16 सितंबर 2010
क्या कुलदीप जी के प्रश्न का जबाब है । आपके पास ? 1
kuldeep singh पोस्ट श्री कुलदीप सिंह का उत्तम प्रश्न..? पर jawab ke liye dhanyawad rajeev jipar apke jawab me asal bindu kahin kho gya hai kyonki maine apni post me aisa to nahi kaha ke main maas khane ka ichhuk hun ya khana chahta hun ya maas khana thek baat hai, ye sab mere dwara uthaya gya ek point hai jis se mere man me uthe prashno ka samadhan ho .
@ सच कह रहा हूं । कुलदीप जी । अपने 25 साल के साधु जीवन में आज तक मुझे ऐसा ( आप के समान ) व्यक्ति या दूसरे शब्दों में साधु आत्मा नहीं मिला । जो आपकी तरह प्रकृति को पूरी संवेदना से महसूस करता हो । पेड पौधों और पत्थर आदि में भगवान की बात प्रायः अनजाने में कह तो बहुत लोग जाते हैं । पर उनको भी कष्ट होता है । ये कोई बिरला ही महसूस कर सकता है । कुछ समय पहले वृन्दावन में एक साधु थे । अभी पता नहीं । हैं या शरीर छोड गये । वे अपने आश्रम में लगी एक टहनी भी नही तोडने देते थे । भले ही उससे कितनी भी दिक्कत क्यों न हो रही हो । संक्षिप्त में कहूं । तो उनके बाद मैंने आपके ऐसे भाव जाने । और सत्य कहूं । तो इतना संवेदनशील मैं खुद भी नहीं हूं । प्रथमदृष्टया मैंने यही समझा कि आप नानवेज होंगे । मगर पूर्व संस्कारों के कारण आपकी आत्मा आपको मांस खाने पर कचोटती होगी । और मुझे आपके नानवेज होने का आभास इसलिये हुआ था । ( आपका वाक्य ) ..ke agar chicken ko khane se paap lagta hai to gobhi ko khane se paap kyo nahi lagta..? आपके दूसरे कमेंट से मुझे आत्मिक खुशी हुयी । इसमें कोई संदेह नहीं है ।
main aisa keh kar apko dosh nahi de raha hun aur na hi apko kashat dena chahta hun, aap mujhse kahin zyada gyaani hai . par kuch vishay ab bhi mere man me hai, kirpya iska samadhan kijiye .
@ आपने तो फ़िर भी बेहद तार्किक और उच्चस्तर की बात कही है । प्रायः मूढमति लोग भी अगर कुछ कह देते हैं । तो सच्चे साधुओं को किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता । साधु संत का कार्य ही जीव को चेताना है । उसे सही गलत बताना है । सच्चे साधु को गाली देने पर भी साधु को खुशी ही होती है । कि चलो भाई मुझे गाली देकर ये शांति सकून महसूस कर रहा है । मुझे तो इस गाली से क्रोध आयेगा नहीं । ये गाली इसने अगर दूसरे को दी होती । तो अकारण उसे क्रोध आता । झगडा होता । क्या फ़ायदा था । चंदन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग । सर्प अपना विष रूपी ताप चन्दन को देता है । और चन्दन स्वभाव अनुसार उसे शीतलता ही देता है । फ़िर आपने तो जो प्रश्न उठाये हैं । वो निसंदेह मानव हित के हैं । मैंने ऊपर कहा है कि इस तरह की बात आमतौर पर करते हुये तो मैंने साधुओं को भी नही सुना । आपका दूसरा कमेंट आपके ग्यान की गहराई को बताता है ।