बाबा रामबहादुर जी |
पर वो लक्ष्य है क्या ? ये बाबाजी समझ नहीं पाते ?? अतः बाबाजी अपने इस प्रश्न के सही उत्तर की प्राप्ति हेतु जगह जगह भटकने लगे । पर कोई भी साधु महात्मा उनको सन्तुष्ट करने वाला उत्तर नहीं दे पाता । अपनी इस बैचेनी के चलते बाबाजी ने भारत के कई स्थानों का भृमण किया । पर तलाश पूरी नहीं हुयी ।
उस पर एक विचित्र बात ये होती थी कि बाबाजी कुछ अपने मन से कुछ सुने सुनाये आधार पर ध्यान पर बैठते थे । और उन्हें विचित्र विचित्र अनुभव होते थे । पर बाबाजी उन अनुभवों का कोई सही मतलब नहीं समझ पाते थे ।
तब लोगों ने कहा - बाबाजी बिना गुरु के बात नहीं बनेगी । आप कोई सच्चा सन्त तलाश करके पहले उससे अपनी सभी जिग्यासाओं का समाधान पायें । फ़िर उसे गुरु बनायें । कहा है न । पानी पियो छान के । गुरु करो जान के ।
बाबा रामबहादुर जी श्री निर्मल बंसल के साथ |
बाबाजी को ये बात उचित भी लगती । पर एक बङा प्रश्न यही था कि सच्चे सन्त की तलाश कहाँ और कैसे की जाय ? वो इतनी जगह घूमे फ़िरे । साधु महात्माओं की संगति की । पर बात कुछ समझ में नहीं आयी ।
तभी लगभग 6 महीने पहले एक शिष्य के बुलाबे पर श्री महाराज जी सदगुरु श्री शिवानन्द जी महाराज परमहँस इनके गाँव पहुँचे । और बाबा रामबहादुर ने भी उनसे मुलाकात की । प्रश्न उत्तर का सिलसिला आरम्भ हो गया । और कुछ ही देर में रामबहादुर बाबा के मन में वर्षों से घूमते प्रश्न खत्म होने लगे । यहाँ तक कि कुछ ही घन्टों में बाबा रामबहादुर की समझ में ही नहीं आया कि अब क्या प्रश्न पूछें ।
तब लगभग 40 वर्षों से भटकते बाबा रामबहादुर ने समर्पण कर दिया । और विनती की - बहुत भटक लिया । महाराज जी ! अब इस बालक को अपनी शरण में लें । और सत्य शाश्वत ग्यान देने की कृपा करें ।
आज से मैं आपका शिष्य हो गया । आपके चरणों का दास हो गया । अब आप कब स्वीकार करते हो । ये आपकी दया है प्रभु ।
कुछ समय के सतसंग के बाद महाराज जी ने उन्हें मंडल में शामिल करते हुये ढाई अक्षर के महामन्त्र की दीक्षा दी । बाबा रामबहादुर जी जिला मैंनपुरी के किशनी के बसैत के पास नगला रमू में एक मन्दिर पर रहते हैं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें