roop_kaur पोस्ट " मैं तो केवल निमित्त ( माध्यम ) हूं । यह सब उसी की ... " पर । 1 aur bahut zaroori baat rajeev ji, ye baat jo main kehne ja rahi hun, ye mera personal experience hai. mere parivaar mein ya aur jitne bhi sikh parivaar jinse mere milna julna hai ya tha. unmein se kafi log kattar vichaar wale hain. ( देखिये सभी धर्म जातियों में कट्टर और सीधे लोग आपको मिलेंगे । हिंदू मुसलमान सिख ईसाई कोई भी इससे बचा नहीं है । लेकिन यह चीज आपको वहां बहुत कम मिलेगी । जहां सभी जाति धर्म के लोग किसी भी कारणवश एक साथ रहते हैं । वहां एक दूसरे की अच्छाई बुराई हमारे अन्दर आटोमेटिक बदलाव कर देती है । जैसे दिल्ली मुम्बई अमेरिका आदि में कोई भी अपनी कट्टरता चलाना चाहे । नहीं चलेगी । लेकिन जहां एक ही जाति का बाहुल्य या गढ होता है । वहां ऐसा देखने को मिलता ही है । मेरी समझ में ये नही आता कि लोग जब ये मानते हैं कि सबका मालिक एक है । परमपिता एक ही है । तो वो अपनी संतान को ऊंचा नीचा बना के भेदभाव क्यों करेगा ?
means ki wo apne sikh dharam ke ilawa baki sab dharamo ko bekaar ya bura ya nicha maante hain. ( ऐसा जटिल संस्कारों के कारन होता है । लेकिन ये बात सिर्फ़ सिखों में ही हो । ऐसा नहीं है । सभी जाति के लोग अक्सर अपने धर्म को ऊंचा और दूसरों को नीचा मानते हैं । जबकि ये भारी अग्यानता ही है । अगर वो बारीकी से अपने धर्मग्रन्थों का अध्ययन करें । तो सभी में एक ही बात पर जोर दिया है । आत्मा और परमात्मा को जानना । प्रभु की भक्ति द्वारा अपना उद्धार करना ही मनुष्य जीवन का असली लक्ष्य है । yahan tak ki jab main b.a kar rahi thi in modi college patiala tab mujhe 1 hindu ladke se pyaar ho gaya tha lekin mere parents ne saaf mana kar diya kyun ki ladka hindu tha and fir meri shaadi hamari hi biradari mein kisi se kar di. ( आपके फ़ादर ने एकदम सही कदम उठाया । मेरा अनुभव है । किशोरावस्था के प्रेमविवाह 95% असफ़ल होते है । लडकपन का प्यार । प्यार कम अन्दर उमडती वासना की चाहत अधिक होती है । लडकियां कोमल ह्रदय की होने के कारन वास्तव में दिल आत्मा से पहले प्यार को चाहती हैं । लेकिन अधिकतर लडकों की ख्वाहिश सिर्फ़ उनके शरीर से खेलने की ही होती है । दूसरे अंतरजातीय विवाह में अक्सर लडके लडकी का समाज उनको स्वीकार नहीं कर पाता । इस तरह जिंदगी दूसरे मूल्यों में बेमजा हो जाती है । आप हिंदू समाज या उसके स्त्री पुरुषों को बहुत अच्छा मानती है । तो ये आपकी भारी भूल है । कपडों के भीतर सभी नंगे और एक से ही होते हैं । इसलिये इंसान को रंगबिरंगे कपडों के आकर्षण पर न जाकर गुणों को देखना चाहिये । अपने समाज में विवाह करने से कुछ ऊंच नीच होने पर समाज का दवाव और सहयोग मिलता ही है । ) lekin yahan main point ye hai ki jo maine jyadatar sikh log ya sardar log dekhe hain wo gurudwara to jate hain sikhon wala paath bhi karte hain. lekin baatein hamesha hi dusri karte hain and unke pass gyaan jaisi koi cheez bilkul hi nahi hai.( ऐसा सिर्फ़ सिखों में ही नहीं । हर धर्म में होता है । इंसान जाति या धर्म से नही बल्कि अपने स्वभाव और गुणों से अच्छा बुरा होता है । ) haan jo normally young boys hain aaj kal sardaron ke wo baal to fashion ke taur par katwa rahe hain, lekin kehte hain hum sikh hain kisi aur dharam ya baat ko nahi maanege. ( मेरी दोस्ती कई सरदार लडकों से रही । जिनमें हैप्पी से मेरा एक बार सतसंग हुआ । तो वो रोने लगा । और बोला । आपने एक दोस्त होकर जो बताया । वो हमारे बुजुर्गों ने भी कभी नहीं बताया । आप जितना सिख गुरुओं के बारे में और धर्म के बारे में जानते हैं । उतना हमारे बुजुर्ग भी नहीं जानते । वे सिर्फ़ पैसा कमाने