1- apne kaha ke swas-swas ka karo vichara, bina swaas ka karo ahara .ab mujhje bataye ke kon si aisi cheej hai jo swaas nahi leti ?per-podhe, jeev-jantu, vanaspatiya, kand-mul, pathar, jungle, aur bhi bahut jinka varnan karna shayad abhi sambhav na ho, ye sab swaas lete hai aur chorte haijaise jeev-jantu oxygen lekar carbondioxide chorte hai .per-podhe din me carbon dioxside lekar oxygen chorte hai aur raat me oxygen lekar carbon dioxside chorte hai .vanaspatiya, sabjiya, fruit, ye sabhi swaas lete hai aur chorte hai . yahan tak ki ek nirjeev pathar bhi pani ya dharti me se urja sokh kar khud ko jeevit rakhta hai apne akaar ko badhata rehta hai .to hum kaise keh sakte hai inhe kasht nahi hota aur ye swaas nahi lete aur hum inhe kha sakte hai.?@ दरअसल कुलदीप जी । यहां आप उस प्वाइंट पर पहुंच गये । जहां पुरुष और प्रकृति दो ही होते हैं । आपकी बात सही भी है । और गलत भी है । स्वांस लेना और चेतन क्रिया ये दोनों एक बात नहीं हैं । उदाहरण के लिये कोई भी जीव मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । तब भी उसके शरीर में सडने आदि की क्रिया होती रहती है । तो क्या उसको कष्ट होता है ? धूप में पानी रखने से उसमें परिवर्तन होने लगता है । तो क्या उसको कष्ट होता है ? हरगिज नहीं । चलो थोडी देर के लिये मान लेते हैं कि कष्ट होता है । फ़िर कष्ट देने वाला कौन है ? और जिसको कष्ट दिया जा रहा है । वो कौन है ? क्या ये दो है ? हरगिज नहीं । पुरुष यानी चेतन और प्रकृति यानी जड माया । वो चेतन स्वयं ही ये सब खेल खेल रहा है । इसको समझने के लिये आपको जड माया के बारे में जानना होगा । माया मन से उत्पन्न विचार को कहते हैं । यानी एक चेतन के विचार मात्र से ये समस्त सृष्टि बन बिगड रही है । तभी मैंने पहले उत्तर में कहा कि ग्यान योग में पाप पुन्य नहीं होता । यानी वो परमात्मा अकेला ही है । दूसरा है ही नहीं । दूसरी उसके मन रूपी विचारों से बनी जड प्रकृति है । थोडा और समझे । इस तरह आप एक कार या बाइक को जीव नहीं मानेंगे क्या ? अगर एक पेड का चेतना स्रोत प्रथ्वी हवा पानी आदि है । तो कार को भी पेट्रोल हवा पानी सब चाहिये । भले ही वह दूसरे तरह से ये चीज उपयोग करता है । इसलिये चेतन स्वांस वही लेते है । जिनमें स्वांस क्रिया होती है । एक मनुष्य की तरह । या एक पक्षी आदि की तरह । और वही चेतन जीव हैं । पेड पौधे आदि जड जीव हैं । सुख दुख हमें मन से महसूस होता है । और पेड पौधों में मन नहीं होता । तो आपने जिस चीज को स्वांस लेना छोडना बताया है । वह चेतन क्रिया है । स्वांस लेना नहीं । ये कम्प्यूटर जिस पर इस वक्त आप उत्तर पड रहे हैं । इसमें चेतनता के । एक मनुष्य के बहुत से कार्य मौजूद हैं । पर ये जीव हरगिज नहीं हैं । इसलिये आप चेतन क्रिया और स्वांस क्रिया के अंतर को गहराई से समझें । क्रमशः ।
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1 टिप्पणी:
आदरणीय श्री राजीव जी,
आपका ब्लाग पढ़ा । आपने बड़ी गहन बातें लिखी । आपके बलाग में गुरूदेव कबीर की बाणी भी है । तंत्र का ज्ञान भी है लेकिन कबीर साहब ने कहा है कि तंत्र मंत्र सब झूठ है मत भरमों संसार । संभव हो तो सप्ष्ट करने का कष्ट करें ।
ओम ग्रोवर
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