राजीव जी ! आज मैं अपना सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न आपसे पूछना चाहता हूँ । मैंने आपसे बहुत बार फोन पर बात की । और कई मेल भी कर चुका हूँ । मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ । आपकी मेरे बारे में क्या सोच है । यानि मेरी बुद्धि या दिमाग कैसा है ? और भक्ति मार्ग में कितना कामयाब हो सकता हूँ । क्योंकि मेरे हिसाब से आज तक मैं जितने भी लोगों से । या यूँ कहिये । ज्ञानी लोगों से मिला हूँ । आप जितना ज्ञानी और विवेकी मुझे कोई नहीं मिला । मैं सच कह रहा हूँ । इस बात को आप अन्यथा मत लेना । और कौन कितना पानी में है । ये जान लेना आपके लिये मामूली बात है । ये भी मैं जानता हूँ । मुझे सही मार्गदर्शन मिले । तो मैं कहाँ तक पहुँच सकता हूँ । ऐसा मैं इसलिये आपसे पूछ रहा हूँ । राजीव जी कि आपके पास इन सवालों के जवाब हैं । मुझे पूरा यकीन है । धन्यवाद । आपका - सोहन ।
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सन्तमत या सचखण्ड ज्ञान की सबसे बङी खासियत यही होती है कि इसमें सत्य वाणी से नहीं बताना होता । बल्कि अपने आप प्रकट होता है । बस थोङा समय अवश्य लगता है । आपको हमसे जुङे हुये लगभग 6 महीने हो गये । मैंने शुरू में ही कहा - 6 महीने बाद आपकी स्थिति में बदलाव शुरू हो जायेगा । रोग गम्भीर है । दवा का असर देर में दिखाई देगा । जबकि आपके घर में ही सदस्यों की स्थिति में ज्ञान स्तर में काफ़ी अन्तर है । आपके साथ जो थे । वो कमाल कर रहे हैं ।
तभी मैंने ये भी कहा था । आपका अगला जन्म भक्त और धनी रूप में होगा । आपकी पत्नी का फ़ोन पर बताऊँगा । अभी कुछ दिन पहले फ़ोन वार्ता में आपने कहा था - मैं कुछ करता नहीं । सब अपने आप हो जाता है । इसी से आप अन्दाजा लगा लीजिये । ज्यों ज्यों कर्ता भाव मरता जायेगा । लक्ष्य और खेल आसान हो जायेगा । सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में । अब जीत तुम्हारे हाथों में । और हार तुम्हारे हाथों में ।
ये इत्तफ़ाक की ही बात है । ये लिखने से कुछ ही समय पहले श्री महाराज जी से आपके यहाँ की ही विस्त्रत चर्चा हो रही थी । वो बातें भी व्यक्तिगत हैं । इसलिये फ़ोन पर । बाकी इसमें बुद्धि दिमाग काम नहीं करता । जितना भक्त समर्पण होता जाता है । मंजिल उतनी ही आसान और करीब होती जाती है - यह फ़ल साधन से नहि होई । तुम्हरी कृपा पाये कोई कोई । इसलिये चिन्ता मत करिये । अगले जन्म में फ़िर मुलाकात होगी । तब आप अच्छे भक्त होंगे । और भक्त संस्कार वाले होंगे । अभी जीव संस्कार अधिक हैं ।
( इससे आगे का हिस्सा मैंने पहले फ़ुरसत में लिख लिया था । ये ऊपर का अभी जोङा है । पर निम्नलिखित बातों का गहराई से विचार करने पर बहुत कुछ समझ में आ जायेगा । )
देखिये एक मामूली सा कमजोर असहाय बच्चा भी कैसे पैदा होता है - शायद आपने कभी इस बात पर गौर न किया हो । और माया आवरित बेख्याली में आपको ऐसा लगता हो कि एक स्त्री पुरुष ने काम सम्बन्ध किये ।
उनके अण्डाणु शुक्राणु का परस्पर निषेचन हुआ । गर्भ ठहर गया । भ्रूण बना । गर्भाशय में पोषित हुआ । और समय पर उसका जन्म हो गया । बस ज्यादातर लोग इससे अधिक नहीं सोचते । और इसे 100 वर्षीय जीवन चक्र की एक सामान्य घटना मानते हैं । पर क्या ये सत्य है ? इस पर गौर करते हैं ।
