**********
ऋद्धि को तो छोड़ो । तो ही सिद्धि मिलेगी । यह ऋद्धि और सिद्धि का बड़ा प्यारा भेद है । ऋद्धि का अर्थ - चमत्कार कर सकूँ । अमृत मिल जाए । लोहे को सोना बना सकूँ । आकाश में उड़ सकूँ । दीवालों के पार जा सकूं । ये ऋद्धियां हैं । इन सबको छोड़ो । तो सिद्धि मिले । सिद्धि तो 1 है । सिद्धि का अर्थ होता है - जो भीतर छिपा है । उसमें डुबकी मार जाओ । न आकाश में उड़ने की जरूरत है । न दीवालों के पार जाने की जरूरत है । दरवाजे काफी हैं । और आकाश में पक्षी उड़ ही रहे हैं । वे कोई परमहंस नहीं हो गए हैं । और अगर तुम्हें बहुत ही दिल हो जाए । तो हवाई जहाज हैं । बैठ गए । रामकृष्ण के पास 1 आदमी आया । और उसने कहा कि - मैं पानी पर चल सकता हूं । आप क्या कर सकते हैं ? रामकृष्ण ने कहा कि - पानी पर चल सकते हो । कितना समय लगा इस कला को सीखने में ? उसने कहा - 18 साल लगे । रामकृष्ण हंसने लगे । उन्होंने कहा - रहे बुद्धू के बुद्धू । हम 2 पैसा देकर नदी पार हो जाते हैं । तुम्हें 18 साल लगे । पानी पर चले । फायदा क्या है ?
***********
नशा ध्यान का धोखा दे देता है । इस देश में साधु नशा करते रहे हैं । सदियों से - भांग गांजा । अब L.S.D बन गया अमरीका में । वह सोमरस का नया वैज्ञानिक रूपांतरण है । वेद के ऋषियों से लेकर अब तक टिमोथी लीरे और अल्डुअस हक्सले तक यह आशा रही है कि नशा करने से समाधि लग जाती है । नशा करने से समाधि नहीं लगती । समाधि का धोखा पैदा हो जाता है । इतनी सस्ती अगर बात होती कि नशा कर लिया । समाधि लग गई । हां, गांजा पी लोगे । भांग पी लोगे । शराब पी लोगे । थोड़ी मस्ती आ जायेगी । क्योंकि जीवन की चिंतायें थोड़ी देर के लिए भूल जायेंगी । मगर वे चिंतायें खड़ी हैं अपनी जगह । नशा उतरेगा । वापिस लौट आयेंगी । दुगने वेग से ।
*************
मुल्ला नसरुद्दीन गया था 1 संगीत की बैठक में । और जब संगीतज्ञ आऽऽ..आ55 आ55..आऽऽ… करने लगा । तो मुल्ला रोने लगा । उसके आंसू टपटप गिरने लगे । पड़ोस में बैठे आदमी ने कहा कि - नसरुद्दीन, हमने कभी सोचा भी नहीं था कि तुम्हारा और शास्त्रीय संगीत से ऐसा लगाव । एकदम आंसू गिरने लगे । उसने कहा - शास्त्रीय संगीत का सवाल नहीं है । ऐसे ही मेरा बकरा मरा था । तब हम भी समझे थे कि शास्त्रीय संगीत कर रहा है । सुबह मरा पाया गया ।
***********
महर्षि रमण के आश्रम में 1 गाय मरी । तो उन्होंने उसे इस तरह विदा दी । जैसे समाधिस्थ पुरुष को दी जाती है । लोग बहुत हैरान थे । लेकिन गाय साधारण गाय थी भी नहीं । बड़ी सतसंगी थी । रमण के पास आने वाले और लोग सत्संगी कभी आते । कभी न आते । मगर गाय नियमित आती थी । ऐसा कोई दिन नहीं चूकता था कि रमण के दर्शन न करती हो । आकर खिड़की में से सिर अंदर करके खड़ी हो जाती । खिड़की के बाहर ही खड़ी रहती थी । लेकिन सिर खिड़की के भीतर कर लेती