LAYS चिप्स के पैकेट में जो E631 लिखा है । वह दरअसल सुअर की चर्बी है । कमाल है । शायद ही कोई भारतीय परिवार चिप्स आदि से बच पाया होगा । बात हो रही E631 की । जिस किसी भी पदार्थ पर लिखा दिखे - E631 तो समझ लीजिए कि उसमें सूअर की चर्बी है । गूगल से पता चला कि कुछ अरसे पहले यह हंगामा पाकिस्तान में हुआ था । जिस पर ढेरों आरोप और सफाईयां दस्तावेजों सहित मौजूद हैं । हैरत की बात यह दिखी कि इस पदार्थ को कई देशों में प्रतिबंधित किया गया है । किन्तु अपने देश में धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है । मूल तौर पर यह पदार्थ सूअर की चर्बी से प्राप्त होता है । और ज्यादातर नूडल्स, चिप्स में स्वाद बढाने के लिए किया जाता है । रसायन शास्त्र में इसे Disodium Inosinate कहा जाता है । जिसका सूत्र है - C10H11N4Na2O8P1 होता यह है कि अधिकतर ( ठंडे ) पश्चिमी देशों में सूअर का मांस बहुत पसंद किया जाता है । वहाँ तो बाकायदा इसके लिए हजारों की तादाद में सूअर फार्म हैं । सूअर ही ऐसा प्राणी है । जिसमें सभी जानवरों से अधिक चर्बी होती है । दिक्कत यह है कि -
चर्बी से बचते हैं लोग । तो फिर इस बेकार चर्बी का क्या किया जाए ? पहले तो इसे जला दिया जाता था । लेकिन फिर दिमाग दौड़ाकर इसका उपयोग साबुन वगैरह में किया गया । और यह हिट रहा । फिर तो इसका व्यापारिक जाल बन गया । और तरह तरह के उपयोग होने लगे । नाम दिया गया - पिग फैट । 1857 का वर्ष तो याद होगा आपको ? उस समय काल में बंदूकों की गोलियां पश्चिमी देशों से भारतीय उप महाद्वीप में समुद्री राह से भेजी जाती थीं । और उस महीनों लम्बे सफ़र में समुद्री आबोहवा से गोलियां खराब हो जाती थीं । तब उन पर सूअर चर्बी की परत चढ़ाकर भेजा जाने लगा । लेकिन गोलियां भरने के पहले उस परत को दांतों से काटकर अलग किया जाना होता था । यह तथ्य सामने आते ही जो क्रोध फैला । उसकी परिणति 1857 की क्रांति में हुई बताई जाती है । इससे परेशान हो अब इसे नाम दिया गया -
एनिमल फैट । मुस्लिम देशों में इसे गाय या भेड़ की चर्बी कह प्रचारित किया गया । लेकिन इसके हलाल न होने से असंतोष थमा नहीं । और इसे प्रतिबंधित कर दिया गया । बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नींद उड़ गई । आखिर उनका 75% कमाई मारी जा रही थी । इन बातों से । हारकर 1 राह निकाली गई । अब गुप्त संकेतों वाली भाषा का उपयोग करने की सोची गई । जिसे केवल संबंधित विभाग ही जानें कि यह क्या है । आम उपभोक्ता अनजान रह सब हजम करता रहे । तब जनम हुआ E कोड का । तबसे यह E631 पदार्थ कई चीजों में उपयोग किया जाने लगा । जिसमें मुख्य हैं - टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम, च्युंगगम, चाकलेट, मिठाई, बिस्कुट, कोर्न फ्लैक्स, टाफी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ आदि । सूची में और भी नाम हो सकते हैं । हाँ ! कुछ मल्टी विटामिन की गोलियों में भी यह पदार्थ होता है । शिशुओं, किशोरों सहित अस्थमा और गठिया के रोगियों
