13 जनवरी 2011
यह भी एक सरल साधना है ।
नमस्ते जी । राजीव जी । मैं 25 दिसम्बर को अपनी सिस्टर एन्ड जीजाजी के पास लुधियाना चली गयी थी । एन्ड कल वापस आयी हूँ । इसलिये तकरीवन 2 वीक्स से मैं इंटरनेट पर नहीं आ पायी । जब कल घर आकर इंटरनेट खोला तो आपका । हैप्पी न्यू ईयर । HAPPY NEW YEAR 2011..इन एडवांस वाला मेसेज मुझे मेरे इनबाक्स में मिला । सारी । मैं आउट आफ़ स्टेशन चली गयी थी । इसलिये आपको हैप्पी न्यू ईयर का मेसेज नहीं भेज सकी । आई होप । आपने बुरा नहीं माना होगा । मैंने कल जब आकर आपका ब्लाग देखा । तो आपके बाकी आर्टीकल जो 2011 में आपने लिखे । वो भी पढे । मैं आपको 1 बात बताऊँ । मैंने आपके ब्लाग के बारे में लोगों को बताना शुरू कर दिया है । जैसे किसी पडोसन को । सहेली को । किसी रिश्तेदार को । एन्ड उनसे ये भी कहा है कि आप लोग भी आगे । और से और..लोगों को इस ब्लाग के बारे में बतायें । मेरा मेसेज मिलते ही मुझे आप रिप्लाई मेसेज जरूर भेज दें । बिकाज मुझे पता चल जायेगा कि मेरा मेसेज आप तक ठीक ठीक पहुँच गया । एन्ड हैप्पी लोहडी । HAPPY LOHRI ( ई मेल से )*** वैसे इस ई मेल को ब्लाग पर प्रकाशित करने का कोई औचित्य नहीं बनता । यदि इसमें सर्वजन उपयोगी एक बेहद महत्वपूर्ण बात न लिखी होती । मेरी एक महिला पाठक द्वारा भेजा गया ये ई मेल इंटरनेट पर ब्लाग के माध्यम से की जा रही मेरी मेहनत की सफ़लता की कहानी बयान करता है । इससे पहले भी नेट के माध्यम से जो लोग मुझसे आध्यात्मिक तौर पर जुङे । आत्मिक तौर पर उन्होंने प्रेम महसूस किया । उन लोगों ने कभी कभार फ़ोन । ई मेल । ब्लाग कमेंटस पर इस बात की झिझक जाहिर की । कि कहीं हम आपको ( मुझे ) अधिक सवाल पूछकर ज्यादा डिस्टर्ब तो नहीं करते ?..मैंने जबाब दिया । नहीं..हरगिज नहीं । आज आप जो तीवृ जिग्यासा में मुझसे प्रश्न पूछकर समाधान पा रहे हो । कल आप दूसरे लोगों का समाधान करने में सक्षम हो जाओगे । आज जो स्टूडेंट है । कल वही टीचर भी बनेगा ।..बीते हुये कल में..मैंने भी किसी से सीखा ही था । और जब आप सीख जाओगे । तो परमात्मा के इस एकमात्र और दुर्लभ अनादिकाल से चले आ रहे सनातन ग्यान के बारे में स्वतः लोगों को जागरूक करोगे ।क्योंकि किसी भी ग्यान को निरंतर चलाने की यही परम्परा है । और तब मेरा उद्देश्य..( जो सिर्फ़ और सिर्फ़..यही एक कार्य होता है । जो किसी भी संत का कर्तव्य होता है । और बाकी सांसारिक कर्तव्यों से संत हमेशा मुक्त होता है । )..सफ़ल हो जायेगा । लगभग 30 वर्ष आयु वालीं इन पाठिका ( महिला पाठक के नाम बताना । मैं उचित नहीं समझता । जब तक वे स्वयँ न चाहें । ) से मैंने ये कभी नहीं कहा कि आप इस ब्लाग का या सतनाम का प्रचार करें ।..दरअसल इस बात की प्रेरणा हमें स्वयँ अन्दर से ही होती है । मेरठ के आसपास के रहने वाले लोग..या जिन्होंने वहीं से थोडी दूर स्थिति नंगली तीर्थ को देखा होगा । जिसमें बसन्त पंचमी पर बेहद बङे स्तर का आयोजन होता है । और देश विदेश से हिन्दू । मुस्लिम । सिख । ईसाई और विश्व के अन्य धर्म । जाति के लोग भारी संख्या में इस आयोजन में शामिल होने आते हैं । उन्हें मालूम होगा कि अद्वैत मिशन और सार शब्द मिशन के द्वारा सतनाम का डंका विश्व भर में पीटने वाले सतगुरु श्री अद्वैतानन्द जी महाराज के शिष्य और उत्तराधिकारी श्री स्वरूपानन्द जी महाराज ने यही कहा था कि नाम ( परमात्मा का वास्तविक नाम ) का डंका जितना बजा सकते हो । बजाओ । इससे हर तरह का लाभ ही लाभ है । यह भी एक सुमरन है । यह भी एक सरल साधना है । यह भी जीवों को चेताना ही है । यह भी परमात्मा से जुडना ही है । क्योंकि आप नाम की चर्चा कर रहे हो । परमात्मा की चर्चा कर रहे हो ।
कबीर साहब ने कहा है । नाम लिया तिन सब लिया । चार वेद का भेद । बिना नाम नरके पङा । पढ पढ चारों वेद । किसी संत ने इसी परम नाम की परम साधिका मीरा जी के लिये कहा है । नाम लेयु और नाम न होय । सभी सयाने लेंय । मीरा सुत जायो नहीं । शिष्य न मुंडयो कोय ।..ये ब्लाग अगर परमात्मा और अध्यात्म जिग्यासाओं के अतिरिक्त किसी और विषय पर होता । तो आपके द्वारा इसका प्रचार करने का कोई अर्थ नहीं था । पर परमात्मा किसी एक का नहीं हैं । बल्कि सबका है । वही आपका सच्चा साथी है । वही आपका असली पिता है । आप कितने ही दिन अखिल सृष्टि में भटक लो । एक न एक दिन आपको उसके ही पास लौटना होगा ।..30 वर्ष आयु वालीं इन पाठिका का जिक्र स्पेशली करना इसलिये उचित लगता है कि तीस वर्ष की जवान आयु में इस तरह की अध्यात्म जिग्यासा और परमात्मा को जानने की इच्छा रखने वाले दुर्लभ लोग ही होते हैं । मैं तो बुजुर्गों को समझा समझा के परेशान हो जाता हूँ ।..बाबा..अब तो उसका नाम ले लो..आखिर में काम वही आयेगा । पर उनके कानों पर जूँ भी नहीं रेंगती ?? धन्यवाद । राम राम । सलाम वालेकुम । सत श्री अकाल ..AND GOOD BYE..
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