और मौजमस्ती की ही बात ज्यादा करते हैं । ) kuch time pehle maine kisi se surat shabad yog ke bare mein discus karna chaha (kyun ki wo aadmi gurudwara jata hai and roz gutka saheb ka paath bhi karta hai) वास्तव में गुरुग्रन्थ साहिब में सुरति शव्द योग का ही गुणगान है । पर सुरति शव्द योग दुर्लभ और गूढ ग्यान होने के कारण लोग इसको ठीक से समझ नहीं पाते । इसमें उनका कोई दोष नही है । श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का संकलन 5वें guru श्री अर्जुन देव ने किया । गुरु ग्रन्थ साहिब का पहला प्रकाश 16 aug 1604 को हरिमंदिर साहिब अमृतसर में हुआ । पंथ की बुजुर्ग शख्सियत बाबा बुढ्ढाजी को पहला ग्रन्थी नियुक्त किया गया । मगर 1705 में दमदमा साहिब में दशमेश पिता गुरुगोविंद सिंह ने गुरु तेगबहादुर के 116 शबद जोडकर इसको पूर्ण किया । गुरुग्रन्थ साहिब में सिख गुरुओं के ही उपदेश नहीं हैं । 30 hindu और muslim भक्तों की vani भी है । Jaydev और Parmanand जैसे ब्राह्मण की वाणी है । Kabeer । Ravidas । Namdev । सैण । सघना । छीवा । धन्ना की vani भी है । 5 वक्त नमाज पढने वाले shekh Farid के श्लोक भी गुरुग्रंथ साहिब में हैं । गुरु श्री अर्जुन देव और नानक जी सुरति शव्द योग का ही उपदेश करते थे । सिखों में और भी पहुंचे संत हुये है । to wo to bhadak gaya and mujhe faaltu lecture dene laga and kehta tha ki 'ye sab main nahi janta, aap kya keh rahi hai, hamare sikh gurus ne idhar udhar kahin jaane se humko band kiya hai, ( ऐसा किसी सच्चे संत ने हरगिज नहीं कहा । चाहे वो किसी भी जाति में हुआ हो । ) sab bakwaas hai, hamare guruon ne kaha hai ki hum ko kuch bannna chahiye, hum yahan kuch bann ne aye hain'( इंसान अनादि काल से बनने और ज्यादा बनने की चाह में ही अपना सब कुछ खो बैठा । सोचो परमात्मा के पुत्र को कुछ भी बनने की जरूरत है । राजा के बेटे को धन कमाने की क्या आवश्यकता है ? ) to rajeev ji us time mere ko bada ajeeb laga kyun ki wo baat to sikh dharam ki kar raha tha lekin us time usne sharab pi rakhi thi (ye mere maayke ki baat hai, us time dinner time tha and wo hamara rishtedaar tha) शराब का आदी कभी समझदारी या ग्यान की बात नहीं कर पायेगा । इसमें कोई शक नहीं । ) and uski baatein sun kar main to chup kar gayi and uski bahut hi moti patni garv se aur ful gayi. rajeev ji main kisi ke khilaaf nahi bol rahi, mujhe sikh dharam bahut pyara hai kyun ki mera present janam is dharam mein hua hai, lekin ye baatein jo maine likhi hain ye mera personal anubhav hai.( आपने और लोगों की तुलना में जिंदगी को ईमानदारी से देखने और जानने की कोशिश की । जो बहुत बडी बात है । ) and 1 baat mujhe ab acchi nahi lagti (pehle college time mein maine is baat par bhi dhyaan nahi diya tha) wo ye ki aam taur par punjabi logon mein abhimaan bahut hai,( ये बात मेरे भी अनुभव में आयी । लेकिन दूसरे तरह से । मेरे विचार से वे जीवन को मौज मजे से जीना अधिक पसन्द करते हैं । खाओ पीओ मस्त रहो । एंजाय करो zor zor se bolna mazak mein bhi 1 dusre ko gaali dena( ye sab gents mein hota hai ladies mein nahi) lekin ab ye sab bhi mujhe acha nahi lagta. baar baar ye kehna ki sansar mein ya is earth par punjabi logon se behtar ya aaj kal ke sikh samaaj se behtar koi nahi mujhe hairaan karta hai. ( हर आदमी अपनी मर्जी से जीता है । हमें अपने कल्याण के बारे में अधिक सोचना चाहिये । ये दुनियां ऐसे ही चलती आयी है । बडे बडे लोगों ने इसको सुधारने का जतन किया । पर न ये सुधरी । न कभी सुधरेगी । kyun ki jo aatma ke rahasya ko nahi samajh pa