अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं - निर्वाणी साधना और द्वैत साधना में फ़र्क कैसे करें ? और भेङ की खाल में छिपे भेङिये रूपी काल दूत साधुओं को कैसे जानें ? आईये आज इसी महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करते हैं । सबसे पहली बात है कि आप दूसरों में दोष बाद में देखें । खुद अपना ही दोष जानें । जब द्वैत अद्वैत कुण्डलिनी मंत्र तंत्र हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी धार्मिक मत एक स्वर में कहते हैं कि - SUPREME POWER सिर्फ़ 1 ही है । और उसके सिवा दूसरा कोई नहीं हैं । और तुम भी वही हो । ये अखिल सृष्टि प्रकृति आदि जो कुछ भी दृश्य अदृश्य है । सब उसी से है । फ़िर भी आप बहुत को या 2 को मानते हो । तो सबसे पहले दोष आपका ही है । जबकि आप भी वही हो । जो अज्ञान रूपी अहम
वश खुद को " मैं " और अलग मान रहे हो । यदि सिर्फ़ इसी सिद्धांत को गहरायी से अटल होकर स्वीकार कर लो । तो फ़िर कोई काल दूत हो । या और कुछ । आपका कुछ नहीं बिगाङ सकते । और फ़िर किसी ज्ञान की भी आवश्यकता नहीं । लेकिन ? बिना आंतरिक परिवर्तन के दरअसल इस भाव में स्थिर होना बहुत कठिन ही नहीं असंभव है । और ये ज्ञान ( बोध ) पहचान परिवर्तन सिर्फ़ सदगुरु ( सदगुरु का अर्थ - सत्य प्रकाश या सत्य ज्ञान को जानने वाला ) द्वारा ही संभव है । अतः द्वैत ( लगभग ) मिथ्या होते हुये भी एक अकाटय और कठोर सत्य भी है । और आप मूल रूप से अमर अजर अविनाशी आत्मा होते हुये भी जन्म मरण के कष्टदायक जीवात्मा के रूप में आत्म बोध न होने तक बेहद पीङा और तंगी युक्त जिन्दगी के लिये विवश हो ।
इसलिये मूल रूप से द्वैत के काल दूतों की चर्चा करते हैं । जो आपको इस भीषण कष्ट से निकलने ही नहीं देते । और आप इन्हीं के चरणों में - महाराज महाराज स्वामी जी कहते हुये नतमस्तक होते जाते हो । और बङा आसान है । इस काल ( पुरुष ) और इसके कालदूतों को जानना समझना ।
लेकिन इससे पहले आप अपनी जीव स्थिति को जानिये । आप बहुत छोटे दायरे छोटी सोच में अल्प ज्ञान में माया ( मैडम ) की करतूत से बंधे हुये हो । इसलिये प्रथ्वी ( तत्व ) जल ( तत्व ) अग्नि ( तत्व ) वायु ( तत्व ) को भी तत्व रूप से न जानते हुये सिर्फ़ इनके स्थूल रूप से व्यवहार करते हो । पाँचवें आकाश ( तत्व ) से आपका कभी वास्ता नहीं पङता । और उच्च स्थितियों का सभी खेल आकाश से ही शुरू होता है । जो भी स्वर्ग आदि प्राप्तियाँ हैं । उनमें आकाश को तत्व रूप जानना होता है । और फ़िर उसके ऊपर भी ।
अब सबसे पहले तो ये समझिये कि इस त्रिलोकी सत्ता का राष्ट्रपति या सर्वेसर्वा ही काल पुरुष है । जो अपने 2 प्रत्यक्ष रूपों या अवतार राम ( 12 कला मर्यादा पुरुष ) श्रीकृष्ण ( 16 कला योगेश्वर ) द्वारा विभिन्न क्रीङायें करता है । जाहिर है । त्रिलोकी की इन 2 प्रत्यक्ष रूप शक्तियों से किसी जीव का ( असली ) मोक्ष ज्ञान रूपी भला न होता है । न कभी हो सकता है । क्योंकि खुद काल न ऐसा कर सकता है । न कभी करेगा । इसका तीसरा सिर्फ़ मृत्यु के समय प्रत्यक्ष हुआ रूप यमराय का है । उसमें तो ये अच्छे अच्छों के कच्छे गीले पीले कर देता है । ये तो सबको पता ही है । इसका चौथा अदृश्य और सबसे दुष्ट रूप जीव का मन है । सिर्फ़ जिसके द्वारा ही ये जीवों को अपने जाल में फ़ँसाये रखता है ।
काल पुरुष के प्रमुख परिचय के बाद । इसकी बेहद शातिर पत्नी महा माया उर्फ़ अष्टांगी उर्फ़ आदि शक्ति उर्फ़ महादेवी उर्फ़ पहली औरत आदि आदि है । ये और भी बङी खिलाङिन है । सभी प्रमुख देवियाँ और छोटी बङी ऊँच नीच देवियाँ इसी का अंश हैं । इसी के अधीन हैं ।
