20 सितंबर 2010
तंत्रमंत्र सब झूठ है मत भरमों संसार । 2
kapil पोस्ट कपिल जी मैं वाकई INFLUENCE हो गया । पर Sir thanx for viewing my article .... aapne apne vichaar to diye ni ? Chalo mera ek aur article vrat ( fasts) par । मेरे दोस्त के व्रत का सोलवां सोमवार । isitindya.blogspot.com ।
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अब आप कबीर के बारे में जानिये । काया में जो रमता वीर । कहते उसका नाम कबीर । परमात्मा चेतन रूप में शरीरी होकर जब सनातन सत्य का बोध कराने स्वरूप दर्शन..आत्मस्थिति शरीर युक्त होकर प्रकट होता है । उसको कबीर कहते हैं । इसको स्पष्ट मैंने इसलिये किया । कि चेतन वीर तो प्रत्येक काया में हैं । तो सब कबीर थोडे ही हो जायेंगे । अब जिस तरह आज भी भारत के बडे बडे विद्वान । ढाई अक्षर प्रेम के पढे सो...। कबीर के इस दोहे में ढाई अक्षर का मतलब प्रेम से लगा लेते हैं । और लगा क्या लेते हैं । दोहा पढकर ऐसा ही लगता है कि कबीर प्रेम के ही बारे में बात कर रहे हैं । क्योंकि प्रेम शब्द में ढाई अक्षर ही हैं । लेकिन सतगुरु कबीर साहेब ढाई अक्षर के गूढ महामन्त्र की बात कर रहे हैं । जिसको सदगुरु द्वारा आग्या चक्र से उठाकर । विहंगम मार्ग । दिव्य साधना DIVY SADHNA या विहंगम गति से अनन्त में ले जाया जाता है । कबीर साहब ने जिस समय यह बात कही वाममार्गी और तंत्र साधनाओं का बोलबाला था । यहां मैं एक बात स्पष्ट कर दूं कि घटिया साधनायें करके प्रेत पिशाच डाकिनी शाकिनी आदि को सिद्ध करने वाले अघोरी ओर अन्य मत के साधु नाम तो शिव या किसी अन्य देवता का लेते हैं कि हम उनके उपासक हैं । लेकिन यह एकदम सफ़ेद झूठ है । आज से 500 साल पहले इन निकृष्ट साधनाओं का बेहद बोलबाला हो गया था । और इसका सबसे बडा कारण इन साधनाओं में मदिरापान और संभोग की खुली छूट होना था । निर्वस्त्र साधक और साधिका साधना के नाम पर किसी नीच बुरे आचरण शक्तियों की साधना करते । और तदुपरान्त झूठे और मनमाने नियम के अनुसार उन्मुक्त संभोग करते । जिन आदमियों औरतों को साधना से कोई दिली वास्ता न था । वे भी खुले मदिरापान और किसी से भी संभोग करने की स्वतंत्रता के चलते इस ओर आकृष्ट हो जाते थे । मैंने पहले ही स्पष्ट किया । तंत्र की अच्छी साधना भी अंतिम परिणाम नरक पहुंचाने का ही देती है । अब आपके प्रश्न के मूलबिंदु पर बात करते हैं । @ आपके ब्लाग में गुरूदेव कबीर की बाणी भी है । तंत्र का ज्ञान भी है । लेकिन कबीर साहब ने कहा है कि तंत्र मंत्र सब झूठ है मत भरमों संसार ।....एक बात बेहद प्रसिद्ध है । ब्रह्म सत्य । जगत मिथ्या ? यानी संसार झूठा है । और ब्रह्म सत्य है । शास्त्रों का ये प्रसिद्ध वाक्य है । हालांकि ये बात सत्य है । लेकिन तात्विक स्तर पर है । व्यवहार स्तर पर जगत भी सत्य है । बल्कि आपके लिये ब्रह्म से ज्यादा जगत सत्य है । ब्रह्म की आप सिर्फ़ बात कर पाते हो । जगत को बिना कोशिश व्यवहार करते हो । तो उस अवस्था में आपके लिये बडा सत्य कौन सा है ? निश्चय ही जगत । आत्मा सत्य है । आत्मा अविनाशी है । शरीर झूठा है । शरीर नाशवान है । पर कब ? जब आप आत्मा को जान लो तो ? वरना तो शरीर ही ज्यादा सत्य है । और शरीर से ही आत्मा को जाना जा सकता है । तो अभी तो आपके लिये शरीर का ज्यादा महत्व है ।..