आरती सदगुरु देव नमामी । पारबृह्म सब जग के स्वामी ।
विधि हरि हर तुम्हरो यश गावे । शेष शारदा तुमको ध्यावे ।
राम कृष्ण गुरु के गुण गावे । जय शिवानन्द परधामी ।
भव के संकट तारन हारे । काल कर्म गति नाशन हारे ।
आये शरण तुम्हारे द्वारे । अलख अगोचर अगम अनामी ।
श्री गुरु चरण कमल की छाया । जाकी शरण जीव जो आया ।
करते दूर ताप त्रिय माया । करो दया गुरु अन्तर्यामी ।
सत्य नाम गुरु हमको दीना । चंचल मन निश्चल कर दीन्हा ।
पायो ज्ञान मोक्ष पद लीन्हा । परम भक्ति पद के अनुगामी ।
निशि दिन आरत करों तुम्हारी । सुन लीजे गुरु विनय हमारी ।
कहते सच्चिदानन्द पुकारी । बारम्बार सदगुरु देव नमामी ।
**************
कहते हैं । हर कार्य के लिये कोई न कोई निमित्त बन जाता है । जैसे ये सदगुरु देव जी की आरती । हमारे मण्डल के सदस्य विष्णु इसके निमित्त बन गये । वरना अभी तो दूर दूर तक मेरे ख्याल में आरती की बात नहीं थी । हमारे यहाँ के शिष्यों के लिये तो ये आरती लाभदायक है ही । अन्य दीक्षा प्राप्त या निगुरा जनों के लिये भी विशेष लाभकारी है । क्योंकि सभी सार्थक शब्द मन्त्र की भांति ही कार्य करते हैं । और स्थूल आवरण से बँधा जीव । स्थूल जगत से
मोहित हुआ जीव सूक्ष्म ज्ञान को इतनी जल्दी आंतरिक रूप से गृहण नहीं कर पाता । तब शब्दों में बँधे भाव उसके लिये विशेष लाभकारी होते हैं । क्योंकि उन पर उनका विश्वास ज्यादा रहा है । और ऐसे ही स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर यात्रा भी शुरू हो जाती है ।
अक्सर बहुत लोग मुझसे पूछते रहे कि सदगुरु की खोज । सदगुरु की पहचान कैसे करें ? उनके लिये भी ये आरती एक अच्छा उपाय है । आप पूर्ण भक्ति भाव से इस आरती को गायें । और आत्मज्ञान के किसी भी सन्त का चित्र सामने रखें । कबीर साहब । रैदास जी । मीरा जी । रामकृष्ण परमहँस । स्वामी विवेकानन्द आदि इनमें से किसी का भी चित्र लगा लें । हमारे मण्डल के शिष्यों को इनकी कोई आवश्यकता ही नहीं । वे श्री महाराज जी का ही चित्र लगाये । क्योंकि अपने गुरु या समय के सदगुरु का ही महत्व होता है । अन्य लोगों के लिये विकल्प मैंने इसलिये दिया । क्योंकि लोगों में अभिमान बहुत होता है । लेकिन वे भी यदि हमारे प्रति भाव रखते हों । फ़िर कोई दिक्कत नहीं । वे आराम से श्री महाराज जी का चित्र प्रार्थना आरती ध्यान आदि के लिये लगा सकते हैं । इसके लिये आप श्री महाराज जी का जो भी चित्र अच्छा लगे । उस पर राइट क्लिक करके सेव इमेज एज.. आप्शन द्वारा चित्र को कम्प्यूटर में सेव कर लें । फ़िर पेन ड्राइव आदि में डालकर प्रिंट निकलवा लें । जव तक संस्कारवश आपकी कहीं सतनाम दीक्षा नहीं हो पाती । यह क्रिया कुछ न होने की अपेक्षा बहुत लाभदायक है । हमारे बहुत से सदस्य जो भारत के विभिन्न स्थानों में थे । और परिस्थियों वश दीक्षा नहीं ले
पा रहे थे । उनके आग्रह को देखते यही ध्यान दे दिया गया । इससे उन्हें दीक्षा के समय भी लाभ हुआ । और पूर्व में भी ।
