बूढ़ा होना है । तो बगीचे में नहीं जाना चाहिए । हमेशा मरघट पर बैठकर ध्यान करना चाहिए । जहां आदमी जलाये जाते हों । सुंदर से बचना चाहिए । असुंदर को देखना चाहिए । विकृत को देखना चाहिए । स्वस्थ को छोडना चाहिए । सुख मिले । तो कहना चाहिए क्षणभंगुर है । अभी खत्म हो जायेगा । दुख मिले । तो छाती से लगाकर बैठ जाना चाहिए । और सदा आंखें रखनी चाहिए । जीवन के उस पार । कभी इस जीवन पर नहीं । इस जीवन को समझना चाहिए 1 वेटिंग रूम है । जैसे बड़ौदा के स्टेशन पर 1 वेटिग रूम हो । उसमें बैठते हैं आप थोड़ी देर । वहीं छिलके फेंक रहे हैं । वहीं पान थूक रहे हैं । क्योंकि हमको क्या करना है ? अभी थोड़ी देर में हमारी ट्रेन आयेगी । और फिर हम चले जायेंगे । तुमसे पहले जो बैठा था । वह भी वेटिंग रूम के साथ यही सदव्यवहार ? कर रहा था । तुम भी वही सदव्यवहार ? करो । तुम्हारे बाद वाला भी वही करेगा । वेटिंग रूम गंदगी का 1 घर बन जायेगा । क्योंकि किसी को क्या मतलब है । हमको थोड़ी देर रुकना है । तो आंख बंद करके राम राम जप के गुजार देंगे । अभी ट्रेन आती है । चली जायेगी । जिंदगी के साथ जिन लोगों की आंखें मौत के पार लगी हैं । उनका व्यवहार वेटिंग रूम का व्यवहार है । वे कहते हैं - क्षण भर की तो जिंदगी है । अभी जाना है । क्या करना है हमें ? हिंदुस्तान के संत महात्मा यही समझा रहे हैं लोगों को - क्षणभंगुर है जिंदगी । इसके माया मोह में मत पड़ना । ध्यान वहां रखना आगे - मौत के बाद । इस छाया में सारा देश बूढा हो गया है । अगर जवान होना है । तो जिंदगी को देखना । मौत को लात मार देना । मौत से क्या प्रयोजन है ? जब तक जिंदा हैं । तब तक जिंदा हैं । तब तक मौत नहीं है । सुकरात मर रहा था । ठीक मरते वक्त । जब उसके लिए बाहर जहर घोला जा रहा था । वह जहर घोलने वाला धीरे धीरे घोल रहा है । वह सोचता है । जितने देर सुकरात और जिंदा रह ले । अच्छा है । जितनी देर लग जाय । वक्त हो गया है । जहर आना चाहिए । सुकरात उठकर बाहर जाता है । और पूछता है - मित्र, कितनी देर और ? उस आदमी ने कहा - तुम पागल हो गये हो सुकरात । मैं देर लगा रहा हूं इसलिए कि थोड़ी देर तुम और रह लो । थोड़ी देर सांस तुम्हारे भीतर और आ जाय । थोड़ी देर सूरज की रोशनी और देख लो । थोड़ी देर खिलते फूलों को । आकाश को । मित्रों की आंखों को और झांक लो । बस थोड़ी देर और । नदी भी समुद्र में गिरने के पहले पीछे लौटकर देखती है । तुम थोड़ी देर लौटकर देख लो । मैं देर लगाता हूं । तुम जल्दी क्यों कर रहे हो ? तुम इतनी उतावली क्यों किये जा रहे हो ? सुकरात ने कहा - मैं जल्दी क्यों किये जा रहा हूं ? मेरे प्राण तड़पे जा रहे हैं मौत को जानने को । नयी चीज को जानने की मेरी हमेशा से इच्छा रही है । मौत बहुत बड़ी नयी चीज है । सोचता हूं - देखूं क्या चीज है ? यह आदमी जवान है । यह बूढा नहीं है । मौत को भी देखने के लिए इसकी आतुरता है । मित्र कहने लगा कि - थोड़ी देर और जी लो । सुकरात ने कहा - जब तक मैं जिन्दा हूं । मैं यह देखना चाहता हूं कि जहर पीने से मरता हूं कि जिंदा रहता हूं । लोगों ने कहा कि - अगर मर गये तो ? उसने कहा कि - यदि मर ही गये । तो फिक्र ही खत्म हो गयी । चिंता का कोई कारण न रहा । और जब तक जिंदा हूं । जिंदा हूं । जब मर ही गये । चिंता की कोई बात नहीं । खत्म हो गयी बात । लेकिन जब तक मैं जिंदा हूं । जिंदा हूं । तब तक मैं