कल ही अशोक जी से मेरी फ़ोन पर बात हो रही थी । तब अशोक ने कहा - अद्वैत का साहित्य पढ कर और अद्वैत से जुङे विभिन्न महात्माओं के सतसंग से मुझे इतना निचोङ तो समझ में आ गया कि - अजपा निर्वाणी नाम साधना ही प्रत्येक मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य है । और इसको सच्चे रूप से पाना भी । यानी सच्चे सतगुरु से । और राधा स्वामी पंथ । करोंदा हरियाणा का रामपाल । और जैथरा ( एटा उ.प्र ) के कोई अनुरागी जी आदि आदि से जगह जगह दीक्षा प्राप्त करके भी कुछ ही दिनों में ( पूर्व में अनुभवी होने से ) मुझे अहसास होने लगा कि नहीं अभी वो तलाश पूरी नहीं हुयी । जिसकी मुझे चाहत है । और जो अंतिम और शाश्वत सत्य है ।
तब महाराज ! एक दिन बेहद बैचेनी से मैं देर रात को बिस्तर पर बैठकर बच्चों की तरह रोने लगा । अनुराग सागर मेरे पास ही रखी हुयी थी । और मैं कह रहा था - तुम मुझे सच्चा मार्ग क्यों नहीं दिखाते । यदि
वास्तव में कोई प्रभु है । फ़िर प्रकट क्यों नहीं होते । मैं कब से इस तलाश में पागल हुआ जा रहा हूँ आदि ।
अशोक जी ने बहुत प्रार्थना की । पर प्रभु प्रकट नहीं हुये । तो नहीं हुये । पर बैचेनी को जब तक चैन न मिल जाये । वह अपना असर दिखाती ही रहती है । सो अशोक अगले दिन नेट पर आफ़िस में सर्च करने लगे । और नेटावतार राजीव बाबा प्रकट हो गये ।
और तब अशोक जी ने अगली बार प्रभु से कुछ ऐसे प्रार्थना की - रब्ब जी ! तुसी बी कमाल के हो जी । ये कौन से बाबा से मिला दिया ? इसने तो मेरा बचा खुचा चैन भी छीन लिया । अब रात 4-4 बजे तक मैं ब्लाग ही पढता रहता हूँ ।
कुछ ऐसा ही संस्मरण मुझे बनारस के संजय की पत्नी ने सुनाया - गुरुजी ! ये भगवान वगवान को पता नहीं अक्ल है भी या नहीं ? मैंने देवी माँ से ( कुंवारे पर ) एक सीधा सच्चा ( अप्रत्यक्ष रूप से गुलाम ) पति माँगा था । और ये देखो । ये । मुझे क्या दे दिया ? ये तो कुछ ज्यादा ही सीधा है ।
मैंने कहा - गलती तुम्हारी है । आज के समय में कोई सीधा सच्चा आदमी होता है क्या ? तब भगवान बेचारा कहाँ से लाये । संजय दरअसल पैदा नहीं हुआ था । ये हङप्पा मोहन जोदङो की खुदाई में निकला था
। और संग्रहालय से लाया गया है । इसीलिये थोङा ओल्ड माडल है । अब 7 जन्म तुम्हें इसी ओल्ड माडल से काम चलाना होगा । क्योंकि विवाह रस्म के समय तुम्हीं ने 7 जन्म साथ निभाने की कसम खायी थी । वो बेचारी हैरान रह गयी । उफ़ ! नासमझी में मैंने 7 जन्म के गारंटी कार्ड पर हस्ताक्षर कर दिये ।
O MY GOD ! WHERE ARE YOU ?