मैं आपके प्रश्न में छिपे आशय को समझ गया । मैं आत्मग्यान या संत मत sant mat का साधक होने के बाद भी तंत्र के बारे में क्यों बात करता हूं ? मन्दिरी पूजा । बाद में तंत्र ग्यान या और बाद में कुन्डलिनी ग्यान की दिव्य साधना DIVY SADHNA और सबसे बाद में आत्मग्यान ये एक प्रकार की सीढियां हैं । जिनसे कोई भी साधक ऊंचाईयों पर चढता है । अपने 25 वर्ष के साधु जीवन में मेरे पहले 18 वर्ष तंत्र मंत्र साधना में ही बीते । क्योंकि समय नहीं आया था । आत्मग्यान के सदगुरु से मुलाकात नही हो पाई थी । गत 7 वर्षों से सतगुरु श्री शिवानन्द जी महाराज...परमहँस की शरण में आने के बाद मैं तंत्र मंत्र के तिलिस्मी मायाजाल से बाहर आ गया । जिसको मैं स्वयं को ऊपर परमात्मा की अपार कृपा ही मानता हूं । अब जहां तक मेरे blogs में तंत्र ग्यान की बात है । मैंने पहले ही कहा । सबको तो आत्मग्यान आत्म दर्शन मुश्किल ही मिल पाता है । भले ही ब्रह्म को सत्य कहने की परम्परा बन गयी हो । पर मेरी दृष्टि में जब तक संसार से प्रयोजन है । संसार भी उतना ही सत्य है । आपने तंत्र ग्यान की बात कुछ लेखों और प्रेत विवरण की कहानियों में देखी होगी । जरा विचार करें । कोई तंत्र से पीडित है । कोई प्रेत से पीडित है । मैं उसको बोलूं । कि तुम संत मत sant mat की दीक्षा ले लो । सुमरन करो । ये सब कष्ट भाग जायेंगे । तब उस पर क्या असर होगा ? दरअसल ये बाद की बात है । पहली समस्या उसकी सर पर खडी मुसीबत है । तो जैसा रोग वैसी दवा । बुद्ध का एक शिष्य । चार दिन से भूखे एक बेहद कमजोर व्यक्ति को लेकर उनके पास पहुंचा । और बोला । देखो कैसा नालायक है । मैं इसको आत्मग्यान की बात बता रहा हूं और ये है कि सुनता ही नहीं ? बुद्ध ने उसकी हालत देखकर । उसे भरपेट भोजन कराया । और जाने को कहा । फ़िर उस शिष्य से कहा । उसे अभी आत्मग्यान की नहीं । भोजन की बेहद जरूरत है ।सतगुरु कबीर साहेब ने पहले चक्र से लेकर आखिर तक की बात कही है । वेद हजारों पन्ने लिखकर भी नेति नेति कहता है । इसको नहीं जाना जा सकता है । इसको जानने की मेरी सामर्थ्य नहीं है । कबीर दो पन्ने में ही कह देता है कि इसको मात्र ढाई अक्षर पढकर जान सकते हो । समय के सतगुरु से मिलो । इसको जानना । जन्मों का खेल नहीं है । मृत्यु के बाद भी नहीं है । जीयत मुक्त सोय मुक्ता भाई । मर के मुक्ति किसने पाई । मरने के बाद की मुक्ति झूठ है । भुलावा है । मुक्ति प्रसाद तुम्हारी हथेली पर रखा है । यदि तुम सतगुरु की चौखट पर पहुंच जाओ । जहां मैं तंत्र आदि की बात कहता हूं । यह जगत व्यवहार है । जहां मैं आत्मग्यान की बात कहता हूं । वह मेरा ब्रह्म व्यवहार है । जहां मैं परमात्मा की स्वरूप दर्शन..आत्मस्थिति की बात कहता हूं । वह पारब्रह्म व्यवहार है । वही परमात्मा अनेक रूप में खेल रहा है । मैं मेरा महज एक झूठ है । राम जन्म के हेत अनेका । अति विचित्र एक ते एका । हरि व्यापक सर्वत्र समाना । प्रेम ते प्रगट होत । मैं । जाना । परमात्मा सब जगह है । बस तुम्हारी मैं उसको देखने में परदा बनी हुयी है । ये " मैं " जाते ही परमात्मा नजर आने लगता है । हंसा परमहंस जब होय जावे । पारब्रह्म परमात्मा साफ़ साफ़ दिखलावे । जय गुरुदेव की । जय जय श्री गुरुदेव ।
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