क्या वास्तव में कुछ बदलेगा यहाँ ? जब दूसरों पर पत्थर फेंकते हैं हम । तब हमें यह ख्याल भी आता कि हम खुद भी ऐसे ही शीशे के घरों में रहा करते हैं । और यूँ भी राजनीतिज्ञों और सरकारी अफसरों पर पत्थर फेंकना बड़ा आसान भी होता है । वो भला थोडा ही ना आते हैं । हमसे बहस करने । या लड़ने । मगर इस देश के मानस को जहाँ तक भी देख पाता हूँ मैं । हर कोई तो अपनी अपनी औकात के बरअक्श वही सब कुछ करने में बुरी तरह निमग्न है । 100-50 रूपये से लेकर लाखों का लेन देन कुर्सी के नीचे रोज ब रोज ना जाने कितनी जगह हो रहा है । कंपनी या संस्था के किसी भी काम से घूमने वाले लोगों का यात्रा व्यय के हिसाब का ब्योरा तथा तरह तरह की खरीदी की कीमत का ब्योरा या पेट्रोल का खर्च । यह लिस्ट आप गौर से अपने मन में बढ़ाकर देखें । तो भयावहता की हद से ज्यादा लम्बी हो सकती है । क्योंकि मैं आप और हम सब ही यह जानते हैं कि - हम अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में इस तरह के क्या क्या
और कितने कितने घपले कर रहे हैं । मगर शायद हमारी आत्मा इसलिए हमें नहीं धिक्कारती । क्योंकि हमने इस सबको मान्य मान लिया हुआ है । इस तरह की छोटी छोटी चोरियों या घपलों को हम एकदम ही तरजीह नहीं देते । क्योंकि हमें लगता है कि - शायद इसके बिना काम ही नहीं होगा । फिर ऐसे छोटे छोटे घपले हम खुद भी यही सोचकर कर रहे हैं कि - वह कर रहा है । और इसी तरह वह भी यही सोच कर कर रहा है कि हम कर रहे हैं । इस तरह सभी यही सोच कर तमाम गड़बड़ियां कर रहे हैं कि हम सब यही कर रहे हैं । इस तरह यह तमाम सब कुछ निरंतर चलता जा रहा है । और ऐसा लगता है कि यही शाश्वत है । यही सही है । क्योंकि दरअसल यही व्यवहारिक है । क्योंकि दरअसल यही दुनियादारी है । और इसी दुनियावी जरुरत या व्यवहारिकता की वजह से जो जहाँ पहुँच जाता है । उस जगह का लाभ उठाने में खुद को मशरूफ कर लेता है । और लाभ के लालच के इसी गणित से उसकी चमड़ी गैंडे से भी ज्यादा मोटी और कठोर हो जाती है । जिस पर किसी हथियार का कोई असर नहीं होता । और फिर यह होता है कि - चमड़ी चली जाए मगर दमड़ी ना जाए ।
ऐसे में ही यह प्रश्न खडा होता कि - क्या वास्तव में यहाँ कुछ बदल सकता है । बदला भी जा सकता है ?? मैं देख रहा हूँ । अपने आसपास ऐसे लोगों की भीड़ । जो नारे लगा रही है । चिल्ला रही है । बिना यह जाने हुए कि इस भीड़ में वे सियार भी हैं । और लोमड़ियाँ भी । जिनके खिलाफ वो उठ खड़ी हुई है । और खुद भी वो भीड़ ऐसी ही जैसे कि ये सियार और लोमड़ियाँ । ऐसे में कुछ भी भला कैसे और क्यों बदल सकता है ? क्या सचमुच कुछ बदलने को को है ? सोचिये.. सोचिये ना .. भला सोचने में किसी के बाप का क्या जाता है ?
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सोचता तो हूँ कि - एकांगी सोच ना हो मेरी । किन्तु संभव है । आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच । मेरी बात ।
यदि ऐसा हो । तो पहले क्षमा । आशा है कि आप ऐसा करोगे ।
साभार फ़ेसबुक पेज से - राजीव थेपङा का व्यंग्य ।
I am coming to believe that we commit a great disservice to ourselves when we jump to physical intimacy before we have established a relational foundation for the connection . Soul-gazing without ground to support it is merely a drug trip . It's just a matter of time before we come crashing down to earth . The keys to the temple should not be handed out hastily . In-to-me-see needs feet before it can fly . Real connection is a sole to soul proposition - Jeff Brown
Let us never forget that our chief danger is from " within " The world and the devil combined, cannot do as much harm as our "own" hearts can, if we do not watch and pray - J.C. Ryle
इरादे हों अगर पक्के तो मुश्किल हार जाती है । यह तो सभी कहते हैं ।
इसलिए मैं कहता हुँ । तुम जरा हौसला बनाये रखना । मुहब्बत हमें आजमाती है ।
So long as we do not die to ourselves, And so long as we identify with someone or something, We shall never be free .The spiritual way is not for those wrapped up in exterior life - Farid ud Din Attar
Don’t let the person who hurt you " keep you in prison " What happened to you may have been very painful but don’t waste your pain . Human nature says - I was wronged . Now, I want justice .You mistreated me . Now you have got to pay me back . But the mistake many people make is in trying to collect a debt that only God can pay . The father can’t give his daughter’s innocence back to her .Your parents cant pay you back for not having a loving childhood . Your spouse cant pay you back for the pain he caused by being unfaithful . If you want to be restored and whole, get on God’s payroll . He only knows how to make things right . Leave it up to Him . Quit expecting people to make it up to you . They can’t give you what they don’t have . Only God knows how to bring justice and give you what you deserve - Datum Geplaas
Little girl and her father were crossing a bridge. The
father was kind of scared so he asked his little daughter - Sweetheart, please hold my hand so that you don’t fall into the river. The little girl said - No, Dad. You hold my hand. What’s the difference ? Asked the puzzled father. There’s a big difference, replied the little girl - If I hold your hand and something happens to me, chances are that I may let your hand go. But if you hold my hand, I know for sure that no matter what happens, you will never let my hand go.
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