मरा हुआ नहीं हूं । और पहले से क्यों मर जाऊं ? मित्र सब डरे हुए बैठे हैं पास । रो रहे हैं । जहर की घबराहट आ रही है । वह सुकरात प्रसन्न है । वह कहता है - जब तक मैं जिन्दा हूं । तब तक मैं जिंदा हूं । तब तक जिंदगी को जानूं । और सोचता हूं कि शायद मौत भी जिंदगी में 1 घटना है । सुकरात को बूढ़ा नहीं किया जा सकता । मौत सामने खड़ी हो जाय । तो भी यह बूढ़ा नहीं होता । और हम ? जिंदगी सामने खड़ी रहती है । और बूढ़े हो जाते हैं । यह रुख भारत में युवा मस्तिष्क को पैदा नहीं होने देता है । जीवन का विषाद पूर्ण चित्र फाड़कर फेंक दो । और उसमें जिंदगी के दुख और जिंदगी के विषाद को बढ़ा चढ़ा कर बतलाते हैं । वे जिंदगी के दुश्मन हैं । देश में युवा को पैदा होने देने में दुश्मन हैं । वह युवक को पैदा होने के पहले का बना देते हैं ।
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1947 के बाद अगर हमने कोई महान कार्य किया है । तो वह यही कि सारी दूनिया से भीख मांगने में सफलता पायी है । शर्म भी नहीं आती हमें ? दूनिया क्या सोचती होगी कि बूढ़ा देश है । कुछ कर नहीं सकता । सिर्फ भीख मांग सकता है । लेकिन उन्हें पता नहीं है कि हम पहले से ही पैदा करने की बजाय । भीख मांगने को आदर देते रहे हैं । हिन्दुस्तान में जो भीख मांगता है । वह आश्रित है । ब्राह्मण 1000 साल तक देश में आश्रित रहे । सिर्फ इसलिए कि वे पैदा नहीं करते । और भीख मांगते हैं । और हिन्दुस्तान ने बड़े बड़े भिखारी पैदा किये हैं । महापुरुष बुद्ध से लेकर विनोबा तक भीख मांगने वाले महापुरुष । अगर सारा मुल्क भीख मांगने लगा हो । तो हर्ज क्या है ? हम सब महापुरुष हो गये हैं । महापुरुषों का देश है । सारा देश महापुरुष हो गया है । हम सारी दुनिया में भीख मांग रहे हैं । भिक्षावृत्ति बड़ी धार्मिक वृत्ति है । पैदा करने में हिंसा भी होती है । पैदा करने में हमें श्रम भी उठाना पड़ता है । और फिर हम पैदा क्यों करें ? जब भगवान ने हमें पैदा कर दिया है । तो भगवान इंतजाम करे । जिसने चोंच दी है । वह रोटी देगा । हम अपनी चोंच को हिलाते फिरेंगे । सारी दुनिया में कि - चून दो । क्योंकि हमें पैदा किया है । और जो हमें भीख न देंगे । हम गालियां देंगे उन्हें कि तुम भौतिकवादी हो । यू मैटीरियालिस्ट । तुम भौतिकवाद में मरे जा रहे हो । हम आध्यात्मिक लोग हैं । हम इतने आध्यात्मिक हैं कि हम पैदा भी नहीं करते । हम खाते हैं । खाना आध्यात्मिक काम है । पैदा करना भौतिक काम है । भोगना आध्यात्मिक काम है । श्रम ? श्रम आध्यात्मिक लोग कभी नहीं करते । हीन आत्माएं श्रम करती हैं । महात्मा भोग करते हैं । पूरा देश महात्मा हो गया है । 1962 में चीन में अकाल की हालत थी । ब्रिटेन के कुछ भले मानुषों ने 1 बड़े जहाज पर बहुत सा सामान, बहुत सा भोजन, कपड़े, दवाइयां भरकर वहां भेजे । हम अगर होते । तो चन्दन तिलक लगाकर फूल मालाएं पहनाकर उस जहाज की पूजा करते । लेकिन चीन ने उसको वापस भेज दिया । और जहाज पर बड़े बड़े अक्षरों में लिख दिया - हम मर जाना पसंद करेंगे । लेकिन भीख स्वीकार नहीं कर सकते । शक होता है कि यहां कुछ जवान लोग होंगे । जवान ही यह हिम्मत कर सकता है कि भूखे मरते देश में । और आया हो भोजन बाहर से । और लिख दे जहाज पर कि - हम भूखों मर सकते हैं । लेकिन भीख नहीं मांग सकते । भूखा मरना इतना बुरा नहीं है । भीख मांगना बहुत बुरा है । लेकिन जवानी हो । तो बुरा लगे । भीतर जवान खून हो । तो चोट लगे । अपमान हो । हमारा अपमान नहीं होता । हम शांति से अपमान को झेलते चले जाते हैं । हम बड़े तटस्थ हैं । अपमान को झेलने में । कुछ भी हो जाये । हम आंख बंद करके झेल लेते हैं । यह तो संतोष का, शांति का लक्षण है कि जो भी हो । उसको झेलते रहो । बैठे रहो चुपचाप । और झेलते रहो ।
