इन बेजुबानों को काटने से पहले अल्लाह से डरें - कुरआन के अनुसार अल्लाह रहम वाला है । मेहरवान है । और दयालु है । बिस मिल्ला हीर रहमा निर रहिम । और अल्लाह का प्रवर्तक रहमा तुल्लिल अलमीन । अर्थात सभी जीबो पर दया करने वाला । और नबी ने कहा - पूरी मखलूक अल्लाह का प्यारा कुनबा है । और उन्होंने जानवरों के साथ बेरहमी करने वालों को बार बार ताकीद की - इन बेजुबानों को मारने से पहले अल्लाह से डरो ।
उन्होंने अपने घर में खटमल जूँ और कीड़ों को मारने पर भी पाबन्दी लगा दी थी । यहाँ तक कि अपने लश्कर को भी हुकुम दिया था कि अगर चींटी भी गुजरने लगे । तो अपने लश्कर को रोक दो । और चींटी की लाइन को गुजर जाने दो ।
आज तक दुनिया के किसी कोने से भी मुसलमान हज करने जाते है । तो मक्का के मस्जिदों में कबूतर को कोई कंकर तक नहीं मार सकता । सरकार उसे आज दण्ड सुनाती है । मात्र इतना ही नही । अपितु नमाज़ में सिजदा करते समय अपने पेशानी ( कपाल )
के रगड़ से कोई चींटी तक न मरे । ये हुकुम हजरत मुहम्मद सललल्लाहो अलई हे बसल्लम का है ।
इस पर गहराई से अगर विचार किया जाये कि जिस रसूल ने इतनी छोटी सी चींटी पर भी रहम तथा दया करने की बात की हो । और उसकी दया व करुणा बेजुबानों पर रही हो । फिर आज इन बेजुबानों को काटते समय अल्लाह व रसूल से डरते क्यों नहीं ?
इससे बात स्पष्ट हो जाती है कि मुसलमान कहलाने वाले अल्लाह व अपने नबी पर अकीदा नहीं रखते । और अगर ये मान लिया जाये कि मुसलमान जो कर रहे हैं । वही ठीक है । तो अल्लाह ने कुरआन के सूरा बकर व सूरा मायदा में कहा - इन्नमा हर रमा अलई
कुमुल मईतता वद दमा व लहमल खिनजीर, वमा औहिल्ला बिही ले गौरिल्लाह । अर्थ - हरम किया गया तुम्हारे लिए मरा हुआ जानवर । जमा हुआ खून । सूअर का गोश्त । और गैरुल्ला के नाम से जबह किया जानवर ।
विचारणीय बात ये है कि पहला शब्द ही मरा कहा । तो मरा । अर्थात जिसमे प्राण न हों । वह मरा है । अब उसका कोई गला काटे । गर्दन मरोड़े । पेट में छुरी डाल दे । पानी में बह जाये । आग में जल जाये । हर हालत में जानवर मरा ही होगा । इधर जिन्दा खाया नहीं जाता । और मरा खाना हराम है । तो आखिर लोग खाते कब है ?
इंसान अपनी जीभ के स्वार्थ के लिये रजाए इलाही ( ईश्वर कृपा ) प्राप्त करने के लिए मजहब व खुदा के नाम से या तो देवी और देवता के सामने बेकसूर । मासूम । मजबूर । व बेबस जानवरों पर बेरहमी से गले में छुरी चला कर अल्लाह का खुश नुदी को प्राप्त करना चाहता है । जब अल्लाह मेहरवान है हर जीबों पर । तो क्या जिनके गले में छुरी चलाई जा रही है । अल्लाह उन पर रहम नही करते । इस्लाम का कुरआन तथा मुसलमानों का अल्लाह पर ही बुरहम है ?
