अब कहूँ कि न कहूँ ....... कसम सब्जी मन्डी की । आज मैं बहुत दिलचस्प बात पाठकों के लिये लेकर आया हूँ । लेकिन उससे पहले मैं राजीव के बचपन के शरारती किस्से पढकर बहुत खुश हुआ । मैं भी बचपन में बहुत शरारती था । राजीव राजा ! तुम अपने बचपन के किस्से ( शरारत भरे ) जरुर छापा करो ।
आज मैं भी आपको 1 बहुत रोचक बात सुनाता हूँ । मैं आपको शहरी और ग्रामीण औरतों का अलग अलग व्यवहार बताता हूँ ( अपनी कल्पना के आधार पर )
तो लीजिये पेश ए खिदमत है । जब कोई शहरी औरत अपने छोटे बच्चे को स्कूल जाने के लिये उठाती है । तो इस तरह कहती है - उठो बेटा ! कितनी देर हो रही है । देखो सूरज अंकल भी निकल आये हैं । उठो बेटा अब और कितनी देर सोना है । देखो रिक्शा वाले अंकल भी आते ही होगे । अभी उठकर तुमने सू सू भी करना है । फ़िर नहाना है । ब्रेकफ़ास्ट भी करना है । उठो न अब देर मत करो ।
फ़िर तभी बच्चा उठता है । और कहता है - ओह हो.. आ आ आ मम्मी आज तो सन्डे है ।
अब लीजिये ग्रामीण औरत अपने छोटे बच्चे को स्कूल जाने के लिये कैसे उठाती है - लाश की तरह मरा पडा है । स्कूल कौन तेरा बाप जायेगा । सारा दिन मैं कुतिया की तरह भौकती रहती हूँ कि 4 अक्षर पढ ले । नहीं तो अपने बाप की तरह काला अक्षर भैंस बराबर रह जायेगा ।
इतना कहते कहते वो अपने सोये हुए लडके को 1 चान्टा लगा देती है ( नींद से जगाने के लिये )
इसी तरह अब मैं आपको शहरी और ग्रामीण बच्चों का अलग अलग व्यवहार बताता हूँ ( अपनी कल्पना के आधार पर )
अगर किसी शहरी बच्चे ने अपने घर में चुगली करनी हो । तो वो इस तरह बात करता है - दादी माँ दादी माँ क्या आप एकट्रेस है ?
तब दादी हैरानी से कहती है - नहीं बेटा तुम्हें किसने कहा ?
तब बच्चा बोलता है - कल रात मम्मी पापा को कह रही थी कि अब घर में बुढिया आ गयी है । अब तो रोज नये नये डरामे हुआ करेंगे ।
अब अगर किसी ग्रामीण बच्चे ने अपने घर में चुगली लगानी हो । तो वो इस तरह बात करता है - दादी कल रात अम्मा बापू को बोल रही थी कि बुढिया को समझाना है । तो समझा लो । वर्ना किसी दिन पकड कर उसे मसाले की तरह पीस दूँगी ।
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प्रस्तुतकर्ता - श्री विनोद त्रिपाठी जी । प्रोफ़ेसर । भोपाल । मध्य प्रदेश । ई मेल से । त्रिपाठी जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
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