अजय दुबे पोस्ट शंकराचार्य को कामकला का ग्यान कैसे हुआ ?? पर । @राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ । भाईसाहब आपने कहा कि सिकंदर कबीर के आगे झुका था ! ये गलत है । क्योंकि सिकंदर चाणक्य ,पुरु के समय आया था । और कबीर मुग़लकाल के समय । तो दोनो की मुलाकात कैसे संभव है ? (डेढ़ हज़ार वर्षो को आप खा गये क्या ? ) और अब कुछ बात लेखक जी से । जिन्होंनेलिखा है । शंकराचार्य को कामकला का ग्यान कैसे हुआ ?? लेखक महोदय ! आपको ये कहानी कहां से मिली ?? क्या प्रमाणिकता है , इसकी ?? आप जैसे लोग किवदंतियों को हवा देते है ??
दूसरी बात आपकी इसी मनगढ़ंत कहानी के अनुसार ? बिना ब्यवहार के ज्ञान को ज्ञान नहीं माना जा सकता । ये तो और भी बात झूठ है । आप ही बताइए । क्या शंकराचार्य जी बाकी सभी ज्ञान को (कामकला को छोडकर ) ब्यवहारिक जानते थे ?? ये संभव है ?? अतः आपसे निवेदन है कि बात वही करे । जो तर्कसंगत हो । किवदंतियो को बढ़ाना बंद करे । समाज वैसे ही कई किवदंतियो से गुमराह है । धन्यवाद । अजय दुबे (एक पाठक ) ।
ANS 1 -- ( आपकी संतुष्टि के लिये कबीर साहित्य का कुछ अंश यहां प्रकाशित कर रहा हूं । कृपया इसका अवलोकन करें । ) ..इन सरल और सहज उपदेशों को सुनकर लोग उनके पीछे चलने लगे थे । दोनों धर्म के अगुआ बने लोग तत्कालीन delhi के बादशाह सिकन्दर लोदी के पास जाकर शिकायत की । वे साथ में कबीर की मां nima को समस्या के समाधान के लिए बनारस लाए थे । और उन्हें कबीर को बुलवाया था । कबीर बादशाहों के बादशाह राम के प्रेम में मस्त आ पहुंचे थे । सिकन्दर लोदी ने गुरु शेख तकी के दबाब में आकर kabeer को सांकलों से जकड़कर बीच गंगा में फ़िकवा दिया । पर कबीर के सांकल अपने आप टूट गए । और वे पानी के सतह पर ध्यानमग्न पाए गए । दोबारा सिकन्दर लोदी ने लकड़ी के ढ़ेर में आग जलाकर उसमें कबीर को डलवा दिया । पर अग्नि भी कबीर को न जला सकी । उल्टे वे और अधिक तेजस्वी होकर आग से प्रकट हुए । अंततः सिकन्दर लोदी ने पागल हाथी के सामने उन्हें डाल दिया । पर हाथी भी कबीर की वंदना कर पीछे हट गया । अंततः पराजित और लज्जित होकर अपने गुरु शेख तकी सहित सिकन्दर लोदी कबीर के चरणों में गिर पड़े । अपने जीवन में ही कबीर ने देश विदेश की कई बार यात्रा की । और जीवों को मुक्ति का सहज मार्ग बताकर चेताया ।..)