इसी जिक्र पर मुझे एक घटना याद आ गयी । एक शिक्षिका जो हमारे यहाँ शिष्य हैं । वे चाहती थी कि उनके विधालय में श्री महाराज जी का एक चित्र हो । पर समस्या ये थी । दूसरा प्रधानाचार्य रिजर्व नेचर और हनुमान जी का भक्त था । वह विरोध कर सकता था । तव उन्हें एक उपाय सूझा । उन्होंने श्री महाराज जी और हनुमान जी का एक एक चित्र फ़्रेम कराया । और टेबल पर ले जाकर रख दिया । इससे वह प्रधानाचार्य बहुत खुश हुआ । और बोला - अब इनके लिये धूपबत्ती आदि भी तो लाओ । केवल फ़ोटो से क्या ।
शिक्षिका बहुत प्रसन्न हुयी । और धूपबत्ती के पैकेट भी ले जाकर रख दिये । इसीलिये मैं कहता हूँ । निमित्त कब कौन बन जाये । चमत्कार कैसे हो जाये । कुछ कहा नहीं जा सकता । वह प्रधानाचार्य वहीं पास से विधालय आता था । जबकि शिक्षिका लगभग 30 km से । जाहिर है । प्रधानाचार्य समय से पहले ही पहुँच जाते थे । आम शिक्षकों से हटकर कर्तव्यनिष्ठा अनुशासन आदि गुण इन प्रधानाचार्य में 100% थे । इसका एक उदाहरण देना चाहूँगा । उनकी सगी जबान बेटी की मृत्यु हो गयी । लेकिन उसका अन्तिम संस्कार स्कूल समय से पूर्व ही हो गया । और कोई होता । तो उस दिन क्या अगले 4-6 दिन स्कूल नहीं जाता । लेकिन ये प्रधानाचार्य उसी दिन अन्तिम संस्कार के तुरन्त बाद स्कूल आये । उनके अनुसार जो जाना था सो गया । बच्चों की शिक्षा का नुकसान क्यों किया जाये ।
कर्तव्य पालन आवश्यक है ।
ये उदाहरण देना आवश्यक भी था । वह आप आगे जान जायेंगे । ये अध्यापक बच्चों के आने से पहले ही स्कूल पहुँच जाते थे । और विधालय शुरू होने तक अन्य कार्य देखते । अब ऐसे सच्चे इंसान के प्रति प्रभु की लीला और प्रेरणा का खेल देखिये । ये तो सीधी सी बात है । ऐसा इंसान स्नान करके ही विधालय आयेगा ।
वह धूप बत्ती नियम से लगाने लगे । और शायद कोई भाव पूजा प्रार्थना भी करते हों । पर अभी भी एक संशय की बात थी । उन शिक्षिका को ये पता नहीं था कि ये दोनों ही चित्रों पर पूजा करते हैं । या सिर्फ़ हनुमान जी के चित्र पर । क्योंकि उनके पहुँचने तक पुष्प धूपबत्ती आदि लग चुकी होती थी । फ़िर एक दिन इसका भी पता लग गया । जब शिक्षिका जल्दी पहुँच गयीं । प्रधानाचार्य जी धूपबत्ती जला ही रहे थे । वे छुपकर देखने लगी । प्रधानाचार्य ने पहले श्री महाराज जी के चित्र पर धूपबत्ती को घुमाया । फ़िर हनुमान जी के । गुरु गोविन्द दोऊ खङे काके लागों पांय । इसके बाद नतमस्तक प्रणाम किया ।
अब चमत्कार ये था कि कुछ ही दिनों में उनके स्वभाव में बदलाव होने लगा । आध्यात्मिकता झलकने लगी । एक शान्ति सी उनके मुख पर दिखाई देने लगी । बातचीत के ढंग में परिवर्तन आ गया । और इसीलिये मैं कहता हूँ । कभी कभी पुण्य के मार्ग बहुत सरल और सस्ते हो जाते हैं । उन शिक्षिका के दो फ़ोटो अधिकतम 60 रुपये कीमत ( सिर्फ़ एक बार ) और एक महीने की धूपबत्ती अधिकतम 50 रुपये । लेकिन एक व्यक्ति में सकारात्मक बदलाव हो गया । आध्यात्मिक जागरण ।
मगर बात इतनी ही नहीं । स्कूल लगभग रोज ही आना है । गौर से सोचिये । प्रधानाचार्य रोज स्नान करके आते
