 84 लाख योनियों से बाहर है ? प्लीज इस दूसरी ई-मेल को भी मेरी पहले वाली ई-मेल के साथ जोडकर फ़िर एक साथ उत्तर के रुप में लेख लिखें ।
राजीव भाई ! प्लीज आप मेरे इस ई-मेल पर गौर करते हुए अपने आने वाले लेख में इस के बारे में खुलकर खुलासा करें । मुझे दिल से और बेसब्री से आपके जवाबों का इन्तजार रहेगा । राम राम ।
1 बात बताएँ । क्या ये सब प्रेत कहानियाँ.. जो सिर्फ़ आपके ब्लाग पर ही पढने को मिलती हैं । क्या ये सब प्रसुन जी के सच्चे अनुभव हैं । या सिर्फ़ दिलचस्प कहानीयाँ ?
*** तथ्यात्मक जानकारी और प्रेतवाधा से बचाव की जागरूकता हेतु ये मैंने अपनी जिन्दगी और सन्तों के सम्पर्क से प्राप्त अनुभवों को ही लिखा है । इसमें लिखी घटनायें आपको बङी लगती होंगी । पर द्वैत के मायाजगत में इससे बङी बङी घटनायें होती रहती हैं । जो आपको रोचक तो लग सकती हैं । पर उनका आम जिन्दगी से कोई लेना देना नहीं होता । इसलिये मैं उनको नहीं लिखता ।
क्या वाकई प्रसुन जी नाम का कोई साधक है ? या ये सिर्फ़ कोई काल्पनिक किरदार है ? अगर ये सच है । तो क्या कोई अति जिग्यासा रखने वाला व्यक्ति भी ये प्रसुन जी वाली साधना कर सकता है ? क्या प्रसुन जी की सारी विध्याएँ सिर्फ़ द्वैत साधनाओं के अन्तर्गत आती है ? क्या प्रसुन जो दिव्य साधना करते हैं । वो द्वैत की सबसे बडी साधना है ? क्या ये दिव्य साधना से द्वैत की बाकी कुछ छोटी साधनाओं का फ़ल भी मिल जाता है ? क्या प्रसुन जी के गुरु सिर्फ़ द्वैत साधना के ही गुरु हैं ? तो वो किस श्रेणी में आते हैं ? सन्त । सिद्ध । योगी या महात्मा ?
*** प्रसून जी के बारे में जानने के लिये मुझसे बहुत लोगों ने आग्रह किया । लेकिन मैं इसका हाँ या ना में कोई भी जबाब दूँ । उससे आपको कोई लाभ नहीं होगा । द्वैत के अन्तर्गत आने वाली ये साधना कोई भी इसके लिये समर्पित और चाहत रखने वाला इंसान कर सकता है । ये कुन्डलिनी ग्यान या चक्रों पर आधारित साधना है । बङी छोटी साधना वाला मैटर तन्त्र मन्त्र के अन्तर्गत आता है । इसमें नहीं होता । कुन्डलिनी या सुरति शब्द में जितनी पढाई चङाई साधक करता जाता है । उतनी पावर उसे प्राप्त होती जाती है । वैसे इसमें गुरु की पहुँच की भूमिका महत्वपूर्ण होती है । जब कोई आदमी डी एम बन जाता है । तो उससे नीचे पदों के लाभ उसे स्वतः ही मिलते हैं । यही बात किसी भी साधना पर भी लागू होती है । सिद्ध बहुत छोटे होते हैं । ऐसे गुरु को योगी और महात्मा दोनों ही कहते हैं ।
ये तो मैं आपके लेखों से जान ही गया हूँ कि किसी भी साधना ( चाहे द्वैत हो । या अद्वैत ) उसके लिये मार्गदर्शक रुपी गुरु की भूमिका अति महत्वपूर्ण है । क्या ऐसे गुरु ( प्रसुन के गुरु ) आज के जमाने में भी हैं ? ( आजकल ) क्या ऐसे गुरु गुप्त रहना ज्यादा पसन्द करते हैं ?
*** जी हाँ ! छोटे से छोटा और बङे से बङा गुरु हर समय मौजूद रहा है । सिर्फ़ सतगुरु शरीर रूप में हमेशा नहीं होते । वे कभी कभी ही प्रकट होते हैं । कोई भी सच्चा सन्त । गुरु । साधक गुप्त और सादगी से ही रहना पसन्द करते हैं । वे जीव को चेताने । ग्यान देने और उसके आत्मकल्याण में अधिक विश्वास रखते हैं । न कि किसी प्रकार की तङक भङक में ।..गुप्त रहने का एक कारण और भी है । जब जनता को पता चलता है कि इन बाबा के पास कोई रूहानी ताकत है । तो उसके पास अपनी समस्याओं को लेकर पहुँचने वालों का ताँता सा लग जाता है । और सच्चा सन्त किसी को ना नहीं कर सकता । इससे उनके भजन ध्यान में बाधा आती है । और वो ज्यादातर गुप्त रहते हैं । अगर किसी तरह वे पब्लिक में शो हो भी जायँ । तो तुरन्त अपना स्थान बदल लेते हैं ।
सारी सर ! मैं अपने पहले वाले ई-मेल में 1 बात जोडना भूल गया था । ये भी बता दीजिए कि प्रेत योनियाँ क्या अनेक किस्म की होती हैं ? और क्या प्रेतयोनि 84 लाख योनि के अन्तर्गत आती है ? या प्रेतयोनि 84 लाख योनियों से बाहर है ?
*** जी हाँ ! प्रेत योनियाँ अनेक किस्म की होती हैं । कुछ लाख तो होती ही हैं । लेकिन ये प्रेत योनियाँ 84 के अन्तर्गत नहीं आती । 84 के अन्तर्गत 1 अंडज { अंडे से पैदा होने वाली } 2 जरायुज { सीधे सीधे बच्चा उत्पन्न होना } 3 स्वेदज { पसीने से उत्पन्न } 4 वारिज { जल से उत्पन्न }
अधिक जानकारी के लिये आगे का मैटर " अनुराग सागर " से पढिये -
तब आध्याशक्ति ने ( कालपुरुष के कहेनुसार..यह बात कालपुरुष दोबारा कहने आया था । क्योंकि पहले अष्टांगी ने जब पुत्रों को इससे पहले सृष्टि रचना के लिये कहा । तो उन्होंने अनसुना कर दिया । ) अपने तीनो पुत्रों के साथ सृष्टि की रचना की ।
आद्धाशक्ति ने खुद अंडज । यानी अंडे से पैदा होने वाले जीवों को रचा । बृह्मा ने पिंडज । यानी पिंड से शरीर से पैदा होने वाले जीवों की रचना की । विष्णु ने ऊश्मज । यानी पानी । गर्मी से पैदा होने वाले जीव कीट पतंगे जूं आदि की रचना की । शंकर जी ने स्थावर यानी पेड । पौधे । पहाड़ । पर्वत आदि जीवों की रचना की । और फिर इन सब जीवों को 4 खानों वाली 84 लाख योनियों में डाल दिया । इनमें मनुष्य शरीर की रचना सर्वोत्तम थी ।
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