कबड्डी कबड्डी कबड्डी कबड्डी ....( जय श्रीराम ) लाला आजा तुमसे 1 बहुत जरुरी बात पूछनी है ( मेरा गाँव मेरा देश...जय किसान जय किसान )
लेकिन बात पूछने से पहले कुछ बताना जरूरी है कि - ये सवाल आया कहाँ से । तो सुनो ।
हमारे पडोसी ( जिनसे हम दूध लेते हैं ) का लडका इस साल 14 साल का हो गया है । वो नौवीं कक्षा में पढता है । उसने अपना कद भी 5.10 इंच निकाल लिया है ।
3 महीने पहले वो मुझे 1 दिन अकेला शाम को कहीं मिल गया । तो मैंने अपनी आदत अनुसार उसको कुछ शिक्षा दी । अब जो मुझे आता है । या मैंने सीखा है । मैं तो वो ही सिखाऊँगा ।
तो मैंने उसे कहा - बन्टी तुम सारी कालोनी को तो भैंस का दूध पिलाते हो । और तुम खुद बकरी जैसे हो । मैंने कहा - भारत देश में भीमसेन जैसे महाबली और बाहुबली लोग हुए है ( ये देश है वीर जवानों का । पहलवानों का । हनुमानों का । इस देश का यारो क्या कहना । ये देश है दुनियाँ का गहना )
मैंने उसे कहा - तुम्हारे घर दूध की कमी नहीं । तुम सुबह उठकर सरकारी पार्क में जाकर दौड लगाया करो । मैंने उसे कहा - शाम को किसी अखाडे या जिम आदि में जाकर कसरत करो । नहीं तो घर में ही शाम को डण्ड बैठक लगा लिया करो ।
मैंने उसे कुछ देसी कसरतें करके भी सिखाई । छाती की । जाँघों की । पिन्डलियों की । कमर की । कन्धों की । उसने भी बात को समझा ।
मैंने उसे कहा - इससे तुम्हे नींद ठीक समय पर आयेगी । तुम ठीक समय रात को 10 बजे से पहले सो जाया करो । और सुबह 5 बजे से पहले उठ जाया करो । तुम्हे टट्टी
भी खुलकर आयेगी । नहीं तो राजेश खन्ना की तरह कब्ज की शिकायत रहने लग जायेगी । बस राजीव राजा ! तुम यूँ समझो कि मैंने उसे अच्छी बातें समझाई । पूरा 1 घन्टा उसको मैंने भाषण दिया । वो भी अगले दिन से लग गया ।
लेकिन पिछ्ले महीने से उसने कसरत छोड दी । मुझे भी शक हो गया । वो मेरा पडोसी है । बात कितनी देर तक छुप सकती थी । उपर से मैं विनोद त्रिपाठी सपुत्र जगन्नाथ त्रिपाठी बहुत वो हूँ । मैं तो भाँप लेता हूँ कि - चिङिया किस खेत से दाना चुग कर आयी है ।
जब मैंने उसे अकेले में प्यार से पूछा कि - कसरत करनी क्यूँ छोड दी ?
तो उसने जो बात बताई । वो मैं तुम्हें बताता हूँ । जून के महीने में बन्टी स्कूल में छुट्टियाँ होने के कारण गाँव गया हुआ था । वहाँ उसका ताऊ खेती करता है । वहाँ पर बन्टी के ताऊ का लडका जो है ।
उसने बन्टी को कहा - कसरत वसरत मत किया करो । इससे कुछ नहीं होता । जो लोग कसरत करते हैं । उन्हें मौत के समय बहुत तकलीफ़ होती है । कसरत करने वालों की आत्मा मौत के समय शरीर से बहुत मुश्किल से निकलती है ।
अब ये बात राजीव राजा मेरे मन में अटक गयी । मैं उस बन्टी के ताऊ के लडके से पूछना चाहता हूँ कि -बेटा हराम के ढक्कन ! ये बात तूने किस आधार पर कही ।
बस राजीव राजा ! ये ही आज का 1 सवाल है । जिसको धोती फाड कर रूमाल कर दो । मेरा मतलब है कि इसका बिल्कुल सही जवाब दे दो । क्युँ कि मेरे हिसाब से जो सन्त । महात्मा या योगी होते हैं । मेरे कहने का मतलब है । जिनकी अन्दरूनी पहुँच दसवें द्वार तक होती है । सिर्फ़ उनको मौत के समय कोई तकलीफ़ नहीं होती होगी । लेकिन ये कौन सी थ्योरी है कि - सिर्फ़ कसरत करने वालों को मौत के समय बहुत तकलीफ़ होती है । इस हिसाब से तो औरतों का जिस्म नरम होता है । तो क्या उन सबकी आत्मा मौत के समय बिना तकलीफ़ निकलती है ?