ही थे । सुबह सुबह कर्तव्य पालन के साथ साथ प्रतिदिन भक्ति पूजा भी होने लगी । और ये बात कोई छोटी बात नहीं हैं । कर्मपूजा आरम्भ होने से पूर्व ईश पूजा की तरंगे वातावरण में फ़ैल गयी । फ़िर उसी भाव से पूरा दिन गुजरा । शिक्षण कार्य उसी भावना में हुआ । जाहिर है । ऐसा व्यक्ति बच्चों में अच्छे संस्कार डालेगा । फ़ुरसत के क्षणों में आध्यात्मिक चर्चा के प्रति रुझान गया । अगर ध्यान से सोचें । तो उन प्रधानाचार्य का शेष पूरा जीवन ही उस शिक्षिका की संगति से बदल गया । संगति ही गुण ऊपजे । संगति ही गुण जाये । बांस फ़ांस और मिसरी एक ही भाव बिकाय ।
जबकि शायद उस शिक्षिका को भी पहले ये बोध न रहा होगा । मात्र अपने गुरु का चित्र लगाने की चाह इतना बङा परिवर्तन कर सकती हैं । पर मुझे इसका फ़ल पता है । थोङा समझने पर आप भी अन्दाजा लगा सकते हैं । यदि प्रधानाचार्य दस साल भी भक्ति कर गये । या आजीवन उनकी भक्ति भावना प्रगाङ होती चली गयी । तो उन्हें बहुत कुछ प्राप्त हो जायेगा । और ये मैं कई बार बता चुका हूँ । किसी की भी आत्मिक उन्नति कराने का सभी पुण्यकर्मों से बङा फ़ल होता है । इस तरह उस शिक्षिका को अनजाने में ही कितना बङा लाभ हुआ । इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते । जबकि कर्म और व्यय नगण्य सा ही था । मान लीजिये । वो 2 महीने तक आध्यात्मिक चर्चा करके इसी स्थिति तक प्रधानाचार्य की मानसिकता बना पाती कि वो नित्य पूजा बत्ती आदि करें । तो भी इतना ही फ़ल होता । जबकि मामूली से जतन से हो गया । इसीलिये भक्ति में बहुत शक्ति है । भक्ति स्वतन्त्र सकल सुख खानी । बिनु सतसंग न पावहि प्रानी ।
- आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
विधि हरि हर तुम्हरो यश गावे । शेष शारदा तुमको ध्यावे ।
राम कृष्ण गुरु के गुण गावे । जय शिवानन्द परधामी ।
भव के संकट तारन हारे । काल कर्म गति नाशन हारे ।
आये शरण तुम्हारे द्वारे । अलख अगोचर अगम अनामी ।
श्री गुरु चरण कमल की छाया । जाकी शरण जीव जो आया ।
करते दूर ताप त्रिय माया । करो दया गुरु अन्तर्यामी ।
सत्य नाम गुरु हमको दीना । चंचल मन निश्चल कर दीन्हा ।
पायो ज्ञान मोक्ष पद लीन्हा । परम भक्ति पद के अनुगामी ।
निशि दिन आरत करों तुम्हारी । सुन लीजे गुरु विनय हमारी ।
कहते सच्चिदानन्द पुकारी । बारम्बार सदगुरु देव नमामी ।
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कहते हैं । हर कार्य के लिये कोई न कोई निमित्त बन जाता है । जैसे ये सदगुरु देव जी की आरती । हमारे मण्डल के सदस्य विष्णु इसके निमित्त बन गये । वरना अभी तो दूर दूर तक मेरे ख्याल में आरती की बात नहीं थी । हमारे यहाँ के शिष्यों के लिये तो ये आरती लाभदायक है ही । अन्य दीक्षा प्राप्त या निगुरा जनों के लिये भी विशेष लाभकारी है । क्योंकि सभी सार्थक शब्द मन्त्र की भांति ही कार्य करते हैं । और स्थूल आवरण से बँधा जीव । स्थूल जगत से
मोहित हुआ जीव सूक्ष्म ज्ञान को इतनी जल्दी आंतरिक रूप से गृहण नहीं कर पाता । तब शब्दों में बँधे भाव उसके लिये विशेष लाभकारी होते हैं । क्योंकि उन पर उनका विश्वास ज्यादा रहा है । और ऐसे ही स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर यात्रा भी शुरू हो जाती है ।
