17 जुलाई 2011

भगवान इनका भला करे जिसका कोई चांस नहीं है

बुल्ला । बुल्ला । बुल्ला... खत लिखे हैं । खून से स्याही मत समझना । शरीर की मौत को । हमेशा का बिछोडा न समझना ।
राजीव राजा ! तुमने कल मेरे लिखे राशन पर भाशन को छाप कर मजा दिला दिया । जीयो राजा जीयो । अब शायद फ़िर से बन्टी या बन्टी जैसे नौजवान लाला लाजपत राय के नाम पर बने सरकारी पार्कों में दौड लगानी शुरु कर दें । कल की तरह आज मैं फ़िर फ़ालतू का हँसी मजाक न करते हुये । कुछ जरुरी बात ही लेकर

आया हूँ । आज पूछ्ना कुछ नहीं है । सिर्फ़ बताना ही है । राजा ! तुम अपनी तरफ़ से बेशक कोई सलाह पाठकों को दे सकते हो ।
जिन्दगी में कई तरह के लोग मिलते हैं । लेकिन आज मैं तुम्हें अपने निजी अनुभव के आधार पर 2 आदमियों की बात सुनाना चाहता हूँ । राजीव राजा और पाठको ! इस बार मैं 1% भी कल्पना का सहारा नहीं ले रहा । आज मैं जो लिखने जा रहा हूँ । ये

मेरा निजी 100%  सच्चा अनुभव है । ये जो 2 आदमी हैं । 1 तो अपने आपको बहुत बडा आस्तिक समझता है । और दूसरा अपने आपको बहुत बडा नास्तिक और तर्कशील समझता है । पहले किसकी बात करे । आस्तिक की । या नास्तिक की । चलो फ़िर फ़टा पोस्टर और निकला हीरो । पहले आस्तिक की ही बात करते हैं ।
राजीव राजा ! तुम्हारा ब्लाग जनता जनार्दन के लिये है । इसलिये मैं किसी की प्राईवेसी भंग नही करुँगा । इसलिये मुझे जो बहुत बडा आस्तिक मिला था । मैं उसका नाम या पता न बताते हुये

सीधा सीधा काम की ही बात करता हूँ ।
मैं पिछ्ले कुछ साल से 1 ऐसे आदमी को जानता हूँ । जो दुनिया की हर चीज को मानता है । मेरा मतलब हर धर्म । मजहब । सम्प्रदाय । मन्डली । मन्दिर । मस्जिद । तीर्थ । पन्डित । ज्योतिष । तान्त्रिक । सपेरे और पता नहीं क्या क्या । क्या विश्वास और क्या अंधविश्वास । उसने सब गुड-गोबर किया हुआ है । लेकिन उसने अभी तक कोई भी साधना नहीं की । और

न ही आज तक कभी किसी को अपना गुरु बनाया । न द्वैत वाले बाबा को । और न ही अद्वैत वाले बाबा को ।
मैंने 1 दिन वैसे ही पूछ लिया कि - आप पिछले 20 या 25 साल से अलग अलग किस्म के बाबाओं के पास जाते हो । अलग अलग जगहों पर जाते हो । आपको आज तक इनमें से सबसे सही या यूँ कह लीजिये कि पूर्ण बाबा या पूरा गुरु कौन नजर आया ?
तो वो आस्तिक जी बोले - सभी पूर्ण हैं । सभी पूर्ण हैं । सभी उसी का रूप है ।

मैं सुनकर चुप कर गया । लेकिन मैं ये बात सोचता रहा कि - ये कैसे हो सकता है ? सभी में फ़र्क है । जरुर है ।
मैं हैरान था कि इस आदमी को अब तक 20 - 25 साल हो गये । धर्म का ढोंग करते हुये । क्या इसे अधूरे बाबा और पूरे सन्त में क्या फ़र्क है । इसकी पहचान नहीं हुई ?
खैर..अब बात आयी नास्तिक और तर्कशील मेंढक की । ये जो नास्तिक और तर्कशील है । ये मेरे पडोस में रहता है । ये