मेरे हिसाब से हर निरे संसारी और निगुरे को मौत के समय आत्मा निकलते समय लगभग तकलीफ़ का समान अनुभव ही होता होगा
। तुम मुझे अच्छी तरह से ये बात समझा दो । मुझे बहुत गुस्सा चडा हुआ है । मैं उस साले हराम के ढक्कन । बन्टी के ताऊ के लडके के हगनीकुन्ड में आग लगा दूँगा ।
बन्टी के ताऊ के लडके को मैंने देखा हुआ है । साला किसी बेकार के सरकारी कालेज से M.A कर रहा है । हमेशा थर्ड डिवीजन में पास होता है । साला बातें ऐसी करता है । जैसे बहुत बडा जानकार हो । कहता रहता है कि - अब ये सरकार बदल जायेगी । वो सरकार आ जायेगी । अब फ़लाँ आदमी मुख्यमन्त्री बनेगा । या फ़लाँ आदमी का ये होगा । या वो होगा ।
असल में वो साला महानालायक है । मेरी
नजर में तो वो वो वाला कुत्ता है । जिसे कुत्ता भी कुत्ता कहे । मेरे हिसाब से तो वो वो वाला आदमी है । जो अपने ही बाप के दामाद होते हैं । सुबह 10 बजे सोकर उठता है । चेहरे पर मूँछे ऐसे रखी हैं । जैसे साला अपने आपको दक्षिण भारतीय सुपर स्टार रजनीकान्त उर्फ़ रजनीदेवा समझता हो । साला रंग बिरंगी कमीज पहनता है ( बाप उसका हमेशा पुराना कुर्ता पजामा ही पहनता है )
शरीर साले का बिलकुल औरतों जैसा है नरम नरम । साला जब शहर आता है । तो नूडल्स खाता है । साथ में कोल्ड काफ़ी पीता है ।
मैंने बन्टी से भी कहा था कि - तेरे घर में भैंस है । तू ताजा दूध पीया कर । ताजी मलाई खाया कर । ताजा दही खाया कर । मैंने उसे ये भी कहा कि - तू ये सब फ़ास्ट फ़ूड और बाजारी खाने खाना कम कर दे । बिल्कुल मन मत मार । कभी कभी खा लिया कर । लेकिन असली देसी खुराक खानी चाहिये । आईस क्रीम की जगह तुझे ताजे दूध की खीर खानी चाहिये ।
लेकिन वो साला बन्टी के ताऊ का लडका
आकर बन्टी को थूक का दुरुपयोग सिखा गया । मैं मानता हूँ कि बडे शहरों में ताजे दूध या देसी शुद्ध खाने पीने की कमी है । इसलिये वहाँ के रहने वाले माडर्न लोगों की तो वो है । लेकिन छोटे शहरों या गाँव में रहने वाले लोगों ( जो मध्य वर्गीय या उच्च वर्गीय हैं ) को तो इन बातों का ख्याल रखना चाहिये ।
भारत में ज्वार । मक्की । बाजरा । काले चने का आटा भी मिलता है । अलग अलग किस्म का अनाज है । उसे खाओ । साले टमाटर सौस को चाटते रहेंगे । उससे अच्छा तो ताजी पुदीने की चटनी खाओ । फ़िल्मी हीरो भी साले कैपसूल खा खाकर बाडी दिखाते रहते हैं । कहाँ महाभारत
