36 प्रश्न - श्री स्वामी जी ! इस संसार में काम करते करते यदि मन बहक जाए । किसी सांसारिक वस्तु पर मेरा मन अटक जाए । तो क्या करना चाहिये ?
उत्तर - सच्ची निष्ठा । लगन । जतन से जब सिर्फ़ मालिक का ध्यान रखकर सेवा करोगे । श्री मुख की वाणी का हमेशा ख्याल रहेगा । तो ऐसा नहीं होता है । हां यदि कभी कभार ऐसा हो जाए । तो हताश नहीं होना चाहिये ।
निराश मन को कभी स्थान मत दीजिये । मन कभी कभी बहक जाए । तो उसे बलपूर्वक लगाना होगा । श्री सदगुरू देव जी महाराज की सेवा । भजन । सुमिरन । दर्शन । पूजा । ध्यान । दान में लगाने से फ़िर मन लग जाता है । देखो जो नियमित नियमानुसार भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । दर्शन । ध्यान में मन लगाता है । तो प्रभु की दया से मन बहकने नहीं पाता है । प्राणपण से चेष्टा करनी होगी । मालिक से हमेशा प्रार्थना करते रहना चाहिये कि ऐसा न हो । यदि इसके बावजूद भी गडबड हो । तो कभी निराश नहीं होना चाहिये । सर्वदा मन में उत्साह बनाये रखना चाहिये । सर्वदा मन में उत्साह रखकर श्रद्धा पूर्वक श्री सदगुरू देव जी महाराज के श्री चरण में अपना मन बांधे रहना चाहिये । प्रभु को हर पल, हर क्षण विनी भाव से पूर्ण समर्पित होकर देखना चाहिये । तो सब कुछ ठीक होता चला जायेगा ।
श्री सदगुरू देव जी महाराज के दर्शन । पूजा । सेवा । भजन । ध्यान की साधना से ही स्वयं का भला होगा । यदि इस तन, मन द्वारा प्रभु को न पा सके । तो फ़िर इस शरीर का प्रयोजन की क्या है ? इस तन मन को लेकर क्या लाभ होगा ? इस मानव जीवन का सर्वप्रथम लक्ष्य है - प्रभु की भक्ति करना । जिसने भक्ति न किया । तो फ़िर मन को बहकने, भटकने में उलझाये रखने से खुद का पतन है । विकास नहीं । विकास चाहते हो
। तो जो गर्भ में वादा किया था । उसे पूरा करो । बाहर आते ही रंग बिरंगी दुनियां में उलझकर खुद का नुकसान क्यों करते हो ।
सच्ची निष्टा । सेवा । भजन । भक्ति से श्री सदगुरू देव जी महाराज को प्राप्त करो । जिस प्रकार से हो । इस तन, मन का लाभ प्राप्त करो । खुद को विश्वास पूर्वक सेवा भजन में, मालिक के श्री चरणों में लगाओ । मन संभल जायेगा ।
37 प्रश्न - श्री सदगुरू महाराज जी ! निष्टा क्या चीज है ?
उत्तर - निष्ठा बहुत बडी चीज है । निष्टा न रहने पर किसी भी काम में सफ़लता नहीं प्राप्त हो सकती है । निष्ठा ऐसी होनी चाहिये कि जिस किसी भी अवस्था में क्यों न रहूँ । मुझे अपने नियम का पालन करना ही है । अपने सभी कर्मों में एक सही नियम बना लेना निष्ठा है । जैसे मैं इतने समय तक ध्यान
करूंगा । इतने घंटे जप करूंगा । दर्शन करूंगा । श्री स्वामी जी महाराज की सेवा करूंगा । दीन दुखियों की सेवा करूंगा । इतने समय तक अध्ययन करूंगा । इतनी सेवा गुप्त रूप से करूंगा । गुरू वाणी का मनन करूंगा आदि । सबसे बडी निष्ठा श्री सदगुरू देव जी महाराज के प्रति सच्चे भक्ति भाव से श्री चरणों में आत्म समर्पण करना है ।
अनियमित जीवन चर्या होने से किसी भी काम में सफ़लता नहीं प्राप्त होती है । शारीरिक एवं मानसिक विकास का एकमात्र उपाय है । नियमित जीवन चर्या । जीवन की घडी जब ठीक नहीं चलती । तब उसे नियमित कर लेना पडता है । घडी नियमित करने से फ़िर वह ठीक समय देती है । मनुष्य का मन भी ठीक उसी प्रकार का है । नाना प्रकार के उपायों से नियमित करके चलाना होगा ।
श्री सदगुरू देव जी महाराज के उपदेशानुसार जीवन को चलाने की चेष्टा करने से अनेक विघ्न बाधाओं से बचा जा सकता है । श्री सदगुरू देव जी महाराज के श्री मुख वचनों को स्मरण रखकर उनके चरणों में चित्त लगाकर जो प्रत्येक कार्य करता है । प्रभु के निर्देशानुसार जो जीवन व्यतीत करता है । वह सुखमय जीवन व्यतीत करता है । सबसे बडी निष्ठा है । समय के श्री सदगुरू देव जी महाराज का दर्शन । पूजा । सेवा । भजन । सुमिरन । दान । ध्यान । जो ऐसी गुरू निष्ठा से जीवन यापन करता है । सफ़लता उसके कदम चूमती है ।
38 प्रश्न - श्री सदगुरू स्वामी जी महाराज ! तपस्या किसे कहते हैं ?