किसी स्कूल में पी टी मास्टर है । ये कहते हैं कि - न कोई पूरा है । और न कोई अधूरा है । सब एक जैसे ही है ।
मैं तुमको सच्ची उदाहरण भी दे देता हूँ । 1 बार मैं दोपहर को लेटा लेटा टी वी देख रहा था । वो आदमी ( नास्तिक ) मेरे पास बैठा था । कोई फ़िल्म आ रही थी । जब फ़िल्म के बीच में मसहूरी आयी । तो मैंने चैनल चेंज कर दिया । उस समय अचानक किसी धार्मिक चैनल पर राधा-स्वामियों का कोई प्रोग्राम चल रहा था । वो प्रोग्राम मैंने पहले भी देखा हुआ था ( पुराने बाबा चरन सिह का प्रोग्राम था )
मैंने जानबूझ कर वो वाला चैनल ही लगा रहने दिया । मुझे उम्मीद थी कि ये प्रोग्राम शायद इसको अच्छा लगे (

वो नास्तिक आदमी हिन्दू है । लेकिन सिख गेटअप में रहता है । इसका राज भी बता देता हूँ ) वो प्रोग्राम सिर्फ़ सत्यनाम के चर्चा पर था । गुरु ग्रन्थ साहिब की वाणी की व्याख्या की जा रही थी ।
लेकिन उस आदमी के चेहरे का रंग ही उड गया । जैसे एकदम शोक में आ गया हो । चेहरे पर नफ़रत के भाव आ गये ।
मैंने उसे कहा कि - ये बाबा सही बात कहते हैं । जो गुरु नानक जी ने कही थी । ये भी वो वाली बात ही कहते हैं ।
इतने में ही जैसे उसे किसी कीडे ने काट लिया हो । वो कहने लगा - ऐसे कितने चैनल आते हैं । केबल टी वी पर ?
मैंने कहा - 4 आते हैं ।
उसने फ़िर कहा - उन 4 चैनल्स पर जितने किस्म के भी धार्मिक प्रोग्राम आते हैं । आप सब देख लेना । सब 1 ही बात बोलते हैं । इन लोगों के पास कहने को कुछ नहीं । सब 1 ही बात बोलते हैं ।
उस समय मेरे मन में जो उसके प्रति भाव आया । वो मैं तुमको बताऊँगा नही । क्युँ कि तुम कहोगे - अंकल जी ऐसी बात ब्लाग पर छापनी उचित नहीं । क्युँ कि ब्लाग को महिलायें भी पढती हैं ।
फ़िर वो आदमी किसी काम का बहाना बनाकर वहाँ से खिसक गया । असल में वो खिसका इसलिये था । क्युँ जो उसे धार्मिक बातें सुननी न पडे । लेकिन मैं उस दिन गुस्से से भरा रहा । लेकिन बोला कुछ नहीं । सोचता रहा कि वो हराम का ढक्कन ! बिल्कुल गलत बात बोलकर गया है ।

कोई उससे पूछे कि - 4 धार्मिक चैनल्स पर कई किस्म के प्रोग्राम आते हैं । कोई सत्यनाम प्रचार का । कोई द्वैत साधना पर । कोई शारीरिक योगा का । कोई ज्योतिष पर । कोई शिव योग पर । कोई बृह्मकुमारियों का । कोई पन्डा पुजारियों का । कोई आयुर्वेद पर । कभी भागवत कथा । कोई कुछ । कोई कुछ......बस अपने आप समझ लो । कई प्रकार के प्रोग्राम आते हैं ।
अब सबकी बात बिलकुल अलग अलग है । अलग अलग होनी भी चाहिये । सबकी अपनी अपनी सीमा रेखा है । लेकिन उस असली .... की औलाद ने ये कैसे कह दिया कि - सब 1 ही बात कहते हैं ।
दूसरी सच्ची उदाहरण भी सुन लो । 1 बार सुबह सुबह मैं चाय पीते हुए टी वी पर भगवत गीता की व्याख्या सुन रहा था । तब अचानक वो नास्तिक फ़िर आ गया । शान से टहलता हुआ आ रहा