वाला भीमसेन ( वाह भई वाह ) और कहाँ साले आजकल के नौजवान ( लानत है ) नौजवान नायकों को अपना आदर्श मानते हैं - थू थू थू । बातें और भी लिखने को दिल कर रहा है । लेकिन इससे लेख अधिक बडा हो जायेगा । बस तुम इस लेख के निचोड के रूप में जो 1 प्रश्न है । उसका उत्तर दे दो । क्युँ कि मेरा दिमाग खराब हो चुका है । अब अगली बार जब भी बन्टी के ताऊ का लडका जिस दिन मेरे को नजर आ गया ( उसने अब तक थोडा बहुत गाय या भैंस का ही दूध पीया होगा ) अब मैं उसे सांड का दूध पिलाऊँगा । पूरा 1 लीटर । एक साथ । बिल्कुल ताजा ।
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आपका बहुत बहुत धन्यवाद त्रिपाठी जी । आज आपके लेख में वाकई एक शिक्षक । एक भारतीय सभ्यता संस्कृति को जङों से जानने वाला सच्चा इंसान नजर आया । जो अपने देश के युवाओं के पिचके गाल और सूखी कमर देखकर व्यथित है । और उन्हें सही रास्ता दिखाने के लिये प्रयत्नशील भी है । मेरा एक उद्देश्य इसी गौरवशाली परम्परा को पुनर्जीवित करना भी है ।
कहना आवश्यक नहीं । मैं आपकी अधिकांश बातों से सहमत हूँ । गलत दिशा देने वाले के प्रति । भटकाने वाले के प्रति किसी सच्चे इंसान का आक्रोश स्वाभाविक है ।
मैं अपने सभी पाठकों को बताना चाहूँगा कि मैंने प्रयोग के लिये एक बार लगभग सभी चीजों को इस्तेमाल किया । परन्तु अपनाया नहीं । इसलिये मैंने आज तक कोक पेप्सी आदि नहीं पी ( वही इक्का दुक्का प्रयोग भावना छोङकर ) पिज्जा नूडल्स जैसी वाहियात चीजें कभी नहीं खायीं ।
बल्कि मैं तो पक्का ठेठ भारतीय हूँ । जो प्याज को भी सलाद के रूप में न काटकर सीधा सीधा छीलकर मुँह से ही काट काट कर खाता हूँ । आप एक बार ऐसे खाकर देखना । प्याज खाने का असली लाभ इसी तरह मिलता है । फ़ल भी काटने के बजाय सीधा मामाजी ( बन्दर ) की स्टायल में अधिक खाता हूँ ।
मैंने कभी चिङिया बल्ला क्रिकेट आदि नहीं खेला । बल्कि कबड्डी । पैंता ( लम्बी कूद ) गुल्ली डंडा । कंचा । नदी में तैरना आदि ही खेले हैं । गुल्ली डंडा का तो मैं उस्ताद था । हिट्टा ( डंडे की चोट ) पङते ही गुल्ली सनसनाती हुयी छक्का ही मारती थी ।
4 किलो तक पुदीना हमारे एक सीजन में खाया जाता है । जो मैं ज्यादातर ताजा दही में नमक मिर्च सूखा पुदीना डालकर नियमित दोनों समय खाता हूँ । जैसा कि प्रोफ़ेसर साहब ने बताया । गेंहूँ और चना मिलाकर पिसाये आटे की रोटी बहुत लाभदायक और स्वास्थयवर्धक भी है । जो लोग असली बाडी बनाना चाहते हैं । वो गेंहू जौ चना की मिक्स रोटी खायें । आपका ये प्रोटीन पाउडर कैप्सूल आदि
उसके सामने कुछ भी नहीं हैं । मोटा अनाज और मोटी रोटी ( हाथ की । जिसे बेलने के बजाय हथेली से बनाते हैं ) ये स्वस्थ शरीर का मूल मन्त्र हैं ।
