जय गुरुदेव की । राजीव जी धन्यवाद । राजीव जी , कोई इंसान जब बीमार होता है । तो वो ऐसा क्यों सोचता है कि मैं अब ठीक नहीं हो सकता । या हो सकती । उसे अपनी जिंदगी खत्म क्यूं नजर आती है । जैसे किसी का गांठ का आपरेशन होने वाला हो । ( मेरी मां का होने वाला है । ) तो उसे ऐसा क्यों लगता है कि आपरेशन के दौरान मेरी मृत्यु हो जायेगी । वो नकारात्मक क्यों सोचता है । ( जैसा मेरी मां हमेशा कहती है कि मैं नहीं बचूंगी ।) इंसान मौत से इतना डरता क्यूं है ?? जय गुरुदेव की । { श्री विजय तिवारी । मुम्बई । ई मेल से । }
विजय जी , आपके प्राप्त हुये कई ई मेल विवरण के अनुसार । आसानी से आपकी दुखद और मानसिक परेशानी का अन्दाजा लगाया जा सकता है । हमें आपसे पूरी पूरी हमदर्दी है । वैसे सुख दुख इंसान के पूर्व जन्म और इस जन्म के कर्मफ़ल अनुसार ही आते हैं । और उन्हें हर हालत में भोगना ही होता है ।..काया से जो पातक होई । बिनु भुगते छूटे नहीं कोई ।..सुख में सुमरन ना किया । दुख में करता याद । कह कबीर वा दास की कौन सुने फ़रियाद ।.. दुख में सुमरन सब करें । सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमरन करो । तो दुख काहे को होय ।..तो क्यों न हम दुख की स्थिति का डटकर सामना करें..अभी आपको ये बात अजीव लगेगी ? पर दुख ही इंसान को मजबूत बनाता है । कुंती ने श्रीकृष्ण से कहा था । प्रभु आप मुझे सुख के बजाय दुख दें । श्रीकृष्ण को आश्चर्य हुआ । बोले बुआ । ऐसा क्यों ?? कुंती ने कहा । दुख की स्थिति में प्रभु से सच्ची लौ लगी रहती है । और सुख की स्थिति में अच्छे से अच्छा ग्यानी भी प्रभु को भूल जाता है ।.. देखिये सच्चा साधु । अच्छा बैध । और हितचिंतक राजा का मन्त्री । अगर ये तीनों झूठ बोलने लगें । तो कृमशः इंसान । रोगी । और राजा का विनाश हो जाता है ।
पर दुनियां को अपने बारे में भी झूठ सुनने में जाने क्यों मजा आता है ??..सांच कहो जग मारन धावे । झूठ कहो पतियाये ।..जोई रोगिया रोग पुकारे । तैसो ई वैध भरे किलकारे । छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा । प्रगट सो तनु तव आगे सोवा । जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा । उमा दारु जोषित की नाई । सबहि नचावत रामु गोसाई ।..दरअसल इंसान के संचित पुण्यकर्म जब क्षीण होने लगते हैं । तो स्वाभाविक ही पापकर्मों का उदय हो जाता है । जिस प्रकार खेत में फ़सल कट जाने के बाद उसमें तमाम खरपतवार उग आते हैं । जिस प्रकार धन ( यहां पुण्य समझें । ) न होने पर अपने बन्धु बान्धब भी मुंह फ़ेर लेते हैं । और दुष्ट ( यहां पाप समझें । ) सताने लगते हैं । इसी प्रकार बीमारी शरीर की खराबी का बहाना लेकर अवश्य आती है । पर होती वह कर्मफ़ल के रूप में ही है ।..पर निराश न हों । आपने अपनी एक दोस्त के असमय मर जाने पर ही भगवान से ऐसा नाता तोड लिया । मानों पहले पूजा करके भगवान पर एहसान करते रहे हों । लेकिन आप भले ही उससे नाता तोड लें । वह कभी किसी का साथ नहीं छोडता ।
अपनी मां को सकारात्मक चिंतन और प्रभु भक्ति की और उन्मुख करो । बना बिगडी शरीर की होती है । आत्मा की नहीं । जब वह आत्मा परमात्मा का चिंतन करेंगी । तो निश्चय ही इलाज से पहले ही बीमारी में लाभ होने लगेगा । अगर संभव हो । तो पहले तो मेरा नाम बताकर गुरूजी से फ़ोन पर ( नम्बर ब्लाग पर देंखे । ) बात करो । कहना । हमने ब्लाग पर आपके दर्शन किये थे । और अब हम आपकी शरण में आये हैं । आपको निश्चित लाभ होगा । ब्लाग के जरिये ही कई लोगों को लाभ हुआ है । गाजियाबाद के ब्लागर श्री विनय शर्मा का हर्निया का आपरेशन होने वाला था । गुरूजी से बात करके उनका सब डर दूर हो गया । और अब वे पूरी तरह से स्वस्थ हैं ।..देह धरे कर यह फलु भाई । भजिअ राम सब काम बिहाई । सोइ गुनग्य सोई बड़भागी । जो रघुबीर चरन अनुरागी । जन्म जन्म मुनि जतनु कराही । अंत राम कहि आवत नाही । जासु नाम बल संकर कासी । देत सबहि सम गति अविनासी ।
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आपका लिखा ये ज्ञानवर्द्धक लेख पसन्द आया।
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