raha ho main usko uttam nahi maanti (ab meri ye soch hai, kafi pehle meri aisi soch nahi thi) is baare mein zaroor kuch likhen, mujhe aapke kal ke articles ka besabri se intezaar rahega. मैडम आत्मग्यान दुर्लभ होता है । ये करोडों जन्मों के पुन्य के बाद प्रभु की कृपा से हासिल होता है । आप ही सोचिये । सिखों में कितने महान महान संत हुये हैं । और सभी सिख उनको मानते हैं । उनकी वानी का पाठ करते हैं । लेकिन कितने सिख नानक जी और गुरु अर्जुन देव के समान हो पाते हैं । यही हाल दूसरे धर्मों का है । इसलिये मुझे उनमें कोई दोष नजर नहीं आता । जानबूझ कर गढे में मूरख भी नहीं गिरता ।
roop_kaur पोस्ट " मैं तो केवल निमित्त ( माध्यम ) हूं । यह सब उसी की ... " पर । rajeev ji, main jis parivaar se hun. maaayke wale aur sasural wale dono families mein non-veg khaya jata hai. ( इसका फ़ल हजारों साल का नरक होता है । इसमें कोई शक नहीं । किसी भी धर्मग्रन्थ या धर्मगुरु ने जीवहत्या को पाप बताया है । बाद में मांसाहार के शौकीनों ने धर्म पुस्तकों में मिलाबट करके बातों को तोड मरोड कर लिखा । पशुबलि का अर्थ । अपने अन्दर की पशुता की बलि देना । नरबलि का अर्थ जीवभाव या अहम की बलि देना । संस्कृत भाषा में कुछ चीजों के नाम मास ( उडद ) मांस ( वहां लिखे फ़ल आदि का गूदा ) है । हम सब्जियां खाते हैं यानी उनकी हत्या करते हैं । लेकिन हम सब्जियों को दुबारा जन्म दे सकते हैं । परन्तु हम किसी जीव को खाते हैं । तो उसको जन्म नहीं दे सकते । इसलिये ये हत्या हमारे ऊपर सवार हो जाती हैं । mera maayka and sasural dono patiala mein hi hain. mere father ki to 4 famous shops hains chicken ki in patiala. . ( पढाने वाले को मास्टर । इलाज करने वाले को डाक्टर कहते हैं । किसी भी जीव की हत्या कर उसका बिजनेस करने वाले को कसाई कहते हैं । ये बात शायद उनके ध्यान मे कभी आयी नहीं होगी । मेरा विचार है । कोई भी पढा लिखा सभ्य इंसान अपने को कसाई Butcher कहलाना कभी पसन्द नहीं करेगा । shaadi se pehle tak to mujhe jaisa maayke ka lifestyle mila tab tak maine kuch socha hi nahi tha and is bare mein hamare ghar mein kabhi koi baat hi nahi hui thi ki non-veg khana accha hai ya bura.( अग्यानता और घर के संस्कार से गलती उतनी बडी नहीं होती । लेकिन जान लेने के बाद ये महापाप हो जाता है । ) kyun ki mere papa kehte the the (ab bhi ye hi vichar hain unke) profession koi bhi bura nahi hai. kaam chotta bada nahi hota, kaam to kaam hota hai.( इस तरह एक सुपारी किलर भी अपने काम को ठीक ही बतायेगा । सु्पारी देने वाला किसी से परेशान है । और उसको मरवाना चाहता है । किलर ये तर्क देगा कि वो उसकी समस्या हल कर रहा है । एक वैश्या भी कह सकती है कि वो अपने शरीर से उन लोगों की सेवा करती है । जिनको सेक्स उपलब्ध नहीं है । इस तरह तो वो भी पुन्य काम कर रही है । जरा सोचिये । नन्हे मुन्ने गोल मटोल इंसान के बच्चे खेल रहे हो । तो राक्षस भी उनकी हत्या करने में कांप जायेगा । रंग बिरंगे फ़ुदकते प्यारे से चूजों को इंसान कैसे अपने स्वाद के लिये मार डालता है ? ये सोचकर मेरा तो दिल ही कांप जाता है । लेकिन इंसान जो भी करता है । उसका फ़ल उसे अवश्य भुगतना पडता है । इंसान अपने फ़ायदे के हिसाब से मान लेता है कि जो वह कर रहा है । वो ठीक है । लेकिन यहां इंसान का नहीं । परमात्मा का कानून चलता है । lekin main non-veg khana chorna chahti hun.( मैंने जीवन में हमेशा प्रक्टीकल ही किये है । 