इसलिए तो विवाह का इतना आयोजन करना पड़ता है । उस आयोजन के पीछे बड़ा मनोविज्ञान है । मेरे पास लोग आते हैं । वे कहते हैं - क्या जरूरत कि घोड़े पर सवारी निकले दूल्हे की ? कि इतने बैंड बजें । फ़ुलझड़ी छूटें । बारात में खर्च हो ? इतने लोग आएं । जाएं ? इस सबकी क्या जरूरत है ? क्या सीधा साधा विवाह नहीं हो सकता ?
हो सकता है । लेकिन भ्रम पैदा होना मुश्बित होगा । सीधा साधा बिलकुल हो सकता है । कोई जरूरत नहीं है । तुम 1 स्त्री को मिल गए । लेकिन तुमको भी शक रहेगा कि ऐसे में यह अपनी हो कैसे गई ? उतना उपद्रव चाहिए भरोसा दिलाने के लिए कि भारी कुछ हो रहा है । कुछ ऐसा महत्वपूर्ण हो रहा है । जो दोबारा नहीं होगा । अब घोड़े पर तुम जो रोज तो बैठते नहीं । 1 दफा बैठेगा । इसलिए दूल्हा राजा । दूल्हा को हम कहते हैं - दूल्हा राजा । उसे राजा बना देते हैं । 1 दिन के राजा हैं वे । और कैसी फजीहत पीछे होने वाली है । कुछ पता नहीं ? मगर बैठे हैं अकड़ कर । कटारी वगैरह लटका रखी है । मुकुट वगैरह पहन रखा है । उधार कपड़े हों । कोई हर्जा नहीं । लेकिन आज डटकर साज सामान किया है । और बराती चल रहे हैं । फौज फाटा है । बड़े बड़ों को नीचे चला दिया है । सब नीचे चल रहे हैं । और दूल्हा राजा हो गया 1 दिन के लिए । यह उसके मन पर 1 छाप बिठानी है । 1 कंडीशनिंग है । 1 संस्कार है । बड़े कुशल लोग थे - पुराने लोग । उन्होंने पूरा हिसाब रखा है कि उसको यह भ्रांति पक्की हो जाए कि कोई गाढ़ संबंध पैदा हो रहा है । और ऐसा अनूठा हो रहा है । फिर यही घटना दोबारा नहीं घटने वाली । इसलिए पूरब के लोग तलाक के विपक्ष में हैं । क्योंकि पूरब के लोग ज्यादा चालाक हैं । पश्चिम अभी बचकाना है । उसे अभी अनुभव नहीं है आदमी के मन का । पूरब को हजारों साल का अनुभव है । क्योंकि अगर तलाक संभव है । तो विवाह कभी पूरा हो ही न पाएगा । अगर इस बात की संभावना है कि हम अलग हो सकते हैं । तो मिलता कभी भी पक्का नहीं हो पाएगा । जिससे अलग हो सकते हैं । उससे मिलना ऊपर ऊपर ही रहेगा । संसार बसेगा नहीं । भीतर बना ही रहेगा कि भीतर बना ही रहेगा कि कल चाहें । तो अलग हो सकते हैं । यह कोई अपनी पत्नी है । ऐसा कोई जरूरी नहीं । यह किसी और की भी हो सकती है । कोई और पत्नी हमारी भी हो सकती है । किसी और से हमारे बच्चे पैदा हो सकते हैं । हमारे बच्चे का कोई मामला नहीं है बड़ा । पश्चिम में उपद्रव पैदा हो गया है । संसार डगमगा गया है । मैंने सुना है । 1 अभिनेता हालीवुड में अपनी पत्नी के साथ बैठा है । और उनके बच्चे खेल रहे हैं । पत्नी ने कहा कि देखो, मैं हजार बार कह चुकी कि कुछ करना होगा । तुम्हारे बच्चे और मेरे बच्चे । हमारे बच्चों को मार रहे हैं । पश्चिम से संभव हो गया है । पति के बच्चे हैं किसी और पत्नी से । पत्नी के बच्चे हैं किसी और पति से । फिर दोनों के बच्चे हैं । तुम्हारे बच्चे और मेरे बच्चे मिलकर हमारे बच्चों को मार रहे हैं । इसको रोकना होगा । मगर जहां तुम्हारे बच्चे । हमारे बच्चे । और मेरे बच्चे । वहां हमारे का भाव अपने आप क्षीण हो जाएगा । क्या मेरा है ? सब रेत का घर मालूम पड़ता है । यहां कुछ मजबूत नहीं है । यहां कुछ पक्का नहीं है । 1 अभिनेत्री से एयरपोर्ट पर पूछा गया - विवाहित या अविवाहित ? उसने कहा - दोनों । कभी कभी । कभी विवाहित । कभी अविवाहित । दोनों । कभी कभी । जहां ऐसी रेत जैसी स्थिति हो जाए । पूरब के लोग चालाक हैं । उम्र चालाकी लाती है । बूढ़े बेईमान हो जाते हैं । होशियार हो जाते हैं । बच्चे निर्दोष होते हैं । उनको पता नहीं । जिंदगी का राग रंग क्या है ? तो पूरब ने पूरी व्यवस्था की कि संबंध ऐसे मजबूती से बनाए जाए कि पक्की भ्रांति हो जाए कि यह पत्नी मेरी है । और पूरब में समझा जाता है कि ऐसा कोई 1 ही जन्म का मामला नहीं है । पति पत्नी तो एक दूसरे का पीछा जन्म जन्मांतर तक करते रहते हैं । पत्नियां तो इससे बड़ी प्रसन्न होती हैं । पति जरा डरते हैं कि जन्म जन्मांतर तक ? 