08 सितंबर 2010

श्री कुलदीप सिंह का उत्तम प्रश्न..?




kuldeep पोस्ट " परमात्मा का अनुभव ध्यान , सुमरन, चिन्तन " पर namashkar rajeev ji
kya aap mere ek swaal ka jawab de sakte hai..? kehte hai ki jeev ka maas khana ke liye khud ko produce karte hai.. to kirpya karke mujhe bataye ke agar paap hai par vanaspati me bhi to urja hoti hai, jab hum usko todte hai to unhe bhi kashat hota hai ..veh bhi kisi jeev ki bhanti roti hai kyoki veh bhi prakti ka ek ansh hai..to mujhe bataye ki meat aur gobhi me kya antar hai kyonki dono khud ko zinda rakhne chicken ko khane se paap lagta hai to gobhi ko khane se paap kyo nahi lagta..? kyoki hai to dono ek hi cheez to phir kyo hum sabjiyo ko satvik kehte hai aur chicken ko tamsik ya anatik bhojan..paap to dono ko khane me lagta hai..........? to phir insan kya khaye..? hai koi aisi cheez es sansar me jo urja ke ansh ke bagair ho. jisme jaan na ho, jisme atma na ho, jisme praan na ho ..to insan kaise khud ko paap se door rakhe..? mujhe apke jawab ki pratiksha hai .!
भाई कुलदीप जी । आपने जो प्रश्न किया है । वह एक आम आदमी के ही नहीं प्रायः ऐसे साधुओं के मन में भी रहता है । जो नानवेज के इच्छुक होते हैं । इस सम्बन्ध में सबसे पहले पहुंचे हुये संतों का मत आपको बता रहा हूं । स्वांस स्वांस का करो विचारा । बिना स्वांस का करो आहारा । अर्थात जिसमें स्वांस का आना जाना होता है । उसको जीव माना गया है । और वही वास्तव में जीव है । jisme atma na ho, jisme praan na ho ..ये आपने जाने या अनजाने में सही बहुत ऊंची बात कही है । वास्तव में सभी पेड पौधे और पहाड आदि भी 84 लाख योनियों के अंतर्गत स्थावर योनि में । यानी स्थिर रहने वाले । आते है । लेकिन फ़िर भी मनुष्य के द्वारा जीव को खाने का नियम नहीं है । इसका पूरा खुलासा करने से पहले एक बात जानें । एक शेर या मांस खाने वाले किसी हिंसक पशु में भी वही आत्मा है । जो एक मनुष्य में है । पर एक शेर को जीवहत्या का पाप नहीं लगेगा । क्योंकि उसके लिये वही भोजन बनाया गया है । एक राक्षस योनि वाले को जीवहत्या का पाप नहीं लगेगा । क्योंकि नियमानुसार ये भोग योनियां है । अब पाप पुन्य वाली बात करते हैं । मनुष्य जव तक आत्मा या आत्मग्यान को नहीं जानता । वह हर हाल में कर्मयोग के वश में है । और कर्मयोग के अनुसार जैसा मनुष्य करेगा । वैसा ही उसे भोगना होगा । मान लीजिये । आपको लगता है । कि मांस आदि को खाने में कोई पाप या बात नहीं हैं । तो कोई बात नहीं । पर आने वाले समय में जव आप chicken आदि योनियों