20 Year age में यार दोस्तों की बातों में आकर कि मीट मुर्गा अंडा खाने से बाडी बनती हैं । मैंने दो बार मुर्गा पांच छह बार आमलेट और पांच छह बार बायल अंडा और कभी कभी शराब पीकर देखी । ध्यान रहे । सिर्फ़ अनुभव के लिये । और मैंने पाया । मुर्गा अंडा में प्याज अदरक लहसुन और तेज मसालों का ही स्वाद होता है । बाकी मांस चबाने पर बुरी हीक बदबू सी लिजलिजापन लगता है । मुझे बहुत ग्लानि हुयी कि मैं एक चलते फ़िरते जीव को खा गया । मांस मछली अंडा खाने वालों के मुंह से हमेशा बदबू आती है । आपने क्योंकि वेज नानवेज दोनों का अनुभव किया है । जरा विचार करें । ऐसे ही मसालों को डालकर टमाटर आलू । बेंगन का भुर्ता । आलू के परांठे । फ़्राई की अरहर की दाल आदि ज्यादा स्वादिष्ट लगती है या नानवेज ? नानवेज खाकर पेट में वेज खाने की तुलना में भारीपन का अहसास अलग होता है । यही बात शराब के अनुभव में हुयी । मैंने पाया । महंगी शराब से लस्सी । शिकंजी । फ़्रूट जूस आदि पीने से अधिक आनन्द और फ़्रेशनेस का अनुभव होता है । आप ये शुभ कार्य जितनी जल्दी करेंगी उतना ही अच्छा होगा । लेकिन दूसरे अगर खाना चाहते हैं । तो उन पर छोडने के लिये दबाब न डालें । अपने कर्तव्य अनुसार उन्हें बनाकर खिलाने में इतना दोष नहीं है । ) maine ye baat normally jab ghar mein kisi se bhi kahi(maayka ho ya sauraal) to unhe laga ki main mazak kar rahi hun ya fir mera dimaag theek nahi hai. iske bare mein meri aankhen kholiye. ( जीवन पूरा होने के बाद या कभी कभी जीवन में ही जब हमारे कर्मों की सजा मिलती है । तब कोई उस सजा को बांट सकता है क्या ? परिवार जन्म होने के बाद ही मिलता है । जीव अकेला आता है । अकेला जाता है । वहां कोई साथ नहीं देता । परिवार यहीं तक के लिये है । वहां सबको सजा अकेले ही भोगनी पडती है । मुझे नहीं लगता । मां बाप या परिवार कोई भी अपने प्रियजन को गलत शिक्षा देगा । जीवन में दो दिन का मेला जुडा । हंस जब भी उडा । अकेला उडा । अच्छा बुरा । आपका किया । आपको ही भुगतना होगा ।
means ki wo apne sikh dharam ke ilawa baki sab dharamo ko bekaar ya bura ya nicha maante hain. ( ऐसा जटिल संस्कारों के कारन होता है । लेकिन ये बात सिर्फ़ सिखों में ही हो । ऐसा नहीं है । सभी जाति के लोग अक्सर अपने धर्म को ऊंचा और दूसरों को नीचा मानते हैं । जबकि ये भारी अग्यानता ही है । अगर वो बारीकी से अपने धर्मग्रन्थों का अध्ययन करें । तो सभी में एक ही बात पर जोर दिया है । आत्मा और परमात्मा को जानना । प्रभु की भक्ति द्वारा अपना उद्धार करना ही मनुष्य जीवन का असली लक्ष्य है । yahan tak ki jab main b.a kar rahi thi in modi college patiala tab mujhe 1 hindu ladke se pyaar ho gaya tha lekin mere parents ne saaf mana kar diya kyun ki ladka hindu tha and fir meri shaadi hamari hi biradari mein kisi se kar di. ( आपके फ़ादर ने एकदम सही कदम उठाया । मेरा अनुभव है । किशोरावस्था के प्रेमविवाह 95% असफ़ल होते है । लडकपन का प्यार । प्यार कम अन्दर उमडती वासना की चाहत अधिक होती है । लडकियां कोमल ह्रदय की होने के कारन वास्तव में दिल आत्मा से पहले प्यार को चाहती हैं । लेकिन अधिकतर लडकों की ख्वाहिश सिर्फ़ उनके शरीर से खेलने की ही होती है । दूसरे अंतरजातीय विवाह में अक्सर लडके लडकी का समाज उनको स्वीकार नहीं कर पाता । इस तरह जिंदगी दूसरे मूल्यों में बेमजा हो जाती है । आप हिंदू समाज या उसके स्त्री पुरुषों को बहुत अच्छा मानती है । तो ये आपकी भारी भूल है । कपडों के भीतर सभी नंगे और एक से ही होते हैं । इसलिये इंसान को रंगबिरंगे कपडों के आकर्षण पर न जाकर गुणों को देखना चाहिये । अपने समाज में विवाह करने से कुछ ऊंच नीच होने पर समाज का दवाव और सहयोग मिलता ही है । ) lekin yahan main point ye hai ki jo maine jyadatar sikh log ya sardar log dekhe hain wo gurudwara to jate hain sikhon wala paath bhi karte hain. lekin baatein hamesha hi dusri karte hain and unke pass gyaan jaisi koi cheez bilkul hi nahi hai.( ऐसा सिर्फ़ सिखों में ही नहीं । हर धर्म में होता है । इंसान जाति या धर्म से नही बल्कि अपने स्वभाव और गुणों से अच्छा बुरा होता है । ) haan jo normally young boys hain aaj kal sardaron ke wo baal to fashion ke taur par katwa rahe hain, lekin kehte hain hum sikh hain kisi aur dharam ya baat ko nahi maanege. ( मेरी दोस्ती कई सरदार लडकों से रही । जिनमें हैप्पी से मेरा एक बार सतसंग हुआ । तो वो रोने लगा । और बोला । आपने एक दोस्त होकर जो बताया । वो हमारे बुजुर्गों ने भी कभी नहीं बताया । आप जितना सिख गुरुओं के बारे में और धर्म के बारे में जानते हैं । उतना हमारे बुजुर्ग भी नहीं जानते । वे सिर्फ़ पैसा कमाने और मौजमस्ती की ही बात ज्यादा करते हैं । ) kuch time pehle maine kisi se surat shabad yog ke bare mein discus karna chaha (kyun ki wo aadmi gurudwara jata hai and roz gutka saheb ka paath bhi karta hai) वास्तव में गुरुग्रन्थ साहिब में सुरति शव्द योग का ही गुणगान है । पर सुरति शव्द योग दुर्लभ और गूढ ग्यान होने के कारण लोग इसको ठीक से समझ नहीं पाते । इसमें उनका कोई दोष नही है । श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का संकलन 5वें guru श्री अर्जुन देव ने किया । गुरु ग्रन्थ साहिब का पहला प्रकाश 16 aug 1604 को हरिमंदिर साहिब अमृतसर में हुआ । पंथ की बुजुर्ग शख्सियत बाबा बुढ्ढाजी को पहला ग्रन्थी नियुक्त किया गया । मगर 1705 में दमदमा साहिब में दशमेश पिता गुरुगोविंद सिंह ने गुरु तेगबहादुर के 116 शबद जोडकर इसको पूर्ण किया । गुरुग्रन्थ साहिब में सिख गुरुओं के ही उपदेश नहीं हैं । 30 hindu और muslim भक्तों की vani भी है । Jaydev और Parmanand जैसे ब्राह्मण की वाणी है । Kabeer । Ravidas । Namdev । सैण । सघना । छीवा । धन्ना की vani भी है । 5 वक्त नमाज पढने वाले shekh Farid के श्लोक भी गुरुग्रंथ साहिब में हैं । गुरु श्री अर्जुन देव और नानक जी सुरति शव्द योग का ही उपदेश करते थे । सिखों में और भी पहुंचे संत हुये है । to wo to bhadak gaya and mujhe faaltu lecture dene laga and kehta tha ki 'ye sab main nahi janta, aap kya keh rahi hai, hamare sikh gurus ne idhar udhar kahin jaane se humko band kiya hai, ( ऐसा किसी सच्चे संत ने हरगिज नहीं कहा । चाहे वो किसी भी जाति में हुआ हो । ) sab bakwaas hai, hamare guruon ne kaha hai ki hum ko kuch bannna chahiye, hum yahan kuch bann ne aye hain'( इंसान अनादि काल से बनने और ज्यादा बनने की चाह में ही अपना सब कुछ खो बैठा । सोचो परमात्मा के पुत्र को कुछ भी बनने की जरूरत है । राजा के बेटे को धन कमाने की क्या आवश्यकता है ? ) to rajeev ji us time mere ko bada ajeeb laga kyun ki wo baat to sikh dharam ki kar raha tha lekin us time usne sharab pi rakhi thi (ye mere maayke ki baat hai, us time dinner time tha and wo hamara rishtedaar tha) शराब का आदी कभी समझदारी या ग्यान की बात नहीं कर पायेगा । इसमें कोई शक नहीं । ) and uski baatein sun kar main to chup kar gayi and uski bahut hi moti patni garv se aur ful gayi. rajeev ji main kisi ke khilaaf nahi bol rahi, mujhe sikh dharam bahut pyara hai kyun ki mera present janam is dharam mein hua hai, lekin ye baatein jo maine likhi hain ye mera personal anubhav hai.