उत्तर - श्री सदगुरू देव जी महाराज के वचनों का अक्षरश: पालन करना ही तपस्या है । श्री स्वामी जी महाराज के प्रति पूर्ण निष्ठा । श्रद्धा । प्रेमभाव ही तपस्या है । श्री सदगुरू देव जी महाराज की सेवा । भजन । पूजन । सुमिरन । दर्शन के लिये व्याकुल रहना । प्रभु की शारीरिक सेवा । मानसिक सेवा करना तपस्या है । गुरू दरबार की सेवा करना तपस्या है । भजन की लगन से हल होती है - समस्या । श्री स्वामी जी महाराज श्री मुख से बराबर कहा करते हैं कि सदगुरू के प्रति सच्चा आकर्षण । सच्ची साधना । शुद्ध भावना से आराधना करना ही सच्ची तपस्या है । श्री सदगुरू देव जी महाराज द्वारा दिखाये हुए पथ पर चलना । रहना । सोना । बैठना । प्रत्येक कार्य उन्हीं प्रभु के निर्देशानुसार करना । सेवा करना ही सच्ची तपस्या है । श्री
गुरू द्वारा दिये गये गुरू मंत्र का सुमिरन । ध्यान करना ही तपस्या है । श्री सदगुरू देव जी महाराज की प्रेरणा से ही तपस्या होती है ।
39 प्रश्न - मेरे प्यारे प्रभु ! क्या यही सच्ची तपस्या है ?
उत्तर - हां यही सच्ची तपस्या है । श्री सदगुरू देव जी महाराज की अमृतमयी गुरू वाणी पर अमल करना । एकाग्र मन चित्त से सेवा करना । सतसंग को सुनना । दर्शन । पूजा । भजन । ध्यान । मनन । चिन्तन श्रद्धा भाव से करना । आरती पूजा करना । नाम मंत्र का बृह्ममुहूर्त में उठकर भजन करना । सुन्दर विचार भाव मालिक के प्रति रखना । दान करना तप है । दान के कई प्रकार हैं । जैसे सेवा । गुप्त सेवा भी दान है । किसी भी प्रकार से मन से पवित्र कार्य करना भी दान है । तन । मन । धन से श्री गुरू चरणों में समर्पण भाव भी एक उत्तर दान है । दान तो करोगे । किन्तु थोडा सोच विचार कर करना होगा । पात्र देखकर दान करना । जानते हो । कितने कष्ट से पैसा मिलता है । ऐसा पैसा सत्पात्र को मिलना ही अच्छा है । ऐसे सत्पात्र श्री स्वामी जी महाराज ही हैं । उन्हें दान देना भी एक तपस्या ही है । सही धर्म पथ पर बढ चलना । और श्री सदगुरू देव जी महाराज की आज्ञा का पालन ही तपस्या है ।
40 प्रश्न - श्री सदगुरू देव जी महाराज ! इस प्रकार की तपस्या का फ़ल मिलता है ?