में होंगे । तो फ़िर आपको भी कोई बुरा नहीं लगना चाहिये । जब आपको जीवित काटकर मसाले में लपेटकर तला भूना जाय । इसमें यदि आप कष्ट महसूस करते हैं । तो फ़िर दूसरे को भी कष्ट होता है । यह निश्चित है । अब कर्मयोग से हटकर आत्मग्यान की बात करें । तो आत्मा का भोजन आलू गोभी प्याज भी नहीं हैं । बल्कि अमीरस है । और ये अमीरस यदि आप टेकनीकली जानते हों । तो सिर्फ़ एक महीने का अन्दर प्राप्त करना सीख जाते हैं । इस में जो आनन्द हैं । वो किसी दिव्य भोजन में भी नहीं है । आत्मा हंस है । और अमृत इसका भोजन है । अमृत यानी जो कभी नहीं मरता और नित्य आनन्ददायी है । पाप पुन्य । अच्छा बुरा । हमारा बनाया हुआ है । संतो की भाषा में पाप पुन्य न होकर ग्यान अग्यान होता है । आलू गोभी आदि में चेतन जड होता है । यानी अचेतन अवस्था में । इसलियेइनको काटते पकाते वक्त कष्ट महसूस नहीं होता । जबकि स्वांस वाले जीवों को दैहिक और आत्मिक कष्ट दोनों ही होते है । और उनके दुखित भाव उनको खाने वाले को अंत में दुर्गति और फ़िर नरक में ले जाते हैं । यह सत्य है । कि इनको भी खाने से पाप लगता है । पर संतों के दिव्यग्यान अनुभव के आधार पर इंसानो के लिये इसमें एक चौंकाने वाली बात है । जैसे कि इंसान से एक चींटी मर जाती है । तो पाप कम होता है । इसकी तुलना में एक चिडिया मरती है । तो पाप अधिक है । चिडिया की तुलना में कुत्ता के शरीर के बराबर का जानबर मरता है । तो पाप और अधिक है । इसी तरह शरीर की आयु और श्रेष्ठता के आधार पर पाप पुन्य आंका जाता है । इनमें मनुष्य की हत्या का पाप सर्वाधिक है । अगर पाप पुन्य के आधार पर बात करें । तो आप ये सिद्धांत मान लीजिये कि आज जो आप कर रहें हैं । वही आने वाले समय या जन्मों में आपके साथ होगा । ये कर्मयोग का ईश्वरीय नियम है ।लेकिन ग्यानयोग में पारंगत हो जाने के बाद 56 व्यंजन भी स्वादहीन हो जाते हैं । अब जैसा कि मैंने कहा । अंतर्दृष्टि को जानने वाले संतों के अनुसार हरा धनिया आलू गोभी प्याज आदि खाने पर भी पाप है । पर ये पाप आपके अन्य सतकार्यों से 0 बैलेंस होता रहता है । अंत में मैं इतना ही कहूंगा । कि प्रश्न य़दि आपके अंदर उपजा है । तो उत्तर भी आपके ही अंदर है । मेरा उत्तर आपको संतुष्ट भी कर सकता है । और नये तर्क भी पैदा कर सकता है । इसलिये आप एक ग्यानयोग प्रक्टीकल द्वारा इस रहस्य या प्रश्न के उत्तर को अपनी आत्मा द्वारा जानों । और तुरंत उत्तर जानना चाहते हैं । तो कृपया श्री महाराज जी से 0 9639892934 पर बात करें । इस एक काल में निश्चय ही आपको एक अलग अनुभव होगा । बस इतना ध्यान रखना । संत मिलन को चालिये । तज माया अभिमान । ज्यूं ज्यूं पग आगे धरो । कोटिन यग्य समान ।