( आपने और लोगों की तुलना में जिंदगी को ईमानदारी से देखने और जानने की कोशिश की । जो बहुत बडी बात है । ) and 1 baat mujhe ab acchi nahi lagti (pehle college time mein maine is baat par bhi dhyaan nahi diya tha) wo ye ki aam taur par punjabi logon mein abhimaan bahut hai,( ये बात मेरे भी अनुभव में आयी । लेकिन दूसरे तरह से । मेरे विचार से वे जीवन को मौज मजे से जीना अधिक पसन्द करते हैं । खाओ पीओ मस्त रहो । एंजाय करो zor zor se bolna mazak mein bhi 1 dusre ko gaali dena( ye sab gents mein hota hai ladies mein nahi) lekin ab ye sab bhi mujhe acha nahi lagta. baar baar ye kehna ki sansar mein ya is earth par punjabi logon se behtar ya aaj kal ke sikh samaaj se behtar koi nahi mujhe hairaan karta hai. ( हर आदमी अपनी मर्जी से जीता है । हमें अपने कल्याण के बारे में अधिक सोचना चाहिये । ये दुनियां ऐसे ही चलती आयी है । बडे बडे लोगों ने इसको सुधारने का जतन किया । पर न ये सुधरी । न कभी सुधरेगी । kyun ki jo aatma ke rahasya ko nahi samajh pa raha ho main usko uttam nahi maanti (ab meri ye soch hai, kafi pehle meri aisi soch nahi thi) is baare mein zaroor kuch likhen, mujhe aapke kal ke articles ka besabri se intezaar rahega. मैडम आत्मग्यान दुर्लभ होता है । ये करोडों जन्मों के पुन्य के बाद प्रभु की कृपा से हासिल होता है । आप ही सोचिये । सिखों में कितने महान महान संत हुये हैं । और सभी सिख उनको मानते हैं । उनकी वानी का पाठ करते हैं । लेकिन कितने सिख नानक जी और गुरु अर्जुन देव के समान हो पाते हैं । यही हाल दूसरे धर्मों का है । इसलिये मुझे उनमें कोई दोष नजर नहीं आता । जानबूझ कर गढे में मूरख भी नहीं गिरता ।
roop_kaur पोस्ट " मैं तो केवल निमित्त ( माध्यम ) हूं । यह सब उसी की ... " पर । rajeev ji, main jis parivaar se hun. maaayke wale aur sasural wale dono families mein non-veg khaya jata hai. ( इसका फ़ल हजारों साल का नरक होता है । इसमें कोई शक नहीं । किसी भी धर्मग्रन्थ या धर्मगुरु ने जीवहत्या को पाप बताया है । बाद में मांसाहार के शौकीनों ने धर्म पुस्तकों में मिलाबट करके बातों को तोड मरोड कर लिखा । पशुबलि का अर्थ । अपने अन्दर की पशुता की बलि देना । नरबलि का अर्थ जीवभाव या अहम की बलि देना । संस्कृत भाषा में कुछ चीजों के नाम मास ( उडद ) मांस ( वहां लिखे फ़ल आदि का गूदा ) है । हम सब्जियां खाते हैं यानी उनकी हत्या करते हैं । लेकिन हम सब्जियों को दुबारा जन्म दे सकते हैं । परन्तु हम किसी जीव को खाते हैं । तो उसको जन्म नहीं दे सकते । इसलिये ये हत्या हमारे ऊपर सवार हो जाती हैं । mera maayka and sasural dono patiala mein hi hain. mere father ki to 4 famous shops hains chicken ki in patiala. . ( पढाने वाले को मास्टर । इलाज करने वाले को डाक्टर कहते हैं । किसी भी जीव की हत्या कर उसका बिजनेस करने वाले को कसाई कहते हैं । ये बात शायद उनके ध्यान मे कभी आयी नहीं होगी । मेरा विचार है । कोई भी पढा लिखा सभ्य इंसान अपने को कसाई Butcher कहलाना कभी पसन्द नहीं करेगा । shaadi se pehle tak to mujhe jaisa maayke ka lifestyle mila tab tak maine kuch socha hi nahi tha and is bare mein hamare ghar mein kabhi koi baat hi nahi hui thi ki non-veg khana accha hai ya bura.( अग्यानता और घर के संस्कार से गलती उतनी बडी नहीं होती । लेकिन जान लेने के बाद ये महापाप हो जाता है । ) kyun ki mere papa kehte the the (ab bhi ye hi vichar hain unke) profession koi bhi bura nahi hai. kaam chotta bada nahi hota, kaam to kaam hota hai.( इस तरह एक सुपारी किलर भी अपने काम को ठीक ही बतायेगा । सु्पारी देने वाला किसी से परेशान है । और उसको मरवाना चाहता है । किलर ये तर्क देगा कि वो उसकी समस्या हल कर रहा है । एक वैश्या भी कह सकती है कि वो अपने शरीर से उन लोगों की सेवा करती है । जिनको सेक्स उपलब्ध नहीं है । इस तरह तो वो भी पुन्य काम कर रही है । जरा सोचिये । नन्हे मुन्ने गोल मटोल इंसान के बच्चे खेल रहे हो । तो राक्षस भी उनकी हत्या करने में कांप जायेगा । रंग बिरंगे फ़ुदकते प्यारे से चूजों को इंसान कैसे अपने स्वाद के लिये मार डालता है ? ये सोचकर मेरा तो दिल ही कांप जाता है । लेकिन इंसान जो भी करता है । उसका फ़ल उसे अवश्य भुगतना पडता है । इंसान अपने फ़ायदे के हिसाब से मान लेता है कि जो वह कर रहा है । वो ठीक है । लेकिन यहां इंसान का नहीं । परमात्मा का कानून चलता है । lekin main non-veg khana chorna chahti hun.