जिम की मशीनों के बजाय हमारे कसरत के भारतीय तरीके - मुगदर घुमाना । डण्ड बैठक । कबड्डी । कुश्ती लङना आदि ही सर्वश्रेष्ठ हैं । जिम से दिखाऊ बाडी तो बन जाती है । पर अप्राकृतिक रूप से विकसित की गयीं मांसपेशियाँ अभ्यास छोङते ही और बुङापे में बहुत दुखदायी होती हैं । ये W W F के नकली पहलवान बाद में बहुत परेशान होकर मरते हैं । युद्ध कलाओं में चीन जापान आदि के मार्शल आर्ट । जिमनास्ट । कराटे । कुंगफ़ू । समुराई आदि भी बेहतरीन हैं ।
खैर..मैं मुख्य बात पर आता हूँ ।
- जो लोग कसरत करते हैं । उन्हें मौत के समय बहुत तकलीफ़ होती है । कसरत करने वालों की आत्मा मौत के समय शरीर से बहुत मुश्किल से निकलती है ।
*** इन अक्ल के अंधों से ये पूछो । भगवान श्रीकृष्ण के भाई । शेषनाग के अवतार । दाऊ भैया । बलराम जी क्या पागल थे । जो यही सब अभ्यास करते थे । बलदाऊ जी ही दुर्योधन और भीमसेन आदि के मल्ल विध्या के गुरु थे । स्वयँ श्रीकृष्ण भगवान ने कंस को मारने से पूर्व जाने माने पहलवानों को मल्ल युद्ध द्वारा मारा था । उस समय उनकी अवस्था 13 वर्ष से भी कम थी । पर वे पिज्जा नूडल्स की बजाय शुद्ध मलाई मक्खन दूध छाछ ही खाते थे । और स्वयँ यही सब कसरत करते थे ।
भगवान राम लक्ष्मण आदि चारों भाई भी कसरत करते थे । और यही अभ्यास करते थे । हनुमान । बलबान बाली । सुग्रीव यहाँ तक कि तमाम राक्षस रावण आदि भी इसको जरूरी मानते हुये करते थे ।
बहुत से लोगों की यह धारणा है कि - साधु तो बस बस राम राम ही जपते हैं । लेकिन मैं आपको बता दूँ कि - तमाम सन्त महात्मा योगी यती सन्यासी ये सभी कसरत आदि और तमाम प्रकार के योगाभ्यास ( शारीरिक स्वास्थय हेतु किये जाने वाले ) को बहुत आवश्यक मानते थे हैं ।
हमारे महाराज जी भी अवसर स्थान मिलने पर सुबह सुबह लम्बी दौङ लगाते हैं । और सबसे आगे रहते हैं ।
मृत्यु के समय तकलीफ़ होने का कसरत से कोई सम्बन्ध नहीं है । बल्कि कसरत से तो दिल दिमाग शुद्ध रहता है । इसलिये शुद्ध दिलोदिमाग से हमारे विचार आचरण भी शुद्ध रहते हैं । इसलिये अच्छे स्वास्थय और अच्छे विचारों वाला इंसान कुंठित जीवन नहीं जीता । क्योंकि वह अपने जीवन के कई पक्षों से संतुष्टि प्राप्त करता है । जबकि जीवन से असंतुष्ट इंसान तमाम तरह की हीन भावना के शिकार होकर बहुत से पापमय कार्यों में लिप्त होकर अपने संस्कारों को जटिल बना लेते हैं ।
वास्तव में यही जटिल संस्कार जटिल और दुखदायी मौत का कारण होते हैं । जरूरी नहीं हरेक इंसान दसवाँ द्वार जानने वाला ही हो । भले इंसानों का आचरण करने वाला । और बिना दीक्षा के भी सच्चे मन से प्रभु भक्ति करने वाला । इनको भी मृत्यु के समय कष्ट नहीं होता ।
असहायों । गरीव । जरूरतमन्द । और समय पर हरेक की यथासंभव सहायता करने वालों को भी मौत के समय