को इस E631 पदार्थ मिश्रित सामग्री को उपयोग नहीं करने की सलाह है । लेकिन कम्पनियाँ कहती हैं कि इसकी कम मात्रा होने से कुछ नहीं होता । पिछले वर्ष खुशदीप सहगल जी ने 1 पोस्ट में बताया था कि - कुरकुरे में प्लास्टिक होने की खबर है । चाहें तो 1-2 टुकड़ों को जलाकर देख लें । मैंने वैसा किया । और पिघलते टपकते कुरकुरे को देख हैरान हो गया । अब लग रहा कि कहीं वह चर्बी का प्रभाव तो नहीं था ? अब बताया तो यही जा रहा है कि जहां भी किसी पदार्थ पर लिखा दिखे - E100, E110, E120, E 140, E141, E153, E210, E213, E214, E216, E234, E252,E270, E280, E325, E326, E327, E334, E335, E336, E337, E422, E430, E431, E432, E433, E434, E435, E436, E440, E470, E471, E472, E473, E474, E475,E476, E477, E478, E481, E482, E483, E491, E492, E493, E494, E495, E542,E570, E572, E631, E635, E904 तो समझ लीजिए कि उसमे सूअर की चर्बी है ।
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सर्पदंश का विष नष्ट करने हेतु सरल उपाय - 1 - तपाये हुए लोहे से डंक वाले भाग को जला देने से नाग का प्राण घातक जहर भी उतर जाता है । 2 - सर्पदंश की जगह पर तुरंत चीरा करके विष युक्त रक्त निकालकर पोटेशियम
परमैंगनेट भर देने से जहर फैलना । एवं चढ़ना बंद हो जाता है । साथ में मदनफल ( मिंडल ) का 1 तोला चूर्ण गरम या ठण्डे पानी में पिला देने से वमन होकर सर्प विष निकल जाता है । मिचाईकंद का टुकड़ा 2 ग्राम मात्रा में घिसकर पिलाना तथा दंशस्थल पर लेप करना सर्प विष की अक्सीर दवा है । 4 - मेष राशि का सूर्य होने पर नीम के 2 पत्तों के साथ 1 मसूर का दाना चबाकर खा जाने से उस दिन से लेकर 1 वर्ष तक साँप काटे । तो उसका जहर नहीं चढ़ता । साँप के काटने पर शीघ्र ही तुलसी का सेवन करने से जहर उतर जाता है । एवं प्राणों की रक्षा होती है ।
जहर पी लेने पर - कितना भी खतरनाक विष पान किया हो । नीम का रस अधिक मात्रा में पिलाकर या घोड़ावज ( वच ) का चूर्ण या मदनफल का चूर्ण या मुलहठी का चूर्ण या कड़वी तुम्बी के गर्भ का चूर्ण 1 तोला मात्रा में पिलाकर वमन ( उलटी ) कराने से लाभ होगा । जब तक नीला नीला पित्त बाहर न निकले । तब तक वमन कराते रहें ।
अनुभूत प्रयोग - जिस व्यक्ति को सर्प ने काटा हो । उसे कड़वे नीम के पत्ते खिलायें । यदि पत्ते कड़वे न लगें । तो समझें कि सर्प विष चढ़ा है । 6 सशक्त व्यक्तियों को बुलाकर - 2 व्यक्ति मरीज के 2 हाथ । 