( मैंने जीवन में हमेशा प्रक्टीकल ही किये है । 20 Year age में यार दोस्तों की बातों में आकर कि मीट मुर्गा अंडा खाने से बाडी बनती हैं । मैंने दो बार मुर्गा पांच छह बार आमलेट और पांच छह बार बायल अंडा और कभी कभी शराब पीकर देखी । ध्यान रहे । सिर्फ़ अनुभव के लिये । और मैंने पाया । मुर्गा अंडा में प्याज अदरक लहसुन और तेज मसालों का ही स्वाद होता है । बाकी मांस चबाने पर बुरी हीक बदबू सी लिजलिजापन लगता है । मुझे बहुत ग्लानि हुयी कि मैं एक चलते फ़िरते जीव को खा गया । मांस मछली अंडा खाने वालों के मुंह से हमेशा बदबू आती है । आपने क्योंकि वेज नानवेज दोनों का अनुभव किया है । जरा विचार करें । ऐसे ही मसालों को डालकर टमाटर आलू । बेंगन का भुर्ता । आलू के परांठे । फ़्राई की अरहर की दाल आदि ज्यादा स्वादिष्ट लगती है या नानवेज ? नानवेज खाकर पेट में वेज खाने की तुलना में भारीपन का अहसास अलग होता है । यही बात शराब के अनुभव में हुयी । मैंने पाया । महंगी शराब से लस्सी । शिकंजी । फ़्रूट जूस आदि पीने से अधिक आनन्द और फ़्रेशनेस का अनुभव होता है । आप ये शुभ कार्य जितनी जल्दी करेंगी उतना ही अच्छा होगा । लेकिन दूसरे अगर खाना चाहते हैं । तो उन पर छोडने के लिये दबाब न डालें । अपने कर्तव्य अनुसार उन्हें बनाकर खिलाने में इतना दोष नहीं है । ) maine ye baat normally jab ghar mein kisi se bhi kahi(maayka ho ya sauraal) to unhe laga ki main mazak kar rahi hun ya fir mera dimaag theek nahi hai. iske bare mein meri aankhen kholiye. ( जीवन पूरा होने के बाद या कभी कभी जीवन में ही जब हमारे कर्मों की सजा मिलती है । तब कोई उस सजा को बांट सकता है क्या ? परिवार जन्म होने के बाद ही मिलता है । जीव अकेला आता है । अकेला जाता है । वहां कोई साथ नहीं देता । परिवार यहीं तक के लिये है । वहां सबको सजा अकेले ही भोगनी पडती है । मुझे नहीं लगता । मां बाप या परिवार कोई भी अपने प्रियजन को गलत शिक्षा देगा । जीवन में दो दिन का मेला जुडा । हंस जब भी उडा । अकेला उडा । अच्छा बुरा । आपका किया । आपको ही भुगतना होगा ।
5 टिप्पणियां:
rajeev ji, maine suna hai ki daan punya ka bahut mahtavya hai. koi kehta hai ki paise ka daan karo ya khaane pine ki cheezon ka ya vidhya daan ya ang(body part)daan karo. kya daan ka mahtavya hai. samaaj mein koi agar rich lekin sundar nahi hai, agar koi sundar hai to rich nahi hai, koi rich hai to physically fit nahi hai etc etc and ye bhi suna hai ki bikhari ko daan dena chahiye ya nahi. western countries mein purush balwaan hain and ladies sundar lekin wahan nastikta bahut hai and yahan bhi nastik jo hain wo dusron ko bhi naastik banane mein lage hain. meri soch jo badali hai kya ye bhi kisi pichle janam ke karm ka result hai and mujhko jo sundar physical body mili hai ye kisi pichle janam ke punya ke kaaran hai ya family breed ke kaaran kyun ki mere nanihaal ki baki auratein bhi sundar hain jaise meri mother, mausi, cousin sisiters etc. hum logon ke pariwaar 1947 mein pakistan ke punjab ke sargodha district se yahan india mein aye the. surat shabad yog ki practice mein kya daan punya ka bhi koi fayda hai. agara ye dono kiya jayen to.
