15 अक्टूबर 2013

नर्क पृथ्वी पर ही है

1 शादी 1 खुली जेल है ।
2 शादी 1 ऐसी साझेदारी है । जिसमें पूँजी पति लगाता है । लाभ पत्नी पाती है ।
3 शादी 1 ऐसी कहानी है । जो झील के किनारे से शुरू होकर ज्वालामुखी के पहाड़ पर समाप्त होती है ।
4 शादी 1 ऐसी जोड़ी है । जिसमें प्रेम होता है । चूंकि प्रेम अंधा होता है । इसलिये यह अंधों की जोड़ी है ।
5 शादी 1 ऐसा आयोजन है । जिसे महिलायें पुरूषों को लूटने के लिये आयोजित करती हैं ।
6 शादी 1 ऐसी किताब है । जिसका पहला भाग पद्य में । तथा शेष गद्य में होते हैं ।
7 शादी 1 ऐसा मिलन है । जो अच्छे मित्रों की तरह रहने के इरादे से शूरु किया जाता है । और दिन ब दिन ये इरादे बदलते जाते हैं ।
8 शादी 1 ऐसा प्रमाण है । जिसके बाद ही आदमी मानता है कि कुँवारे ही भले थे ।
9 शादी जीवन का 1 ऐसा मोड़ है । जिसमें लड़की की सब चिंतायें समाप्त हो जाती है । लड़के की शुरू हो जाती है ।
10 शादी ही वह संस्कार है । जिसे करने के बाद आदमी को ज्ञान होता है कि - नर्क पृथ्वी पर ही है ।
11 शादी 1 शब्द नहीं । 1 वाक्य है ।
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महाराणा प्रताप के पाँच सौ वर्ष पूर्व और चंगेज खां के हजार वर्ष पूर्व होने की जिस बात को लेकर मैं निश्चित नहीं था । वह स्पष्ट हो गयी । दरअसल इस कहानी में तीन की मुख्य भूमिका है । निकोलस और उसकी माँ राजमाता की और इसके दुश्मन की । निकोलस मेरी सूक्ष्म

जानकारी के मुताबिक सहस्त्राब्दियों पूर्व हुआ । यह किसी अलौकिक शक्ति और विद्या से जुङे तपस्वी थे । और पूरे विश्व पर राज्य करने के इच्छुक थे । तब अभी तक इतनी कङियां मेरी समझ में आयीं कि ये लोग आपसी दुश्मनी और महत्वाकांक्षा के चलते निकोलस के बाद चंगेज ( निकोलस ) । उसकी तीसरी पत्नी ( वर्तमान भारतीय महिला ) उसका दूसरी पत्नी का पुत्र ( अभी इस महिला का बेटा । जो शायद दुश्मन है ) बने । बाद में यह कङी महाराणा प्रताप । उदय । और संभवतः उनकी माँ रूप में जुङे । और अभी ये वर्तमान महिला उसका पुत्र और अमेरिका के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शासन के रूप में हैं । मुझे किसी ने यह भी बताया । अमेरिका के तीनों शासक एक ही खून से सम्बन्ध रखते हैं । अब भारत पर सात पुश्तों से एक ही शासन और अमेरिका पर तीन पुश्तों से एक ही शासन और निकोलस द वंडर कौन है । यह रहस्य सुलझाना है । राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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अक्सर बीमार होने पर डाक्टर हमारे शरीर की विभिन्न अन्दरूनी जाँच लिख देते हैं । लेकिन इस जाँच की एक