अवश्य यह बात भी सच है कि कुरआन, हदीस व इस्लाम को आद्योपन्त अध्ययन करने पर पता लगता है । या
स्पष्ट हो जाता है । अल्लाह ही बेरहम है । किसी ने खूब कहा - बन्दे को देख कर मुनिकर हुई है दुनिअ की । जिस खुदा के हैं ये बन्दे वो कोई अच्छा खुदा नही है ।
दरअसल क़ुरबानी का अर्थ है - समर्पण । और कुरआन के मुताबिक यह हुक्म हजरत इब्राहीम नामी पैगम्बर को ही अल्लाह ने सपना दिखा कर हुक्म दिया कि - अपनी प्यारी वस्तु को मेरे रास्ते में कुर्बान करो । लगातार तीन दिन स्वपन आया । और सौ सौ ऊँट काटते रहे । फिर स्वपन देखा । तब इब्राहीम अपने पुत्र इस्माइल को क़ुरबानी देने को ले गये । और उनके गले में छुरी चलाई । इधर अल्लाह ने छुरी को मना किया - काटना मत । तब फिर इस्माइल ने अपने पिता से कहा - आँख में पट्टी बांध ले । एक कपडे को साथ तय लगाकर आँख में बांध कर इब्राहीम ने अपने पुत्र को काटना प्रारंभ किया । तब अल्लाह ने
जन्नत से दुम्बा भेज दिया । और वहाँ इस्माइल के स्थान पर दुम्बा कट गया । यह अल्लाह का इम्तहान था । और इस इम्तहान से इब्राहीम को अल्लाह ने खलिलुल्लाह और इस्माइल को जबिहउल्लाह के नाम से पुकारा । यह है - कुरआन का अल्लाह या खुदा । इस पर अनेक प्रश्न उठाये जा सकते हैं । जिन प्रश्नों पर इस्लाम मौन है ।
आज ईद उल जुहा के मौके पर बेजुबान जानवरों के गले में छुरी चलाकर मात्र मुसलमान इब्राहीम व इस्माइल को याद करते हैं । और अल्लाह का आदेश मानकर मात्र जानवरों के गोश्त से उदर पूर्ति कर रहे हैं । किन्तु समर्पण का जो आदेश था । वह गौण हो गया । जो आदेश गीता में योगीराज श्रीकृष्ण ने भी दिया - मा फलेषु कदाचना । निष्काम से कार्य करो । या फल की
उम्मीद न रखकर काम करो आदि ।
रही बात कुरआन और अल्लाह की । जिस कुरआन को आप ईश्वरीय ज्ञान मान रहे हैं । तो देखें । कुरआन ईश्वरीय ज्ञान होता । तो अलग रही कुरआन में ही बुद्धि बिरुद्ध बात है । जैसे ऊपर लिखा है । अल्लाह ने इब्राहीम का इम्तहान लेना चाहा । तो अल्लाह जो अलेमुल गैब है । यह कैसे सिद्ध होगा ? अर्थात अदृष्ट की बातों को जानता है । फिर उसे इम्तहान क्यों लेना पड़ेगा ? दूसरी बात । अल्लाह ने छुरी को मना किया कि इस्माइल को काटना मत । छुरी में तेज़ धार नही थी । यह तो सम्भव है । पर अल्लाह ने उसे काटने को मना किया । यह बुद्धि विरुद्ध है । फिर जन्नत से दुम्बा लाया । अच्छा जब इब्राहीम अपने बेटे को काट रहे थे । आँख में पट्टी बाँधे हुये थे । तो क्या बेटे को हाथ से पकड़ा नही था ? अगर पकड़ा था । तो पता कैसे नहीं लगा । जब हटाकर दुम्बे को रख दिया गया ?
एक बात अबश्य पाठक गण ध्यान में रखना । जिस जन्नत में दुम्बा रहता है । वह पबित्र भी नहीं रहता होगा ?