फ़्लैश बैक - जिस स्त्री पुरुष के संयोग से आज 1 बच्चा उत्पन्न हुआ । उस स्त्री और पुरुष का अपने अपने वर्तमान परिवारों में मनुष्य जन्म सामान्य नियम के तहत भी न्यूनतम साढे 12 लाख साल पूर्व के जन्म संस्कार वश हुआ । अगर इसमें नरक आदि अवधि की और स्थितियाँ जोङी जायें । तो अवधि काफ़ी हो जायेगी । लेकिन बहुत पीछे न जाकर ( जबकि हकीकत में और अधिक ही हो जाता है ) सिर्फ़ एक 84 पूर्व स्थिति को ही मान लेते हैं । तब आज जो पति पत्नी हुये । वह उस जन्म की काम भावना + अन्य मिश्रित लेन देन संस्कार से युक्त होकर हुये । आज जो उनका शिशु रूप जीवात्मा जन्मा । वह भी कम से कम उसी जन्म या उससे और भी पूर्व जन्म के लेन देन संस्कार बीज से अंकुरित हुआ । 84 हो या मनुष्य । ये अलग अलग शरीर भूमि है । भूमि और अनुकूल मौसम खाद पानी मिलते ही बीज अंकुरित हुआ । सोचने वाली बात है । स्त्री के । पुरुष के । बच्चे के । इनके परिवारों के । तथा इनसे जुङने वाले अन्य सांसारिक सम्बन्धों की कितनी विकट संस्कार बेल फ़ैल रही है । तब ये सब मिलकर इस पर 1 कर्म फ़ल लग रहा है ।
तब हर जीवात्मा अपने और अपने से जुङे दूसरों के विभिन्न संस्कारों के साथ शरीर और उसका धर्म धारण कर रही है । है ना चौंकाने वाली बात । आज एक बच्चे के मामूली जन्म की घटना के तार अतीत में लाख वर्ष पूर्व के जुङे हुये हैं । यही बात भक्ति यात्रा पर भी लागू होती है ।
ये सब हो रहा है - ये सव स्वतः हो रहा है । यह महावाक्य है । अगर इंसान इस सरल सी बात को समझ लें । तो तमाम समस्याओं का हल हो जाता है । आप कर्ता बनों । या मत बनो । जिसके द्वारा जो होना है । वह जबरदस्ती उससे करा लिया जायेगा । उमा दारु जोषित की नाई । सबै नचावे राम गुसाई । बस भूल इतनी ही है कि आप मायावश खुद को कर्ता मान लेते हो । और फ़िर - करता सो भरता..वाली बात हो जाती है । व्यर्थ ही आप दण्ड के भागी हो जाते हो । जबकि आपने खूब अनुभव किया होगा । हानि लाभ । दुख सुख । मान अपमान । इन परिस्थितियों पर आपका कोई जोर नहीं होता । फ़िर भी खुद को कर्ता मानने की जिद सी बन गयी है ।
एक मजेदार बात याद आती है । श्रीकृष्ण का समय था । एक छोटे बच्चे की अकाल मौत हो गयी है । श्रीकृष्ण उपाय बताते हैं कि - यदि कोई पूर्ण सत्यवादी इस बच्चे के ऊपर हाथ रख दें । जिसने जीवन में एक बार भी झूठ न बोला हो । तो बच्चा जी उठेगा । लेकिन एक बङी तगङी शर्त है । हाथ झूठा या सच्चा एक ही बार रखा जा सकता है । अगर झूठा रख गया । फ़िर उपाय काम नहीं करेगा । सबकी निगाह तुरन्त ही युधिष्ठर की ओर जाती है । लेकिन युधिष्ठर खुद अपने प्रति स्वयँ से सन्तुष्ट नहीं है - अश्वत्थामा हतो । नरो वा कुंजरो वा । अपने परिजनों की भलाई के लिये सत्य से डिग गये थे युधिष्ठर । अपना सत्य अपने से अधिक कोई नहीं जानता । मना कर देते हैं । पूरे संसार में सत्यवादी की तलाश होती है । बात मामूली नहीं है । अगर बच्चा न जीवित हुआ । तो हत्या जैसा कलंक लगेगा । पूरी उम्मीद ही समाप्त । सब मना कर देते हैं । एक बार नहीं । कई बार झूठ बोला है हमने । पूरे संसार में कोई 1 नहीं मिलता ।
