नमस्ते राजीव जी ! आपने मेरे अमृतबेला वाले प्रश्न का बहुत सुन्दर उत्तर दिया । उसके लिये बहुत बहुत आभार । 1 और छोटी सी प्रार्थना थी कि मैंने 1 बात और सुनी है कि 1 सामान्य व्यक्ति को प्रतिदिन दो घन्टे और 30 मिनट जरूर भक्ति करनी चाहिये । ये बात मैंने हिन्दूमत और सिखमत दोनों जगह से सुनी है ( हरियाणा में हिन्दू और सिख दोनो की भरमार है ) ये भी सुना है कि जो सन्यासी हो गया । उसको तो सारा दिन भक्ति की सच्ची मस्ती में ही डूबे रहना चाहिये । लेकिन गृहस्थ वाले व्यक्ति (चाहे पुरुष हो या महिला ) के लिये रोज के 2 घन्टा और 30 मिनट भी लाभदायक और कल्याणकारी हैं । ये बात मैंने लोगों से सुनी है । और इसलिये आपसे पूछ रहा हूँ । आप इसको उचित जानकर इसका खुलासा करें । क्योंकि ये बात हमारे यहाँ बहुत सुनने में आती है ( मेरा मतलब हरियाणा और पंजाब आदि में ) आपका उत्तर सिर्फ़ मेरे ही नहीं । और लोगों के भी काम आयेगा । आपका मित्र सुशील कुमार । ( ई मेल से )
उत्तर - आपका कहना एकदम सही है । मेरी भी जानकारी के अनुसार भारत में हरियाणा और पंजाब में गुरुमत या सन्तमत का सबसे अधिक प्रभाव है । राजस्थान में भी है । परन्तु वहाँ अन्य मत भी जोर शोर से प्रचलित हैं । अतः मिली जुली बात है ।
यह बात किस तरह चलन में आयी - जब भी किसी प्रकार की दीक्षा दी जाती है । तो लगभग हर साधक यही कहता है कि उसका नाम जप में मन ही नहीं लगता । तब गुरु या सीनियर लोग कहते हैं । जबर्दस्ती ढाई - तीन घन्टे बैठकर अभ्यास करो । इस तरह जब साधक को एक नियम एक सजा की तरह जब बैठना ही पङता है । तो उसका नाम जप में मन लगने लगता है । और ध्यान क्रिया पर उसकी पकङ हो जाती है ।
यही बात गृहस्थ पर भी लागू होती है । वैसे प्रभु की भक्ति जितनी हो जाय । उतनी ही उत्तम । क्योंकि अन्त में यही साथ जाती है । धन्यवाद । सुशील जी ।
प्रश्न - सर आपके उत्तर तो मिल गये । लेकिन अब ये भी बता दीजिये कि आप कैसे कहते है कि राधास्वामी वाले पंचनामा से आपकी मन्ड्ली वाला नाम बडा है ? क्योंकि राधास्वामी वाले कहते है कि उनके पंचनामा की साधना ही सबसे बडी है । और आप कहते हैं कि महामन्त्र की साधना सबसे बडी है । इसलिये आप दोनों ( राधास्वामी और आपकी मन्डली ) मे से कोई 1 सही है । और 1 गलत । वो कौन है । आप बता सकेंगे ? ( प्रश्नकर्ता अग्यात । ईमेल से )
उत्तर - पहली बात तो ये कि ये महामन्त्र हमारी मन्डली ? की उपज नहीं है । ये अनादि से ही चला आ रहा परम्परागत सर्वमान्य ग्यान ( नाम या महामन्त्र ) है । जो आदि शंकराचार्य । वाल्मीकि । राम । कृष्ण ।
कबीर । नानक । रैदास । मीराबाई । रामकृष्ण परमहँस । तुलसीदास । दादू । पलटू । रज्जब । ईसामसीह । मुहम्मद साहब आदि अनेकों ग्यात अग्यात लोगों द्वारा अपनाया गया है । तुलसीदास जी ने कहा है । राम एक तापस तिय तारी । नाम दिये खल कोटि उद्धारी..आदि । इस नाम की वाल्मीकि या तुलसी रामायण में बहुत महिमा है । देखें । अन्य गृन्थों में थोङी कठिन है ।
ये कैसे सिद्ध हो कौन सही कौन गलत - राधास्वामी या अन्य कोई भी मत हो ।
उदाहरण - मान लीजिये । कोई आपसे कहता है कि " राम रामाये नमः " ये महामन्त्र है । और दूसरा कहता है कि " शिव रामाये नमः " ये महामन्त्र है । अब ये दोनों वाणी से लिये जा सकते हैं । अतः इनका फ़ैसला एक लम्बे प्रक्टीकल के बाद दोनों पक्षों के परिणाम देखकर ही हो सकता है ।
