उंगुली में 5 तत्व - हाथों की 10 उंगलियों से विशेष प्रकार की आकृतियां बनाना ही हस्त मुद्रा कही गई है । हाथों की सारी उंगलियों में पाँचों तत्व मौजूद होते हैं । जैसे अंगूठे में - अग्नि तत्व । तर्जनी उंगली में - वायु तत्व । मध्यमा उंगली में - आकाश तत्व । अनामिका उंगली में - पृथ्वी तत्व । और कनिष्का उंगली में - जल तत्व ।
उंगलियों के पांचों वर्ग से अलग अलग विद्युत धारा बहती है । इसलिए मुद्रा विज्ञान में जब उंगलियों का रोग अनुसार आपसी स्पर्श करते हैं । तब रुकी हुई या असंतुलित विद्युत बहकर शरीर की शक्ति को पुन: जगा देती है । और हमारा शरीर निरोग होने लगता है । ये अदभुत मुद्राएं करते ही यह अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं ।
किसी भी मुद्रा को करते समय जिन उंगलियों का कोई काम न हो । उन्हें सीधी रखें । वैसे तो मुद्राएं बहुत हैं । पर कुछ मुख्य मुद्राओं का वर्णन यहाँ किया जा रहा है । जैसे -
1 ज्ञान मुद्रा विधि - अंगूठे को तर्जनी उंगली के सिरे पर लगा दे । शेष 3 उंगलियां चित्र के अनुसार सीधी रहेंगी ।
लाभ - स्मरण शक्ति का विकास होता है । और ज्ञान की वृद्धि होती है । पढ़ने में मन लगता है । तथा अनिद्रा का नाश, स्वभाव में परिवर्तन, अध्यात्म शक्ति का विकास और क्रोध का नाश होता है ।
सावधानी - खानपान सात्त्विक रखना चाहिये । पान पराग, सुपारी, जर्दा इत्यादि का सेवन न करे । अति उष्ण और अति शीतल पेय पदार्थों का सेवन न करे ।
2 वायु मुद्रा विधि - तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगाकर हलका दबाये । शेष उंगलियां सीधी रखे ।
लाभ - वायु शान्त होती है । लकवा, साइटिका, गठिया, संधिवात, घुटने के दर्द ठीक होते हैं । गर्दन के दर्द, रीढ़ के दर्द आदि विभिन्न रोगों में फायदा होता है ।
विशेष - इस मुद्रा से लाभ न होने पर प्राण मुद्रा ( संख्या 10 ) के अनुसार प्रयोग करे । सावधानी - लाभ हो जाने तक ही करे इस मुद्रा को ।
3 आकाश मुद्रा विधि - मध्यमा उंगली को अंगूठे के अग्रभाग से मिलायें । शेष तीनों उंगलियाँ सीधी रहें ।
लाभ - कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि, हड्डियों की कमजोरी तथा हृदय रोग ठीक होता है ।
सावधानी - भोजन करते समय एवं चलते फिरते यह मुद्रा न करें । हाथों को सीधा रखें । लाभ हो जाने तक ही करें ।
4 शून्य मुद्रा विधि - मध्यमा उंगली को मोड़कर अंगुष्ठ के मूल में लगायें । एवं अंगूठे से दबायें ।
लाभ - कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि दूर होकर शब्द साफ सुनायी देता है । मसूढ़े की पकड़ मजबूत होती है । तथा गले के रोग एवं थायरायड रोग में फायदा होता है ।
5 पृथ्वी मुद्रा विधि - अनामिका उंगली को अंगूठे से लगाकर रखें ।
लाभ - शरीर में स्फूर्ति, कान्ति एवं तेजस्विता आती है । दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता है । वजन बढ़ता है । जीवनी शक्ति का विकास होता है । यह मुद्रा पाचन क्रिया ठीक करती है । सात्त्विक गुणों का विकास करती है । दिमाग में शान्ति लाती है । तथा विटामिन की कमी को दूर करती है ।