उत्तर - हाँ अवश्य मिलता है । जो भी जिस तरह का कर्म होता है । उसका फ़ल मिलता है । फ़िर जो श्री सदगुरू
स्वामी जी महाराज की सच्ची साधना । पूजा । आराधना, दर्शन । सेवा करता है । उसको उसका फ़ल मिलता है । श्री सदगुरू जी के वचन के अनुसार भजन रूपी खूंटी से जो बंधा हुआ है । वह सच्ची तपस्या कर रहा है । उसका फ़ल मिलता है । अवश्य फ़ल मिलता है ।
41 प्रश्न - श्री सदगुरू स्वामी जी महाराज ! सच्ची तपस्या किन बातों पर निर्भर है ?
उत्तर - सच्ची तपस्या तीन बातों पर निर्भर है -
1 सत्याश्रयी होना होगा । श्री सदगुरू देव जी महाराज इस धरा धाम पर सत्य के प्रतीक हैं । प्रत्यके कार्य में इस सत्य के खूंटे को सदैव पकडकर रखना होगा । यानी श्री सदगुरू देव जी महाराज जी के दर्शन । पूजन । ध्यान । सुमिरन । भजन । चिन्तन । सेवा में तत्पर रहना भी तपस्या है ।
2 कामजयी तपस्या । यानी काम पर विजय पाना । तीसरा नेत्र खुलने से ही काम जिताता है । तीसरा नेत्र श्री सदगुरू देव जी महाराज की कृपा से उनका ध्यान सिद्ध हो जाने पर ही खुलता है । श्री स्वामी जी महाराज का
वचन है - काम को जराने कै अख्तियार गुरू का है । और किसी में सामर्थ्य नहीं है । इस प्रकार कामजयी तपस्या की पूर्णता श्री सदगुरू के सुमिरन । ध्यान और सेवा के द्वारा उनकी कृपा से तीसरे नेत्र के खुलने पर ही होता है । शरीर को जीतना सहज है । मन को जीतना । काम । चंचल । मोह । माया को जीतना । और नाम यश की वासना को जीतना बहुत कठिन है ।
3 मोह माया से अलिप्त होना । अर्थात वासनाजयी होना होगा । इन तीनों को जीवन में लाना । या इनकी साधना करना ही तपस्या है । असली तपस्या तो एक मात्र गुरू वाणी का पालन करना । अपने प्रभु के वचनों का अक्षरश: पालन ही है । श्री सदगुरू देव जी महाराज द्वारा मिले हुए गुरू मंत्र का भजन ध्यान करना । गुरू और दरबार की सेवा करना ही सच्ची तपस्या है ।
श्री सदगुरू देव जी महाराज को पाना इतना सहज नहीं है । उसके लिये बृह्मचारी होना होगा । मैं अपना अनुभव आप लोगों से कहता हूं । ठीक बृह्मचारी हुए बिना ठीक ठीक ध्यान होना असम्भव है । सूक्ष्म मनोकामना को
जीतना बडा कठिन है । इसी कारण सन्यासियों के इतने कठोर नियम हैं । सन्यासियों को समस्त सृष्टि में युवक युवतियों को भाई बहन की दृष्टि से देखना चाहिए । कभी भी किसी की निन्दा न करें । सबमें सम भाव रखें । राग । द्वेष तज दें । सादा जीवन उच्च विचार रखना चाहिये । श्री सदगुरू देव जी महाराज के प्रति सच्ची लगन के साथ उनकी गहन सेवा करना । आज्ञा पालन करना । हमेशा प्रभु की इच्छा को याद कर कर्म करना । दर्शन । पूजा । भजन । ध्यान । चिन्तन करना ही सच्ची तपस्या है । ऐसी दृष्टि रखकर जो तपस्या करेंगे । उन्हें हर प्राणी । हर वस्तु में प्रभु की झलक मिलेगी । मन का स्वभाव सरल होगा । व्यवहार शुद्ध होगा । सदा सुन्दर ध्येय रखना चाहिये । तपस्या में बृह्मचर्य का पालन होने पर प्रत्येक वस्तु में प्रभु दिखायी देंगे । बृह्मचर्य के पालन से ओजस शक्ति । मन में भक्ति । श्रद्धा और अगाध प्रेम बढता है । यही सच्ची तपस्या है ।
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यह शिष्य जिज्ञासा पर आधारित प्रश्नोत्तरी श्री राजू मल्होत्रा जी द्वारा प्रेषित की गयी है । हमारे कुछ साधकों को भृम हो गया है कि - ये उत्तर श्री महाराज जी के हैं । पर ऐसा नहीं है
उत्तर - सच्ची निष्ठा । लगन । जतन से जब सिर्फ़ मालिक का ध्यान रखकर सेवा करोगे । श्री मुख की वाणी का हमेशा ख्याल रहेगा । तो ऐसा नहीं होता है । हां यदि कभी कभार ऐसा हो जाए । तो हताश नहीं होना चाहिये ।