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1947 के बाद अगर हमने कोई महान कार्य किया है । तो वह यही कि सारी दूनिया से भीख मांगने में सफलता पायी है । शर्म भी नहीं आती हमें ? दूनिया क्या सोचती होगी कि बूढ़ा देश है । कुछ कर नहीं सकता । सिर्फ भीख मांग सकता है । लेकिन उन्हें पता नहीं है कि हम पहले से ही पैदा करने की बजाय । भीख मांगने को आदर देते रहे हैं । हिन्दुस्तान में जो भीख मांगता है । वह आश्रित है । ब्राह्मण 1000 साल तक देश में आश्रित रहे । सिर्फ इसलिए कि वे पैदा नहीं करते । और भीख मांगते हैं । और हिन्दुस्तान ने बड़े बड़े भिखारी पैदा किये हैं । महापुरुष बुद्ध से लेकर विनोबा तक भीख मांगने वाले महापुरुष । अगर सारा मुल्क भीख मांगने लगा हो । तो हर्ज क्या है ? हम सब महापुरुष हो गये हैं । महापुरुषों का देश है । सारा देश महापुरुष हो गया है । हम सारी दुनिया में भीख मांग रहे हैं । भिक्षावृत्ति बड़ी धार्मिक वृत्ति है । पैदा करने में हिंसा भी होती है । पैदा करने में हमें श्रम भी उठाना पड़ता है । और फिर हम पैदा क्यों करें ? जब भगवान ने हमें पैदा कर दिया है । तो भगवान इंतजाम करे । जिसने चोंच दी है । वह रोटी देगा । हम अपनी चोंच को हिलाते फिरेंगे । सारी दुनिया में कि - चून दो । क्योंकि हमें पैदा किया है । और जो हमें भीख न देंगे । हम गालियां देंगे उन्हें कि तुम भौतिकवादी हो । यू मैटीरियालिस्ट । तुम भौतिकवाद में मरे जा रहे हो । हम आध्यात्मिक लोग हैं । हम इतने आध्यात्मिक हैं कि हम पैदा भी नहीं करते । हम खाते हैं । खाना आध्यात्मिक काम है । पैदा करना भौतिक काम है । भोगना आध्यात्मिक काम है । श्रम ? श्रम आध्यात्मिक लोग कभी नहीं करते । हीन आत्माएं श्रम करती हैं । महात्मा भोग करते हैं । पूरा देश महात्मा हो गया है । 1962 में चीन में अकाल की हालत थी । ब्रिटेन के कुछ भले मानुषों ने 1 बड़े जहाज पर बहुत सा सामान, बहुत सा भोजन, कपड़े, दवाइयां भरकर वहां भेजे । हम अगर होते । तो चन्दन तिलक लगाकर फूल मालाएं पहनाकर उस जहाज की पूजा करते । लेकिन चीन ने उसको वापस भेज दिया । और जहाज पर बड़े बड़े अक्षरों में लिख दिया - हम मर जाना पसंद करेंगे । लेकिन भीख स्वीकार नहीं कर सकते । शक होता है कि यहां कुछ जवान लोग होंगे । जवान ही यह हिम्मत कर सकता है कि भूखे मरते देश में । और आया हो भोजन बाहर से । और लिख दे जहाज पर कि - हम भूखों मर सकते हैं । लेकिन भीख नहीं मांग सकते । भूखा मरना इतना बुरा नहीं है । भीख मांगना बहुत बुरा है । लेकिन जवानी हो । तो बुरा लगे । भीतर जवान खून हो । तो चोट लगे । अपमान हो । हमारा अपमान नहीं होता । हम शांति से अपमान को झेलते चले जाते हैं । हम बड़े तटस्थ हैं । अपमान को झेलने में । कुछ भी हो जाये । हम आंख बंद करके झेल लेते हैं । यह तो संतोष का, शांति का लक्षण है कि जो भी हो । उसको झेलते रहो । बैठे रहो चुपचाप । और झेलते रहो ।
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