संत संग मिलि कीरतनु गाइआ निहचल वसिआ जाई ।
पारबृह्म से ऊपर सूक्ष्म से सूक्ष्म देश हैं । वहाँ सन्तों की मंडलियाँ हैं । वहाँ पर मीठी मीठी राग रागनियाँ हो रही हैं । मौलाना रूम साहब कहते हैं -
नग्महा नेक शुनीदम वा निदाहा वाफ़र । कावा व बुतखाना बनिज्दम शुद हर दो काफ़र ।
उन अन्दर होते नगमों राग रागिनियों को सुनने से इतनी खुशी होती है कि बुतखाना और कावा दोनों बुरे मालूम होते है ।
आगे कहते हैं -
औलिया रा दर दरू हम नग्महास्त । आशकाँ रा जाँ हयाते बे बहास्त ।
औलिया अल्लाह के अन्तर में राग रागिनियाँ हैं । जिसको सुनने से रूह पर जन्म जन्म से पङे परदे हट जाते हैं । यह आशिकों ( इबादत प्रेमी ) की सच्ची दौलत है । इसे ही असल कीर्तन कहते हैं । मन्दिरों में जो आरती होती है । वह तो वास्तव में झूठी है । वह तो घन्टे दो घन्टे बाद बन्द ही हो जाती है ।
इसी तरह कोई रागी भी घन्टे दो घन्टे राग करते हैं । आखिर गला बन्द हो जाता है । परन्तु मनुष्य के अन्तर में जो राग हो रहे हैं । वे कभी बन्द नहीं होते । उसे कीर्तन भी कहते हैं । उसी को ऋषि मुनि आकाशवाणी कहते हैं । गुरु साहब गुरुवाणी कहते हैं । मुसलमान बांगे आसमानी और कलाम ए इलाही कहते हैं । उसे कामिल फ़कीर तथा और और भाग्यशाली लोग ही सुनते हैं ।
उस कीर्तन उस रूह राग को सुनने से जन्म जन्म की खबर हो जाती है । कीर्तन तो कीर्तन ही है । पर जो पारबृह्म का कीर्तन है । वह बङा अनोखा है । अनुपम है । उसे ही प्राप्त करने के लिये गुरु अमरदास साहिब ने 12 साल पानी ढोया था ।
उस नाम की तारीफ़ में गुरु अंगद साहब कहते हैं -
अखी बाझहु बेखणा । बिणु कंता सुतणा ।
वह नाम इन आँखों से नहीं देखा जा सकता । इन कानों से नहीं सुना जा सकता ।
पैरा बाझहु चलणा । बिणु हथा करणा ।
हमें उस देश या लोक में जाना है । तो वहाँ ये शरीर नहीं जाता । यह तो बस मिट्टी ही है । जब वहाँ ये शरीर नहीं जाता । तो ये पैर भी वहाँ नहीं जाते । वहाँ काम करना है । मगर ये हाथ भी वहाँ काम नहीं करते । वह सब बात अलग ही है ।
जीभै बाझहु बोलणा । इउ जीवत मरणा ।
वहाँ यह जबान नहीं है । वहाँ कोई जबान नहीं है । जब जबान ही नहीं है । तो वहाँ पर कोई वेद शास्त्र गृंथ पुराण गीता कुरआन गृंथ साहिब बाइबिल आदि पोथी पुस्तक भी नहीं है ।
नानक हुकमु पछाणि कै । तौ खसमै मिलणा ।
जब तक यह मनुष्य नाम सुमरन के द्वारा जीते जी मरना नहीं सीखता । इसे परमात्मा नहीं मिल सकता । गुरु साहिब तो पुकार पुकार कर समझा रहे हैं । परन्तु हम ही विचार नहीं करते ।
नरक निवारै दुख हरै । तूटहि अनिक कलेस । मीचु हुटै जम ते छुटै । हरि कीरतन परवेस ।
यह बात नानक साहब की है । बताओ कोई अन्दर जाता है । कोई नहीं । यों तो हम सभी शेखी मारते हैं कि - गुरु नानक साहब हमारे हैं । हमारे हैं । मगर असल में जो कमाई करेगा । नानक साहब उसके ही हैं ।
पूरै गुरि पूरी मति दीनी । हरि बिनु आन न भाई ।
पूरा गुरु ही पूरी मति पूरा ग्यान दे सकते हैं कि सब नाते भूलकर एक परमेश्वर से नाता जोङ ले । गुरु का नाता रख ले । अन्त में वही तेरे काम आयेगा । जिस तरह स्त्रियाँ कहती हैं कि हमने सारे गहने तुङवाकर एक ही हंसुली गढवा ली ।
गुरु अर्जुन साहिब कहते हैं - गुरु रामदास जी ने मुझे एक ही मति दी है कि सिवाय गुरु के और सब नातों को झूठा ही जान ।
नामु निधानु पाइआ बङभागी । नानक नरकि न जाई ।
वे बहुत ऊँचे भाग्य वाले हैं । जिन्हें ये दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर सदगुरु से ये निर्वाणी सत्यनाम मिल गया है । नहीं तो करोंङो मजहब नाम के बिना खाली भटक रहे हैं । अतः मेरे बङे ऊँचे भाग्य हैं । जो मुझे सतगुरु मिले । और ये निर्वाणी नाम दान मिला । अब नरक में कौन जायेगा ? कोई नहीं । सवाल ही नहीं होता । जब सत्यनाम मिल गया । फ़िर नरक । कदापि नहीं ।
गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस में कहते हैं -
बङे भाग मानुष तन पावा । सुर दुर्लभ सद गृंथन गावा ।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा । जेहि न पाय परलोक संवारा ।
- देवताओं को भी दुर्लभ ये मनुष्य शरीर तुम्हें बङे भाग्य से मिला है । ये साधनों का धाम है । यानी इसके द्वारा तुम आगे के लिये बहुत ही अच्छी व्यवस्था कर सकते हो । और इसी में मोक्ष का द्वार ( दसवाँ द्वार ) भी है । फ़िर भी तुम अपना परलोक न संवार पाओ । फ़िर कोई क्या करे । और क्या कहे ।
गुरु नानक साहब कहते हैं -
नानक जिन्ह कउ सतिगुरु मिलिआ । तिन्ह का लेखा निबङिआ ।
वे इंसान भाग्यशाली हैं । जिन्हें इस मनुष्य जन्म में सदगुरु मिल जाते हैं । क्योंकि फ़िर उनका आवागमन कराने वाला जन्म मरण का लेखा जोखा समाप्त ही हो जाता है । और वे मुक्त हो जाते हैं । अपने आनन्ददायी घर सचखण्ड जाने के लिये ।
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