इसके बाद खास तौर पर इन दोनों के 3 पुत्र बृह्मा विष्णु महेश आते हैं । इनमें मंझला विष्णु बङा खिलाङी है । इसकी पत्नी लक्ष्मी माया रूप है । इसने ( विष्णु ) ही माया रूप स्त्री का निर्माण किया है । जीव को अपने पिता के सिर्फ़ भोजन हेतु काल जाल में फ़ँसाये रखना ही इसका जैसे एकमात्र ध्येय है । बङा बृह्मा बुद्धि चातुर्य के मामले में कुछ मतिमन्द है । वह छोटे शंकर और मंझले विष्णु की सपोर्ट से काम चलाता है । और काफ़ी हद तक कामी प्रवृति का और डरपोक भी है । काल पुरुष और अष्टांगी का छोटा पुत्र शंकर अपने बङे भाईयों की अपेक्षाकृत समझदार है । और योग में शंकर की अच्छी दिलचस्पी रहती है । फ़िर भी कोई भी कर्मचारी अपने पद अनुसार ही कार्य करेगा । और फ़िर अष्टांगी के भयंकर होते ही ये तीनों थरथर कांपते हैं । अतः शंकर भी घुमा फ़िराकर जीवों मनुष्यों को फ़ँसाये रखने का पिंजरा तैयार करता रहता है ।
और ये 5 ही प्रमुख है । बाकी सब इनके अधीनस्थ कर्मचारी ही हैं । इसी से आप समझ सकते हैं कि द्वैत पूजा या काल पूजा किसे कहते हैं ? आप जिसकी भी पूजा करते हैं । उसकी असलियत वास्तव में क्या है ?
अब आईये । इस लेख की सबसे महत्वपूर्ण बात जो काल दूतों के बारे में है । काल को जब इतने से भी तसल्ली नहीं हुयी । उसने सोचा । इसके बाबजूद भी मेरे द्वारा कष्ट पाया जीव सतगुरु को पुकारेगा । वे उस जीव की सुनेंगे । और जीव मेरे चंगुल से निकल जायेगा । तब उसने इसी आत्म ज्ञान में मिलावट करने हेतु कालदूतों का निर्माण किया । और उन्हें बेहतर प्रशिक्षित किया । ये ही आपका सबसे बङा नुकसान करते हैं । भृमित करते हैं । और ये संख्या में बहुत है । बल्कि संसार में ही फ़ैले हुये है ।
लेकिन इनके वैसे विस्तार में न जाकर मैं इनकी पोल खोल अन्दाज में बताता हूँ कि कैसे आप आसानी से इनकी परख कर सकते हैं ?
1 ये लोग भी कुछ कुछ रहस्यमय अन्दाज में काल निरंजन की बुराई ( ताकि आप इन पर विश्वास करें ) करेंगे । लेकिन घुमा फ़िराकर बात और मंत्र दीक्षा आदि उसी की देंगे । जैसे - हरि ॐ तत्सत आदि ।
2 ये कबीर या किसी आत्म ज्ञानी सन्त की आङ और उसका नाम लेकर उपदेश प्रवचन करेंगे । पर वास्तविकता में उस सन्त की मूल वाणी से उसका दूर दूर तक वास्ता न होगा ।
3 जिस तरह मैं डंके की चोट पर काल निरंजन । उसकी पत्नी । और उसके तीनों पुत्रों की खुली आलोचना करता हूँ । ये कभी नहीं करेंगे । बल्कि घुमा फ़िराकर इन सबके नाम के आगे जी आदि आदर सूचक शब्द आदि लगाकर बारबार उनको भगवान आदि शब्दों से पुकारेंगे । अप्रत्यक्ष महत्व भी देंगे । क्योंकि ये ही इनके आका हैं ।
4 एक जो खास प्वाइंट है । मैंने जन जन को इन काल दूतों और काल पुरुष एण्ड फ़ैमिली की ढंग से पोल खोलने वाली किताब - अनुराग सागर.. को बार बार लोगों को पढने के लिये प्रेरित किया । ये लोग भूल कर भी उसका नाम कभी नहीं लेंगे । क्योंकि ये किताब 1 मिनट में इन सबकी मिट्टी पलीद कर देती है ।
5 ये कबीर वाणी की बार बार बात करेंगे । पर आपको कबीर साहित्य पढने को कभी प्रेरित न करेंगे । बल्कि उसके बजाय - भगवद गीता । देवी भागवत । पुराण । उपनिषदों । वेदों की बात बार बार करते हुये इसी
काल साहित्य ( जाल ) में उलझाये रखेंगे । लेकिन मूल कबीर वाणी पढते ही आपकी आँखें खुल जायेंगी कि असल मामला कितना अलग है । ये धूर्त कैसे सफ़ेद झूठ बोल रहे थे ??