2 व्यक्ति 2 पैर । एवं 1 व्यक्ति पीछे बैठकर । उसके सिर को पकड़े रखे । उसे सीधा सुला दें । एवं इस प्रकार पकड़ें कि वह जरा भी हिल न सके । इसके बाद पीपल के हरे चमकदार 20-25 पत्तों की डाली मँगवाकर उसके 2 पत्ते लें । फ़िर - सुपर्णा पक्षपातेन भूमिं गच्छ महाविष । मंत्र जपते हुए पत्तों के डंठल को दूध निकलने वाले सिरे से धीरे धीरे मरीज के कानों में इस प्रकार डालें कि डंठल का उँगली के तीसरे हिस्से जितना भाग ही अंदर जाय । अन्यथा कान के परदे को हानि पहुँच सकती है । जैसे ही डंठल का सिरा कान में डालेंगे । वह अंदर खिंचने लगेगा । व मरीज पीडा से खूब चिल्लाने लगेगा । उठकर पत्तों को निकालने की कोशिश करेगा । सशक्त व्यक्ति उसे कसकर पकड़े रहें । एवं हिलने न दें । डंठल को भी कसकर पकड़े रहें । खिंचने पर ज्यादा अंदर न जानें दें । जब तक मरीज चिल्लाना बंद न कर दे । तब तक 2-2 मिनट के अंतर से पत्ते बदलकर इसी प्रकार कान में डालते रहें । सारा जहर पत्तें खींच लेंगे । धीरे धीरे पूरा जहर उतर जायेगा । तब मरीज शांत हो जायेगा । यदि डंठल डालने पर भी मरीज शांत रहे । तो जहर उतर गया है । ऐसा समझें । जहर उतर जाने पर नमक खिलाने से खारा लगे । तो समझें कि पूरा जहर उतर गया है । मरीज को राहत होने पर 100 से 150 ग्राम शुद्ध घी में 10-12 काली मिर्च पीसकर वह मिश्रण पिला दें । एवं कानों में बिल्वादि तेल की बूँदे डाल दें । ताकि कान न पकें । कम से कम 12 घण्टे तक मरीज को सोने न दें । उपयोग में आये पत्तों को या तो जला दें । या जमीन में गाड़ दें । क्योंकि उन्हें कोई जानवर खाये । तो मर जायेगा । इस प्रयोग के द्वारा बहुत मनुष्यों को मौत को मुख में से वापस लाया गया है । भले ही व्यक्ति बेहोश हो गया हो । या नाक बैठ गयी हो । फिर भी जब तक जीवित हो । तब तक यह प्रयोग चमत्कारिक रूप से काम करता है । सनातन सपूत कट्टर हिन्दू रामसेवक भारत
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कुछ दिन पहले इरान के परमाणु कार्यक्रम से जुङे 1 वैज्ञानिक की मौत ने पूरे विश्व को अपनी और खीँचा था । परन्तु ये बहुत ही कम लोगोँ को पता होगा कि भारत के सर्वोच्च प्रतिष्ठित परमाणु प्रतिष्ठान बार्क मेँ पिछले 3 वर्षोँ मेँ 9 भारतीय वैज्ञानिकोँ की मौत हो चुकी है । इरान की सरकार ने इस घटना से सबक लेकर अपने सभी
वैज्ञानिकोँ को कङी सुरक्षा उपलब्ध करवाई । परन्तु भारतीय संस्थान मेँ स्थिति इसके बिलकुल विपरीत है । सबसे दुःखद बात तो ये है कि भारतीय जनता को इसकी कानों कान खबर तक नहीँ है । यही नहीँ केरल पुलिस और एजेँसीज भारतीय वैज्ञानिकोँ पर झूठे आरोप लगाते हैँ । यदि जानकार सूत्रोँ पर विश्वास किया जाए । तो पाकिस्तान की खुफिया एजेँसी ISI भारत की सुरक्षा व्यव्स्था पर बहुत गहराई तक सेँध लगा चुकी है । अमेरिका और बहुत से देशोँ की नजर हमारे परमाणु कार्यक्रमोँ को खत्म करने मेँ लगी हुई है । हाल ही मेँ बार्क के 2 प्रमुख इंजीनियर KK Ghosh तथा Abhish Shivam के शव 7 अक्टूबर को विशाखापटनम नौसैनिक यार्ड के पास रेल पटरी पर पङे मिले । दोनोँ वैज्ञानिक भारत द्वारा स्वदेशी तकनीक से विकसित परमाणविक पन्डूब्बी पर काम कर रहे थे । पुलिस के मुताबिक दोनोँ वैज्ञानिकोँ की हत्या जहर देकर की गयी थी । चौँकाने की बात ये है कि इतने प्रमुख वैज्ञानिकोँ की मौत को मीडिया मेँ जगह नहीँ मिली । दोनोँ की हत्याओँ को पुलिस ने 