कुछ कुछ इसी तरह के संस्मरण अनुभव मुझे बहुत लोग बताते हैं - राजीव जी ! आप भी कमाल के बाबा हो । जब से हम आपके सम्पर्क में आये हैं । सपने में भी आप ही आते हो । लेकिन उस तरह । जिस तरह धुरंधर बालरों के सपने में भी सचिन तेंदुलकर चौके छक्के लगाता हुआ नजर आता है ।
खैर..ये सब तो दुनियाँदारी की बातें हैं । हमें इन पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिये । और इहलोक परलोक सुधारने हेतु भक्ति सतसंग पर अधिक ध्यान देना चाहिये । इसलिये अशोक जी द्वारा भेजे आत्म ज्ञान के इन पदों पर जो विभिन्न सन्तों द्वारा रचित हैं । बात करते हैं ।
। श्री बावरी साहेब जी । पद -
सतगुरु से बिधि जानि कै जपिये अजपा जाप । कहैं बावरी नाम धुनि हर दम सुनिये आप ।
इसी में सारा खेल है मुक्ति भक्ति औ ज्ञान । कहैं बावरी जिन गहयो ते भे पुरुष महान ।
- बात एकदम सीधी सी है । स्वांसों में होते ( हर 4 सेकेंड में 1 नाम ) निर्वाणी अजपा ( यानी जो स्वयं हो रहा
है ) जाप की विधि सतगुरु से जानिये । और ये नाम ( जो ध्वनि रूप ही है ) ध्वनि हमेशा सुनिये । इसी में पूरा ज्ञान भक्ति और मुक्ति का रहस्यमय खेल छुपा हुआ है । बाबरी का कहना है । जिन्होंने इस ज्ञान को गृहण किया । वो पुरुष महान हुये ।
। श्री यारी साहेब जी । पद -
यारी नाम से कीजिये जियति होय कल्यान । यारी कह तब जाय खुलि राम नाम की तान ।
सब में ब्यापक औ बिलग सुर मुनि कीन्ह बयान । यारी कह सतगुरु बिना मिलत नहीं यह ज्ञान ।
- सन्त यारी साहेब का कहना है - आप मित्रता इसी निर्वाणी नाम ( ध्वनि रूप.. सो-हंग ) से करें । तो जीते
जी ही कल्याण है । इनका मतलब है । जैसा द्वैत भक्ति वाले चिल्लाते हैं । मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा । मरने के बाद तरोगे आदि । ऐसा कुछ नहीं । इसकी क्या गारंटी । मरने के बाद क्या होगा ? लेकिन इस नाम भक्ति में ऐसा नहीं है । ये जीते जी और तुरन्त ही परिणाम देना शुरू करता है । यानी जीते जी आपकी जानकारी में मुक्त होना अनुभव कराता है । लेकिन ये मित्रता तभी मानी जायेगी । जब ररंकार या अन्दर होते आसमानी शब्द या नाम की ( झींगुर जैसी ) झंकार बताये गये अभ्यास द्वारा प्रकट हो जाये । तब आपको उसका बोध होता है । जिसके बारे में देवताओं मुनियों ने कहा कि वही सब में व्याप्त है । और सबसे अलग भी । लेकिन बिना सतगुरु के यह ज्ञान किसी कीमत पर नहीं मिलता ।
। श्री मलिक मुहम्मद जी । चौपाई -
मलिक मुहम्मद नाम हमारा । जायस में भा जन्म हमारा ।
मुसलमान के गृह में जानो । बचन हमार सत्य सब मानो ।
संतन की संगति हम कीन्हा । राम भजन में तन मन दीन्हा ।
सतगुरु बिन कोइ भेद न पावै । पढ़ि सुनि के धीरज नहि आवै ।
- हमारा नाम मलिक मुहम्मद है । जायस स्थान पर मुसलमान के घर में जन्म हुआ । हमारा वचन सत्य जानना । मैंने सन्तों की संगति की । और राम ( ध्वनि रूप ररंकार ) के भजन में तन मन लगा दिया । लेकिन इस ज्ञान को सिर्फ़ पढ सुन कर शान्ति प्राप्त नहीं होती । इसे क्रियात्मक रूप में समय के सतगुरु से प्राप्त करना चाहिये ।
बरतन माँजौ पांचौं । अपने गुरु से भेद जानि कै इन से मन लै टांचौ ।
तब यह तुमको डरैं हमेशा राम नाम रंग राचौ । बालमीकि भागवति औ मानस श्री गीता को बांचौ ।