कष्ट नहीं होता । प्राणीनामा निकलने से लेकर... यमराज के सामने पहुँचने तक । जो जीवात्मा आनन्दपूर्वक खाती पीती हुयी शीतल छाँह युक्त मार्ग से यात्रा करती है । वे वही होते हैं । जिन्होंने वास्तविक जरूरतमन्द भूखों को भोजन और प्यासों को पानी पिलाया हो ।
यमदूतों के भी बहुत प्रकार हैं । भले इंसानों के लिये भले और बुरे इंसानों के लिये बुरे यमदूत आते हैं । अन्नदान ( भोजन कराना ) जो महादान है । उसके दानी को मृत्यु समय यमदूत झुककर प्रणाम करते हैं । बल्कि संक्षिप्त में यूँ समझिये कि - ऐसे दानी और सज्जनों की मृत्यु समय अगुवाई के लिये विष्णु आदि देवताओं के गण आते हैं ।
इसलिये मेरे भाईयो ! जागो । यह मैं अपने फ़ायदे के लिये नहीं आपके फ़ायदे के लिये ही कह रहा हूँ । श्री अमिताभ बच्चन जी की तरह किसी विनायक उर्फ़ धनायक । रानी मुखर्जी की तरह किसी शिरडी को दान मत करो । ये मोटी मोटी तोंदो में फ़ालतू ही जाता है । इसका आपको कोई लाभ नहीं मिलता । बन्द करो । ये मन्दिर पंडों पुजारी को दान । और आत्मदेव ( भूखे गरीबों ) को तृप्त करो । इससे 33 करोङ देवता एक बार में ही सहज तृप्त होते हैं ।
मैं यह भी नहीं कहता । इसके लिये स्पेशल भंडारा लंगर आदि चलाओ । बस आप बाजार आफ़िस आदि जाते समय जो भी असली भूखा भिखारी बच्चा औरत आदि नजर आये
। उसको वहीं कहीं से उपलब्ध पाँच दस रुपये की ठेल पर बिकने वाली पूङी कचौङी सब्जी आदि खिला दो । भूखे आवारा पशुओं को भी कुछ खिला सकते हैं । पूङी आदि न मिलने पर ब्रेड या अन्य कुछ भी जो मिले । लेकर खिला सकते हो । यही महादान है ।
मैं आपको एक छोटा प्रसंग बताता हूँ । एक आदमी ने जरूरत अनुसार दान का महत्व समझ लिया था । उसने देखा कि - बहुत से भिखारी या पागल टायप लोग बाल नहीं कटा पाते थे । उनके बालों में बेहद धूल और अन्य गन्दगी से लबालब रहते थे । जिससे वे बेहद परेशानी का अनुभव करते थे । पर क्या करें ।
तब उसने नाई को दस पाँच रुपये देकर उस्तरा से उनका घोटा करवाकर उन्हें नहाने को प्रेरित किया । आप सोचिये - उस दिन उस दीन को कितना सुख महसूस हुआ होगा । फ़िर उससे प्रेरित होकर कुछ नाई भी मुफ़्त में ही ऐसे जरूरतमन्दों पर यह उपकार करने लगे । आप खुद सोचिये । जब आपके बाल बङे हो जाते हैं । और गन्दे होने पर उनको एक दिन न धोया जाय । तो कितना अजीब सा लगता है । जो चीज आपको कष्ट पहुँचाती है । वैसा ही दूसरों का कष्ट अनुभव करते हुये उसका कष्ट दूर करना ही सच्चा परमार्थ और दान पुण्य कहा गया है । इसी का श्रेष्ठ फ़ल मिलता है । जयहिन्द । जय भारत ।
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