1 मामूली एक्सीडेँट का रुप देकर ठंडे बस्ते मेँ डाल दिया । अथवा मामला रफा दफा कर दिया । पिछले 5 वर्षोँ मेँ बार्क मेँ कम से कम 1 दर्जन वैज्ञानिकोँ, इंजीनियरोँ, और तकनीशियनोँ को मौत हो चुकी है । और सबमेँ GOI का ढुल मुल रवैया देखने को मिला है । सभी मृत वैज्ञानिक अति गोपनीय व अति महत्तवपूर्ण Project पर कार्यरत थे । इन हत्याओँ के तरीके को देखकर लगता है कि कोई बाहरी संगठन बहुत ही सुनियोजित साजिश के तहत इन हत्याओँ को अंजाम दे रहा है । आप ही बताएँ कि ये वैज्ञानिक अपने क्षेत्र मेँ देश के सर्वोच्च सम्मान के हकदार थे । या ऐसी मृत्यु के ? यहाँ 1 प्रश्न यह भी उठता है कि इन सभी Projects और वैज्ञानिकोँ की जानकारी ISI और विदेशियोँ को कौन उपलब्ध करवा रहा है ? क्योँकि ऐसे गोपनीय और महत्तवपूर्ण कार्योँ की खबर GOI और कुछ महत्तवपूर्ण वैज्ञानिकोँ के अलावा और किसी को नहीँ होती ।
तो कौन है - वो सुअर गद्दार ? शक की सुई तो सीधे GOI पर ही घूमती है । इसके आगे आप समझदार हैँ । कृपया अधिक से अधिक शेयर करेँ । और देश की जनता को इसके बारे मेँ अधिक से अधिक जानकारी देँ । धन्यवाद । जय हिन्द । वन्दे मातरम । आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
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1 मोबाइल कंपनी का सेल्समैन दस्त शुरू होने पर डाक्टर के पास पहुँच कर बोला - डाक्टर ! सुबह से ही अनलिमिटेड आउटगोइंग चल रही है । अंदर से नई नई रिंगटोन सुनाई दे रही है । पेट में बेंलैंस भी खत्म हो गया है । छोटा रीचार्ज भी करता हूँ । तो 5 मिनट में ही डिस्चार्ज हो जाता है । कृपया इस स्कीम को किसी भी तरह बंद करें ।
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http://www.meatfreeindia.com/h28.php
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http://fractalenlightenment.com/7902/spirituality/awakening-your-seven-major-chakras
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भारतीय जड़ी बूटी, औषधियों का सम्पूर्ण विवरण चित्रों के साथ इलेक्ट्रोनिक बुक ( ई-बुक ) रूप में
http://prakriti-farms.org/downloads/MedicinalAndAromaticPlants.chm
चर्बी से बचते हैं लोग । तो फिर इस बेकार चर्बी का क्या किया जाए ? पहले तो इसे जला दिया जाता था । लेकिन फिर दिमाग दौड़ाकर इसका उपयोग साबुन वगैरह में किया गया । और यह हिट रहा । फिर तो इसका व्यापारिक जाल बन गया । और तरह तरह के उपयोग होने लगे । नाम दिया गया - पिग फैट । 1857 का वर्ष तो याद होगा आपको ? उस समय काल में बंदूकों की गोलियां पश्चिमी देशों से भारतीय उप महाद्वीप में समुद्री राह से भेजी जाती थीं । और उस महीनों लम्बे सफ़र में समुद्री आबोहवा से गोलियां खराब हो जाती थीं । तब उन पर सूअर चर्बी की परत चढ़ाकर भेजा जाने लगा । लेकिन गोलियां भरने के पहले उस परत को दांतों से काटकर अलग किया जाना होता था । यह तथ्य सामने आते ही जो क्रोध फैला । उसकी परिणति 1857 की क्रांति में हुई बताई जाती है । इससे परेशान हो अब इसे नाम दिया गया -