वेद शस्त्र उपनिषद सांगिता यही कहत हैं सांचौ । शान्त दीन बनि तन में घुसि कै राम सिया को जांचौ ।
नर तन सुफ़ल करौ जियतै में चन्द रोज का ढांचौ । मरना पैदा होना छूटै फेरि न जग में नाचौ ।
जो नहिं मानो सुर मुनि बानी मिलै न कौड़ी कांचौ । या से चेति क अजर अमर हो बरतन मांजौ पांचौ ।
- अलग अलग सन्तों ने अपने स्तर और भाव के अनुसार वाणियाँ कही हैं । 5 गिनती से जहाँ कहीं भाव आया है । वह 5 तत्व या 5 विकार - काम । क्रोध । लोभ । मोह । मद के लिये स्थिति अनुसार होता है । यहाँ मलिक का आशय 5 विकार - काम । क्रोध । लोभ । मोह । मद से है । इन्हीं विकारों को धोने की सलाह
दी है । किसी सच्चे गुरु से नाम का भेद लेकर जब तुम उसमें मन लगाते हो । तो ये विकार भयभीत होकर दुबक जाते हैं । यानी प्रभावित करना बन्द कर देते हैं । वाल्मीकि रामायण भागवत रामचरित मानस गीता वेद शास्त्र उपनिषद आदि सभी 1 ही सच ? कहते हैं । शान्त सहज होकर शरीर के अन्दर प्रविष्ट होकर राम ( ररंकार ध्वनि ) से सिया ( सुरति ) को जोङ दो । तो ये चन्द रोज के लिये मिला मनुष्य शरीर रूपी ढांचा आपका ये जीवन सफ़ल कर देगा । और आवागमन रूपी जन्म मरण का चक्कर छूट जायेगा । ये मनुष्य जो बन्दर की तरह नाचता रहता है । फ़िर नहीं नाचना होगा । अगर ये देवताओं ऋषियों मुनियों की बात आप नहीं मानते । तो कच्ची कौङी भी प्राप्त न होगी । इसलिये चेत के इन विकारों को धोते हुये अजर अमर होने के लिये ये निर्वाणी भजन करो ।
। श्री बीरू साहेब जी । पद -
बीरू पीजै नाम की, कह बीरू लो मान । चढ़ै अमल उतरै नहीं सुनो नाम की तान ।
सतगुरु बिन नहिं मिल सकै मुक्ति भक्ति का ज्ञान । बीरू कह मानो सही चारों युग परमान ।
- नानक साहब ने कहा है - नाम खुमारी नानका चढी रहे दिन रात । बोदा नशा शराब का उतर जाय प्रभात । कुछ कुछ ऐसे ही भाव में सन्त वीरू ने कहा है - ये चारों युग में सिद्ध है । सतगुरु शरण में जाये बिना भक्ति मुक्ति का ज्ञान नहीं मिलता । और ये ( सत ) नाम का नशा एक बार चढने के बाद उतरता नहीं । अतः इसी नाम रस का पान करो ।
। श्री दरिया साहब जी । ( मारवाड़ ) पद -
दरिया कह रंकार धुनि हर शै से सुनि लेहु । सतगुरु से बिधि जानि के सूरति शब्द पै देहु ।
सरनि तरनि औ मरनि सब जियतै ही लो जान । दरिया कह मानो बचन खुलि जाँय आँखी कान ।
- सन्त दरिया कहते हैं - सदगुरु से विधि जान के सुरति ( मन बुद्धि चित्त अहम ये चार छिद्र रूपी उपकरण
जब एक छिद्र हो जाता है । उसे सुरति कहते हैं ) को शब्द से लगाकर ररंकार ध्वनि को सुनो । और असली मरना तरना शरण ( क्या ) ये जीते जी ही जान लो ।
। श्री अंधे शाह जी । पद -
भक्तौं आवै जाय सो माया । चौरासी का चक्कर तब तक जब तक गर्भ बकाया ।
सतगुरु करो भजन बिधि जानो सोधन होवै काया । सारे चोर शाँति हवै बैठैं मन उनसे हटि आया ।
नाम के संग रंगै फिरि ढँग से मुद मंगल दरसाया । अमृत पिऔ सुनौ घट बाजा मधुर मधुर चटकाया ।
सुर मुनि मिलैं उछंग उठावैं जय जय कहि गुन गाया । नागिनि जागि लोक चौदह में सुख से तुम्हैं घुमाया ।
षट चक्कर तब चलैं दरस भै सातौं कमल फुलाया । अदभुद महक स्वरन से जारी रोम रोम पुलकाया ।
कंठ रुँधि जाय बोल न फूटै नैन नीर झरि लाया । हालै शीश बदन थरार्वै पलक भाँजि नहिं पाया ।
