24 मई 2011

अ उ म यह 3 ध्वनियां ही सब कुछ

पागल बाबा । भगवान श्री को पहचानने वाले दूसरे जाग्रत गुरु । राजा 1 दिन नदी में तैर रहा था । ठीक वैसे ही जैसे कोई मछली तैरती है । पागल बाबा कुछ देर तक राजा को तैरते देखते रहे । एकटक । राजा ने काफी देर से किनारे पर खड़े बाबा को जब अपनी ओर ही ताकते पाया । तो वह तैरते हुये किनारे पर आया । पागल बाबा को देखने के बाद उसकी आँखे जैसे ही बाबा की आँखों से मिली । बाबा को जैसे विद्युत का 1 तीव्र झटका सा लगा । जैसे कपड़े वो पहने हुये थे । उन्हीं कपड़ो में वह भी नदी में कूद पड़े । लगभग 1 घंटा तैरने के बाद बाबा बोले - मैं बूढ़ा आदमी हूं । अब थक गया हूं । अब हम किनारे की ओर चलकर कुछ विश्राम करना चाहिये । राजा हंसकर बोला - आपने मुझसे पहले क्यों नहीं कहा ? मेरी तो आदत है । मैं तो नदी में 6-6 घंटे अकसर रोज तैरा करता हूं । किनारे पर आते ही यकायक पागल बाबा ने राजा के दोनों पैर अपने हाथों में लेकर उन पर माथा झुका दिया ।
राजा चौंककर पैर हटाने का प्रयास करते हुये बोला - बाबा । आप क्या कर रहे हैं ? कहाँ आपकी आयु । और कहाँ मैं एक 12 वर्ष का बच्चा । पैर तो मुझे आपके छूने चाहिये । पागल बाबा अश्रुपूरित नेत्रों से बोले - मैं अच्छी तरह जानता हूं कि मुझे क्या करना चाहिये । और क्या नहीं । वैसे समझ लो । मैं पागल हूं । सारी दुनिया मुझे पागल ही कहती है । राजा आँखे बंदकर चुपचाप बैठ गया । पागल बाबा भी मौन शांत बैठे रहे । उस मौन में जो घटा । उसे शब्दों द्वारा व्यक्त किया ही नहीं जा सकता । कुछ न कहते हुये भी दोनों एक दूसरे की भाषा अच्छी तरह समझ रहे थे । राजा जान गया । मग्गा बाबा ने जिन 2 बाबाओं से मिलने की 1 दिन भविष्यवाणी की थी । उनमें से दूसरे बाबा उसके सामने बैठे हैं । कुछ देर बाद उन्होंने अपने चोगे की जेब से बांसुरी निकाली । और वह उनके होठों से जा लगी । राजा को लगा । जैसे दूर किसी घाटी से कोयल कूकी हो । जैसे चीड़ के जंगल में नुकीले पत्तों को छूती हुई मस्त हवा गुजर गई हो । वह आँख बंद किए पीता रहा उस अमृत को । उसे लग रहा था । जैसे पूनम की चांदनी खिल गई हो । फिर स्वर क्रमशः तीव्र हुआ । और तीव्र होता ही चला गया । अब उसे महसूस हुआ कि मंद हवा तूफ़ान में बदल गई हो । चारो ओर मेघ गर्जने लगे हों । फिर स्वर धीमे धीमे शांत होने लगे । और फिर ऐसी करुण तान गूंजने लगी । जैसे हृदय को गहरे और गहरे छेदे जा रही हो । बाबा लगभग 30 मिनट तक बांसुरी बजाते रहे । और फिर यकायक तान थम गई । राजा ने आँख खोली । पागल बाबा मुस्करा रहे थे ।
राजा बोला - मुझे सिखायेगें आप बांसुरी बजाना ? बाबा मुस्करा कर बोले - तुझे बांसुरी सिखाने ही तो आया हूँ । 2-4  बातें बताकर बाबा ने बांसुरी उसके होठों से लगा दी । बीच बीच में कुछ निर्देश देते रहे । वह आधे घंटे बाद बोले - तू अभ्यास करना । बहुत जल्द मुझसे अच्छी बजायेगा । और आता तो है ही तुझे बजाना । सिर्फ सबक दोहरा रहा है । बस इतना याद रख ।
अ उ म यह 3 ध्वनियां ही सब कुछ हैं । इसी से । अर्थात ॐ का अनाहत नाद गुंजरित होने लगता है । यही सच्ची संगीत साधना है । गहन सन्नाटे में कोई ध्वनि नहीं होती । पर फिर भी 1 ध्वनि होती है । तुम दोनों कानो को दोनों उंगलियों से अच्छी तरह बंद कर लो । और फिर भी जो सुनाई देता है - वही अनाहत नाद है ।
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जीवन पद्धति - हिंदुओं की जो जीवन पद्धति है । वह जीवन को घटाने की तरफ नहीं है । बढ़ाने की तरफ है । दोनों 1 अंत पर पहुंच जाते हैं । अगर जीवन बिलकुल घटकर शून्य हो जाए । तो आदमी विराट में प्रवेश कर जाता है । या जीवन बढ़कर बिलकुल पूर्ण हो जाए । तो भी आदमी विराट में प्रवेश कर जाता है । तो हिंदुओं ने जितने तीर्थ चुने हैं । जितने स्थान बनाए साधना के । वह जीवित पहाड़ चुने हैं । और अगर जीवित पहाड़ न मिला । तो नदी चुनी है । यह मजे की बात है कि कोई मुर्दा नदी नहीं होती । सभी नदियां जिंदा होती हैं । जहां जीवन मिल सकता था । हिंदुओं ने वहां । वहां वहां अपने साधना के स्थल चुने । जहां जीवन खो गया था । वहां वहां जैनों ने अपने साधना के स्थल चुने । ताकि वहां तप में और गहनता हो सके । तप में और गहरा उतरा जा सके । जैन पद्धति पूर्ण मृत्यु को उपलब्ध करने की पद्धति है । इसलिए " संघात " की आशा दी जा सकी । हिंदू पद्धति पूर्ण जीवन को पाने की पद्धति है । परिणाम 1 है ।

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