थी । घंटों खड़ी रहती । जब दूसरे लोग बैठे रहते । वह भी खड़ी रहती । जब सत्संग विदा हो जाता । तब वह भी चली जाती । और कभी कभी उसकी आंखों से आंसुओ के धारे भी लग जाते थे । वहीं खड़े खड़े खिड़की पर । जब गाय बीमार पड़ी । और 1 दिन नहीं आ पायी । तो रमण खुद गये । जैसे ही उसने, गाय ने उनको आते देखा । उसकी आंखों से आंसुओ की धार बहने लगी । रमण का हाथ उसके सिर पर था । जब वह मरी । उन्होंने उसे ऐसा सम्मान दिया । जैसे कि किसी समाधिस्थ व्यक्ति को सम्मान दिया जाता है । उसकी समाधि बनवायी । लोगों ने पूछा कि - महर्षि, क्या आप सोचते हैं । यह गाय इतनी मूल्यवान थी ? उन्होंने कहा - यह इसका आखिरी जन्म है । अब यह नहीं लौटेगी । इसकी प्रार्थना सुन ली गयी ।
*********
1 ईसाई फकीर को 1 आदमी ने चांटा मारा । फकीर ऐसे ही रहा होगा । जैसे फकीर होते हैं । उसने दूसरा गाल कर दिया । नियम के अनुसार । उस आदमी ने दूसरे पर भी चांटा मारा । और करारा मार दिया । उसने कहा - यह भी अच्छा मौका मिला कि अगर दूसरा गाल दे रहा है । तो इसको भी क्यों छोड़ना ? उसने और करारा मारा । लेकिन जैसे ही उसने करारा मारा । वह बहुत चौंका । दूसरे गाल के दिखाने से नहीं चौंका था इतना । जितना चौंका । क्योंकि तब वह फकीर एकदम झपट्टा मारकर उसकी छाती पर चढ़ बैठा । और लगा मारने । उस आदमी ने कहा - अरे भाई, तुम फकीर हो । ईसाई फकीर । और तुम यह क्या कर रहे हो ? फकीर ने कहा कि - तीसरा तो कोई गाल है नहीं । अब मैं तुझे मजा चखाऊंगा । जीसस के नियम का पालन हो चुका । अब हमसे मुकाबला है । फकीर तो मस्तंड था । उसने बड़ी धुनाई कर दी । उसने कहा कि - जीसस ने कहा दूसरा गाल । दूसरा गाल खत्म । अब तो हम स्वतंत्र हैं । दुनिया भर के इतने अच्छे नियम बनते हैं । लेकिन कोई परिणाम नहीं होता । क्योंकि हर नियम की सीमा आ जाती है ।
*********
तिब्बती 1 प्रार्थना का चक्र बना लिये हैं । छोटा चका जैसा । जैसा चरखा पर चका होता है । उसमें जितने आरे हैं । 108 आरे हैं । जैसे माला में 108 गुरिये होते हैं । प्रत्येक आरे पर मंत्र लिखा है । वह चके को घुमा देते हैं । जितने चक्कर चका लगा लेता है । उतने मंत्र पाठ का लाभ मिल गया । पुण्य मिल गया । मैं बोध गया में था । 1 तिब्बती लामा मेरे पास ठहरे थे । वह अपनी किताब भी पढ़ते रहें । और बीच बीच में चके को चक्कर लगा दें । 1 दिन मैंने देखा । 2 दिन देखा । मैंने उनसे कहा - 1 काम करो । कहां का पुराना तुम यह रवैया लिये बैठे हो । इसमें बिजली का तार जोड़कर इसको बिजली से कनेक्ट कर दो । तुम फिर जो तुम्हें करना है करो । यह चक्कर लगाता ही रहेगा । लगाता ही रहेगा । रात तुम सोये रहो । तो भी चक्कर लगाता रहेगा । तुम्हारे पुण्य का कोई अंत नहीं रहेगा । पुण्य ही पुण्य बरस जायेगा तुम पर ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें