24 दिसंबर 2010

तेरी सत्ता के बिना हिले न पत्ता खिले न एक हू फ़ूल


परहित सरस धर्म नहीं भाई । पर पीडा सम नहीं अधिकाई ।
बडे भाग मानुस तन पावा । सुर दुर्लभ सद ग्रन्थन गावा ।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा । पाय न जेहि परलोक संवारा ।

insaan bhedbhav kyun karta hai.

( कुछ ग्यानियों ने इस दुनियां के सिस्टम को जंगलराज कहा है । )

Kyun woh kisi ko dutkarta hai.

( मामूली आदमी भी गरूर में अन्धे हो रहे हैं । इसीलिये अभी के सच्चे संत कह रहे हैं कि कलियुग समय से पहले ही भन्ना उठा । ( अभी कलियुग के सिर्फ़ 5000 वर्ष हुये हैं और 17000 बाकी है । चारों तरफ़ फ़ैली त्राहि त्राहि से सत्ता ने कलियुग को यहीं समाप्त करने का फ़ैसला लिया है । )

Jaise jahan main kaam karta hun ( CENT.. RAY.. COMPANY

( प्राइवेसी के मद्देनजर मैंने नाम को अस्पष्ट कर दिया गया है । )

wahan hamara jo supervisor hai woh marathi hai

( पर वो भूल गया है । असल में तो वो पहले इंसान है । )

toh woh pahle sabhi marathiyo ko kaam par lagata hai

( शायद इसी को कहा गया है । अंधा बांटे रेवडी फ़िर फ़िर अपने को देय । )

agar jagah bache toh baaki kisi aur ko.

( इस कर्म से उसके लिये कहीं जगह ही नहीं बचेगी । )

nahi toh hame ghar vapas bhej deta hai.

( आगे के समय में भगवान उसको वापस बार बार 84 में भेजेगा बिकाज उसने एक इंसान की तरह व्यवहार न करके पशुओं की तरह व्यवहार किया । )

Kyun koi apni shaqti ka galat istemaal karta hai ? 

 ( हर पावर का भी एक नशा होता है । वह उसी में धुत है । )

 kya use ishwar ka bhay nahi lagta ?

( आज का इंसान ईश्वर का भी अपने फ़ायदे के लिये ही इस्तेमाल या याद करता है । )

insaan khud ko sudharta kyun nahi ?

( ये बहुत बडा प्रश्न है । जिसकी तरफ़ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है । )

 woh kyun yeh bhool jata hai ki woh sirf is janam me marathi ya marwadi ya bhaiya.

( बिलकुल सही बात है । और अगले जन्मों में तो 84 में उसे गधा । घोडा । कुत्ता । बिल्ली जैसे पशु आदि बनना होगा । और आप जैसों की हाय अलग से झेलनी होगी । )

Jis bhi cast me paida hua ho sirf isi janam ke liye hai.

( और वो भी बहुत थोडे समय के लिये । मनुष्य के जीवन को इसीलिये क्षणभंगुर या पानी का बुलबुला बताया गया है । )

Parmatma ke yahan toh koi jaat nahi wahan toh sab ek hai

( एक नूर ते सब जग उपज्या । कौन भले कौन मंदे । )

toh kyun insaan sirf aaj ka sochta hai ?

क्योंकि इंसान अग्यात नशे में चूर है ।

झूठे सुख से सुखी है । मानत है मन मोद ।
जगत चबैना काल का । कछू मुख में कछू गोद । )

woh apne aane wale kal ki kyun nahi sochta.?

(कुछ ही लोग सोचते हैं । अगर सभी सोचने लगें तो क्या बात है)

Kyun koi dusaro ko satata hai kyun ?

( लोग सोचते हैं कि रावण कंस आदि राक्षस कोई अलग राक्षस जाति के थे । पर वे इंसानों में ही थे । और स्वभाव से राक्षस थे । )

jawab ki prateeksha rahegi. Jai jai gurudev ki. (ई मेल से)

इस पूरे ई मेल में मैंने हिंट ( हिंदी में ) दिये हैं पर वो उत्तर नहीं है ।

आगे बात करते हैं । आपके सभी प्रश्नों में कोई ऐसी हाय हाय वाली बात नहीं है । ये जगत व्यवहार है जो हमेशा से ही चला आ रहा है । ( अगर ऐसा नहीं होगा तो या तो जगत समाप्त हो जायेगा या बेहद नीरस हो जायेगा । ) भले ही इसमें अच्छे बुरे का अनुपात कम ज्यादा होता रहा हो ।

बुरा ना मानें आज आप अपनी परिस्थिति की वजह से ऐसा सोच रहे हैं । जैसा कि आप सुपरवाइजर के लिये कह रहें हैं उसकी जगह आप होते तो आप भी वही करते । भले ही अभी आपको लग रहा होगा कि आप नहीं करते ?

