28 जुलाई 2011

बल्ले बल्ले मौजा ही मौजा - त्रिपाठी जी इज ग्रेट

बल्ले बल्ले भापा जी बल्ले बल्ले । क्या हाल है सर जी । मौजा ही मौजा । 
सर जी ! हम तो मेहनत मजदूरी करके रोटी खाने वाले आदमी हैं । लेकिन आपके ब्लाग से हमें मुहब्बत हो गयी है । मौका लगते ही आपके ब्लाग पर आ ही जाते हैं । मैं पिछले कुछ दिन से आपका ब्लाग पढ पढ कर हँस हँस कर लोटपोट हो रहा हूँ । विनोद त्रिपाठी जी के हास्य लेख पढ कर मेरे तो हँस हँस कर पाद ही निकल गये । इतनी नेचरल कोमेडी मैंने पहली बार पढी है । वाकई सर जी मजा आ गया । उनका दिल्ली दर्शन तो बहुत बढिया था । मैं तो कभी कभी अकेला बैठा भी हँसने लग जाता हूँ । उनके हास्य लेखों की कोई बात याद करके । पता नहीं बाकी पाठक कितना हँसते होंगे । 
मुझे आप ये बताओ कि विनोद त्रिपाठी जी आपके लगते क्या हैं ? मेरा मतलब क्या रिश्तेदारी है आपकी उनसे । वो आपके चाचा । मामा । फ़ूफ़ा । मौसा आदि में से क्या है । क्युँ कि आपके ब्लाग पर बार बार पढने को मिलता है कि वो आपके रिश्तेदार है । आपके अंकल है ।
मैं खुशमिजाज आदमी हूँ । इसलिये त्रिपाठी जी जैसे दिलखुश लोगों से मिलकर बहुत खुश होता हूँ । आप त्रिपाठी जी के बारे में कुछ बताईये । आप इन जैसे दिलखुश बन्दे को छुपा के मत रखो । इन पर तो स्पेशल लेख लिखना चाहिये । पर त्रिपाठी जी भी छुपे रुस्तम लगते हैं । कई बार उनकी बातों में हँसी के साथ कोई छिपी हुई गहराई होती है । त्रिपाठी जी इज ग्रेट । आपको पता ही है कि मैंने इस बार दोबारा इंडिया आना है । आप मुझे त्रिपाठी जी से जरुर मिलवाना 

। मैं आपके साथ और आपके अंकल त्रिपाठी जी के साथ 1 यादगार फोटो खींचवाकर आस्ट्रेलिया लेकर जाऊँगा । क्युँ कि पता नहीं कि फ़िर कब वापिस आऊँगा । ठीक है सर जी ! अब जल्द ही मिलने की उम्मीद है । फ़िर मैं, आप और त्रिपाठी जी भांगडा करेंगे । बल्ले बल्ले । बस अब आप अपने ब्लाग में अपने अंकल त्रिपाठी जी से मेरी दोस्ती करवा दो । इस लेख के जरिये । बल्ले बल्ले ।

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जैसा कि मैंने श्री त्रिपाठी जी के ही एक लेख में अपना वक्तव्य जोङा था कि - शुरू में जब मैंने त्रिपाठी जी को छापा था । तो मुझे हल्की सी आलोचना मेल और फ़ोन द्वारा हुयी कि - आपका ब्लाग धार्मिक प्रतिष्ठा वाला है । इसकी इमेज लोगों के दिलों में सम्मान वाली हैं । अतः ऐसे लेख उचित समझें । तो न छापा करें । मैंने उन्हें तो खैर सही उत्तर दे ही दिया ।
पर मैं लाला लाजपत राय नगर - भोपाल के निवासी । हिन्दी के प्रोफ़ेसर । श्री विनोद त्रिपाठी जी की अहमियत से भलीभांति वाकिफ़ था । हालांकि ड्रिंक के शौकीन त्रिपाठी जी ने मुझे दो तीन बार गालियों के हार भी भेंट किये । और शुरूआत में इनके मेल खालिस हिंसक और नानवेज टायप के होते हैं । जिन्हें 30% एडिट करना मजबूरी ही थी ।
साले..बहन..द..मादर..द इस टायप के तङका आयटम उनके लेख में यथास्थान अवश्य होते थे । लेकिन मैं इनको 