लय परकास नाम धुनि जारी हर शै से भन्नाया । सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख में छबि छाया ।
तुरिया तीत दशा यह जानो सहज समाधि कहाया । अन्धे कहैं अन्त साकेतै चढ़ि सिंहासन धाया ।
- इसका अर्थ सरल अन्दाज में जानिये । आये जाये सो ( जीव ) माया । यानी आत्मा अचल है । जब तक मुक्त होकर आवागमन रूपी जन्म मरण का फ़ंदा नहीं छूटता । तब तक 84 ( लाख योनियाँ ) और नरक के समान गर्भवास करना ही होगा । सदगुरु द्वारा बतायी भजन विधि से शरीर का शोधन होता है । और काम क्रोध लोभ मोह मद ये चोर शान्त होकर बैठ जाते हैं । नाम के रंग में रंगने से मंगल होता है । शरीर के अन्दर होने वाली मधुर धुन ( बाजा ) सुनो । और अमृत पान करो । इससे कुण्डलिनी ( नागिन ) जागृत होकर 14 लोकों में सुख से तुम्हें घुमाती है । 6 चक्रों के दर्शन होकर 7 कमल खिल उठते हैं ( जो वास्तव में सामान्य अवस्था में उल्टे और सिमटी पंखुरियों की अवस्था में है ) विभिन्न अदभुत सुगन्धों से रोम रोम पुलकित हो उठता है । ये इतनी आनन्दमय अवस्था है कि - भावावेश में गला रुंध जाता है । आँखों से आँसू झरने लगते हैं । नाम धुन की लय । और आत्मा का प्रकाश । अपलक स्थिति । शरीर में कंपन । और विभिन्न देवों के दर्शन । सहज समाधि की यह अवस्था तुरियातीत स्थिति ( स्वपन । नींद । जागृत से परे की चौथी अवस्था ) होती है ।
तब महाराज ! एक दिन बेहद बैचेनी से मैं देर रात को बिस्तर पर बैठकर बच्चों की तरह रोने लगा । अनुराग सागर मेरे पास ही रखी हुयी थी । और मैं कह रहा था - तुम मुझे सच्चा मार्ग क्यों नहीं दिखाते । यदि
वास्तव में कोई प्रभु है । फ़िर प्रकट क्यों नहीं होते । मैं कब से इस तलाश में पागल हुआ जा रहा हूँ आदि ।
अशोक जी ने बहुत प्रार्थना की । पर प्रभु प्रकट नहीं हुये । तो नहीं हुये । पर बैचेनी को जब तक चैन न मिल जाये । वह अपना असर दिखाती ही रहती है । सो अशोक अगले दिन नेट पर आफ़िस में सर्च करने लगे । और नेटावतार राजीव बाबा प्रकट हो गये ।
और तब अशोक जी ने अगली बार प्रभु से कुछ ऐसे प्रार्थना की - रब्ब जी ! तुसी बी कमाल के हो जी । ये कौन से बाबा से मिला दिया ? इसने तो मेरा बचा खुचा चैन भी छीन लिया । अब रात 4-4 बजे तक मैं ब्लाग ही पढता रहता हूँ ।
कुछ ऐसा ही संस्मरण मुझे बनारस के संजय की पत्नी ने सुनाया - गुरुजी ! ये भगवान वगवान को पता नहीं अक्ल है भी या नहीं ? मैंने देवी माँ से ( कुंवारे पर ) एक सीधा सच्चा ( अप्रत्यक्ष रूप से गुलाम ) पति माँगा था । और ये देखो । ये । मुझे क्या दे दिया ? ये तो कुछ ज्यादा ही सीधा है ।
मैंने कहा - गलती तुम्हारी है । आज के समय में कोई सीधा सच्चा आदमी होता है क्या ? तब भगवान बेचारा कहाँ से लाये । संजय दरअसल पैदा नहीं हुआ था । ये हङप्पा मोहन जोदङो की खुदाई में निकला था
। और संग्रहालय से लाया गया है । इसीलिये थोङा ओल्ड माडल है । अब 7 जन्म तुम्हें इसी ओल्ड माडल से काम चलाना होगा । क्योंकि विवाह रस्म के समय तुम्हीं ने 7 जन्म साथ निभाने की कसम खायी थी । वो बेचारी हैरान रह गयी । उफ़ ! नासमझी में मैंने 7 जन्म के गारंटी कार्ड पर हस्ताक्षर कर दिये ।
O MY GOD ! WHERE ARE YOU ?
कुछ कुछ इसी तरह के संस्मरण अनुभव मुझे बहुत लोग बताते हैं - राजीव जी ! आप भी कमाल के बाबा हो । जब से हम आपके सम्पर्क में आये हैं । सपने में भी आप ही आते हो । लेकिन उस तरह । जिस तरह धुरंधर बालरों के सपने में भी सचिन तेंदुलकर चौके छक्के लगाता हुआ नजर आता है ।
खैर..ये सब तो दुनियाँदारी की बातें हैं । हमें इन पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिये । और इहलोक परलोक सुधारने हेतु भक्ति सतसंग पर अधिक ध्यान देना चाहिये । इसलिये अशोक जी द्वारा भेजे आत्म ज्ञान के इन पदों पर जो विभिन्न सन्तों द्वारा रचित हैं । बात करते हैं ।
। श्री बावरी साहेब जी । पद -
सतगुरु से बिधि जानि कै जपिये अजपा जाप । कहैं बावरी नाम धुनि हर दम सुनिये आप ।
इसी में सारा खेल है मुक्ति भक्ति औ ज्ञान । कहैं बावरी जिन गहयो ते भे पुरुष महान ।
- बात एकदम सीधी सी है । स्वांसों में होते ( हर 4 सेकेंड में 1 नाम ) निर्वाणी अजपा ( यानी जो स्वयं हो रहा
है ) जाप की विधि सतगुरु से जानिये । और ये नाम ( जो ध्वनि रूप ही है ) ध्वनि हमेशा सुनिये । इसी में पूरा ज्ञान भक्ति और मुक्ति का रहस्यमय खेल छुपा हुआ है । बाबरी का कहना है । जिन्होंने इस ज्ञान को गृहण किया । वो पुरुष महान हुये ।
। श्री यारी साहेब जी । पद -
यारी नाम से कीजिये जियति होय कल्यान । यारी कह तब जाय खुलि राम नाम की तान ।
सब में ब्यापक औ बिलग सुर मुनि कीन्ह बयान । यारी कह सतगुरु बिना मिलत नहीं यह ज्ञान ।
- सन्त यारी साहेब का कहना है - आप मित्रता इसी निर्वाणी नाम ( ध्वनि रूप.. सो-हंग ) से करें । तो जीते
जी ही कल्याण है । इनका मतलब है । जैसा द्वैत भक्ति वाले चिल्लाते हैं । मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा । मरने के बाद तरोगे आदि । ऐसा कुछ नहीं । इसकी क्या गारंटी । मरने के बाद क्या होगा ? लेकिन इस नाम भक्ति में ऐसा नहीं है । ये जीते जी और तुरन्त ही परिणाम देना शुरू करता है । यानी जीते जी आपकी जानकारी में मुक्त होना अनुभव कराता है । लेकिन ये मित्रता तभी मानी जायेगी । जब ररंकार या अन्दर होते आसमानी शब्द या नाम की ( झींगुर जैसी ) झंकार बताये गये अभ्यास द्वारा प्रकट हो जाये । तब आपको उसका बोध होता है । जिसके बारे में देवताओं मुनियों ने कहा कि वही सब में व्याप्त है । और सबसे अलग भी । लेकिन बिना सतगुरु के यह ज्ञान किसी कीमत पर नहीं मिलता ।
। श्री मलिक मुहम्मद जी । चौपाई -
मलिक मुहम्मद नाम हमारा । जायस में भा जन्म हमारा ।
मुसलमान के गृह में जानो । बचन हमार सत्य सब मानो ।
संतन की संगति हम कीन्हा । राम भजन में तन मन दीन्हा ।
सतगुरु बिन कोइ भेद न पावै । पढ़ि सुनि के धीरज नहि आवै ।
- हमारा नाम मलिक मुहम्मद है । जायस स्थान पर मुसलमान के घर में जन्म हुआ । हमारा वचन सत्य जानना । मैंने सन्तों की संगति की । और राम ( ध्वनि रूप ररंकार ) के भजन में तन मन लगा दिया । लेकिन इस ज्ञान को सिर्फ़ पढ सुन कर शान्ति प्राप्त नहीं होती । इसे क्रियात्मक रूप में समय के सतगुरु से प्राप्त करना चाहिये ।
बरतन माँजौ पांचौं । अपने गुरु से भेद जानि कै इन से मन लै टांचौ ।
तब यह तुमको डरैं हमेशा राम नाम रंग राचौ । बालमीकि भागवति औ मानस श्री गीता को बांचौ ।
वेद शस्त्र उपनिषद सांगिता यही कहत हैं सांचौ । शान्त दीन बनि तन में घुसि कै राम सिया को जांचौ ।
नर तन सुफ़ल करौ जियतै में चन्द रोज का ढांचौ । मरना पैदा होना छूटै फेरि न जग में नाचौ ।
जो नहिं मानो सुर मुनि बानी मिलै न कौड़ी कांचौ । या से चेति क अजर अमर हो बरतन मांजौ पांचौ ।
- अलग अलग सन्तों ने अपने स्तर और भाव के अनुसार वाणियाँ कही हैं । 5 गिनती से जहाँ कहीं भाव आया है । वह 5 तत्व या 5 विकार - काम । क्रोध । लोभ । मोह । मद के लिये स्थिति अनुसार होता है । यहाँ मलिक का आशय 5 विकार - काम । क्रोध । लोभ । मोह । मद से है । इन्हीं विकारों को धोने की सलाह
दी है । किसी सच्चे गुरु से नाम का भेद लेकर जब तुम उसमें मन लगाते हो । तो ये विकार भयभीत होकर दुबक जाते हैं । यानी प्रभावित करना बन्द कर देते हैं । वाल्मीकि रामायण भागवत रामचरित मानस गीता वेद शास्त्र उपनिषद आदि सभी 1 ही सच ? कहते हैं । शान्त सहज होकर शरीर के अन्दर प्रविष्ट होकर राम ( ररंकार ध्वनि ) से सिया ( सुरति ) को जोङ दो । तो ये चन्द रोज के लिये मिला मनुष्य शरीर रूपी ढांचा आपका ये जीवन सफ़ल कर देगा । और आवागमन रूपी जन्म मरण का चक्कर छूट जायेगा । ये मनुष्य जो बन्दर की तरह नाचता रहता है । फ़िर नहीं नाचना होगा । अगर ये देवताओं ऋषियों मुनियों की बात आप नहीं मानते । तो कच्ची कौङी भी प्राप्त न होगी । इसलिये चेत के इन विकारों को धोते हुये अजर अमर होने के लिये ये निर्वाणी भजन करो ।
। श्री बीरू साहेब जी । पद -
बीरू पीजै नाम की, कह बीरू लो मान । चढ़ै अमल उतरै नहीं सुनो नाम की तान ।
सतगुरु बिन नहिं मिल सकै मुक्ति भक्ति का ज्ञान । बीरू कह मानो सही चारों युग परमान ।
- नानक साहब ने कहा है - नाम खुमारी नानका चढी रहे दिन रात । बोदा नशा शराब का उतर जाय प्रभात । कुछ कुछ ऐसे ही भाव में सन्त वीरू ने कहा है - ये चारों युग में सिद्ध है । सतगुरु शरण में जाये बिना भक्ति मुक्ति का ज्ञान नहीं मिलता । और ये ( सत ) नाम का नशा एक बार चढने के बाद उतरता नहीं । अतः इसी नाम रस का पान करो ।