मुफ़्त प्राकृतिक व्यवस्था भी स्वयं हमारे शरीर में ही है । आँखों का कीचङ । कानों का मैल । नाक का मल । बदबू रहित कुछ कुछ सफ़ेद मूत्र । और सामान्य मल त्याग होना । तथा मामूली दुर्गन्ध रहित पसीना आता हो । नाखून बहुत अधिक कङे या बहुत मुलायम न हों । शरीर के बाल रोम बहुत अधिक कङे या बहुत मुलायम न हों । आँखें सफ़ेद और काली सही हों । तो इन्हीं में कमी या अधिकता से आप अपने शरीर में हो रहा दुष्प्रभाव जान सकते हैं । इनकी सामान्य स्थिति क्या होती है । वह आप एक दो साल के स्वस्थ बच्चे की इन्हीं सब मल परीक्षण क्रियाओं से सरलता से जान सकते हैं । यानी उसकी सफ़ाई किस तरह से शरीर करता है । और विभिन्न मल स्थिति क्या होती है ? राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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राहुल की कार से " कुत्ते की माँ " मर गयी । राहुल गांधी ड्राइवर से - जाओ इसके पति का पता करो । जब ड्राइवर वापस आया । तो उसके हाथ में मिठाई के डब्बे और गले में ढेर सारी फ़ूलों की मालायें थी । राहुल - ये क्या है ? ड्राइवर - सर ! लोगों ने मेरी पूरी बात ही नहीं सुनी । और खुशी खुशी हार पहनाने लगे । और मिठाई बांटने लगे । राहुल - मगर क्यों ? ड्राइवर - मैंने तो सिर्फ़ ये कहा कि मैं राहुल का ड्राइवर हूँ । कुत्ते की माँ मर गयी है । 
जल्दी  forward करो । ये market में नया है । Ritu Sri
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जिनका नेट स्लो है । और वो गुलाम बनकर मरना नहीं चाहते । वो इस वीडियो को साइबर में जाकर देखें । जिन्होंने आधार कार्ड बनवा लिया है । उनके लिए भी समाधान बताया गया है । इस वीडियो में l सबसे ख़ास बात इस वीडियो की मुझे ये लगी । बगैर संसद में कानून पास हुये या सुप्रीम कोर्ट में केस चलते हुये कैसे विदेशी कंपनियों और मिशनरियों के एजेंटो ने आधार कार्ड का धंधा चालू रखा l एक और ख़ास बात है । इस वीडियो में मौन मोहन शूर्पनखा राहुल ने अपने आधार कार्ड नहीं बनवाए । और जनता को प्रोत्साहित करते हैं कि जल्दी आधार कार्ड बनवाओ l
https://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=E72W3CgHG0I#t=484
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1 लड़के ने अपनी गर्लफ्रेंड को फोन किया । तो उसके पापा ने उठा लिया । लड़का मन में बोला - हे भगवान ! ये कहाँ से आ गये ?
Dad - हैलो ! कौन बोल रहा है ?
Boy - मैं अमिताभ बच्चन बोल रहा हूँ " कौन बनेगा करोड़पति " से ओर आपकी बेटी की फ्रेंड हॉट सीट पर बेठी है । और आपकी बेटी की मदद चाहती है । उसको फोन दीजिये Sir .
Dad - ओह ! रोमांचित होकर बेटी को फोन दे दिया ।
Boy - सवाल यह आज शाम को तुम कहाँ मिलोगी ?
Option A - Beach  B - Park  C - Coffee shop  D - Mall 
Girl - Option A