तब श्रीकृष्ण सबसे अन्त में कहते हैं - अब कोई नहीं मिल रहा । तब मैं ही आजमाता हूँ ।
सब चौंक जाते हैं । हँसने तक लगते हैं । कहते हैं - श्रीकृष्ण ! दुनियाँ जानती हैं । आपसे बङा झूठा कोई नहीं है । आप तो मामूली बातों पर झूठ बोल देते हो । कृपया आप हाथ मत रखो । बच्चा फ़िर नहीं जियेगा ।
श्रीकृष्ण हाथ रख देते हैं । बच्चा जीवित हो जाता है । अब सबको घोर आश्चर्य है - श्रीकृष्ण उपाय आपने ही बताया । सब जानते हैं । आपने अनगिनत झूठ बोले हैं । फ़िर ये कैसा आश्चर्य ।
- मैं ! श्रीकृष्ण कहते हैं - सत्य झूठ से ऊपर हूँ । पाप पुण्य से ऊपर हूँ । मेरे अन्दर कर्ता भाव नहीं है । इसलिये कोई भी बात मुझे लगती नहीं है । मैं इन सबसे परे हूँ ।
अब फ़िर - हो रहा है की बात करते हैं - महाभारत युद्ध की रणभेरी बज उठी है । सजी हुयी सेनायें आमने सामने खङी हैं । अर्जुन को विषाद मोह उत्पन्न होता है । तब श्रीकृष्ण युद्ध शुरू होने से पहले ही युद्ध का परिणाम दिखा देते हैं - देख अर्जुन ! तू जिनको मारने के प्रति शोकाकुल हो रहा है । वे सब पहले ही मारे जा चुके हैं । देख सबके क्षत विक्षत शव पङे हुये हैं । जबकि अभी तूने गाण्डीव उठाया तक नहीं । इसलिये तू कर्ता मत बन ।
युद्ध में एक से एक धुरंधर मौजूद हैं । सब जानते भी हैं । श्रीकृष्ण जिसके साथ है । विजय उसी की होगी । पाण्डव सत्य मार्ग पर है । विजय उन्हीं की होगी । धृतराष्ट्र । भीष्म पितामह । दुर्योधन । विदुर । सभी महारथी जानते हैं । सही क्या है । गलत क्या है ? उन्हें अपनी गलती पता है । उसका परिणाम भी पता है । पर फ़िर भी परिस्थितियों के हाथों विवश हैं । जानते हैं । गलती पर हैं । पर विवश हैं । भीषण युद्ध हो रहा है । महारथी हुंकार भर रहे हैं । मैं उसको मार डालूँगा । आज ये करो । कल ये व्यूह रचना करो । सारे प्रयत्न जीत के लिये हैं ।
युद्धभूमि के एक बङे वृक्ष पर एक खोपङी लटकी हुयी यह सब देख रही है । उसने पूरा युद्ध शान्ति से ज्यों का त्यों देखा है । पूर्ण प्रत्यक्षदर्शी है । युद्ध के बाद में सब अपने अपने कौशल का बखान करते हैं । मैंने ये किया । मैंने वो किया । एक जिज्ञासु उस खोपङी से सही बात पूछता हूँ । खोपङी अट्टहास करती है । कहती है - मैंने तो सिर्फ़ मैदान के ऊपर सुदर्शन चक्र ही घूमते देखा । जो कुछ हो रहा था । उसी के द्वारा हो रहा था । वही किसी को मार रहा था । और वही किसी को बचा भी रहा था ।
- यदि न प्रणयेद्राजा दण्डं दण्ड्येष्वतन्द्रितः । शूले मत्स्यानिवापक्ष्यन्दुर्बलान्बलवत्तराः । मनु स्मृति ।
यदि न प्रणयेत राजा दण्डम दण्ड्येषु अतन्द्रितः शूले मत्स्यान इव अपक्ष्यन दुर्बलान बलवत्तराः ।
- यदि राजा दण्डित किये जाने योग्य दुर्जनों के ऊपर दण्ड का प्रयोग नहीं करता है । तो बलशाली व्यक्ति दुर्बल लोगों को वैसे ही पकायेंगे । जैसे शूल अथवा सींक की मदद से मछली पकाई जाती है ।
शब्द सम्हार बोलिये । शब्द के हाथ न पाँव । 1 शब्द औषधि करे । 1 शब्द करे घाव ।
कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो । आंखे मूँदकर उसके पीछे न चलिये । यदि ईश्वर की ऐसी ही इच्छा होती । तो वह हर प्राणी को आँख । नाक । कान । मुँह । मस्तिष्क आदि क्यों देता - विवेकानंद