1 तक ही काफी है । 1 मगर अगल जन्म में भी इसी देवी से मिलना होगा ? लेकिन पत्नियां इससे बड़ी प्रसन्न होती हैं कि भागकर जाओगे कहां ? कोई छुटकारा नहीं है । ये प्रतीतियां बिठाई गई हैं । मानव शास्त्र की प्रतीतियां हैं । इससे तुम्हें लगता है मेरा । बच्चा तुमसे पैदा होता है । तुम सोचते हो मेरा । तुमसे क्या पैदा हो रहा है ? तुम केवल प्रयोगशाला हो । तुम्हारा शरीर केवल बच्चे के आगमन के लिए मार्ग हैं । इससे ज्यादा नहीं हैं । और अब तो विज्ञान भी कहता है कि टेस्ट टयूब में बच्चा पैदा हो सकता है । कोई मां के गर्भ की जरूरत नहीं ।
और विज्ञान कहता है कि अब तो आर्टिफिशियल इनसेमीनेशन की सुविधा है । तो हजारों साल तक व्यक्ति का वीर्णकण सुरक्षित बचाया जा सकता है । बर्फ में ढांककर । तुम मर जाओगे । 1000 साल बाद तुम्हारा लड़का पैदा हो सकता है । तुम्हारा वीर्णकण बचा लिया जाएगा । तो तुमसे संबंध रहा ? 10 000 साल बाद तुम्हारा लड़का पैदा हो सकता है । और तुम मर चुके 10 000 साल पहले । तुम्हारी रग रग मिट्टी में खो गई । फिर भी तुम्हारा बच्चा पैदा हो सकता है । तो तुमसे क्या संबंध रहा ? क्या लेना देना है ? तुम केवल मार्ग थे । अपना यहां कोई भी नहीं । यहां तुम अजनबी हो । यहां अपने का भरोसा करके राहत मिलती है । यह सच है । क्योंकि अगर तुम्हें यह पक्का पता चल जाए कि तुम बिलकुल अकेले हो । तो तुम घबड़ा जाओगे । बेचैन हो जाओगे । हाथ पैर काटने लगेंगे । रात अंधेरी है । रास्ता बीहड़ सुनसान है । कुछ आगे का पता नहीं । कुछ पीछे का पता नहीं । कुछ अपना पता नहीं । किसी का हाथ, हाथ में लेकर थोड़ा भरोसा आता है कि कोई साथ है । माना कि वह भी अंधा है । हम भी अंधे । तुमने देखा । नदियों में तीर्थयात्रा सर्दियों के दिन में स्नान करने जाते हैं । तो बड़े जोर जोर से हरे राम, हरे कृष्ण, पानी में डुबा मारते जाते हैं । और राम का नाम लेते जाते हैं । वे कोई राम का नाम नहीं लेते । वह सिर्फ राम की चिल्लाहट में ठंड ज्यादा नहीं लगती । पता नहीं चलता । मन यहां लगा है । हरे राम, हरे राम, जल्दी पानी लिया ।
क्योंकि मैंने अपने गांव में देखा कि पुरुषोत्तम का महीना आता है । तो मेरा घर नदी के किनारे ही है । पास ही है । तो स्त्रियां स्नान करने आती हैं । जल्दी सुबह आती हैं 5 बजे ब्रह्म मुहूर्त में । उन स्त्रियों को मैं भली भांति जानता हूं । जिनके मुंह से कभी हरे राम नहीं सुना गया । वे भी पानी में आकर एकदम हरे राम, हरे राम करने लगते हैं । तो मुझे लगा कि यह पानी बड़ा रहस्यपूर्ण मालूम पड़ता है । उन स्त्रियों को मैं भली भांति जानता हूं । इनमें से कोई हरे राम वाली नहीं है ।
यह अचानक क्या हो जाता है इनको । पानी में उतरते ही से ? तब मैंने पानी में उतरकर देखा 5 बजे । तब समझ में आया । नास्तिक भी कहेगा । ठंडा पानी । घबड़ाहट छूटती है । उस घबड़ाहट में कुछ भी बको । राहत मिलती है । अंधेरे में कुछ भी गुनगुनाने लगो । भरोसा आता है । अंधे अंधों का हाथ पकड़ लेते हैं । लेता है । कोई है । अकेला नहीं हूं । इसलिए तो तुम समूह में जीते हो । इसलिए तो तुम समूह बनाकर जीते हो । अकेले में डर लगने लगता है । समूह में निश्चित हो जाते हो । इतने लोग हैं । ठीक ही होगा । जहां भीड़ जाती है । वहां जाते हो । अकेला खड़ा होने की किसी की हिम्मत नहीं है । क्योंकि अकेले में पता चलता है । यहां कोई भी मेरा नहीं है । भयाक्रांत हो जाओगे । आत्मा कंपेगी । उस कंपन में जी न सकोगे । इसलिए जिसने भी अकेलेपन को जान लिया । वह परमात्मा की खोज में लग जाता है । जो समाज में समझता है कि सब पा लिया ? वह परमात्मा से वंचित रह जाता है । जो अकेला हो गया । वह खोजेगा ही । ओशो
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें