08 सितंबर 2010

सुरति का अर्थ सुनना और निरति का देखना है ।


सुरति शब्द आम आदमी के लिये अपरिचित ही है । सतसंग में जब सुरति शब्द का प्रयोग होता है । तो नये लोग सिर्फ़ मुंह ताकते हैं कि आखिर ये किसके विषय में बात हो रही है ? जबकि निरति शब्द अक्सर पढने को मिल जाता है । सुरति का तकनीकी मतलब मैं कई बार बता चुका हूं । मन बुद्धि चित्त अहम । जिनसे हम संसार को जान रहें हैं । ये सारा खेल खेल रहे हैं । ये इन्हीं चारो । मन बुद्धि चित्त अहम । से हो रहा है । जिसे अंतःकरण कहते हैं । यही हमारा सूक्ष्म शरीर भी होता है । और सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे मन कहते हैं । ये बेर की गुठली के आकार का है । और इस पर चेतन का फ़ोकस पड रहा है । इन्हीं चारो । मन बुद्धि चित्त अहम । को योगक्रिया द्वारा एक कर देने पर सुरति बन जाती है । सुरति का भाव अर्थ सुनना है । और निरति का देखना है । लेकिन पहले सुरति की बात करते हैं । अभी मनुष्य की अग्यान स्थिति में सुरति 7 शून्य नीचे उतर आयी है । इसीलिये उसे ये संसार अजीव और रहस्यमय लग रहा है ? अब सबसे पहले 1 शून्य की बात करते हैं । पहला शून्य । यहां कुछ भी नहीं हैं । लेकिन बेहद अजीव बात ये है कि इसी कुछ भी नहीं से ही । सब कुछ हुआ है । या कुछ नहीं ही सब कुछ है । Everything is nothing but nothing to everything । संतों ने इसी को कहा है । चाह गयी । चिंता गयी । मनुआ बेपरवाह । जाको कछू न चाहिये । वो ही शहंशाह ।
तो पहले शून्य में थोडी हलचल या थोडा प्रकंपन vibration हुआ । 2 शून्य में ये प्रकंपन कुछ अधिक हो गया । 3 शून्य में कुछ और भी अधिक हुआ । 4 शून्य में ये vibration और भी बड गया । फ़िर 5 वां 0 और उसके बाद 6 वां शून्य । 7 वें शून्य में ये vibration अक्षर रूप में यानी निरंतर होने लगा । इसी एक विशेष धुनिरूपी vibration से जिसको शास्त्रों में अक्षर कहा गया है । पूरी सृष्टि का खेल चल रहा है । इसी से सूर्य चन्द्रमा तारे आदि गति कर रहे हैं । इसी से मनुष्य़ का शरीर बालपन जवानी बुडापा आदि को प्राप्त होता है । इसी से आज बनी एक मजबूत बिल्डिंग निश्चित समय बाद जर्जर होकर धराशायी हो जाती है । आधुनिक विग्यान की समस्त क्रियायें इसी vibration के आश्रित हैं । जैसे मोबायल फ़ोन से बात होना । वायरलेस इंटरनेट । टी . वी आदि के सिग्नल । हमारी आपस की बातचीत । यानी हम हाथ भी हिलाते है । तो वह भी इसी vibration की वजह से हिल पाता है । इसी को चेतन या करेंट भी कह सकते हैं । शुद्ध रूप में ये र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र इस तरह की धुनि है । बाद में आधा शक्ति या माया ने इसमें म्म्म्म्म जोड दिया । तब ये र्म्र्म्र्म्र्म्र्म्र्म्र्म इस तरह हो गया । सरलता से समझने के लिये रररररर हो रही धुनि माया से अलग हो जाती है । लेकिन जब तक रमरमरम ऐसी धुनि है । तब तक ये माया से संय़ूक्त हैं । इसीलिये राम को सबसे बडा माना जाता है । इसीलिये कहा जाता है । सियाराम मय सब जग जानी । करहुं प्रनाम जोरि जुग पानि । यही र और म पहले स्त्री पुरुष हैं । यही असली राम है ।
संत या योगी इसी को पाने की या जानने की लालसा करते हैं । यही आकर्षण यानी कृष्ण या श्रीकृष्ण भी है । मेरा अनुभव ये कहता है कि यदि आदमी संसार को निसार देखता है । या कामवासना धन ऐश्वर्य को भोग चुका है । और खुद की अपनी वास्तविकता जानना चाहता है । और उसे पतंजलि योग के ध्यान का थोडा पूर्व अभ्यास है । तो सिर्फ़ सात दिन में इस शून्य को जाना जा सकता है । बस शर्त यही है कि ये सात दिन उसे एकान्त में और बतायी गयी विधि के अनुसार अभ्यास करना होगा । इस तरह सुरति इस शब्द या अक्षर को जान लेगी । और यहां पहुंचकर सुरति निरति हो जायेगी । यानी सुनना बन्द करके प्रकृति के रहस्यों या माया को देखने लगेगी । क्योंकि यहीं से जुडकर आदि शक्ति यानी पहली औरत अपना खेल कर रही है । ये नारी रूपा प्रकृति अक्षर रूपी पुरुष या चेतन से निरंतर सम्भोग कर रही है । ये सब महज किताबी बातें नहीं सुरति शब्द योग द्वारा इसको आसानी से जाना जा सकता है ।

8 टिप्‍पणियां:

chunaram vishnoi ने कहा…

rajivji!surati pe aakkkkkkkkkkkpki prstuti kamal ki hai. rrrrrrr....., +mmmmmm ka snyojn kamal ka btaya!

Unknown ने कहा…

में मिलना चाहता हु एक हफ्ता के लिए भी तैयार हूं प्लीज् मुझ से संपर्क करे में बहुत उलझन में हु प्लीज मेरा मोबाइल 7206203086 पानीपत

Unknown ने कहा…

हमने सुरति निरति का मतलब जाना

Unknown ने कहा…

गुरु जी हम मिलना चाहते है कृपया कर संपर्क कैसे हो सकता है बताएं। मोाइल नंबर 9999566422

Unknown ने कहा…

बहुत सटीक व सत्य वचन!

chunaram vishnoi ने कहा…

सुरति सूरत का आंतरिक रूप है। सूरत मतलब आकृति छवि तो इसमें "इ"जुड़ ने से यहआंतरिक दशा या मन:स्थिति हो जाती है यही सुरति है जो सच्चे गुरु के दिये सबद से संयुक्त हो जाने से सम्मिलन होता परमचेतन से।।

कवि कैलाश 'सुमा' ने कहा…

जो गुरु सत्य के अनुभव की ही बात कही और सत्य का अनुभव करवावें वही सदगुरु हो सकता है अन्यथा सब कोरी व आडम्बर की बातें हैं....
मानो नहीं जानो....सत्य अनुभव की वस्तु है...

Unknown ने कहा…

सुरती असल में आत्मा के कान की तरह हैं और नीरती उसकी आंखे।

अधिक जानकारी के लिए साधना टीवी शाम 7:30 Pm रोजाना