। श्री दरिया साहब जी । ( मारवाड़ ) पद -
दरिया कह रंकार धुनि हर शै से सुनि लेहु । सतगुरु से बिधि जानि के सूरति शब्द पै देहु ।
सरनि तरनि औ मरनि सब जियतै ही लो जान । दरिया कह मानो बचन खुलि जाँय आँखी कान ।
- सन्त दरिया कहते हैं - सदगुरु से विधि जान के सुरति ( मन बुद्धि चित्त अहम ये चार छिद्र रूपी उपकरण
जब एक छिद्र हो जाता है । उसे सुरति कहते हैं ) को शब्द से लगाकर ररंकार ध्वनि को सुनो । और असली मरना तरना शरण ( क्या ) ये जीते जी ही जान लो ।
। श्री अंधे शाह जी । पद -
भक्तौं आवै जाय सो माया । चौरासी का चक्कर तब तक जब तक गर्भ बकाया ।
सतगुरु करो भजन बिधि जानो सोधन होवै काया । सारे चोर शाँति हवै बैठैं मन उनसे हटि आया ।
नाम के संग रंगै फिरि ढँग से मुद मंगल दरसाया । अमृत पिऔ सुनौ घट बाजा मधुर मधुर चटकाया ।
सुर मुनि मिलैं उछंग उठावैं जय जय कहि गुन गाया । नागिनि जागि लोक चौदह में सुख से तुम्हैं घुमाया ।
षट चक्कर तब चलैं दरस भै सातौं कमल फुलाया । अदभुद महक स्वरन से जारी रोम रोम पुलकाया ।
कंठ रुँधि जाय बोल न फूटै नैन नीर झरि लाया । हालै शीश बदन थरार्वै पलक भाँजि नहिं पाया ।
लय परकास नाम धुनि जारी हर शै से भन्नाया । सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख में छबि छाया ।
तुरिया तीत दशा यह जानो सहज समाधि कहाया । अन्धे कहैं अन्त साकेतै चढ़ि सिंहासन धाया ।
- इसका अर्थ सरल अन्दाज में जानिये । आये जाये सो ( जीव ) माया । यानी आत्मा अचल है । जब तक मुक्त होकर आवागमन रूपी जन्म मरण का फ़ंदा नहीं छूटता । तब तक 84 ( लाख योनियाँ ) और नरक के समान गर्भवास करना ही होगा । सदगुरु द्वारा बतायी भजन विधि से शरीर का शोधन होता है । और काम क्रोध लोभ मोह मद ये चोर शान्त होकर बैठ जाते हैं । नाम के रंग में रंगने से मंगल होता है । शरीर के अन्दर होने वाली मधुर धुन ( बाजा ) सुनो । और अमृत पान करो । इससे कुण्डलिनी ( नागिन ) जागृत होकर 14 लोकों में सुख से तुम्हें घुमाती है । 6 चक्रों के दर्शन होकर 7 कमल खिल उठते हैं ( जो वास्तव में सामान्य अवस्था में उल्टे और सिमटी पंखुरियों की अवस्था में है ) विभिन्न अदभुत सुगन्धों से रोम रोम पुलकित हो उठता है । ये इतनी आनन्दमय अवस्था है कि - भावावेश में गला रुंध जाता है । आँखों से आँसू झरने लगते हैं । नाम धुन की लय । और आत्मा का प्रकाश । अपलक स्थिति । शरीर में कंपन । और विभिन्न देवों के दर्शन । सहज समाधि की यह अवस्था तुरियातीत स्थिति ( स्वपन । नींद । जागृत से परे की चौथी अवस्था ) होती है ।