निराश मन को कभी स्थान मत दीजिये । मन कभी कभी बहक जाए । तो उसे बलपूर्वक लगाना होगा । श्री सदगुरू देव जी महाराज की सेवा । भजन । सुमिरन । दर्शन । पूजा । ध्यान । दान में लगाने से फ़िर मन लग जाता है । देखो जो नियमित नियमानुसार भजन । सुमिरन । सेवा । पूजा । दर्शन । ध्यान में मन लगाता है । तो प्रभु की दया से मन बहकने नहीं पाता है । प्राणपण से चेष्टा करनी होगी । मालिक से हमेशा प्रार्थना करते रहना चाहिये कि ऐसा न हो । यदि इसके बावजूद भी गडबड हो । तो कभी निराश नहीं होना चाहिये । सर्वदा मन में उत्साह बनाये रखना चाहिये । सर्वदा मन में उत्साह रखकर श्रद्धा पूर्वक श्री सदगुरू देव जी महाराज के श्री चरण में अपना मन बांधे रहना चाहिये । प्रभु को हर पल, हर क्षण विनी भाव से पूर्ण समर्पित होकर देखना चाहिये । तो सब कुछ ठीक होता चला जायेगा ।
श्री सदगुरू देव जी महाराज के दर्शन । पूजा । सेवा । भजन । ध्यान की साधना से ही स्वयं का भला होगा । यदि इस तन, मन द्वारा प्रभु को न पा सके । तो फ़िर इस शरीर का प्रयोजन की क्या है ? इस तन मन को लेकर क्या लाभ होगा ? इस मानव जीवन का सर्वप्रथम लक्ष्य है - प्रभु की भक्ति करना । जिसने भक्ति न किया । तो फ़िर मन को बहकने, भटकने में उलझाये रखने से खुद का पतन है । विकास नहीं । विकास चाहते हो
। तो जो गर्भ में वादा किया था । उसे पूरा करो । बाहर आते ही रंग बिरंगी दुनियां में उलझकर खुद का नुकसान क्यों करते हो ।
सच्ची निष्टा । सेवा । भजन । भक्ति से श्री सदगुरू देव जी महाराज को प्राप्त करो । जिस प्रकार से हो । इस तन, मन का लाभ प्राप्त करो । खुद को विश्वास पूर्वक सेवा भजन में, मालिक के श्री चरणों में लगाओ । मन संभल जायेगा ।
37 प्रश्न - श्री सदगुरू महाराज जी ! निष्टा क्या चीज है ?
उत्तर - निष्ठा बहुत बडी चीज है । निष्टा न रहने पर किसी भी काम में सफ़लता नहीं प्राप्त हो सकती है । निष्ठा ऐसी होनी चाहिये कि जिस किसी भी अवस्था में क्यों न रहूँ । मुझे अपने नियम का पालन करना ही है । अपने सभी कर्मों में एक सही नियम बना लेना निष्ठा है । जैसे मैं इतने समय तक ध्यान
करूंगा । इतने घंटे जप करूंगा । दर्शन करूंगा । श्री स्वामी जी महाराज की सेवा करूंगा । दीन दुखियों की सेवा करूंगा । इतने समय तक अध्ययन करूंगा । इतनी सेवा गुप्त रूप से करूंगा । गुरू वाणी का मनन करूंगा आदि । सबसे बडी निष्ठा श्री सदगुरू देव जी महाराज के प्रति सच्चे भक्ति भाव से श्री चरणों में आत्म समर्पण करना है ।
अनियमित जीवन चर्या होने से किसी भी काम में सफ़लता नहीं प्राप्त होती है । शारीरिक एवं मानसिक विकास का एकमात्र उपाय है । नियमित जीवन चर्या । जीवन की घडी जब ठीक नहीं चलती । तब उसे नियमित कर लेना पडता है । घडी नियमित करने से फ़िर वह ठीक समय देती है । मनुष्य का मन भी ठीक उसी प्रकार का है । नाना प्रकार के उपायों से नियमित करके चलाना होगा ।
श्री सदगुरू देव जी महाराज के उपदेशानुसार जीवन को चलाने की चेष्टा करने से अनेक विघ्न बाधाओं से बचा जा सकता है । श्री सदगुरू देव जी महाराज के श्री मुख वचनों को स्मरण रखकर उनके चरणों में चित्त लगाकर जो प्रत्येक कार्य करता है । प्रभु के निर्देशानुसार जो जीवन व्यतीत करता है । वह सुखमय जीवन व्यतीत करता है । सबसे बडी निष्ठा है । समय के श्री सदगुरू देव जी महाराज का दर्शन । पूजा । सेवा । भजन । सुमिरन । दान । ध्यान । जो ऐसी गुरू निष्ठा से जीवन यापन करता है । सफ़लता उसके कदम चूमती है ।
38 प्रश्न - श्री सदगुरू स्वामी जी महाराज ! तपस्या किसे कहते हैं ?