3 टिप्‍पणियां:

Surendra Singh Bhamboo ने कहा…

‘‘ आदत यही बनानी है ज्यादा से ज्यादा(ब्लागों) लोगों तक ट्प्पिणीया अपनी पहुचानी है।’’
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

मालीगांव
साया
लक्ष्य

kuldeep singh ने कहा…

jawab ke liye dhanyawad rajeev ji
par apke jawab me asal bindu kahin kho gya hai kyonki maine apni post me aisa to nahi kaha ke main maas khane ka ichhuk hun ya khana chahta hun ya maas khana thek baat hai, ye sab mere dwara uthaya gya ek point hai jis se mere man me uthe prashno ka samadhan ho
main aisa keh kar apko dosh nahi de raha hun aur na hi apko kashat dena chahta hun, aap mujhse kahin zyada gyaani hai
par kuch vishay ab bhi mere man me hai, kirpya iska samadhan kijiye

1- apne kaha ke swas-swas ka karo vichara, bina swaas ka karo ahara
ab mujhje bataye ke kon si aisi cheej hai jo swaas nahi leti
per-podhe, jeev-jantu, vanaspatiya, kand-mul, pathar,jungle,aur bhi bahut jinka varnan karna shayad abhi sambhav na ho, ye sab swaas lete hai aur chorte hai
jaise jeev-jantu oxygen le kar carbon dioxide chorte hai
per-podhe din me carbon dioxside lekar oxygen chorte haiaur raat me oxygen lekar carbon dioxside chorte hai
vanaspatiya, sabjiya, fruit, ye sabhi swaas lete hai aur chorte hai
yahan tak ki ek nirjeev pathar bhi pani ya dharti me se urja sokh kar khud ko jeevit rakhta hai apne akaar ko badhata rehta hai
to hum kaise keh sakte hai inhe kasht nahi hota aur ye swaas nahi lete aur hum inhe kha sakte hai.................?????

2- apne kaha ke ek chinti ko marne se kam paap lagta hai aur ek chidiya ko marne se adhik paap lagta hai aur ek kutte ke sharir ke brabar janwar ko marne se aur adhik paap lagta hai aur sabse zyada paap manushya ko marne se lagta hai
ab aap ye bataye ke chahe jeev atma 84 lakh yoniyo me se kisi bhi roop me ho, chahe wo chinti jaisa chota roop ho ya kutte jaisa roop ho aur ya manushya roop ho
un sabme parmeshwar ke ansh ke roop me jeev-atma vidyaman hai
to hum kaise keh sakte hai ke ek choti c chinti ko marne se kam lagega aur ek bade janwar ko marne se zyada paap lagega
jab ye nashwar sharir nashwan hi hai to kyon hum paap-punya ka lekha-jokha karte samay es sharir ka maapdand dekhte hai...........??????

3- main apki baat se sehmat hun ke atma ka bhojan amiras hai par mera kendar bindu ye dehik sharir hai
es sharir ko jeevit banaye rakhne ke liye ise urja ki jarurat hoti hai jo sabjiyyo, kand-mul,fruits,etc aadi se prapat hoti hai
aur jab hum apne es sharir ki jarurato ko pura karne ke liye parmeshwar ke ansh rupi sabjiyo ko todte hai to ve bhi roti hai unhe bhi kashat hota hai
aur es tarah hum na chahte huye bhi jeev hatya ke paap se grast ho jate hai
kyoki ye sab bhi ek jeev hatya jaisa hi hai ya yun kahe ki ek prakar ki jeev hatya hi hai, jaise kisi maa ke bache ko china kar pka kar kha jana.

agar apko lagta hai ke meri ye sabhi baate jayaz hai to kirpya apne gyaan se en par prakash daliye
mujhe apke jawab ki pratiksha rahegi

from
kuldeep singh
kuldeep_zk@yahoo.co.in

abracadabra ने कहा…

कुलदीप जी आप लोग ग्यानी लोग हो और मेरे हाथ में तो अभी कायदा भी नहीं आया परन्तु मेरी बुधि के अनुसार तत्व अवम गुण प्रधान वस्तुओ पर भी ध्यान दिया जाता है जैसे एक तत्व प्रधान व् सतगुन से परिपूर्ण यदि कोई आहार है तो अति उत्तम अन्यथा दो तत्व (जल, पृथ्वी ) प्रधान सतगुन से परिपूर्ण आहार उत्तम अदि अदि मांस भक्षण तम गुण की अधिकता लिए होता है और तम गुण का प्रभाव अथवा प्रतिक्रिया एक साधक के लिए आप मुझ से अधिक बेहतर जानते होंगे | वैसे मेरे लिए ये सिर्फ पढ़ा पढाया ज्ञान ही है क्युकी में खुद पथभ्रष्ट हु |