आदरणीय बाबाजी क्या आपको आत्मज्ञान हुआ है?
तो आप दुनिया के सामने कुछ चमत्कार करके क्यों नहीं मीडिया में छा जाते ? जैसे पूरी दुनिया कृष्ण मीरा कबीर हज़रत मोहमंद रामकृष्ण परमहंस मसूर ओशो या श्रीराम को जानती है ? शास्त्र पूरण गीता वेद कुरान बाइबल पड़कर उसमे से संतो के अनुभव की जानकारी को तोड़-मरोड़कर दुनिया के सामने पेश करने से कोई आत्मज्ञानी नही बन जाता ? आपने कुछ पाया है तो क्यों नही दुनिया के सामने लाते ? किताबों या शास्त्रों से मिली जानकारी आपको एक अच्छा पाठक जानकार विश्लेषक तो बना सकती है पर आत्मज्ञानी नही ?
जब फूल खिलता है तो भवरों को आमन्त्रण नही दिया जाता । खूसबू की तरफ वो अपने आप ही खिचे चले आते है ? यदि आप सही में समाज को कुछ देना चाहते है तो ब्लॉग पर वो लिखे । जो आपने खुद पाया या अनुभव किया । "आध्त्मिक इतिहास" से कॉपी पेस्ट न हो ?
यदि आपके पास कुछ अपना ओरिजिनल है जो आपको एक आत्मज्ञानी साबित कर सके । मैं जीवन भर आपकी सेवा में हाज़िर हूं ?
इधर उधर की अनावश्यक व बेकार की बातें लिखकर अपना व लोगो का समय नष्ट न करे ? अच्छा होगा कि आप अपने साधना पथ पर जब तक कुछ हासिल न कर ले । धर्म कि शिक्षा / भाषण न दे ?
जीवन छोटा है ऐसा न हो कि आप मृत्यु तक भाषण ही देते रहे ? यदि आपको मेरे लेख से कोई ठेस पहुचे मैं माफ़ी चाहूँगा । आप मुझे संपर्क करना चाहे तो मुझे जवाब ब्लॉग या मेल capricon @ mail.com करे । धन्यवाद ।
- ऊपर लिखा ये कमेंट किन्ही बेनामी साहब ने मेरे लेख जब सृष्टि 3 घन्टे को रुक गयी ? पर दिया है ।ऐसे लोगों से मेरा अनुरोध है । कृपया कमेंट के साथ अपना शुभ नाम और शहर का नाम अवश्य लिखें । साथ ही जो लोग मुझे मेल पर मैसेज भेजते हैं वो भी यथासंभव ब्लाग पर कमेंट द्वारा ही मैसेज करें । अब इस कमेंट के प्रत्येक प्रश्न पर मेरे उत्तर देखिये ।
q.आदरणीय बाबाजी क्या आपको आत्मज्ञान हुआ है ?
ans..लगता है आपने एक दो लेख पढकर..और जल्दी में यह कमेंट कर दिया ।.. मैं पिछले सात सालों से श्री महाराज जी के अधीन संतमत के अद्वैत ग्यान का साधक हूं । इसमें भी हम लोग साधक के बजाय भक्त शब्द का उपयोग करते हैं । मैं रूपी अहम की दीवार ज्यों ज्यों गिरती जाती है । आत्मा का ग्यान होने लगता है । इसी की युक्ति को सुरति शब्द साधना कहते हैं । और ये कोई भी कर सकता है ।
q. तो आप दुनिया के सामने कुछ चमत्कार करके क्यों नहीं मीडिया में छा जाते ? जैसे पूरी दुनिया कृष्ण । मीरा । कबीर । हज़रत मोहमंद । रामकृष्ण परमहंस । मसूर । ओशो या श्रीराम को जानती है ?
ans.. संतमत में चमत्कार शब्द से बेहद परहेज किया जाता है । श्रीकृष्ण ने गीता में इन्हीं को योगभृष्ट कहा है । चमत्कार सिद्ध परम्परा और द्वैत योग में आता है । जिसका तुरन्त तो बहुत लाभ नजर आता है । परन्तु अंत बहुत बुरा होता है । आपने शायद वह घटना सुनी हो । जिसमें जल पर चलने वाले सिद्ध से किसी संत ने कहा था । महात्मा तेरा पूरा ग्यान दो रुपये कीमत का रहा क्योंकि जिस नदी को तू योगशक्ति से पार करता है । उसे नाव से पार करने के सिर्फ़ दो रुपये लगते हैं..? आपने ऊपर जो मीरा आदि..नाम प्रसिद्ध हेतु गिनाये हैं । इनमें से किन लोगों ने चमत्कार किये थे ? इन सबने भी किसी ग्यान परम्परा को आगे बडाते हुये ग्यान को लोगों तक पहुंचाया । इन सबके साथ लोगों ने क्या सलूक किया ? आपको मालूम ही होगा । संतमत में जीव को चेताना ( जाग्रत करना ) किसी भी संत का प्रमुख कर्तव्य कहा गया है । अगर मुझे कंप्यूटर का पूर्व ग्यान है और मैं उसका उपयोग लोगों तक । जो भी मैं जानता हूं ?? उसको बताने में कर रहा हूं । तो मेरे ख्याल में इसमें कोई गलत बात नहीं है ? या है ? वास्तव में दुनिंया का बहुत पुराना नियम है कि ये जाने के बाद इंसान की कदर करती है ?