उत्तर - श्री सदगुरू देव जी महाराज के वचनों का अक्षरश: पालन करना ही तपस्या है । श्री स्वामी जी महाराज के प्रति पूर्ण निष्ठा । श्रद्धा । प्रेमभाव ही तपस्या है । श्री सदगुरू देव जी महाराज की सेवा । भजन । पूजन । सुमिरन । दर्शन के लिये व्याकुल रहना । प्रभु की शारीरिक सेवा । मानसिक सेवा करना तपस्या है । गुरू दरबार की सेवा करना तपस्या है । भजन की लगन से हल होती है - समस्या । श्री स्वामी जी महाराज श्री मुख से बराबर कहा करते हैं कि सदगुरू के प्रति सच्चा आकर्षण । सच्ची साधना । शुद्ध भावना से आराधना करना ही सच्ची तपस्या है । श्री सदगुरू देव जी महाराज द्वारा दिखाये हुए पथ पर चलना । रहना । सोना । बैठना । प्रत्येक कार्य उन्हीं प्रभु के निर्देशानुसार करना । सेवा करना ही सच्ची तपस्या है । श्री
गुरू द्वारा दिये गये गुरू मंत्र का सुमिरन । ध्यान करना ही तपस्या है । श्री सदगुरू देव जी महाराज की प्रेरणा से ही तपस्या होती है ।
39 प्रश्न - मेरे प्यारे प्रभु ! क्या यही सच्ची तपस्या है ?
उत्तर - हां यही सच्ची तपस्या है । श्री सदगुरू देव जी महाराज की अमृतमयी गुरू वाणी पर अमल करना । एकाग्र मन चित्त से सेवा करना । सतसंग को सुनना । दर्शन । पूजा । भजन । ध्यान । मनन । चिन्तन श्रद्धा भाव से करना । आरती पूजा करना । नाम मंत्र का बृह्ममुहूर्त में उठकर भजन करना । सुन्दर विचार भाव मालिक के प्रति रखना । दान करना तप है । दान के कई प्रकार हैं । जैसे सेवा । गुप्त सेवा भी दान है । किसी भी प्रकार से मन से पवित्र कार्य करना भी दान है । तन । मन । धन से श्री गुरू चरणों में समर्पण भाव भी एक उत्तर दान है । दान तो करोगे । किन्तु थोडा सोच विचार कर करना होगा । पात्र देखकर दान करना । जानते हो । कितने कष्ट से पैसा मिलता है । ऐसा पैसा सत्पात्र को मिलना ही अच्छा है । ऐसे सत्पात्र श्री स्वामी जी महाराज ही हैं । उन्हें दान देना भी एक तपस्या ही है । सही धर्म पथ पर बढ चलना । और श्री सदगुरू देव जी महाराज की आज्ञा का पालन ही तपस्या है ।
40 प्रश्न - श्री सदगुरू देव जी महाराज ! इस प्रकार की तपस्या का फ़ल मिलता है ?
