2 एकाएक दया । घिन । भगवान के प्रति आक्रोश । अन्यायी भगवान आदि तमाम विचार आते होंगे । क्योंकि फ़ोटो ( या साक्षात ) आपको विचलित कर गया है । कहीं अन्दर तक झिंझोङ गया है - अरे ! ऐसा भी होता है ।
3 फ़िर आप निश्चित हो जाते हैं - अरे ! अपने अपने कर्म हैं । जैसा किया है । भोगना ही होगा । दुनियाँ है । लेकिन यहाँ थोङा सा गलती आपसे हो रही है । क्योंकि जाने अनजाने ऐसे ही बहुत से कर्म आपके भी संचित हो रहे हैं । हो चुके हैं ।
4 बस आपको उनका पता नहीं है । ठीक उसी तरह । जिसकी जेब नोटों से भरी होती है । उसे जैसे कोई फ़िक्र ही नहीं होती । पर गरीब की जिन्दगी रोटी दाल का जुगाङ करते ही निकल जाती है । लेकिन एक दिन जेब का माल खर्च हो जाने पर सबको गरीब होना है ।
5 और ये धन तेजी से घट रहा है । आप भले ही मरते मरते काजू बादाम की मिठाई खाकर मरो । पर बस यहीं तक । फ़िर धन का बैलेंस शून्य 0 हो ही जायेगा । और ऐसा कोई रूप आकार लिये कोई स्थिति आपके सामने आयेगी ।
6 अगर नहीं । इसके प्रति आप निश्चित हैं । तो फ़िर गौर से सोचिये । इन्होंने आखिर ऐसा क्या किया ? जो ये फ़ल रूप हुआ । थोङा सा ही गौर करने पर आपको सम्मझ आ जायेगा । किसी न किसी प्रकार का अभिमान ।
7 शरीर का अभिमान । सुन्दरता का अभिमान । धन का अभिमान । पद का अभिमान । जाति का कुल का अभिमान । ताकत का अभिमान । यौवन का अभिमान । अभिमानों की ये श्रंखला बेहद बङी है ।
8 और अभिमान का सीधा सा मतलब है । वही पदार्थ MATTER अपने अन्दर create करना । बस थोङा सा गहराई से सोचें । तो वही चित्र तो आपके अन्दर भी बन रहा है - घृणा । द्वेष । नफ़रत । लालच । तिरस्कार ।
9 इसीलिये सन्त मत में सम रहने को सर्वश्रेष्ठ माना गया है । और सम होने का मतलब ये भी नहीं है कि - आप ऐसे किसी लाचार जरूरत मन्द को देखकर चुपचाप निकल जाओ । बल्कि बहुत दया या बहुत दुखी भी होने के बजाय । एक डाक्टर की तरह उससे सहायक व्यवहार करो । ये श्रेष्ठ है ।
10 इसी को सफ़ल परमार्थ कहा गया है । और ऐसे फ़ोटो ( लोगों ) को देखकर आप लगभग भयभीत से हुये सचेत हो जाईये । चिंतन कीजिये । विचारकों की सहायता लीजिये । और सोचिये । ऐसा कर्म फ़ल कब और क्यों बनता है ?
11 कहीं ऐसा तो नहीं ? ऐसा कोई कर्म फ़ल आपका बन चुका हो । या बहुत से कर्म फ़ल अनजाने में बन रहे हो । इसलिये बङे सचेत होकर इंसानी जीवन जीना होता है । क्योंकि ये कर्म योनि है । छोटी सी गलती भयंकर सजा का रूप ले सकती है ।
12 यहाँ से उत्थान कर भगवान बन जाना भी संभव है । और पतन होने पर तुच्छ गन्दगी का कीङा भी । लाखों साल की स्वर्गिक सम्पदा और भोग भी हासिल हो सकता है । और ऐसा ही युगों के समान लगने वाला कष्टकारी और अपमान युक्त जीवन भी ।
13 पर अभी भी बहुत कुछ आपके हाथ में है । हालांकि जो कर्म हो चुका है । उसे किसी हालत में भुगते बिना नहीं बचा जा सकता - काया से जो पातक होई । बिन भुगते छूटे नहीं कोई । कोई न काहू सुख दुख कर दाता । निज कर कर्म भोग सब भ्राता ।
14 पर फ़िर भी 2 स्थितियाँ अभी भी हैं । एक गरीबी की स्थिति में रोग के कष्ट से पीङित बिना इलाज तङप तङप कर जीना । और दूसरी - धन होने पर उस रोग का समुचित इलाज और दर्द निवारक दवाओं से दर्द से राहत ।
15 और इस धन का मतलब यही है । सत गुण द्वारा सत ऊर्जा ( द्वैत भक्ति में ) एकत्र कर धनी होना । योग द्वारा तम ( तामसिक गुणों ) का नाश करना । इस तरह कर्म फ़ल दुख तो देता है । पर सहनीय स्थिति में ।
16 जिस प्रकार कुत्ता बिल्ली आदि पशु जीव भी अपने पूर्व कर्म संस्कारों के आधार पर कोई दूध मलाई खाते हैं । और कोई टुकङे टुकङे को दर दर भटकते हैं । मार खाते हैं । कोई मखमली बिस्तर पर सोते हैं । और कोई गन्दी नाली में लोटते हैं ।
17 इसलिये बङी सावधानी से कर्म निर्माण के प्रति इंसान को सतर्क रहना चाहिये । क्योंकि चिङियाँ खेत चुग जायें । फ़िर पछताने से कुछ नहीं होगा । इसलिये कर्मों की इस फ़सल को सावधानी से बीजारोपण करें । और खाद पानी दें ।
1 टिप्पणी:
namashkar rajeev ji
dil ko andar tak choo gya hai apka yeh lekh
sachmuch aaj kal har vyakti apni daily life me itna busy hai ke sav-pramarth ke bare me sochne ke liye time hi nahi hai uske pas, par mera yeh vishwas hai ki es lekh ko ek bar dekh lene se hi achhe se achha vyakti bhi ek bar to hil hi jayega
dhanyavad
kuldeep singh
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