था ( वैसे उसका कद 5 फ़ीट 2 इंच है सिर्फ़ )
अचानक टी वी पर निगाह पडते ही कि कोई धार्मिक प्रोग्राम आ रहा है । 1 सैकिन्ड में पीठ करके घूम गया । और बोला - त्रिपाठी जी ! आईये बाहर बैठते हैं । मैं तो आपके पास चाय पीने आया था ।
मैंने टी वी बन्द किया । और अपनी चाय उठाकर बाहर बरामदे की तरफ़ चल पडा । अब राजीव राजा ! यहाँ जो नोट करने वाली बात है । वो ये है कि उस आदमी ने

सिर्फ़ टी वी पर सुबह सुबह भगवे रंग के कपडे वाले आदमी को देखते ही वापिस पीछे को दौड लगा ली ।
उसकी नास्तिकता आधारहीन है । बिना सुने कि वो क्या बोल रहा है ? फ़ैसला कर लिया कि - सब धार्मिक बातों को एक समान बोलकर गलत का लेबल लगा दिया ।
1 खास बात और उसने कहा था कि - सब 1 ही बात करते हैं । यहाँ उसका इशारा सिर्फ़ केबल टी वी के 4 चैनल नहीं थे । उसका इशारा पूरे विश्व की आस्तिकता पर था । मैं उससे पूछूँ - बेटा ! क्या तूने ये 4 चैनल के सारे प्रोग्राम देखे हैं ।

अगर देखे होते । और अगर 2 पैसे की भी अक्ल होती । तो तू ये कभी न कहता कि - सब 1 ही बात बोलते हैं ।
देखा राजीव राजा ! आजकल के विद्वान । तर्कशील । आगे की सोच रखने वाले । प्रेक्टिकल और बुद्धिजीवी लोग । जो बिना सुने । बिना पढे । बिना सोचे । बिना कोई खोज या रिसर्च किये बडे बडे फ़ैसले हाँ या ना में कर डालते है ।
खैर..भगवान इनका भला करे । जिसका कोई चांस नहीं है ।
राजीव राजा ! उसके घर में केबल टी वी तक नहीं है । उसके बच्चे पडोसी के घर टी

वी देखते हैं । मेरे पास वो फ़्री टाइम में पुरानी फ़िल्में ( जो ZEE क्लासिक  चैनल पर आती हैं ) देखने आता है । राज कपूर । मनोज कुमार । हेमा मालिनी आदि की । इनको तो इतने चाव से देखता है कि ऐसा लगता है कि इन्हें देखता हुआ कहीं खो गया है ( लेकिन मेरे को 1 ही फ़िल्म अच्छी लगती है । जिसका नाम था " गुंडा " जिसमें हीरो था । मिथुन दादा )  साला कुत्ते का....!  हेमा मालिनी और जीनत अमान का तो पुराना भक्त है । ( लेकिन मैं तो सिर्फ़ माधुरी दीक्षित का ही फ़ैन हूँ ) अब उसके हिन्दू होने के बावजूद सरदार गेटअप धारण करने का राज भी सुन लो । वो आदमी हिन्दू है । हिन्दू ब्राह्मण । उसने किसी सेकिंड हैंड मुसलमान

औरत से लव मैरिज की हुई है । वो भी किसी स्कूल में मास्टरनी है । लेकिन वो औरत 5 फ़ीट 4 इंच की है । अपने पति से उमर में 2 या 3 साल बडी भी है । शादी के बाद हिन्दू ने हिन्दू धर्म छोड दिया । अपने नाम के पीछे कुमार हटाकर सिंह लिखना शुरु कर दिया । साथ में पगडी भी बाँधने लगा । मास्टरनी ने इस्लाम छोड कर सरदारनी का गेटअप बना लिया । साथ में अपना इस्लामी नाम ( जो बचपन का था ) बदल कर परवीन बाबी ( असली नाम मैंने जानबूझ कर नहीं लिखा ) रख लिया । उनके 2 बेटिया हैं । उनके नाम उन्होंने ईसाइयो वाले रखे है ।