q. शास्त्र । पूरण । गीता । वेद । कुरान । बाइबल पड़कर उसमे से संतो के अनुभव की जानकारी को तोड़-मरोड़कर दुनिया के सामने पेश करने से कोई आत्मज्ञानी नही बन जाता ? आपने कुछ पाया है । तो क्यों नही दुनिया के सामने लाते ?? किताबों या शास्त्रों से मिली जानकारी । आपको एक अच्छा पाठक । जानकार । विश्लेषक तो बना सकती है । पर आत्मज्ञानी नही ?
ans..आपकी इस बात का मतलब ठीक से मेरी समझ में नहीं आया ? मैंने अपने लिये कहीं भी आत्मग्यानी शब्द का प्रयोग नहीं किया । हां । उस कक्षा का विधार्थी हूं । इसमें कोई शक नहीं है ।..को तोड़-मरोड़कर..? इसको अगर आप क्लियर करते कि कहां आपको ऐसा लगा ? तो फ़िर मैं कुछ स्पष्ट भी करता । मैंने अक्सर देखा है । या तो आप लोग धार्मिक मैटर देखकर को देखकर उपेक्षा करते हो । या फ़िर पढकर बौखला जाते हो । पाचन शक्ति बढाओ । भाई ।प्रभु की लीला बडी ही चमत्कारी है ?
q..जब फूल खिलता है तो भवरों को आमन्त्रण नही दिया जाता । खूसबू की तरफ वो अपने आप ही खिचे चले आते है ? यदि आप सही में समाज को कुछ देना चाहते है तो ब्लॉग पर वो लिखे ।
ans संतो के तीन प्रकार होते है ।
1 तरन ( केवल खुद तरने वाले । एकाकी संत । जिन्हें कोई भी नहीं जान पाता कि ये अच्छे संत हैं । थे । )
2 तारन ( जो दूसरों को चेताते रहते हैं । खुद भजन ध्यान ठीक से नहीं करते । )
3 तरनतारन ( जो ग्यान द्वारा दूसरों को भी तारते हैं और स्वयं भी भजन ध्यान करते हैं । ) मैं आपको सच बताऊं । मैं बडा आलसी किस्म का हूं । मैंने तरन वाला ही उचित समझा था । पर क्योंकि हम गुरु की शरन में आते ही उनके अधीन हो जाते हैं ।
राम कृष्ण से कौन बड । तिन हूं ने गुरु कीन ।
तीन लोक के ये धनी गुरु आग्या आधीन ।
इसलिये आदेश मानना पडता है । आपको पता होगा । विवेकानन्द जी हिमालय में समाधि का आनन्द लेना चाहते थे और रामकृष्ण ने उनको प्रचार की आग्या दी थी । पता है भाई कि ये भी नहीं पता ?
q जो आपने खुद पाया या अनुभव किया । "आध्त्मिक इतिहास" से कॉपी पेस्ट न हो ?
ans शायद आप किसी भी साधना की A B C D भी नहीं जानते । साधना के आंतरिक अनुभव बयान करने से साधना नष्ट हो जाती है । उस बात को किसी माध्यम से घुमाकर कहा जाता है । कृष्ण ने तो साधारण इंसान से । साधारण कर्म हेतु मना किया है कि तू सारे कर्म अकर्ता बनकर कर । आप मुझ पढे लिखे को ये शिक्षा दे रहे हो । गलत बात है भाई ??
ans शायद आप किसी भी साधना की A B C D भी नहीं जानते । साधना के आंतरिक अनुभव बयान करने से साधना नष्ट हो जाती है । उस बात को किसी माध्यम से घुमाकर कहा जाता है । कृष्ण ने तो साधारण इंसान से । साधारण कर्म हेतु मना किया है कि तू सारे कर्म अकर्ता बनकर कर । आप मुझ पढे लिखे को ये शिक्षा दे रहे हो । गलत बात है भाई ??
q..यदि आपके पास कुछ अपना ओरिजिनल है । जो आपको एक आत्मज्ञानी साबित कर सके । मैं जीवन भर आपकी सेवा में हाज़िर हूं ?
ans जब आपने इतनी बात कह ही दी । तो फ़िर क्या बात है मैं क्या हूं क्या नहीं इसे छोडो ?
हां कहो तो है नहीं । ना कही ना जाय ।
हां ना के बीच में । साहिब रहा समाय ?
(निकालो इस लाइन का अर्थ ) आप खुद अपनी आत्मा को देख सकोगे । भैया । ये कोई चमत्कार नहीं । संतमत की । विहंगम मार्गी । भृंग गुरु विधि है । और मेरी सेवा भी मत करना ।
q..इधर उधर की अनावश्यक व बेकार की बातें लिखकर अपना व लोगो का समय नष्ट न करे ? अच्छा होगा कि आप अपने साधना पथ पर जब तक कुछ हासिल न कर ले । धर्म कि शिक्षा / भाषण न दे ?
ans..आपको पसन्द नहीं आयी । पर बहुत लोग पसन्द कर रहे हैं इसलिये लिख रहा हूं ।
जीवन छोटा है ? ऐसा न हो ? कि आप मृत्यु तक भाषण ही देते रहे ? यदि आपको मेरे लेख से कोई ठेस पहुचे मैं माफ़ी चाहूँगा आप मुझे संपर्क करना चाहे तो मुझे जवाब ब्लॉग या मेल capricon@mail.com करे । धन्यवाद ।
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