एनिमल फैट । मुस्लिम देशों में इसे गाय या भेड़ की चर्बी कह प्रचारित किया गया । लेकिन इसके हलाल न होने से असंतोष थमा नहीं । और इसे प्रतिबंधित कर दिया गया । बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नींद उड़ गई । आखिर उनका 75% कमाई मारी जा रही थी । इन बातों से । हारकर 1 राह निकाली गई । अब गुप्त संकेतों वाली भाषा का उपयोग करने की सोची गई । जिसे केवल संबंधित विभाग ही जानें कि यह क्या है । आम उपभोक्ता अनजान रह सब हजम करता रहे । तब जनम हुआ E कोड का । तबसे यह E631 पदार्थ कई चीजों में उपयोग किया जाने लगा । जिसमें मुख्य हैं - टूथपेस्ट, शेविंग क्रीम, च्युंगगम, चाकलेट, मिठाई, बिस्कुट, कोर्न फ्लैक्स, टाफी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ आदि । सूची में और भी नाम हो सकते हैं । हाँ ! कुछ मल्टी विटामिन की गोलियों में भी यह पदार्थ होता है । शिशुओं, किशोरों सहित अस्थमा और गठिया के रोगियों
को इस E631 पदार्थ मिश्रित सामग्री को उपयोग नहीं करने की सलाह है । लेकिन कम्पनियाँ कहती हैं कि इसकी कम मात्रा होने से कुछ नहीं होता । पिछले वर्ष खुशदीप सहगल जी ने 1 पोस्ट में बताया था कि - कुरकुरे में प्लास्टिक होने की खबर है । चाहें तो 1-2 टुकड़ों को जलाकर देख लें । मैंने वैसा किया । और पिघलते टपकते कुरकुरे को देख हैरान हो गया । अब लग रहा कि कहीं वह चर्बी का प्रभाव तो नहीं था ? अब बताया तो यही जा रहा है कि जहां भी किसी पदार्थ पर लिखा दिखे - E100, E110, E120, E 140, E141, E153, E210, E213, E214, E216, E234, E252,E270, E280, E325, E326, E327, E334, E335, E336, E337, E422, E430, E431, E432, E433, E434, E435, E436, E440, E470, E471, E472, E473, E474, E475,E476, E477, E478, E481, E482, E483, E491, E492, E493, E494, E495, E542,E570, E572, E631, E635, E904 तो समझ लीजिए कि उसमे सूअर की चर्बी है ।
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सर्पदंश का विष नष्ट करने हेतु सरल उपाय - 1 - तपाये हुए लोहे से डंक वाले भाग को जला देने से नाग का प्राण घातक जहर भी उतर जाता है । 2 - सर्पदंश की जगह पर तुरंत चीरा करके विष युक्त रक्त निकालकर पोटेशियम
परमैंगनेट भर देने से जहर फैलना । एवं चढ़ना बंद हो जाता है । साथ में मदनफल ( मिंडल ) का 1 तोला चूर्ण गरम या ठण्डे पानी में पिला देने से वमन होकर सर्प विष निकल जाता है । मिचाईकंद का टुकड़ा 2 ग्राम मात्रा में घिसकर पिलाना तथा दंशस्थल पर लेप करना सर्प विष की अक्सीर दवा है । 4 - मेष राशि का सूर्य होने पर नीम के 2 पत्तों के साथ 1 मसूर का दाना चबाकर खा जाने से उस दिन से लेकर 1 वर्ष तक साँप काटे । तो उसका जहर नहीं चढ़ता । साँप के काटने पर शीघ्र ही तुलसी का सेवन करने से जहर उतर जाता है । एवं प्राणों की रक्षा होती है ।