धैर्य से छापता गया । यहाँ मैं आपको रहस्य की एक बात और भी बता दूँ । ब्लाग stats में त्रिपाठी जी के लेख पढने वालों की रेटिंग धुँआधार थी । और इस लेख को लिखते समय आज दोपहर में मुझे 6 के लगभग मेल आये हैं । उनमें भी त्रिपाठी जी का जिक्र है ।
तो आखिरकार मेरी सोच सही साबित हुयी । और त्रिपाठी जी एक जिम्मेदार नागरिक का सामाजिक कर्तव्य समझते हुये अपना हरसंभव योगदान करने लगें । उनके लेखों में विषयों की विभिन्नता । और अश्लीलता के स्थान पर चुटीलापन सामाजिक व्यवस्था पर व्यंग्य आदि साफ़ नजर आने लगा
मैंने श्री त्रिपाठी जी का अब तक सिर्फ़ 1 प्रश्नात्मक मेल नहीं छापा । जिसमें स्वाभावनुसार त्रिपाठी जी ने एक सुन्दर भरे अंगों वाली सुन्दर पत्नी की प्राप्ति ( अगले जन्म में ) और उसके साथ सेक्स से भरपूर आनन्दमय जीवन कैसे प्राप्त हो । इसके लिये क्या साधना होती है ? ये पूछा था ।
ये प्रश्न एक उत्तेजक पोर्न स्टोरी के समान था । और इसको एडिट करने की भी गुंजाईश नहीं थी ।
खैर..इस लेख को लिखने तक ( अन्य मेल के भी आधार पर ) त्रिपाठी जी को इन ब्लाग पर लेखक का दर्जा मिल ही गया है । और स्वयं त्रिपाठी जी भी कुछ न कुछ आपके लिये लिखते ही रहते हैं । अब और भी बेहतर लिखने की कोशिश करेंगें
जहाँ तक मेरे रिश्तेदार होने की बात है । इसका बहुत सटीक उत्तर कामिनी जी ने अभी नये मेल में दिया है - अब आजकल जो आपके ब्लाग का हाल है । उसे देखते हुये लगता है कि हम किसी आश्रम में किसी साधु की शादी में आये हुये हैं । आपका ब्लाग अब ब्लाग न रहकर 1 बहुत बडा परिवार

हो गया है । जहाँ हर किस्म का पाठक अपनी अपनी जिग्यासा बडे अपनत्व से आपके पास ला रहा है । कभी कभी ऐसा लगता है कि हम सब ( आपके ब्लाग पाठक ) आपस में रिश्तेदार ही हैं । बस यूँ समझिये कि आप ( राजीव बाबा ) लाबी में बैठे हैं । कोई मेम्बर आपको ड्राइंग रूम से बैठा सवाल कर रहा है । कोई रसोई में ही खडा कुछ पूछ रहा है । कोई अपने बेडरूम में ही लेटा हुआ आपसे बात कर रहा है । कोई काम पर जाते हुये आपको बाय बाय कर रहा है । कोई काम से वापिस आते हुये आपका हालचाल पूछ रहा है । कोई शायद बाथरूम में बैठा भी आपसे बात कर रहा होगा ( मजाक कर रही हूँ )
आपके अंकल ( रिश्तेदार) श्री विनोद त्रिपाठी जी तो हर बार अपने लेख में धोती को फ़ाडकर रुमाल बना देते हैं ( सारी मजाक कर रही हूँ । इसलिये उनके स्टायल में बोल गयी )
****** सलिये आप सब ही मेरे आत्मिक रिश्तेदार हो । जैसे आप सब हैं । वैसे ही त्रिपाठी जी भी हैं । यानी सांसारिक सम्बन्धों के रूप में मेरी उनसे कोई रिश्तेदारी नहीं हैं ।
अन्त में - मैं त्रिपाठी जी से आग्रह करूँगा कि वे स्वयँ अपने बारे में पाठकों को रोचक मजाकिया अन्दाज में बतायें । जिसके कि उनके ( त्रिपाठी जी के ) पाठक दीवाने हैं

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