- बिगरी बात बने नहीं । लाख करो किन कोय । रहिमन बिगरे दूध को । मथे न माखन होय । रहीम
- 20 वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा होता है । वह प्रकृति की देन है । 30 वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार चढ़ाव की देन है । लेकिन 50 वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है - अष्टावक्र
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सन्तमत या सचखण्ड ज्ञान की सबसे बङी खासियत यही होती है कि इसमें सत्य वाणी से नहीं बताना होता । बल्कि अपने आप प्रकट होता है । बस थोङा समय अवश्य लगता है । आपको हमसे जुङे हुये लगभग 6 महीने हो गये । मैंने शुरू में ही कहा - 6 महीने बाद आपकी स्थिति में बदलाव शुरू हो जायेगा । रोग गम्भीर है । दवा का असर देर में दिखाई देगा । जबकि आपके घर में ही सदस्यों की स्थिति में ज्ञान स्तर में काफ़ी अन्तर है । आपके साथ जो थे । वो कमाल कर रहे हैं ।
तभी मैंने ये भी कहा था । आपका अगला जन्म भक्त और धनी रूप में होगा । आपकी पत्नी का फ़ोन पर बताऊँगा । अभी कुछ दिन पहले फ़ोन वार्ता में आपने कहा था - मैं कुछ करता नहीं । सब अपने आप हो जाता है । इसी से आप अन्दाजा लगा लीजिये । ज्यों ज्यों कर्ता भाव मरता जायेगा । लक्ष्य और खेल आसान हो जायेगा । सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में । अब जीत तुम्हारे हाथों में । और हार तुम्हारे हाथों में ।
ये इत्तफ़ाक की ही बात है । ये लिखने से कुछ ही समय पहले श्री महाराज जी से आपके यहाँ की ही विस्त्रत चर्चा हो रही थी । वो बातें भी व्यक्तिगत हैं । इसलिये फ़ोन पर । बाकी इसमें बुद्धि दिमाग काम नहीं करता । जितना भक्त समर्पण होता जाता है । मंजिल उतनी ही आसान और करीब होती जाती है - यह फ़ल साधन से नहि होई । तुम्हरी कृपा पाये कोई कोई । इसलिये चिन्ता मत करिये । अगले जन्म में फ़िर मुलाकात होगी । तब आप अच्छे भक्त होंगे । और भक्त संस्कार वाले होंगे । अभी जीव संस्कार अधिक हैं ।
( इससे आगे का हिस्सा मैंने पहले फ़ुरसत में लिख लिया था । ये ऊपर का अभी जोङा है । पर निम्नलिखित बातों का गहराई से विचार करने पर बहुत कुछ समझ में आ जायेगा । )
देखिये एक मामूली सा कमजोर असहाय बच्चा भी कैसे पैदा होता है - शायद आपने कभी इस बात पर गौर न किया हो । और माया आवरित बेख्याली में आपको ऐसा लगता हो कि एक स्त्री पुरुष ने काम सम्बन्ध किये ।
उनके अण्डाणु शुक्राणु का परस्पर निषेचन हुआ । गर्भ ठहर गया । भ्रूण बना । गर्भाशय में पोषित हुआ । और समय पर उसका जन्म हो गया । बस ज्यादातर लोग इससे अधिक नहीं सोचते । और इसे 100 वर्षीय जीवन चक्र की एक सामान्य घटना मानते हैं । पर क्या ये सत्य है ? इस पर गौर करते हैं ।