जहर पी लेने पर - कितना भी खतरनाक विष पान किया हो । नीम का रस अधिक मात्रा में पिलाकर या घोड़ावज ( वच ) का चूर्ण या मदनफल का चूर्ण या मुलहठी का चूर्ण या कड़वी तुम्बी के गर्भ का चूर्ण 1 तोला मात्रा में पिलाकर वमन ( उलटी ) कराने से लाभ होगा । जब तक नीला नीला पित्त बाहर न निकले । तब तक वमन कराते रहें ।
अनुभूत प्रयोग - जिस व्यक्ति को सर्प ने काटा हो । उसे कड़वे नीम के पत्ते खिलायें । यदि पत्ते कड़वे न लगें । तो समझें कि सर्प विष चढ़ा है । 6 सशक्त व्यक्तियों को बुलाकर - 2 व्यक्ति मरीज के 2 हाथ । 2 व्यक्ति 2 पैर । एवं 1 व्यक्ति पीछे बैठकर । उसके सिर को पकड़े रखे । उसे सीधा सुला दें । एवं इस प्रकार पकड़ें कि वह जरा भी हिल न सके । इसके बाद पीपल के हरे चमकदार 20-25 पत्तों की डाली मँगवाकर उसके 2 पत्ते लें । फ़िर - सुपर्णा पक्षपातेन भूमिं गच्छ महाविष । मंत्र जपते हुए पत्तों के डंठल को दूध निकलने वाले सिरे से धीरे धीरे मरीज के कानों में इस प्रकार डालें कि डंठल का उँगली के तीसरे हिस्से जितना भाग ही अंदर जाय । अन्यथा कान के परदे को हानि पहुँच सकती है । जैसे ही डंठल का सिरा कान में डालेंगे । वह अंदर खिंचने लगेगा । व मरीज पीडा से खूब चिल्लाने लगेगा । उठकर पत्तों को निकालने की कोशिश करेगा । सशक्त व्यक्ति उसे कसकर पकड़े रहें । एवं हिलने न दें । डंठल को भी कसकर पकड़े रहें । खिंचने पर ज्यादा अंदर न जानें दें । जब तक मरीज चिल्लाना बंद न कर दे । तब तक 2-2 मिनट के अंतर से पत्ते बदलकर इसी प्रकार कान में डालते रहें । सारा जहर पत्तें खींच लेंगे । धीरे धीरे पूरा जहर उतर जायेगा । तब मरीज शांत हो जायेगा । यदि डंठल डालने पर भी मरीज शांत रहे । तो जहर उतर गया है । ऐसा समझें । जहर उतर जाने पर नमक खिलाने से खारा लगे । तो समझें कि पूरा जहर उतर गया है । मरीज को राहत होने पर 100 से 150 ग्राम शुद्ध घी में 10-12 काली मिर्च पीसकर वह मिश्रण पिला दें । एवं कानों में बिल्वादि तेल की बूँदे डाल दें । ताकि कान न पकें । कम से कम 12 घण्टे तक मरीज को सोने न दें । उपयोग में आये पत्तों को या तो जला दें । या जमीन में गाड़ दें । क्योंकि उन्हें कोई जानवर खाये । तो मर जायेगा । इस प्रयोग के द्वारा बहुत मनुष्यों को मौत को मुख में से वापस लाया गया है । भले ही व्यक्ति बेहोश हो गया हो । या नाक बैठ गयी हो । फिर भी जब तक जीवित हो । तब तक यह प्रयोग चमत्कारिक रूप से काम करता है । सनातन सपूत कट्टर हिन्दू रामसेवक भारत
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कुछ दिन पहले इरान के परमाणु कार्यक्रम से जुङे 1 वैज्ञानिक की मौत ने पूरे विश्व को अपनी और खीँचा था । परन्तु ये बहुत ही कम लोगोँ को पता होगा कि भारत के सर्वोच्च प्रतिष्ठित परमाणु प्रतिष्ठान बार्क मेँ पिछले 3 वर्षोँ मेँ 9 भारतीय वैज्ञानिकोँ की मौत हो चुकी है । इरान की सरकार ने इस घटना से सबक लेकर अपने सभी