अक्सर बहुत लोग मुझसे पूछते रहे कि सदगुरु की खोज । सदगुरु की पहचान कैसे करें ? उनके लिये भी ये आरती एक अच्छा उपाय है । आप पूर्ण भक्ति भाव से इस आरती को गायें । और आत्मज्ञान के किसी भी सन्त का चित्र सामने रखें । कबीर साहब । रैदास जी । मीरा जी । रामकृष्ण परमहँस । स्वामी विवेकानन्द आदि इनमें से किसी का भी चित्र लगा लें । हमारे मण्डल के शिष्यों को इनकी कोई आवश्यकता ही नहीं । वे श्री महाराज जी का ही चित्र लगाये । क्योंकि अपने गुरु या समय के सदगुरु का ही महत्व होता है । अन्य लोगों के लिये विकल्प मैंने इसलिये दिया । क्योंकि लोगों में अभिमान बहुत होता है । लेकिन वे भी यदि हमारे प्रति भाव रखते हों । फ़िर कोई दिक्कत नहीं । वे आराम से श्री महाराज जी का चित्र प्रार्थना आरती ध्यान आदि के लिये लगा सकते हैं । इसके लिये आप श्री महाराज जी का जो भी चित्र अच्छा लगे । उस पर राइट क्लिक करके सेव इमेज एज.. आप्शन द्वारा चित्र को कम्प्यूटर में सेव कर लें । फ़िर पेन ड्राइव आदि में डालकर प्रिंट निकलवा लें । जव तक संस्कारवश आपकी कहीं सतनाम दीक्षा नहीं हो पाती । यह क्रिया कुछ न होने की अपेक्षा बहुत लाभदायक है । हमारे बहुत से सदस्य जो भारत के विभिन्न स्थानों में थे । और परिस्थियों वश दीक्षा नहीं ले
पा रहे थे । उनके आग्रह को देखते यही ध्यान दे दिया गया । इससे उन्हें दीक्षा के समय भी लाभ हुआ । और पूर्व में भी ।
इसी जिक्र पर मुझे एक घटना याद आ गयी । एक शिक्षिका जो हमारे यहाँ शिष्य हैं । वे चाहती थी कि उनके विधालय में श्री महाराज जी का एक चित्र हो । पर समस्या ये थी । दूसरा प्रधानाचार्य रिजर्व नेचर और हनुमान जी का भक्त था । वह विरोध कर सकता था । तव उन्हें एक उपाय सूझा । उन्होंने श्री महाराज जी और हनुमान जी का एक एक चित्र फ़्रेम कराया । और टेबल पर ले जाकर रख दिया । इससे वह प्रधानाचार्य बहुत खुश हुआ । और बोला - अब इनके लिये धूपबत्ती आदि भी तो लाओ । केवल फ़ोटो से क्या ।
शिक्षिका बहुत प्रसन्न हुयी । और धूपबत्ती के पैकेट भी ले जाकर रख दिये । इसीलिये मैं कहता हूँ । निमित्त कब कौन बन जाये । चमत्कार कैसे हो जाये । कुछ कहा नहीं जा सकता । वह प्रधानाचार्य वहीं पास से विधालय आता था । जबकि शिक्षिका लगभग 30 km से । जाहिर है । प्रधानाचार्य समय से पहले ही पहुँच जाते थे । आम शिक्षकों से हटकर कर्तव्यनिष्ठा अनुशासन आदि गुण इन प्रधानाचार्य में 100% थे । इसका एक उदाहरण देना चाहूँगा । उनकी सगी जबान बेटी की मृत्यु हो गयी । लेकिन उसका अन्तिम संस्कार स्कूल समय से पूर्व ही हो गया । और कोई होता । तो उस दिन क्या अगले 4-6 दिन स्कूल नहीं जाता । लेकिन ये प्रधानाचार्य उसी दिन अन्तिम संस्कार के तुरन्त बाद स्कूल आये । उनके अनुसार जो जाना था सो गया । बच्चों की शिक्षा का नुकसान क्यों किया जाये ।
कर्तव्य पालन आवश्यक है ।
ये उदाहरण देना आवश्यक भी था । वह आप आगे जान जायेंगे । ये अध्यापक बच्चों के आने से पहले ही स्कूल पहुँच जाते थे । और विधालय शुरू होने तक अन्य कार्य देखते । अब ऐसे सच्चे इंसान के प्रति प्रभु की लीला और प्रेरणा का खेल देखिये । ये तो सीधी सी बात है । ऐसा इंसान स्नान करके ही विधालय आयेगा ।