फ़्लैश बैक - जिस स्त्री पुरुष के संयोग से आज 1 बच्चा उत्पन्न हुआ । उस स्त्री और पुरुष का अपने अपने वर्तमान परिवारों में मनुष्य जन्म सामान्य नियम के तहत भी न्यूनतम साढे 12 लाख साल पूर्व के जन्म संस्कार वश हुआ । अगर इसमें नरक आदि अवधि की और स्थितियाँ जोङी जायें । तो अवधि काफ़ी हो जायेगी । लेकिन बहुत पीछे न जाकर ( जबकि हकीकत में और अधिक ही हो जाता है ) सिर्फ़ एक 84 पूर्व स्थिति को ही मान लेते हैं । तब आज जो पति पत्नी हुये । वह उस जन्म की काम भावना + अन्य मिश्रित लेन देन संस्कार से युक्त होकर हुये । आज जो उनका शिशु रूप जीवात्मा जन्मा । वह भी कम से कम उसी जन्म या उससे और भी पूर्व जन्म के लेन देन संस्कार बीज से अंकुरित हुआ । 84 हो या मनुष्य । ये अलग अलग शरीर भूमि है । भूमि और अनुकूल मौसम खाद पानी मिलते ही बीज अंकुरित हुआ । सोचने वाली बात है । स्त्री के । पुरुष के । बच्चे के । इनके परिवारों के । तथा इनसे जुङने वाले अन्य सांसारिक सम्बन्धों की कितनी विकट संस्कार बेल फ़ैल रही है । तब ये सब मिलकर इस पर 1 कर्म फ़ल लग रहा है ।
तब हर जीवात्मा अपने और अपने से जुङे दूसरों के विभिन्न संस्कारों के साथ शरीर और उसका धर्म धारण कर रही है । है ना चौंकाने वाली बात । आज एक बच्चे के मामूली जन्म की घटना के तार अतीत में लाख वर्ष पूर्व के जुङे हुये हैं । यही बात भक्ति यात्रा पर भी लागू होती है ।
ये सब हो रहा है - ये सव स्वतः हो रहा है । यह महावाक्य है । अगर इंसान इस सरल सी बात को समझ लें । तो तमाम समस्याओं का हल हो जाता है । आप कर्ता बनों । या मत बनो । जिसके द्वारा जो होना है । वह जबरदस्ती उससे करा लिया जायेगा । उमा दारु जोषित की नाई । सबै नचावे राम गुसाई । बस भूल इतनी ही है कि आप मायावश खुद को कर्ता मान लेते हो । और फ़िर - करता सो भरता..वाली बात हो जाती है । व्यर्थ ही आप दण्ड के भागी हो जाते हो । जबकि आपने खूब अनुभव किया होगा । हानि लाभ । दुख सुख । मान अपमान । इन परिस्थितियों पर आपका कोई जोर नहीं होता । फ़िर भी खुद को कर्ता मानने की जिद सी बन गयी है ।
एक मजेदार बात याद आती है । श्रीकृष्ण का समय था । एक छोटे बच्चे की अकाल मौत हो गयी है । श्रीकृष्ण उपाय बताते हैं कि - यदि कोई पूर्ण सत्यवादी इस बच्चे के ऊपर हाथ रख दें । जिसने जीवन में एक बार भी झूठ न बोला हो । तो बच्चा जी उठेगा । लेकिन एक बङी तगङी शर्त है । हाथ झूठा या सच्चा एक ही बार रखा जा सकता है । अगर झूठा रख गया । फ़िर उपाय काम नहीं करेगा । सबकी निगाह तुरन्त ही युधिष्ठर की ओर जाती है । लेकिन युधिष्ठर खुद अपने प्रति स्वयँ से सन्तुष्ट नहीं है - अश्वत्थामा हतो । नरो वा कुंजरो वा । अपने परिजनों की भलाई के लिये सत्य से डिग गये थे युधिष्ठर । अपना सत्य अपने से अधिक कोई नहीं जानता । मना कर देते हैं । पूरे संसार में सत्यवादी की तलाश होती है । बात मामूली नहीं है । अगर बच्चा न जीवित हुआ । तो हत्या जैसा कलंक लगेगा । पूरी उम्मीद ही समाप्त । सब मना कर देते हैं । एक बार नहीं । कई बार झूठ बोला है हमने । पूरे संसार में कोई 1 नहीं मिलता ।
तब श्रीकृष्ण सबसे अन्त में कहते हैं - अब कोई नहीं मिल रहा । तब मैं ही आजमाता हूँ ।
सब चौंक जाते हैं । हँसने तक लगते हैं । कहते हैं - श्रीकृष्ण ! दुनियाँ जानती हैं । आपसे बङा झूठा कोई नहीं है । आप तो मामूली बातों पर झूठ बोल देते हो । कृपया आप हाथ मत रखो । बच्चा फ़िर नहीं जियेगा ।
श्रीकृष्ण हाथ रख देते हैं । बच्चा जीवित हो जाता है । अब सबको घोर आश्चर्य है - श्रीकृष्ण उपाय आपने ही बताया । सब जानते हैं । आपने अनगिनत झूठ बोले हैं । फ़िर ये कैसा आश्चर्य ।