उत्तर - हाँ अवश्य मिलता है । जो भी जिस तरह का कर्म होता है । उसका फ़ल मिलता है । फ़िर जो श्री सदगुरू
स्वामी जी महाराज की सच्ची साधना । पूजा । आराधना, दर्शन । सेवा करता है । उसको उसका फ़ल मिलता है । श्री सदगुरू जी के वचन के अनुसार भजन रूपी खूंटी से जो बंधा हुआ है । वह सच्ची तपस्या कर रहा है । उसका फ़ल मिलता है । अवश्य फ़ल मिलता है ।
41 प्रश्न - श्री सदगुरू स्वामी जी महाराज ! सच्ची तपस्या किन बातों पर निर्भर है ?
उत्तर - सच्ची तपस्या तीन बातों पर निर्भर है -
1 सत्याश्रयी होना होगा । श्री सदगुरू देव जी महाराज इस धरा धाम पर सत्य के प्रतीक हैं । प्रत्यके कार्य में इस सत्य के खूंटे को सदैव पकडकर रखना होगा । यानी श्री सदगुरू देव जी महाराज जी के दर्शन । पूजन । ध्यान । सुमिरन । भजन । चिन्तन । सेवा में तत्पर रहना भी तपस्या है ।
2 कामजयी तपस्या । यानी काम पर विजय पाना । तीसरा नेत्र खुलने से ही काम जिताता है । तीसरा नेत्र श्री सदगुरू देव जी महाराज की कृपा से उनका ध्यान सिद्ध हो जाने पर ही खुलता है । श्री स्वामी जी महाराज का
वचन है - काम को जराने कै अख्तियार गुरू का है । और किसी में सामर्थ्य नहीं है । इस प्रकार कामजयी तपस्या की पूर्णता श्री सदगुरू के सुमिरन । ध्यान और सेवा के द्वारा उनकी कृपा से तीसरे नेत्र के खुलने पर ही होता है । शरीर को जीतना सहज है । मन को जीतना । काम । चंचल । मोह । माया को जीतना । और नाम यश की वासना को जीतना बहुत कठिन है ।
3 मोह माया से अलिप्त होना । अर्थात वासनाजयी होना होगा । इन तीनों को जीवन में लाना । या इनकी साधना करना ही तपस्या है । असली तपस्या तो एक मात्र गुरू वाणी का पालन करना । अपने प्रभु के वचनों का अक्षरश: पालन ही है । श्री सदगुरू देव जी महाराज द्वारा मिले हुए गुरू मंत्र का भजन ध्यान करना । गुरू और दरबार की सेवा करना ही सच्ची तपस्या है ।
श्री सदगुरू देव जी महाराज को पाना इतना सहज नहीं है । उसके लिये बृह्मचारी होना होगा । मैं अपना अनुभव आप लोगों से कहता हूं । ठीक बृह्मचारी हुए बिना ठीक ठीक ध्यान होना असम्भव है । सूक्ष्म मनोकामना को
जीतना बडा कठिन है । इसी कारण सन्यासियों के इतने कठोर नियम हैं । सन्यासियों को समस्त सृष्टि में युवक युवतियों को भाई बहन की दृष्टि से देखना चाहिए । कभी भी किसी की निन्दा न करें । सबमें सम भाव रखें । राग । द्वेष तज दें । सादा जीवन उच्च विचार रखना चाहिये । श्री सदगुरू देव जी महाराज के प्रति सच्ची लगन के साथ उनकी गहन सेवा करना । आज्ञा पालन करना । हमेशा प्रभु की इच्छा को याद कर कर्म करना । दर्शन । पूजा । भजन । ध्यान । चिन्तन करना ही सच्ची तपस्या है । ऐसी दृष्टि रखकर जो तपस्या करेंगे । उन्हें हर प्राणी । हर वस्तु में प्रभु की झलक मिलेगी । मन का स्वभाव सरल होगा । व्यवहार शुद्ध होगा । सदा सुन्दर ध्येय रखना चाहिये । तपस्या में बृह्मचर्य का पालन होने पर प्रत्येक वस्तु में प्रभु दिखायी देंगे । बृह्मचर्य के पालन से ओजस शक्ति । मन में भक्ति । श्रद्धा और अगाध प्रेम बढता है । यही सच्ची तपस्या है ।
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यह शिष्य जिज्ञासा पर आधारित प्रश्नोत्तरी श्री राजू मल्होत्रा जी द्वारा प्रेषित की गयी है । हमारे कुछ साधकों को भृम हो गया है कि - ये उत्तर श्री महाराज जी के हैं । पर ऐसा नहीं है
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