6 ये सन्त मत या आत्म ज्ञान दीक्षा के नाम पर कोई घटिया सा वाणी नाम मंत्र दे देंगे । वास्तव में जिसकी वैल्यू कुण्डलिनी के द्वैत योग जितनी भी नहीं होती । निर्वाणी नाम में 1 अक्षर भी नहीं बोलना होता है । ये नाम आपकी सांस में निरंतर हो रहा है । और अजपा है । यानी इसे जपना बिलकुल नहीं होता । सिर्फ़ स्वांसों पर ध्यान लगाना होता है ।
7 ये सार शब्द या परमात्मा की कभी बात न करेंगे । और यदि कोई चालू काल दूत हुआ तो वो सिर्फ़ बात ही करेगा । मध्य मार्ग का रास्ता और आत्म प्रकाश कभी नहीं दिखा पायेगा
।
8 ये चिकने चुपङे आकर्षक भागवत कथा वाचकों के रूप में नरक का भय और स्वर्ग का लालच दिखाकर आपको फ़ँसायेंगे । और मुक्ति को इतना सरल बतायेंगे । जैसे मुक्ति कोई रसगुल्ला खाना हो । इनसे भागवत करा लो । बस हो गये मुक्त ?
9 इनमें एक और खास बात होती है । जो काल पुरुष से इन्हें शक्ति के रूप में मिली होती है । ये पास आने वाले जिज्ञासुओं को आसानी से कुछ अलौकिक मायावी अनुभव करा देते हैं । जिससे मनुष्य तेजी से इन पर विश्वास कर लेता है ।
10 इनका ज्ञान टाल मटोल टायप का होगा । जिससे न तो आपकी जिज्ञासा शान्त होगी । और न आत्मिक तसल्ली ही प्राप्त होगी । क्योंकि भेङिये का काम भेङ को खाना ही है ।
11 मैं फ़िर कहूँगा । अगर इन धूर्त दुष्टों की असलियत जाननी हो । तो सिर्फ़ 100 रुपये मूल्य की कबीर वाणी अनुराग सागर अवश्य पढें ।
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व्यवधान आ गया । अभी और भी जुङेगा ।
वश खुद को " मैं " और अलग मान रहे हो । यदि सिर्फ़ इसी सिद्धांत को गहरायी से अटल होकर स्वीकार कर लो । तो फ़िर कोई काल दूत हो । या और कुछ । आपका कुछ नहीं बिगाङ सकते । और फ़िर किसी ज्ञान की भी आवश्यकता नहीं । लेकिन ? बिना आंतरिक परिवर्तन के दरअसल इस भाव में स्थिर होना बहुत कठिन ही नहीं असंभव है । और ये ज्ञान ( बोध ) पहचान परिवर्तन सिर्फ़ सदगुरु ( सदगुरु का अर्थ - सत्य प्रकाश या सत्य ज्ञान को जानने वाला ) द्वारा ही संभव है । अतः द्वैत ( लगभग ) मिथ्या होते हुये भी एक अकाटय और कठोर सत्य भी है । और आप मूल रूप से अमर अजर अविनाशी आत्मा होते हुये भी जन्म मरण के कष्टदायक जीवात्मा के रूप में आत्म बोध न होने तक बेहद पीङा और तंगी युक्त जिन्दगी के लिये विवश हो ।
इसलिये मूल रूप से द्वैत के काल दूतों की चर्चा करते हैं । जो आपको इस भीषण कष्ट से निकलने ही नहीं देते । और आप इन्हीं के चरणों में - महाराज महाराज स्वामी जी कहते हुये नतमस्तक होते जाते हो । और बङा आसान है । इस काल ( पुरुष ) और इसके कालदूतों को जानना समझना ।
लेकिन इससे पहले आप अपनी जीव स्थिति को जानिये । आप बहुत छोटे दायरे छोटी सोच में अल्प ज्ञान में माया ( मैडम ) की करतूत से बंधे हुये हो । इसलिये प्रथ्वी ( तत्व ) जल ( तत्व ) अग्नि ( तत्व ) वायु ( तत्व ) को भी तत्व रूप से न जानते हुये सिर्फ़ इनके स्थूल रूप से व्यवहार करते हो । पाँचवें आकाश ( तत्व ) से आपका कभी वास्ता नहीं पङता । और उच्च स्थितियों का सभी खेल आकाश से ही शुरू होता है । जो भी स्वर्ग आदि प्राप्तियाँ हैं । उनमें आकाश को तत्व रूप जानना होता है । और फ़िर उसके ऊपर भी ।