- मैं ! श्रीकृष्ण कहते हैं - सत्य झूठ से ऊपर हूँ । पाप पुण्य से ऊपर हूँ । मेरे अन्दर कर्ता भाव नहीं है । इसलिये कोई भी बात मुझे लगती नहीं है । मैं इन सबसे परे हूँ ।
अब फ़िर - हो रहा है की बात करते हैं - महाभारत युद्ध की रणभेरी बज उठी है । सजी हुयी सेनायें आमने सामने खङी हैं । अर्जुन को विषाद मोह उत्पन्न होता है । तब श्रीकृष्ण युद्ध शुरू होने से पहले ही युद्ध का परिणाम दिखा देते हैं - देख अर्जुन ! तू जिनको मारने के प्रति शोकाकुल हो रहा है । वे सब पहले ही मारे जा चुके हैं । देख सबके क्षत विक्षत शव पङे हुये हैं । जबकि अभी तूने गाण्डीव उठाया तक नहीं । इसलिये तू कर्ता मत बन ।
युद्ध में एक से एक धुरंधर मौजूद हैं । सब जानते भी हैं । श्रीकृष्ण जिसके साथ है । विजय उसी की होगी । पाण्डव सत्य मार्ग पर है । विजय उन्हीं की होगी । धृतराष्ट्र । भीष्म पितामह । दुर्योधन । विदुर । सभी महारथी जानते हैं । सही क्या है । गलत क्या है ? उन्हें अपनी गलती पता है । उसका परिणाम भी पता है । पर फ़िर भी परिस्थितियों के हाथों विवश हैं । जानते हैं । गलती पर हैं । पर विवश हैं । भीषण युद्ध हो रहा है । महारथी हुंकार भर रहे हैं । मैं उसको मार डालूँगा । आज ये करो । कल ये व्यूह रचना करो । सारे प्रयत्न जीत के लिये हैं ।
युद्धभूमि के एक बङे वृक्ष पर एक खोपङी लटकी हुयी यह सब देख रही है । उसने पूरा युद्ध शान्ति से ज्यों का त्यों देखा है । पूर्ण प्रत्यक्षदर्शी है । युद्ध के बाद में सब अपने अपने कौशल का बखान करते हैं । मैंने ये किया । मैंने वो किया । एक जिज्ञासु उस खोपङी से सही बात पूछता हूँ । खोपङी अट्टहास करती है । कहती है - मैंने तो सिर्फ़ मैदान के ऊपर सुदर्शन चक्र ही घूमते देखा । जो कुछ हो रहा था । उसी के द्वारा हो रहा था । वही किसी को मार रहा था । और वही किसी को बचा भी रहा था ।
- यदि न प्रणयेद्राजा दण्डं दण्ड्येष्वतन्द्रितः । शूले मत्स्यानिवापक्ष्यन्दुर्बलान्बलवत्तराः । मनु स्मृति ।
यदि न प्रणयेत राजा दण्डम दण्ड्येषु अतन्द्रितः शूले मत्स्यान इव अपक्ष्यन दुर्बलान बलवत्तराः ।
- यदि राजा दण्डित किये जाने योग्य दुर्जनों के ऊपर दण्ड का प्रयोग नहीं करता है । तो बलशाली व्यक्ति दुर्बल लोगों को वैसे ही पकायेंगे । जैसे शूल अथवा सींक की मदद से मछली पकाई जाती है ।
शब्द सम्हार बोलिये । शब्द के हाथ न पाँव । 1 शब्द औषधि करे । 1 शब्द करे घाव ।
कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो । आंखे मूँदकर उसके पीछे न चलिये । यदि ईश्वर की ऐसी ही इच्छा होती । तो वह हर प्राणी को आँख । नाक । कान । मुँह । मस्तिष्क आदि क्यों देता - विवेकानंद
- बिगरी बात बने नहीं । लाख करो किन कोय । रहिमन बिगरे दूध को । मथे न माखन होय । रहीम
- 20 वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा होता है । वह प्रकृति की देन है । 30 वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार चढ़ाव की देन है । लेकिन 50 वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है - अष्टावक्र
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