6 सूर्य मुद्रा विधि - अनामिका उंगली को अंगूठे के मूल पर लगाकर अंगूठे से दबायें ।
लाभ - शरीर संतुलित होता है । वजन घटता है । मोटापा कम होता है । शरीर में उष्णता की वृद्धि, तनाव में कमी, शक्ति का विकास, खून का कोलस्ट्रॉल कम होता है । यह मुद्रा मधुमेह, यकृत ( जिगर ) के दोषों को दूर करती है ।
सावधानी - दुर्बल व्यक्ति इसे न करें । गर्मी में ज्यादा समय तक न करें ।
7 वरुण मुद्रा विधि - कनिष्ठा उंगली को अंगूठे से लगाकर मिलायें ।
लाभ - यह मुद्रा शरीर में रूखापन नष्ट करके चिकनाई बढ़ाती है । चमड़ी चमकीली तथा मुलायम बनाती है । चर्मरोग, रक्तविकार एवं जल तत्त्व की कमी से उत्पन्न व्याधियों को दूर करती है । मुँहासों को नष्ट करती । और चेहरे को सुन्दर बनाती है ।
सावधानी - कफ प्रकृति वाले इस मुद्रा का प्रयोग अधिक न करें ।
8 अपान मुद्रा विधि - मध्यमा तथा अनामिका उंगलियों को अंगूठे के अग्रभाग से लगा दें ।
लाभ - शरीर और नाड़ी की शुद्धि तथा कब्ज दूर होता है । मल दोष नष्ट होते हैं । बवासीर दूर होता है । वायु विकार, मधुमेह, मूत्रावरोध, गुर्दों के दोष, दांतों के दोष दूर होते हैं । पेट के लिये उपयोगी है । हृदय रोग में फायदा होता है । तथा यह पसीना लाती है ।
सावधानी - इस मुद्रा से मूत्र अधिक होगा ।
9 अपान वायु या हृदय रोग मुद्रा विधि - तर्जनी उंगली को अंगूठे के मूल में लगायें । तथा मध्यमा और अनामिका उंगलियों को अंगूठे के अग्रभाग से लगा दें ।
लाभ - जिनका दिल कमजोर है । उन्हें इसे प्रतिदिन करना चाहिये । दिल का दौरा पड़ते ही यह मुद्रा कराने पर आराम होता है । पेट में गैस होने पर यह उसे निकाल देती है । सिर दर्द होने तथा दमे की शिकायत होने पर लाभ होता है । सीढ़ी चढ़ने से 5-10 मिनट पहले यह मुद्रा करके चढ़ें । इससे उच्च रक्तचाप में फायदा होता है ।
सावधानी - हृदय का दौरा आते ही इस मुद्रा का आकस्मिक तौर पर उपयोग करें ।
10 प्राण मुद्रा विधि - कनिष्ठा तथा अनामिका उंगलियों के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलायें ।
लाभ - यह मुद्रा शारीरिक दुर्बलता दूर करती है । मन को शान्त करती है । आंखों के दोषों को दूर करके ज्योति बढ़ाती है । शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाती है । विटामिनों की कमी को दूर करती है । तथा थकान दूर करके नवशक्ति का संचार करती है । लंबे उपवास काल के दौरान भूख प्यास नहीं सताती । तथा चेहरे और आंखों एवं शरीर को चमकदार बनाती है । अनिद्रा में इसे ज्ञान मुद्रा ( संख्या 1 ) के साथ करें ।
11 लिङ्ग मुद्रा विधि - चित्र के अनुसार मुठ्ठी बाँधे । तथा बायें हाथ के अंगूठे को खड़ा रखे । अन्य उंगलियाँ बंधी हुई रखें ।
लाभ - शरीर में गर्मी बढ़ाती है । सर्दी, जुकाम, दमा, खांसी, साइनस, लकवा तथा निम्न रक्तचाप में लाभप्रद है । कफ को सुखाती है ।
सावधानी:- इस मुद्रा का प्रयोग करने पर जल, फल, फलों का रस, घी और दूध का सेवन अधिक मात्रा में करें । इस मुद्रा को अधिक लम्बे समय तक न करें ।
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