वैज्ञानिकोँ को कङी सुरक्षा उपलब्ध करवाई । परन्तु भारतीय संस्थान मेँ स्थिति इसके बिलकुल विपरीत है । सबसे दुःखद बात तो ये है कि भारतीय जनता को इसकी कानों कान खबर तक नहीँ है । यही नहीँ केरल पुलिस और एजेँसीज भारतीय वैज्ञानिकोँ पर झूठे आरोप लगाते हैँ । यदि जानकार सूत्रोँ पर विश्वास किया जाए । तो पाकिस्तान की खुफिया एजेँसी ISI भारत की सुरक्षा व्यव्स्था पर बहुत गहराई तक सेँध लगा चुकी है । अमेरिका और बहुत से देशोँ की नजर हमारे परमाणु कार्यक्रमोँ को खत्म करने मेँ लगी हुई है । हाल ही मेँ बार्क के 2 प्रमुख इंजीनियर KK Ghosh तथा Abhish Shivam के शव 7 अक्टूबर को विशाखापटनम नौसैनिक यार्ड के पास रेल पटरी पर पङे मिले । दोनोँ वैज्ञानिक भारत द्वारा स्वदेशी तकनीक से विकसित परमाणविक पन्डूब्बी पर काम कर रहे थे । पुलिस के मुताबिक दोनोँ वैज्ञानिकोँ की हत्या जहर देकर की गयी थी । चौँकाने की बात ये है कि इतने प्रमुख वैज्ञानिकोँ की मौत को मीडिया मेँ जगह नहीँ मिली । दोनोँ की हत्याओँ को पुलिस ने 1 मामूली एक्सीडेँट का रुप देकर ठंडे बस्ते मेँ डाल दिया । अथवा मामला रफा दफा कर दिया । पिछले 5 वर्षोँ मेँ बार्क मेँ कम से कम 1 दर्जन वैज्ञानिकोँ, इंजीनियरोँ, और तकनीशियनोँ को मौत हो चुकी है । और सबमेँ GOI का ढुल मुल रवैया देखने को मिला है । सभी मृत वैज्ञानिक अति गोपनीय व अति महत्तवपूर्ण Project पर कार्यरत थे । इन हत्याओँ के तरीके को देखकर लगता है कि कोई बाहरी संगठन बहुत ही सुनियोजित साजिश के तहत इन हत्याओँ को अंजाम दे रहा है । आप ही बताएँ कि ये वैज्ञानिक अपने क्षेत्र मेँ देश के सर्वोच्च सम्मान के हकदार थे । या ऐसी मृत्यु के ? यहाँ 1 प्रश्न यह भी उठता है कि इन सभी Projects और वैज्ञानिकोँ की जानकारी ISI और विदेशियोँ को कौन उपलब्ध करवा रहा है ? क्योँकि ऐसे गोपनीय और महत्तवपूर्ण कार्योँ की खबर GOI और कुछ महत्तवपूर्ण वैज्ञानिकोँ के अलावा और किसी को नहीँ होती ।
तो कौन है - वो सुअर गद्दार ? शक की सुई तो सीधे GOI पर ही घूमती है । इसके आगे आप समझदार हैँ । कृपया अधिक से अधिक शेयर करेँ । और देश की जनता को इसके बारे मेँ अधिक से अधिक जानकारी देँ । धन्यवाद । जय हिन्द । वन्दे मातरम । आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
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1 मोबाइल कंपनी का सेल्समैन दस्त शुरू होने पर डाक्टर के पास पहुँच कर बोला - डाक्टर ! सुबह से ही अनलिमिटेड आउटगोइंग चल रही है । अंदर से नई नई रिंगटोन सुनाई दे रही है । पेट में बेंलैंस भी खत्म हो गया है । छोटा रीचार्ज भी करता हूँ । तो 5 मिनट में ही डिस्चार्ज हो जाता है । कृपया इस स्कीम को किसी भी तरह बंद करें ।
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भारतीय जड़ी बूटी, औषधियों का सम्पूर्ण विवरण चित्रों के साथ इलेक्ट्रोनिक बुक ( ई-बुक ) रूप में
http://prakriti-farms.org/downloads/MedicinalAndAromaticPlants.chm