अब सबसे पहले तो ये समझिये कि इस त्रिलोकी सत्ता का राष्ट्रपति या सर्वेसर्वा ही काल पुरुष है । जो अपने 2 प्रत्यक्ष रूपों या अवतार राम ( 12 कला मर्यादा पुरुष ) श्रीकृष्ण ( 16 कला योगेश्वर ) द्वारा विभिन्न क्रीङायें करता है । जाहिर है । त्रिलोकी की इन 2 प्रत्यक्ष रूप शक्तियों से किसी जीव का ( असली ) मोक्ष ज्ञान रूपी भला न होता है । न कभी हो सकता है । क्योंकि खुद काल न ऐसा कर सकता है । न कभी करेगा । इसका तीसरा सिर्फ़ मृत्यु के समय प्रत्यक्ष हुआ रूप यमराय का है । उसमें तो ये अच्छे अच्छों के कच्छे गीले पीले कर देता है । ये तो सबको पता ही है । इसका चौथा अदृश्य और सबसे दुष्ट रूप जीव का मन है । सिर्फ़ जिसके द्वारा ही ये जीवों को अपने जाल में फ़ँसाये रखता है ।
काल पुरुष के प्रमुख परिचय के बाद । इसकी बेहद शातिर पत्नी महा माया उर्फ़ अष्टांगी उर्फ़ आदि शक्ति उर्फ़ महादेवी उर्फ़ पहली औरत आदि आदि है । ये और भी बङी खिलाङिन है । सभी प्रमुख देवियाँ और छोटी बङी ऊँच नीच देवियाँ इसी का अंश हैं । इसी के अधीन हैं ।
इसके बाद खास तौर पर इन दोनों के 3 पुत्र बृह्मा विष्णु महेश आते हैं । इनमें मंझला विष्णु बङा खिलाङी है । इसकी पत्नी लक्ष्मी माया रूप है । इसने ( विष्णु ) ही माया रूप स्त्री का निर्माण किया है । जीव को अपने पिता के सिर्फ़ भोजन हेतु काल जाल में फ़ँसाये रखना ही इसका जैसे एकमात्र ध्येय है । बङा बृह्मा बुद्धि चातुर्य के मामले में कुछ मतिमन्द है । वह छोटे शंकर और मंझले विष्णु की सपोर्ट से काम चलाता है । और काफ़ी हद तक कामी प्रवृति का और डरपोक भी है । काल पुरुष और अष्टांगी का छोटा पुत्र शंकर अपने बङे भाईयों की अपेक्षाकृत समझदार है । और योग में शंकर की अच्छी दिलचस्पी रहती है । फ़िर भी कोई भी कर्मचारी अपने पद अनुसार ही कार्य करेगा । और फ़िर अष्टांगी के भयंकर होते ही ये तीनों थरथर कांपते हैं । अतः शंकर भी घुमा फ़िराकर जीवों मनुष्यों को फ़ँसाये रखने का पिंजरा तैयार करता रहता है ।
और ये 5 ही प्रमुख है । बाकी सब इनके अधीनस्थ कर्मचारी ही हैं । इसी से आप समझ सकते हैं कि द्वैत पूजा या काल पूजा किसे कहते हैं ? आप जिसकी भी पूजा करते हैं । उसकी असलियत वास्तव में क्या है ?
अब आईये । इस लेख की सबसे महत्वपूर्ण बात जो काल दूतों के बारे में है । काल को जब इतने से भी तसल्ली नहीं हुयी । उसने सोचा । इसके बाबजूद भी मेरे द्वारा कष्ट पाया जीव सतगुरु को पुकारेगा । वे उस जीव की सुनेंगे । और जीव मेरे चंगुल से निकल जायेगा । तब उसने इसी आत्म ज्ञान में मिलावट करने हेतु कालदूतों का निर्माण किया । और उन्हें बेहतर प्रशिक्षित किया । ये ही आपका सबसे बङा नुकसान करते हैं । भृमित करते हैं । और ये संख्या में बहुत है । बल्कि संसार में ही फ़ैले हुये है ।
लेकिन इनके वैसे विस्तार में न जाकर मैं इनकी पोल खोल अन्दाज में बताता हूँ कि कैसे आप आसानी से इनकी परख कर सकते हैं ?