तीसरी बात है कि - आज भी मुसलमान कुर्बानी देते हैं । तो उस गोश्त को तीन हिस्सो मे बांटते हैं । एक - अपने लिए । दूसरा - अपने रिश्तेदारों को देने के लिए । और तीसरा हिस्सा - गाँव मुहल्ला आसपास के लोगों के लिए । यह पूछा जाये कि हजरत इब्राहीम ने जब दुम्बे को काटा था । तो उस गोश्त के कितने हिस्से किये थे ? और किसको किसको दिया गया था ? क्योंकि वहाँ न रिश्तेदार । और न ही पड़ोसी । और न कोई मांगने वाला था ? दुनिया के किसी कोने के मुसलमान ने आज तक अपने बेटे की अल्लाह के रास्ते में कुर्बानी नही दी । और न इब्राहीम के बाद किसी ने दी होगी ।
रही बात हज करने की । तो मुसलमान यह मानते है कि हज करने पर अल्लाह तआला गुनाहों को माफ़ कर देते हैं । और हज करते समय मरने पर सीधा जन्नत दाखिल कराते हैं आदि ।
मतलब जितने लोग हज के लिए जा रहे हैं । वह सब पापी हैं । बरना अपने किये पापों को क्षमा करवाने क्यों जाते भला ? कुछ हद तक यह सही भी लगता है कि इन पापियों के पाप को अपने पास लेते लेते संग अवसद पत्थर भी काला पड़ गया है ।
एक तमाशा और भी है कि - इस्लाम की दृष्टि में भारत राज्य है - काफिरों का । भारत सरकार प्रत्येक हज
यात्रियों को बीस हज़ार रूपया सब्सिडी दे रही है । तो क्या शरियत के दृष्टि में यह काफिरों के दिए गए दया दृष्टि व दान से हज का फर्ज अदा होना सम्भव है ? भारत के मुसलमानों ने आज तक इस पर विचार ही नही किया । और न ही किसी मुफ्ती ने इस पर कोई फतवा जारी किया । तो क्या इस्लाम की परिभाषा स्वार्थ समझा जाये ? कम से कम भारत में रहने वाले मुसलमानों को चाहिए कि भारतीयता को स्वीकार कर प्रत्येक जीबों पर दया कर ही परमात्मा के सानिध्य को प्राप्त करें । क्योंकि वेद में कहा है - आत्मवत सर्वाभुतेशु । अर्थात प्रत्येक आत्मा को अपनी आत्मा के समान समझना । इससे परमात्मा का सानिध्य पाना आसान है । प्रत्येक मुसलमान हज यात्री जेददा से कहना प्रारम्भ कर देते है - अल्लाहुम्मा लब्बईक ए अल्ला मैं हाज़िर हूँ । क्या अरब से बाहर खुदा नही ? साभार - पंडित महेन्द्र पाल आर्य । फ़ो्टो देखें ।
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A victim of inhumanity . a pawn in the game of life
Abandoned by his owners . left to an uncertain future
with someone who loves him
but
cannot keep him . safe forever
but for only a short time . too short
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Girl - What is Love ? people talk so much about love but i don't really know what it is ?
Boy ( replied ) - When i get angry on you & you try to persuade me that feeling is love, when i don't talk to you & you get worried about me that is called love, when you care for me whenever am sick or in pain, that is love, And finally when you get scared even from the thought of us being apart from each other, this scary feeling is called LOVE !
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ओ मेली सोनी मेली जान ए तमन्ना । झूठ नई है मेला प्याल ।
दीवाने छे हो गयी गलती । जाने दो याल । I LOVE U... I LOVE U:*:*:*♥
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- Sometimes a kiss is much better than saying 1000 times - I Love U
When it is hard 2 hide ur tears….nvr mind. Start cuttin an Onion.Let d heart cry.
U just smile n blame d onion... That’s Life !
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Our own lives are like the best poetry, art, or music...Really fine art combines many emotions into one
masterpiece...Like an Irish jig that bounces along at a jaunty clip, yet has an undercurrent of depth and wonder and sadness, our lives are rich expressions of the universe’s energy and passion and creativity...I heard Maya Angelou say that “life is pure adventure, and the sooner we realize that, the quicker we will able to treat life as art.” We need to remember that we are created creative and can invent new scenarios as frequently as they are needed...Artists know how to do this in their work.They know how to contact the muse - the inner angel-to enliven their art, to invent new scenarios...We can learn how to do this in our lives... – Elizabeth Lesser
- सभी जानकारी साभार फ़ेसबुक के विभिन्न पेज । कुरबानी के लेख में टायपिंग अशुद्धियों को दूर करने का पूरा प्रयास किया है । पर कुछ स्थानों पर शब्द समझ में नहीं आये । वहाँ गलत हो सकता है ।
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