परन्तु महामन्त्र निर्वाणी है । वह कोई भी मनुष्य किसी भी जाति धर्म का हो । देश विदेश का हो । सबके अन्दर स्वतः हो रहा है । केवल उसको सुमरन यानी वहाँ ध्यान लगाना होता है । जब सभी मनुष्य मात्र के अन्तर में एक ही नाम स्वतः गूँज रहा है । तो निश्चय ही वही असली सत्य और सबसे बङा है । और सच्चे गुरु से यह नाम प्राप्त होने पर साधक के संस्कार अनुसार तुरन्त से लेकर अधिकतम एक महीने में प्रकट हो जाता है । इससे बङा सबूत क्या होगा ? सबहि सुलभ सुन्दर सब देशा । सादर सुमरहि मिटत कलेशा ।
उत्तर - आपका कहना एकदम सही है । मेरी भी जानकारी के अनुसार भारत में हरियाणा और पंजाब में गुरुमत या सन्तमत का सबसे अधिक प्रभाव है । राजस्थान में भी है । परन्तु वहाँ अन्य मत भी जोर शोर से प्रचलित हैं । अतः मिली जुली बात है ।
यह बात किस तरह चलन में आयी - जब भी किसी प्रकार की दीक्षा दी जाती है । तो लगभग हर साधक यही कहता है कि उसका नाम जप में मन ही नहीं लगता । तब गुरु या सीनियर लोग कहते हैं । जबर्दस्ती ढाई - तीन घन्टे बैठकर अभ्यास करो । इस तरह जब साधक को एक नियम एक सजा की तरह जब बैठना ही पङता है । तो उसका नाम जप में मन लगने लगता है । और ध्यान क्रिया पर उसकी पकङ हो जाती है ।
यही बात गृहस्थ पर भी लागू होती है । वैसे प्रभु की भक्ति जितनी हो जाय । उतनी ही उत्तम । क्योंकि अन्त में यही साथ जाती है । धन्यवाद । सुशील जी ।
प्रश्न - सर आपके उत्तर तो मिल गये । लेकिन अब ये भी बता दीजिये कि आप कैसे कहते है कि राधास्वामी वाले पंचनामा से आपकी मन्ड्ली वाला नाम बडा है ? क्योंकि राधास्वामी वाले कहते है कि उनके पंचनामा की साधना ही सबसे बडी है । और आप कहते हैं कि महामन्त्र की साधना सबसे बडी है । इसलिये आप दोनों ( राधास्वामी और आपकी मन्डली ) मे से कोई 1 सही है । और 1 गलत । वो कौन है । आप बता सकेंगे ? ( प्रश्नकर्ता अग्यात । ईमेल से )
उत्तर - पहली बात तो ये कि ये महामन्त्र हमारी मन्डली ? की उपज नहीं है । ये अनादि से ही चला आ रहा परम्परागत सर्वमान्य ग्यान ( नाम या महामन्त्र ) है । जो आदि शंकराचार्य । वाल्मीकि । राम । कृष्ण ।
कबीर । नानक । रैदास । मीराबाई । रामकृष्ण परमहँस । तुलसीदास । दादू । पलटू । रज्जब । ईसामसीह । मुहम्मद साहब आदि अनेकों ग्यात अग्यात लोगों द्वारा अपनाया गया है । तुलसीदास जी ने कहा है । राम एक तापस तिय तारी । नाम दिये खल कोटि उद्धारी..आदि । इस नाम की वाल्मीकि या तुलसी रामायण में बहुत महिमा है । देखें । अन्य गृन्थों में थोङी कठिन है ।
ये कैसे सिद्ध हो कौन सही कौन गलत - राधास्वामी या अन्य कोई भी मत हो ।
उदाहरण - मान लीजिये । कोई आपसे कहता है कि " राम रामाये नमः " ये महामन्त्र है । और दूसरा कहता है कि " शिव रामाये नमः " ये महामन्त्र है । अब ये दोनों वाणी से लिये जा सकते हैं । अतः इनका फ़ैसला एक लम्बे प्रक्टीकल के बाद दोनों पक्षों के परिणाम देखकर ही हो सकता है ।
परन्तु महामन्त्र निर्वाणी है । वह कोई भी मनुष्य किसी भी जाति धर्म का हो । देश विदेश का हो । सबके अन्दर स्वतः हो रहा है । केवल उसको सुमरन यानी वहाँ ध्यान लगाना होता है । जब सभी मनुष्य मात्र के अन्तर में एक ही नाम स्वतः गूँज रहा है । तो निश्चय ही वही असली सत्य और सबसे बङा है । और सच्चे गुरु से यह नाम प्राप्त होने पर साधक के संस्कार अनुसार तुरन्त से लेकर अधिकतम एक महीने में प्रकट हो जाता है । इससे बङा सबूत क्या होगा ? सबहि सुलभ सुन्दर सब देशा । सादर सुमरहि मिटत कलेशा ।
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर 🙏
एक टिप्पणी भेजें