देखा राजीव राजा ! पति हिन्दू । पत्नी मुस्लिम । मजहब सिख । बच्चे ईसाई । ये हुई प्रेक्टिकल एकता । हाँ एक बात और । वो महात्मा गाँधी और जवाहर लाल नेहरू को अपना आदर्श मानता है । मुझे वो अक्सर कहता है कि - त्रिपाठी जी ! गाँधी जी प्रेक्टिकल आदमी थे । आप गाँधी जी और जवाहर लाल नेहरू जी की बदौलत ही आजाद देश में बैठे हो ।
मैंने मन में सोचा - बेटे तू 5 फ़ीट 2 इंच है । और मैं पूरा 6 फ़ीट । ऊपर से मैं आधा पागल भी हूँ । परवीन बाबी से मुझे लुच्चा इश्क अगर न होता । तो तेरी तो मैं ........." ( वैसे उसकी पत्नी की जवानी भी ढलती ही जा रही है ।

वैसे तुमने भी किसी पुराने 2010 के लेख में लिखा था कि - औरत बिना भरपूर सम्भोग के जल्दी बूढी हो जाती है ) इसलिये मैं रोज कुँआ खोदता हूँ । और रोज पानी पीता हूँ । बातें वो भी बडी बडी आदर्शवाद की करता है । वो कामरेड थ्योरी के पक्ष में है । उसके हिसाब से समाज में घोडे और गधे का बराबर सम्मान होना चाहिये । कलेक्टर और चपरासी को 1 ही टेबल पर साथ साथ बैठकर नाश्ता करना चाहिये । बातें बहुत बडी बडी करता है । आदर्शवाद की । लेख अधिक लम्बा न हो जाये । इसलिये अब उस चूहे के बारे में और क्या लिखना । अगली बार फ़िर अपने सच्चे और निजी अनुभवों के साथ फ़िर आऊँगा ।
तुम्हारा अंकल । विनोद त्रिपाठी । चोली के पीछे क्या है । चोली के.... क्या है । चोली के नीचे क्या है । चोली के अन्दर क्या है । ... राम जी .. हाय .. कु कु कु कु कु कु कु कु .....( जाते जाते सुनो । गुंडा फ़िल्म का मशहूर डाय़लाग । ये डायलाग फ़िल्म में मेन विलेन बार बार बोलता रहता है -मेरा नाम है बुल्ला । रखता हूँ ....) तुम सब लोग ये फ़िल्म देख ही लो ।

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प्रस्तुतकर्ता - श्री विनोद त्रिपाठी जी । प्रोफ़ेसर । भोपाल । मध्य प्रदेश । ई मेल से । त्रिपाठी जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
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प्रोफ़ेसर त्रिपाठी जी के बारे में - त्रिपाठी जी का फ़ुल आरीजनल मैटर ठीक उसी तरह होता है । जैसे किसी घोर शाकाहारी प्याज लहसुन भी न खाने वाले इंसान के सामने तन्दूरी मुर्गा रख दिया जाय । जैसे कोई बकरा सामने ही हलाल करके पकाया जाय । इनके प्योर नान वेज लेख को मैं काफ़ी हद तक यथासंभव सामान्य बनाते हुये तब पोस्ट करता हूँ । ( तब इतना बचता है )
कई बार मेरे पाठकों ने फ़ोन और मेल पर यह भी कहा - आप त्रिपाठी जी को क्यों छापते हो ?

आप लोग जानते ही हो । हर बात पर मेरा दृष्टिकोण और नजरिया थोङा सामान्य से अलग होता है ।
-हमारे समाज में हर तरह के लोग हैं । जो प्रेम की ग्यान की साधुता की भाषा नहीं समझते । इसलिये मेरे दृष्टिकोण से जहाँ हमारे युवा साथी सुभाष रजत जी आदि मंडली का अपना महत्व है । जहाँ सुश्री रूप कौर जी जैसी सभ्रांत महिलाओं का अपने वर्ग में महत्व है । जहाँ सुशील कुमार कामिनी जी रोमा जी आदि आफ़िस में कार्य करने वालों का अपना महत्व है । जहाँ सभी अन्य सहयोगियों का अपना महत्व है ।

