10 मई 2011

लड़कियां कुछ अगर हिम्मत जुटाएंगी

स्त्रियां तय कर लें । तो कभी युद्ध ना हो - स्त्री को अपनी मुक्ति के लिए अपने व्यक्तित्व को खड़ा करने की दिशा में सोचना चाहिए । प्रयोग करने चाहिए । लेकिन ज्यादा से ज्यादा वह क्लब बना लेती है । जहां ताश खेल लेती है । कपड़ों की बात कर लेती है । फिल्मों की बात कर लेती है । चाय काफी पी लेती है । पिकनिक कर लेती है । और समझती है कि बहुत है । शिक्षित होना पूरा हो गया । ताश खेल लेती होगी । पुरुषों की नकल में 2 पैसे जुए के दांव पर लगा लेती होगी । बाकी इससे उसको कुछ व्यक्तित्व नहीं मिलने वाला है । स्त्री को भी सृजन के मार्गों पर जाना पड़ेगा । उसे भी निर्माण की दिशाएं खोजनी पड़ेंगी । जीवन को ज्यादा सुंदर और सुखद बनाने के लिए उसे भी अनुदान करना पड़ेगा । तभी स्त्री का मान, स्त्री का सम्मान, उसकी प्रतिष्ठा है । वह समकक्ष आ सकती है ।
स्त्री को 1 और तरह की शिक्षा चाहिए । जो उसे संगीत पूर्ण व्यक्तित्व दे । जो उसे नृत्य पूर्ण व्यक्तित्व दे । जो उसे प्रतीक्षा की अनंत क्षमता दे । जो उसे मौन की । चुप होने की । अनाक्रामक होने की । प्रेमी की और करुणा की गहरी शिक्षा दे । यह शिक्षा अनिवार्य रूपेण - ध्यान है ।
स्त्री को पहले दफा यह सोचना है । क्या स्त्री भी 1 नई संस्कृति को जन्म देने के आधार रख सकती है ? कोई संस्कृति जहां युद्ध और हिंसा नहीं । कोई संस्कृति जहां प्रेम, सहानुभूति और दया हो । कोई संस्कृति जो विजय के लिए आतुर न हो । जीने के लिए आतुर हो । जीने की आतुरता हो । जीवन को जीने की कला और जीवन को शान्ति से जीने की आस्था और निष्ठा पर खड़ी हो । यह संस्कृति - स्त्री जन्म दे सकती है । स्त्री जरूर जन्म दे सकती है । आज तक चाहे युद्ध में कोई कितना ही मरा हो । स्त्री का मन निरंतर प्राण उसके दुख से भरे रहे । उसका भाई मरता है । उसका बेटा मरता है । उसका बाप मरता है । पति मरता है । प्रेमी मरता है । स्त्री का कोई न कोई युद्ध में जा के मरता है । अगर सारी दुनिया की स्त्रियां 1 बार तय कर लें - युद्ध नहीं होगा । दुनिया पर कोई राजनैतिक युद्ध में कभी किसी को नही घसीट सकता । सिर्फ स्त्रियां तय कर लें । युद्ध अभी नहीं होगा । तो नहीं हो सकता । क्योंकि कौन जाएगा युद्ध पर ? कोई बेटा जाता है । कोई पति जाता है । कोई बाप जाता है । स्त्रियां 1 बार तय कर लें । लेकिन स्त्रियां पागल हैं । युद्ध होता है । तो टीका करती हैं कि जाओ युद्ध पर । पाकिस्तानी मां, पाकिस्तानी बेटे के माथे पर टीका करती है कि जाओ युद्ध पर । हिन्दुस्तानी मां, हिन्दुस्तानी बेटे के माथे पर टीका करती है कि जाओ बेटे । युद्ध पर जाओ ।
पता चलता है कि स्त्री को कुछ पता नहीं कि यह क्या हो रहा है । वह पुरुष के पूरे जाल में सिर्फ 1 खिलौना बन हर जगह 1 खिलौना बन जाती है । चाहे पाकिस्तानी बेटा मरता हो । चाहे हिन्दुस्तानी । किसी मां का बेटा मरता है । यह स्त्री को समझना होगा । रूस का पति मरता हो । चाहे अमेरिका का । स्त्री को समझना होगा । उसका पति मरता है । अगर सारी दुनिया की स्त्रियों को 1 ख्याल पैदा हो जाए कि आज हमें अपने पति को, बेटे को, अपने बाप को युद्ध पर नहीं भेजना है । तो फिर पुरुष की लाख कोशिश पर राजनैतिकों की हर कोशिशें व्यर्थ हो सकती हैं । युद्ध नहीं हो सकता है । यह स्त्री की इतनी बड़ी शक्ति है । वह उसके ऊपर सोचती है कभी ? उसने कभी कोई आवाज नहीं की । उसने कभी कोई फिक्र नहीं की । उस आदमी ने - पुरुष ने । जो रेखाएं खींची हैं राष्ट्रों की । उनको वह मान लेती है । प्रेम कोई रेखाएं नहीं मान सकता । हिंसा रेखाएं मानती है । क्योंकि जहां प्रेम है । वहां सीमा नहीं होती । सारी दुनिया की स्त्रियों को 1 तो बुनियादी यह खयाल जाग जाना चाहिए कि हम 1 नई संस्कृति को, 1 नए समाज को, 1 नई सभ्यता को जन्म दे सकती हैं । जो पुरुष का आधार है । उसके ठीक विपरीत आधार रखकर ।  यह स्त्री कर सकती है । और स्त्री सजग हो । कॉन्शियस हो । जागे । तो कोई भी कठिनाई नहीं । 1 क्रांति - बड़ी से बड़ी क्रांति दुनिया में स्त्री को लानी है । वह यह 1 प्रेम पर आधारित देने वाली संस्कृति । जो मांगती नहीं । इकट्ठा नहीं करती । देती है । ऐसी 1 संस्कृति निर्मित करनी है । ऐसी संस्कृति के निर्माण के लिए जो भी किया जा सके । वह सब । उस सबसे बड़ा धर्म स्त्री के सामने आज कोई और नहीं । यह पुरुष के संसार को बदल देना है आमूल ।
शायद पुरानी पीढ़ी नहीं कर सकेगी । नई पीढ़ी की लड़कियां कुछ अगर हिम्मत जुटाएंगी । और फिर पुरुष होने की नकल और बेवकूफी में नहीं पड़ेंगी । तो यह क्रांति निश्चित हो सकती है । ओशो

1 टिप्पणी:

Kailash Sharma ने कहा…

वैसे बेटा हो या बेटी । संसकार अच्छे होने चाहिये ।
.....

बहुत सच कहा है..वैसे भी आज के समय में बेटियाँ माता पिता से ज्यादा और निस्वार्थ प्यार करती हैं..बहुत सुन्दर और ज्ञानवर्धक पोस्ट..