अब मेरी बात - वैसे मुझे राजनीतिक इतिहास से बडी बोरियत सी महसूस होती है । पर ये मामला कबीर साहब का है । सिकन्दर जब विश्वविजय यात्रा कर रहा था । उसी समय उसे चर्मरोग की बेहद परेशानी हो गयी थी । उसने काफ़ी इलाज कराया । पर लाभ नहीं हुआ । तब वह भारत इसी आशा से आया था कि कोई अच्छा वैध या साधु इस इलाज का जानकार मिल जाय । तो जब उसकी सवारी एक रास्ते से गुजर रही थी । उस रास्ते में कबीर साहब मगन मस्ती में लेटे हुये थे । शाही सवारी के आगे नियुक्त सैनिकों ने कबीर से कहा । ए फ़कीर । रास्ते से हट । शहंशाह की सवारी आ रही है ।
कबीर ने उसी मौज में कहा । कहां का शहंशाह ? ये तो पूरा भिखारी है । सैनिकों को इस बात पर बेहद हैरत हुयी । उन्होंने सिकंदर से जाकर कहा । सिकंदर ने सोचा । उसे भिखारी कहने वाला या तो कोई पागल हो सकता है । या फ़िर कोई बहुत ऊंचा फ़कीर । सिकंदर कबीर के सामने पहुंचा । और उसने कहा । आपने मुझे भिखारी किस वजह से कहा ? कबीर ने उसी मौज में कहा । तूने इतना लूटपाट कर । लड झगडकर । देश के देश जीत लिये । फ़िर भी तेरा मन नहीं भरा ? ये धन दौलत तेरे साथ एक भी नहीं जायेगी ? क्योंकि ये मामूली बात न होकर संतवाणी थी । इसने सिकंदर के ह्रदय पर सीधे ही चोट की । वह कबीर से प्रभावित हो गया । और आगे बातचीत करने लगा ।..इस मुलाकात में सबसे बडी जो बात हुयी । वो ये कि उस समय सिकंदर को अपने उस चर्मरोग में एकदम शीतलता अनुभव हुयी । मानों उसका वह रोग ठीक ही हो गया हो ? ( ये मेरा भी कई जगह का अनुभव है कि किसी पीडा या दर्द से कराहते । या किसी परेशानी से त्रस्त लोग किसी सच्चे संत के सानिध्य मात्र से आराम और राहत महसूस करने लगे । ) अपने इसी आराम की खातिर । और कबीर साहब के विलक्षण व्यक्तित्व से प्रभावित सिकंदर अधिक से अधिक समय उन्हें देने लगा । यहां तक कि वह अपने धर्म गुरु शेख तकी की उपेक्षा करने लगा । शेख तकी ने उस पर धर्म के विरुद्ध । काफ़िर रवैया अपनाने की धमकी दी ।
सिकंदर बखूबी इसका मतलब जानता था ? सिकंदर क्योंकि कबीर साहब का प्रत्यक्ष प्रभाव देख ही रहा था । अतः वह तो नतमस्तक था ही । पर फ़िर भी उसने शेख तकी के दबाब में आकर कबीर को 52 बार मौत की सजा के समान परीक्षणों से गुजारा । जिनमें नदी में बहते मुर्दे को जीवित करना जैसी शर्त तक शामिल थी । जो बाद में उनका पुत्र कमाल कहलाया । इत्यादि । ) जो कबीर साहित्य की । बाबन अक्षरी । नामक पुस्तक में विस्तार से दिये गये हैं । यहां दुबेजी मैं आपको ये बात भी बता दूं कि इन सजाओं की कुछ घटनायें ( जैसे हाथी से कुचलवाना । इत्यादि । ) अभी की बच्चों की पाठय पुस्तको के रूप में कोर्स में पढाई जा रही हैं ।..आपको शायद ये भी मालूम न हो कि सिकंदर ने कबीर से नाम उपदेश लिया था । और ये वही सिकंदर था । जिसने मृत्यु के समय खाली हाथ अर्थी से बाहर लटकवाये थे । और संदेश दिया था । कि देखो इतनी सम्पत्ति होने के बाबजूद सिकंदर खाली हाथ रुखसत हो रहा है ।एक और इसी से मिलती जुलती बात - मथुरा वृन्दावन के मन्दिर आदि के निर्माण की शुरूआत सबसे पहले अकबर ने कराई थी । क्योंकि वह तानसेन के गुरु हरिदास जी से प्रभावित हो गया था । और उसने भी नाम उपदेश लिया था ।
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