वह धूप बत्ती नियम से लगाने लगे । और शायद कोई भाव पूजा प्रार्थना भी करते हों । पर अभी भी एक संशय की बात थी । उन शिक्षिका को ये पता नहीं था कि ये दोनों ही चित्रों पर पूजा करते हैं । या सिर्फ़ हनुमान जी के चित्र पर । क्योंकि उनके पहुँचने तक पुष्प धूपबत्ती आदि लग चुकी होती थी । फ़िर एक दिन इसका भी पता लग गया । जब शिक्षिका जल्दी पहुँच गयीं । प्रधानाचार्य जी धूपबत्ती जला ही रहे थे । वे छुपकर देखने लगी । प्रधानाचार्य ने पहले श्री महाराज जी के चित्र पर धूपबत्ती को घुमाया । फ़िर हनुमान जी के । गुरु गोविन्द दोऊ खङे काके लागों पांय । इसके बाद नतमस्तक प्रणाम किया ।
अब चमत्कार ये था कि कुछ ही दिनों में उनके स्वभाव में बदलाव होने लगा । आध्यात्मिकता झलकने लगी । एक शान्ति सी उनके मुख पर दिखाई देने लगी । बातचीत के ढंग में परिवर्तन आ गया । और इसीलिये मैं कहता हूँ । कभी कभी पुण्य के मार्ग बहुत सरल और सस्ते हो जाते हैं । उन शिक्षिका के दो फ़ोटो अधिकतम 60 रुपये कीमत ( सिर्फ़ एक बार ) और एक महीने की धूपबत्ती अधिकतम 50 रुपये । लेकिन एक व्यक्ति में सकारात्मक बदलाव हो गया । आध्यात्मिक जागरण ।
मगर बात इतनी ही नहीं । स्कूल लगभग रोज ही आना है । गौर से सोचिये । प्रधानाचार्य रोज स्नान करके आते
ही थे । सुबह सुबह कर्तव्य पालन के साथ साथ प्रतिदिन भक्ति पूजा भी होने लगी । और ये बात कोई छोटी बात नहीं हैं । कर्मपूजा आरम्भ होने से पूर्व ईश पूजा की तरंगे वातावरण में फ़ैल गयी । फ़िर उसी भाव से पूरा दिन गुजरा । शिक्षण कार्य उसी भावना में हुआ । जाहिर है । ऐसा व्यक्ति बच्चों में अच्छे संस्कार डालेगा । फ़ुरसत के क्षणों में आध्यात्मिक चर्चा के प्रति रुझान गया । अगर ध्यान से सोचें । तो उन प्रधानाचार्य का शेष पूरा जीवन ही उस शिक्षिका की संगति से बदल गया । संगति ही गुण ऊपजे । संगति ही गुण जाये । बांस फ़ांस और मिसरी एक ही भाव बिकाय ।
जबकि शायद उस शिक्षिका को भी पहले ये बोध न रहा होगा । मात्र अपने गुरु का चित्र लगाने की चाह इतना बङा परिवर्तन कर सकती हैं । पर मुझे इसका फ़ल पता है । थोङा समझने पर आप भी अन्दाजा लगा सकते हैं । यदि प्रधानाचार्य दस साल भी भक्ति कर गये । या आजीवन उनकी भक्ति भावना प्रगाङ होती चली गयी । तो उन्हें बहुत कुछ प्राप्त हो जायेगा । और ये मैं कई बार बता चुका हूँ । किसी की भी आत्मिक उन्नति कराने का सभी पुण्यकर्मों से बङा फ़ल होता है । इस तरह उस शिक्षिका को अनजाने में ही कितना बङा लाभ हुआ । इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते । जबकि कर्म और व्यय नगण्य सा ही था । मान लीजिये । वो 2 महीने तक आध्यात्मिक चर्चा करके इसी स्थिति तक प्रधानाचार्य की मानसिकता बना पाती कि वो नित्य पूजा बत्ती आदि करें । तो भी इतना ही फ़ल होता । जबकि मामूली से जतन से हो गया । इसीलिये भक्ति में बहुत शक्ति है । भक्ति स्वतन्त्र सकल सुख खानी । बिनु सतसंग न पावहि प्रानी ।
- आप सबके अंतर में विराजमान सर्वात्मा प्रभु आत्मदेव को मेरा सादर प्रणाम ।
2 टिप्पणियां:
Dhanyad bhaiya, JAI GURUDEV
Jai shri gurudev mahaaraj ji ki
Kripya Shirshak Badalne ki kripa karen.
Ex= आरती सदगुरुदेव महाराज जी की
इससे सर्च करने वालों को आसानी से पता चल जाएगी
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