उसी तरह इन " कुत्ते की दुम " ( जो बारह साल नली में रहने के बाद भी टेङी ही निकली ) टायप आदमियों को सही रास्ता दिखाने हेतु । तथा और लोगों को उनके द्वारा भटकाने से बचाने हेतु " श्री त्रिपाठी जी " जैसे लोगों का ( एक दृष्टि से ) आप लोगों से भी अधिक महत्व है ।
क्योंकि अक्सर आपने अपने मेल्स में खुद स्वीकार किया है कि - आप लोग ऐसे हठी लोगों के सामने से अलग ही हो जाते हो कि वो जाने । उसका काम जाने ।
पर ऐसा कहने से बात नहीं बनती । ऐसे मूढ लोग ( इस मेल में बताये गये ) भी समाज का हिस्सा होते है । और वे समाज को फ़िजा को बिगाङने की पूरी पूरी कोशिश करते हैं ।

मैंने अक्सर देखा है । और आप सबने भी कई बार देखा होगा कि - अपने को जेंटलमेन मानने वाले । समाज में खुद का उच्च स्थान मानने वाले । जब कभी अपनी बहन बेटी के साथ बाजार आदि जाते हैं । और अराजक तत्व टायप लोग जब उन महिलाओं पर अश्लील फ़ब्तियाँ कसते हैं । तब वे अनदेखा करके या सिर झुकाये हुये गुजर जाते हैं । वास्तव में ( मेरी निगाह में ) इनका खून पानी हो गया है । ऐसे ही लोगों ने इन टपोरियों को बङाबा दिया है ।
जबकि इसी स्थान पर कोई गर्म खून वाला । कोई टपोरियों का मिजाज समझने वाला । उसके 32 दाँतों में से 2 तो कम कर ही देता है ।
खुद मेरे सामने ऐसी स्थिति कई बार हुयी । जब धार्मिक वार्ता में कुतर्क करने वाले मुझको कमजोर समझते हुये असभ्य भाषा पर उतर आये । तब मैंने एक संवाद बोला - निरा बाबा ही तो नहीं समझता तू । मैं तेरी भाषा भी बोलना जानता हूँ । ( खग जाने खग ही की भाषा )
बस इतने से ही उसको आयडिया हो गया । पंगा गलत जगह हो गया । बाबा डबल रोल वाला है । और वह बेसुरा अकङ ढीली कर शान्त हो जाता ।
इसलिये आप अनुमान लगा सकते हैं । श्री विनोद त्रिपाठी जी जैसे लोगों का भी अपना खासा महत्व है । आम सबको अच्छा लगता है । पर बबूल का भी अपना अलग महत्व है । क्योंकि काँटे से ही काँटा निकाला जाता है । लोहा ही लोहे को काटता है ।
इसी मेल के पात्र के अनुसार - त्रिपाठी जी ! गाँधी जी प्रेक्टिकल आदमी थे । आप गाँधी जी और जवाहर लाल नेहरू जी की बदौलत ही आजाद देश में बैठे हो ।
उस भले आदमी से ये पूछो - चन्द्रशेखर आजाद । भगत सिंह जी । लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल । झाँसी की रानी आदि तमाम महान शहीदों ने फ़िर क्या किया था ? मेरे दृष्टिकोण से तो देश अभी भी गुलाम ही है । और इस गुलामी का पूरा श्रेय इन्हीं दोनों हस्तियों को है । जिसका उस ग्यानी ने जिक्र किया था । ये 2 भले आदमी उन महान क्रांतिकारियों के काम में फ़ालतू की टांग न अङाते । तो आजादी का स्वरूप ही कुछ और होता ।
उदाहरण - अमेरिका पाकिस्तान के अन्दर घुसकर लादेन को पकङकर मार देता है । सद्दाम को उसके देश में ही घुसकर पकङता है । और नेस्तनाबूद करता है । इस तरह जङ ही काट देता है । और आजाद भारत महान भारत अपने हिस्से के कश्मीर पर भी सिर्फ़ शान्ति वार्तायें करता रहता है । सोचिये - कितने आजाद और महान हैं हम ।  अभी मैं कैसे कहूँ - आय लव माय इंडिया ।

1 टिप्पणी:

bhagat ने कहा…

मैं निराशा को दूर भगा देता हूँ जब जब आपके ब्लॉग पर इस तरह की एक्स्सल्लेंट पोस्ट अपने दिमाग में बिठाने की कोशिश करता हूँ.