1 ये लोग भी कुछ कुछ रहस्यमय अन्दाज में काल निरंजन की बुराई ( ताकि आप इन पर विश्वास करें ) करेंगे । लेकिन घुमा फ़िराकर बात और मंत्र दीक्षा आदि उसी की देंगे । जैसे - हरि ॐ तत्सत आदि ।
2 ये कबीर या किसी आत्म ज्ञानी सन्त की आङ और उसका नाम लेकर उपदेश प्रवचन करेंगे । पर वास्तविकता में उस सन्त की मूल वाणी से उसका दूर दूर तक वास्ता न होगा ।
3 जिस तरह मैं डंके की चोट पर काल निरंजन । उसकी पत्नी । और उसके तीनों पुत्रों की खुली आलोचना करता हूँ । ये कभी नहीं करेंगे । बल्कि घुमा फ़िराकर इन सबके नाम के आगे जी आदि आदर सूचक शब्द आदि लगाकर बारबार उनको भगवान आदि शब्दों से पुकारेंगे । अप्रत्यक्ष महत्व भी देंगे । क्योंकि ये ही इनके आका हैं ।
4 एक जो खास प्वाइंट है । मैंने जन जन को इन काल दूतों और काल पुरुष एण्ड फ़ैमिली की ढंग से पोल खोलने वाली किताब - अनुराग सागर.. को बार बार लोगों को पढने के लिये प्रेरित किया । ये लोग भूल कर भी उसका नाम कभी नहीं लेंगे । क्योंकि ये किताब 1 मिनट में इन सबकी मिट्टी पलीद कर देती है ।
5 ये कबीर वाणी की बार बार बात करेंगे । पर आपको कबीर साहित्य पढने को कभी प्रेरित न करेंगे । बल्कि उसके बजाय - भगवद गीता । देवी भागवत । पुराण । उपनिषदों । वेदों की बात बार बार करते हुये इसी
काल साहित्य ( जाल ) में उलझाये रखेंगे । लेकिन मूल कबीर वाणी पढते ही आपकी आँखें खुल जायेंगी कि असल मामला कितना अलग है । ये धूर्त कैसे सफ़ेद झूठ बोल रहे थे ??
6 ये सन्त मत या आत्म ज्ञान दीक्षा के नाम पर कोई घटिया सा वाणी नाम मंत्र दे देंगे । वास्तव में जिसकी वैल्यू कुण्डलिनी के द्वैत योग जितनी भी नहीं होती । निर्वाणी नाम में 1 अक्षर भी नहीं बोलना होता है । ये नाम आपकी सांस में निरंतर हो रहा है । और अजपा है । यानी इसे जपना बिलकुल नहीं होता । सिर्फ़ स्वांसों पर ध्यान लगाना होता है ।
7 ये सार शब्द या परमात्मा की कभी बात न करेंगे । और यदि कोई चालू काल दूत हुआ तो वो सिर्फ़ बात ही करेगा । मध्य मार्ग का रास्ता और आत्म प्रकाश कभी नहीं दिखा पायेगा
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8 ये चिकने चुपङे आकर्षक भागवत कथा वाचकों के रूप में नरक का भय और स्वर्ग का लालच दिखाकर आपको फ़ँसायेंगे । और मुक्ति को इतना सरल बतायेंगे । जैसे मुक्ति कोई रसगुल्ला खाना हो । इनसे भागवत करा लो । बस हो गये मुक्त ?
9 इनमें एक और खास बात होती है । जो काल पुरुष से इन्हें शक्ति के रूप में मिली होती है । ये पास आने वाले जिज्ञासुओं को आसानी से कुछ अलौकिक मायावी अनुभव करा देते हैं । जिससे मनुष्य तेजी से इन पर विश्वास कर लेता है ।
10 इनका ज्ञान टाल मटोल टायप का होगा । जिससे न तो आपकी जिज्ञासा शान्त होगी । और न आत्मिक तसल्ली ही प्राप्त होगी । क्योंकि भेङिये का काम भेङ को खाना ही है ।
11 मैं फ़िर कहूँगा । अगर इन धूर्त दुष्टों की असलियत जाननी हो । तो सिर्फ़ 100 रुपये मूल्य की कबीर वाणी अनुराग सागर अवश्य पढें ।
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व्यवधान आ गया । अभी और भी जुङेगा ।
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