आज जो आपका आज है वो आपके बीते कल से निर्मित हुआ है ।

बुरा जो देखन मैं चलया । बुरा ना मिलया कोय ।
जब दिल खोजा आपना । मुझसे बुरा न कोय ।

अगर आपकी बात मान ली जाय तो इससे यह सिद्ध हो जायेगा कि यहां कोई सत्ता ( ईश्वरीय ) नहीं है और अन्याय का बोलबाला है । पर नहीं यहां वो सत्ता है कि

तेरी सत्ता के बिना हिले न पत्ता । खिले न एक हू फ़ूल हे मंगल मूल ।

जलचर जीव बसे जल मांहि । तिनको जल में भोजन देय ।
वनचर जीव बसे वन मांहि । तिनको वन में भोजन देय ।
थलचर जीव बसे थल मांहि । तिनको थल में भोजन देय ।
नभचर जीव बसे नभ मांहि । उनको भी तो भोजन देय ।
ऐसे प्रभु को भोग लगाना । लोगन राम खिलौना जाना ।

और ये परमात्मा की केन्द्र सत्ता है जिसमें भक्ति से भाग्य आदि बनता है । त्रिलोक की सत्ता कर्मफ़ल पर आधारित है यानी जैसा किया वैसा प्राप्त होगा ।

यकीन मानें  दोनों ही सत्ताओं का बेहद कडा नियम है कि तौल में चीनी के एक दाने के बराबर हेरफ़ेर नहीं हो सकता । चींटी जैसे तुच्छ जीव का यहां पूरा पूरा हिसाब रहता है । फ़िर आप सोच सकते हैं कि इतना सख्त राज्य है तो खुशहाली होनी चाहिये ?

आप अपना पिछले कर्मफ़ल का प्रारब्ध ( भाग्य ) लेकर आये हैं । आगे का आपको अभी बनाना है । अब जैसा भी आप ले के आये हैं उसको हर हालत में भोगना ही है । इसलिये ये कर्मयोनि है । इसलिये ये कर्मक्षेत्र है ।

इसलिये हे अर्जुन.. युद्ध कर निरन्तर युद्ध कर तभी विजय प्राप्त होगी ।

अब मैं यही सलाह दे सकता हूं कि

कोई ना काहू सुख दुख कर दाता । निज कर कर्म भोग सब भ्राता ।

इसलिये

बीती ताहि विसारि दे । आगे की सुधि लेय ।

भक्ति स्वतंत्र सकल सुख खानी । बिनु सतसंग ना पावहि प्राणी ।

अगर आपके पास भक्ति का असली नाम होता तब तो बात ही कुछ और थी ? लेकिन तब तक आप खाली समय में परमात्मा का चिंतन निरन्तर करे विश्वास रखें वह सिर्फ़ भाव का भूखा है । आप भाव से उससे प्रार्थना करेंगे तो वो हर बात सुनेगा ।

जा पर कृपा राम की होई । तापर कृपा करे सब कोई ।
निज अनुभव तोहे कहहुं खगेशा । बिनु हरि भजन न मिटे कलेशा ।

और अंत में ..जय जय श्री गुरुदेव ।

प्रभु आपकी सुनें और अपनी शरण में लें ।

4 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

आप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .

Arvind Jangid ने कहा…

नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं

Suman ने कहा…

apkobhi nav varsh ki anek shubh kamanaye..
mere blog par ane ka shukriya............

Sacred ने कहा…

सत श्री अकाल जी ,
चिटी आपके कई लेखो मे मिली है दिन मे यथा संभव चिटियो पर पैर न पड़े यही कोशिश रहती है लेकिन रात मैं कोई आ गयी तो....
अनजाने मे हुए अपराध की कितनी सजा बनती है