rajeev ji, surat shabad yog advait ki sadhna hai, kya ye moksha and bhog dono deti hai. kyun ki dwait ki sadhna bhog deti hai moksh nahi. adwait ki sadhna and dwait ki sadhna dono ko 1 hi jeevan mein kiya ja sakta hai. adwait ki sadhna ke saath dwait ki koi bhi satvik sadhna. aapki nazar mein is time poora satguru kaun hai is waqt kyun ki poora satguru 1 time mein 1 hi hota hai. surat shabad yog ke kya kuch niyam(rules) bhi hain. isko 1 din mein kitna time karna chahiye 1 hour ya 2 hour. aur kya surat shabad yog ki diksha lene ke baad agar iski sadhna shuru kar di jaye to jab tak moksh nahi mil jata to kya tab tak maanav janam hi milta rahega. jo log dwait ki sadhna karte hain kya unko dobara maanav jeevan nahi milta. jo log sadharan ghareku pooja paath karte hain pori sharadha se kya unko maanav jeevan dobara mil sakta hai. agar kisi insaan ki koi desire adhuri reh gayi ho jis par wo bahut mohit ho kya uska agla janam kya hoga.
rajeev ji, ye prasun ji kaun hain jinka jikar apki pret stories mein aya hai. aur ye ghost stories jo apke articles mein hain kya ye pure haqeeqat hai. aur ye jo universe hai jismein countless stars hain kya is universe mein aur bhi itne kism ki duniya hai jisko jaanna kalpana se door hai. maine science mein padha tha in school ki kuch stars to itne bade hain ki hamare sun se bhi thousand gunnaa bade and countless stars ki 1 galaxy hai and galaxies bhi coutless hain. kya ye univesre endless hai jisko antheen kaha jaye. mere hisaab se modern science in baaton ke bare mein zada nahi bata sakti. kyun ki modern science humko means hamari physical body ko man made materials dwara sukh araam pahuncha sakti hai is se zada uski hadh nahi.
rajeev ji, aap apni us 6 months wali durlabh sidhi ke bare mein likhen. main aapse sahmat hun ki meri situation ke hisaab se mere liye (agar maine karni ho to) aatm gyaan ki sadhna hi theek rahegi. but main sirf jigyasa vash jaanna chahti hi special secrets ke bare mein kyun ki main apni saari life saas bahu ke zaghde mein waste nahi karna chahti. mere vichaar se bilkul kuch na jaanne se kuch na kuch jannna behtar hai. aap beshaq apni marzi se hi lekin durlabh secret sadhnas ke bare mein time to time article likhte rahen. chahe wo aapke personal experience ho ya kisi aur sadhakon ke. rajeev ji kya sachmuch apsara hoti hain ya yakshini jinka aapke articles mein jikar aya hai. and univesre mein kya sachmuch pret lok, andhere lok, suksham lok etc hain.
rajeev ji, main ab filmon ki fan nahi rahi. time milne par tv par aastha channel hi dekhti hun. kuch khaas programme hain jo main dekhti hun. 1. brahmkumaris inka kehna hai ki 3 cheezen Anaadi hain paramatma, aatma and prakirti. inka ye bhi kehna hai ki aatma paramatma ka ansh hai aatma paramatma nahi hai. 2. shiv yog inka kehna hai ki shiv hi anant paramatma hain and aatma hi paramatma hai ye aatma ko divine being kehte hain, ye kehte hain ki aap log aatma ho physical body nahi ho ye physical body aapki hai aap khud being of light ho. and ye shri vidhya ya maha vidha par bahut zor dete hain means devi poojan par. 3. osho inke programme par aaj kal osho shailendra ji aa rahe hain ye kehte hain ki aatma hi satya hai physical body to likea cloth hai (according to Geeta) and inka kehna hai ki 'aad sach' means beginning means from very beginning inke anusaar ye shuruaat kabhi hui hi nahi ye aad ko nahi anaad ko maante hain. 4. deepak bhai desai (jainism) ye kehte hain ki 'aatma so parmatma' koi seprate paramatma nhai hai aatma hi sab kuch hai iske total karm khatam hone par isko moksh milta hai. inke anusaar moksh mein kisi bahut ucch place par jagah mil jati hai jahan aatma chetan roop ho kar rest karti hai. 5. gurbaani katha vichaar inka kehna hai ki hum sab log human beings hain(yahan par physical body par hi zor diya gaya hai) hamare andar jo aatma hai wo rabb ki jot hai(in ke according hum khud aatma nahi hain hum physical body hai aatma hum se seperate hai). please in sab questions ke bare mein kuch jaankaari dein please mujhe appke articles ka intezaar rahega.
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