एक कुम्हार माटी से चिलम बनाने जा रहा था । उसने चिलम का आकार दिया । थोड़ी देर में उसने चिलम को बिगाड़ दिया ।
माटी ने पूछा - अरे कुम्हार, तुमने चिलम अच्छी बनाई । फिर बिगाड़ क्यों दिया ?
कुम्हार ने कहा - अरी माटी, पहले मैं चिलम बनाने की सोच रहा था । किन्तु मेरी मति ( दिमाग ) बदली और अब मैं सुराही बनाऊंगा ।
ये सुनकर माटी बोली - रे कुम्हार, मुझे खुशी है । तेरी तो सिर्फ मति ही बदली । मेरी तो जिंदगी ही बदल गयी । चिलम बनती । तो स्वयं भी जलती और दूसरों को भी जलाती । अब सुराही बनूँगी तो स्वयं भी शीतल रहूंगी और दूसरों को भी शीतल रखूंगी ।
यदि जीवन में हम सभी सही फैसला लें । तो हम स्वयं भी खुश रहेंगे । एवं दूसरों को भी खुशियाँ दे सकेंगे ।
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- भोग और रोग साथी है और ब्रह्मचर्य आरोग्य का मूल है । बुद्ध
- जैसे दीपक का तेल-बत्ती के द्वारा ऊपर चढक़र प्रकाश के रूप में परिणित होता है । वैसे ही ब्रह्मचारी के अन्दर का वीर्य सुषमणा नाड़ी द्वारा प्राण बनकर ऊपर चढ़ता हुआ ज्ञान दीप्ति में परिणित हो जाता है । स्वामी रामतीर्थ
पति के वियोग में कामिनी तड़पती है और वीर्यपतन होने पर योगी पश्चाताप करता है ।
- इस ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही मेरी ऐसी महान महिमा हुई है । भगवान शंकर
माटी ने पूछा - अरे कुम्हार, तुमने चिलम अच्छी बनाई । फिर बिगाड़ क्यों दिया ?
कुम्हार ने कहा - अरी माटी, पहले मैं चिलम बनाने की सोच रहा था । किन्तु मेरी मति ( दिमाग ) बदली और अब मैं सुराही बनाऊंगा ।
ये सुनकर माटी बोली - रे कुम्हार, मुझे खुशी है । तेरी तो सिर्फ मति ही बदली । मेरी तो जिंदगी ही बदल गयी । चिलम बनती । तो स्वयं भी जलती और दूसरों को भी जलाती । अब सुराही बनूँगी तो स्वयं भी शीतल रहूंगी और दूसरों को भी शीतल रखूंगी ।
यदि जीवन में हम सभी सही फैसला लें । तो हम स्वयं भी खुश रहेंगे । एवं दूसरों को भी खुशियाँ दे सकेंगे ।
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- भोग और रोग साथी है और ब्रह्मचर्य आरोग्य का मूल है । बुद्ध
- जैसे दीपक का तेल-बत्ती के द्वारा ऊपर चढक़र प्रकाश के रूप में परिणित होता है । वैसे ही ब्रह्मचारी के अन्दर का वीर्य सुषमणा नाड़ी द्वारा प्राण बनकर ऊपर चढ़ता हुआ ज्ञान दीप्ति में परिणित हो जाता है । स्वामी रामतीर्थ
पति के वियोग में कामिनी तड़पती है और वीर्यपतन होने पर योगी पश्चाताप करता है ।
- इस ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही मेरी ऐसी महान महिमा हुई है । भगवान शंकर
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