Boy - धन्यवाद ! और अब आपका समय समाप्त होता है ।
पिता अभी तक खुशी के मारे फ़ूले नहीं समा रहे थे ।
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मुझे एक बात याद आती है । एक साधु था । उससे एक युवक कहता था - मैं संसार से ऊब चुका हूँ । सुख शांति का मार्ग चाहता हूँ । पर संसार मुझे छोङता ही नहीं । तब कुछ दिन बाद जब वह युवक साधु के पास आया । वह साधु पेङ के तने को पकङे हुये बैठा था । युवक ने कहा - आ जाईये । साधु बोला - कहाँ से आऊँ । पेङ ने पकङ रखा है । इस तरह कई बार युवक ने उसे आने को कहा । और साधु ने वही जबाव दिया । झुँझलाकर युवक बोला - आप झूठ कहते हो । पेङ भी किसी को पकङता है । आपने स्वयं ही तो पेङ पकङ रखा है । साधु हँसकर बोला - फ़िर तुम भी झूठ कहते हो । संसार भी कभी किसी को पकङता है । गौर करो । इस संसार के छल कपट अशांति को तुमने स्वयं पकङ रखा है । राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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इसी जीवन के आज में जब कुछ गलत नजर आये । तो हमें अपने कल का निरीक्षण करना चाहिये । इस तरह आज पैदा हुये अच्छे बुरे कारण के मूल सृजन कर्ता हम स्वयं ही होते हैं । यह सिद्ध सूत्र है । अकाटय है । कोऊ न काहू सुख दुख कर दाता । निज कर कर्म भोग सब भ्राता । राजीव कुलश्रेष्ठ । 
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लेकिन यह सब भी ज्ञान के अभाव में महज बातें रह जाती हैं । दरअसल जब हम रोगी हो जाते हैं । या किसी भूलभुलैया में भटक जाते हैं । और रास्ता नहीं सूझता । तब हमें हङबङाने भागने के बजाय ठहर कर सही रास्ता खोजना चाहिये । रोग का उचित इलाज खोजना चाहिये । और गौर करें । तो वह इलाज बहुत आसान भी है । थोङा सोचने पर ही आप पायेंगे । आप अपने मूल से अपने घर से अपने केन्द्र से हटे हुये हैं । और सच्चा सुख अपने घर में ही मिलता है । यह सिद्ध सूत्र ही है । राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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दरअसल हमारी परेशानी क्या है ? हम सभी कुछ अपने मन के अनुकूल चाहते हैं । हरेक कोई इस संसार को अपने अनुसार चलाना चाहता है । और ये मनःस्तर पर सम्भव नहीं । इसके लिये इसी अनुपात में शक्ति चाहिये । तब मन के प्रतिकूल स्थितियां होने पर हम दुखी और अशांत हो जाते हैं । मन चीती कबहू न भयी । प्रभु चीती ही होय । जो मन चीती होय । तो दुख काहे को होय । राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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अब प्रश्न उठता है - वो अपना घर या अपना केन्द क्या है ? तब आप अपने तमाम व्यर्थ प्रयोजनों का निरीक्षण करें । क्या हम जिस सबमें उलझे हुये हैं । वह सभी वास्तव में उतने ही आवश्यक भी हैं ? हरगिज नहीं । इस संसार की अजीव गतिविधियां सिर्फ़ आज ही नहीं है । प्रत्येक काल में उस काल अनुसार सदैव रही हैं । अतः इसको जानने हेतु या तो हमें कर्म योग या ज्ञान योग को जानना होगा । जो इस संसार की परिस्थितियों को अनुकूल बनाते हैं । राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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न दैन्यम न पलायनम । अर्थात न तो इसको लेकर दुखी होओ । और न ही इससे भागो । यह जैसा है । इसको वैसा ही स्वीकार कर लो । ठीक उसी तरह । जिस तरह बाहरी संसार बाहरी समाज में होती अनन्त गतिविधियों से हम प्रभावित नहीं होते । फ़िर इस सब जिससे आप अशांत हो रहे हैं । यह महज वैचारिक मनः कल्पित संसार ही है । राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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एक है - आपका रूप ( करोङों अरबों जन्मों से बारबार बनता बिगङता ( जन्मता मरता ) आ रहा पंच तत्व शरीर ) और एक है - आपका स्वरूप या निज रूप । जो सदैव एक सा ही रहता है । निर्विकारी है । अपरिवर्तनीय है । सुखधाम है । अनन्त शांति युक्त है । इसी को जानने से स्थायी सुख शांति इसी जन्म के लिये नहीं । हमेशा को प्राप्त हो जाती है । दुनियां में भटक कर वीरान हो रहा है । खुद को भूलकर हैरान हो रहा है । राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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जिन्दगी में इसका एक मजेदार किन्तु सत्य उदाहरण जानिये । कोई भी महिला स्वयं को सुन्दर बनाने के लिये प्रसाधन लगाकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करती है । लेकिन रात को आराम ( आ-राम ) करते समय उसे बेकार कूङे की तरह उतार फ़ेंकती है । गन्दगी के समान धो डालती है । क्योंकि वह बनावटी है । दिखावा है । कलेश पहुँचाने वाला है । उसमें सुख शान्ति नहीं । असली सुख शान्ति उसके मूल चेहरे में ही है । जो मेकअप रहित है । क्या इसमें कुछ गलत है ? राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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ध्यान रहे । एक बार रोगी या गम्भीर रोगी हो जाने के बाद आप अपने स्तर पर कभी निरोगी नहीं हो सकते । आपको डाक्टर के पास जाना ही होगा । औषधि खानी ही होगी । पुनः स्वस्थ ( स्व-स्थ - अपने में स्थित ) होने के लिये उपचार के नियमों पर चलना ही होगा । और तब इसका डाक्टर है - कोई सच्चा सन्त । और तब इसकी एकमात्र औषधि है - सतनाम सुमरन । 
निज अनुभव तोसे कहूँ खगेसा । बिनु हरि भजन न मिटे कलेशा ।
। राजीव कुलश्रेष्ठ ।
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जब तक हमें सत्य का बोध नहीं होगा । असत्य में भटकना रहेगा । जब तक हमें मुक्त का बोध नहीं होगा । तब तक बन्धन रहेगा ही । जब तक हम ज्ञान रूपी प्रकाश को नहीं जानेंगे । अज्ञान रूपी अंधेरा दूर नहीं होगा । जब तक हम मन को सत्य मानेंगे । ये संसार हमारे लिये सत्य ही रहेगा । जबकि ये अंधेरे में रस्सी के सर्प के बोध होने के समान ही भ्रांति से अधिक नहीं है । तब सत्य या भ्रांति । दोनों में से क्या उचित है ? राजीव कुलश्रेष्ठ । 

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